मित्रो! फ़ुरसत के क्षणों में पुरानी साहित्यिक पत्रिका परिधि-१० जनवरी १०१२ पढ़ने लगा। अशोक जैन ’पोरवाल" जी की रचना ’अगर मैं कभी......." ने ध्यान खींचा। वर्तमान समय में लोगों ने संबन्धों को भावनात्मक पहलू से दूर ले जाकर आर्थिक पहलू पर टिका दिया है। ऐसे समय में पिता के भावनात्मक पत्र के माध्यम से अशोक जी ने एक पिता की भावनाओं किस प्रकार उकेरा है। आइये आप भी पढ़िये
कैसा प्यार?
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डॉ.सन्तोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी रोते-रोते नेहा का बुरा हाल था। वह स्वयं भी
नहीं समझ पा रही थी कि आज उसे इतना रोना क्यों आ रहा है? समस्याएँ तो वह बचपन
से ही झ...
3 weeks ago
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