मित्रो! फ़ुरसत के क्षणों में पुरानी साहित्यिक पत्रिका परिधि-१० जनवरी १०१२ पढ़ने लगा। अशोक जैन ’पोरवाल" जी की रचना ’अगर मैं कभी......." ने ध्यान खींचा। वर्तमान समय में लोगों ने संबन्धों को भावनात्मक पहलू से दूर ले जाकर आर्थिक पहलू पर टिका दिया है। ऐसे समय में पिता के भावनात्मक पत्र के माध्यम से अशोक जी ने एक पिता की भावनाओं किस प्रकार उकेरा है। आइये आप भी पढ़िये
अपने लिए जिएं-१
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* समाज सेवा और परोपकार के नाम पर घपलों की भरमार करने वाले महापुरूष परोपकारी
होने और दूसरों के लिए जीने का दंभ भरते हैं। अपनी आत्मा की मोक्ष के लिए पूरी
द...
11 months ago
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