Sunday, July 21, 2024

नहीं, प्रेम का गाया गाना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना। 


प्रेम को ही है, जीवन माना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।

हमें भले ही, हो ठुकराया,

हमने सीखा, गले लगाना।

नहीं, प्रेम का गाया गाना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।।

नहीं चाहते, तुमको पाना।

नहीं किसी को है ठुकराना।

स्वाभिमान से जीओ प्यारी,

नहीं गाते हम प्रेम का गाना।

नहीं चाहते तुम्हें रिझाना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।।

नहीं तोड़ सकते हम तारे।

अपने सपने, तुम पर वारे।

तुमरी खुशियों की खातिर ही,

तुमरे प्रेमी, हमको प्यारे।

मन्द-मन्द तुम बस, मुस्काना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।।

हमारी खातिर, मत तुम रुकना।

हमारी खातिर, मत तुम झुकना।

आनन्द मिले, तुम वहाँ पर जाओ,

साथ हमारे, मिले, यदि सुख ना।

जिसको चाहो, उसको पाना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।।

बंधन में ना, तुमको बाँधा।

खुद मिटकर, तुमरा हित साधा।

जब हो जरूरत, तुम आ जाना,

तुमरे लिए है, हमारा कांधा।

तुमरे बिन, मरना, हमने माना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।।

तुम्हारे साथ, जीवन है झरना।

तुम्हारे साथ, नहीं है डरना।

प्रेम सदैव आनन्द बाँटता,

नहीं किसी का सुख है हरना।

सबके जीवन में सुख लाना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।।


Saturday, July 6, 2024

मजबूरी में साथ न आओ

कर्म करो, और पाओ

                                              / डॉ.सन्तोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

चाह है केवल इतनी मेरी, तुम आगे बढ़ती जाओ।

मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।

अपनी कोई चाह नहीं है।

दिल को दिल की थाह नहीं है।

पीड़ा भी सुख से सह लेते,

पीड़ा देती आह नहीं है।

स्वस्थ रहो, और मस्त रहो, मनमौजी बन जाओ।

मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।

मजबूर तुम्हें, नहीं करेंगे।

हमने किया, हम ही भरेंगे।

प्रेम कभी भी नहीं बाँधता,

खुश रहो, हम सब सह लेंगे।

चाह नहीं, कुछ पाने की, जो चाहो तुम पाओ।

मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।

इच्छा कोई शेष नहीं है।

तुम्हारे लायक वेश नहीं है।

चाहत अपनी पा लो बढ़कर,

हमारे पास कुछ शेष नहीं है।

हमको नहीं कोई शिकायत, जहाँ चाहो वहाँ जाओ।

मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।

पाने की कोई चाह नहीं है।

देने को कुछ खास नहीं है।

स्वस्थ रहो, बस यही कामना,

प्रेम मरा, अहसास नहीं है।

अब हम नहीं रोकेंगे तुमको, जिसको चाहो, जाओ।

मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।


Tuesday, June 11, 2024

पितृ गृह में अधिकार हो पूरा,

स्वागत में पति बैठे हैं। 


बेटी को हम बेटी समझें, भार मान क्यूँ बैठे हैं।

कोरे हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।

जिस घर में है जन्म लिया।

जिस घर को है प्रेम दिया।

भूल से भी, ना कहना पराई,

बसता उसका वहाँ जिया।

बेटी है, पूरा हक उसका, सब उसके दिल में पैठे हैं।

कोरा हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।

बचपन में है प्रेम लुटाया।

किशोर अवस्था पाठ पढ़ाया।

कण-कण में अधिकार है उसका,

प्रेम से सींचा, प्रेम बढ़ाया।

दहेज का तो विरोध हो करते, संपत्ति दबाए बैठे हैं।

कोरा हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।

बेटी-बचाओ, बेटी पढ़ाओ।

सम्मान, साथ, अधिकार दिलाओ।

वारिस बेटियों को स्वीकारो,

सहभाग करो, सहभागी पाओ।

पितृ गृह में अधिकार हो पूरा, स्वागत में पति बैठे हैं।

कोरा हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।


Monday, June 10, 2024

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो,

 कुछ मस्ती भी तो जरूरी है


जहाँ चाहो तुम, रहो वहाँ पर, साथ की, ना मजबूरी है।

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो, कुछ मस्ती भी तो जरूरी है।।

पढ़ी-लिखी अब समझदार हो।

खतरों से भी, खबरदार हो।

अपने पैरों खड़ी हुई हो,

समझती खुद को असरदार हो।

इच्छा अपनी, मर चुकी सारी, तुम्हारी, न रहें, अधूरी है।

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो, कुछ मस्ती भी तो जरूरी है।।

मजबूरी में साथ न आओ।

जो चाहो, वह गाना गाओ।

साथ हमारे रस न मिलेगा,

जाओ प्यारी, जीवन रस पाओ।

जीवन फसल, लुट गई सारी, बाकी अब, बस तूरी है।

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो, कुछ मस्ती भी तो जरूरी है।।

रूप, रस, गंध, स्पर्ष नहीं है।

पाने की भी, अब, चाह नही है।

चाहत तुम्हारी, रहीं अधूरी,

तुम्हारे दिल की थाह नहीं है।

नहीं जरूरत, तुम्हें हमारी, तुम्हारी दुनिया,  पूरी है।

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो, कुछ मस्ती भी तो जरूरी है।।


Sunday, June 9, 2024

सुधा समझ पीने चले थे

 निकली विष की प्याली है

9.06.2024

सब कहते काली, काली है, वह, कानूनन घरवाली है।

सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।

झूठ और कपट की देवी।

शातिर वह पैसों की सेवी।

पैसा जाति, पैसा धर्म है,

बेईमान प्राणों की लेवी।

जाति झूठ और धर्म झूठ है, तन फर्जी, मन जाली है।

सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।

रूप  नहीं, कोई रंग नहीं है।

जीने का कोई ढंग नहीं है।

संबन्ध बनाकर वह है लूटे,

विषकन्या! कोई संग नहीं है।

काया की ही नहीं, कलुष, वह, अन्तर्तम से काली है।

सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।

केवल धन की लूट न करती।

रक्त पिपासू प्राण भी हरती।

शिकार फंसा जो, कभी न छोड़ा,

सब कुछ ले, सम्मान भी हरती।

पीड़ित कर ही, खुशी मिले उसे, रूदन पर, बजाती ताली है।

सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।


कविता अब लिखते हैं केवल

 तुम बिन हमने गान न गाए

23.05.2024

तुमने जीना सिखलाया था, तुम बिन जीना सीख न पाए।

कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।

हमें नहीं तुमसे कुछ पाना।

हमको केवल साथ निभाना।

भले ही हमसे दूर रहो तुम,

गाते हैं हम तुम्हारा गाना।

तुम्हारे दर्द में डूबे थे हम, अपना दर्द कभी सुना न पाए।

कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।

तुम्हारे बिना, जीवन में रस ना।

तुम्हें रोकना, हमारे बस ना।

तुम्हारी नहीं, कोई मजबूरी,

खुश रह सको, वहां ही बसना।

बिन बंधन भी बँधे हुए हम, साथ नहीं हो, मान न पाए।

कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।

कदम-कदम यहाँ जाल बिछे हैं।

शातिराना षड्यंत्र, फंसे हैं।

लुटेरों ने निर्दय बन लूटा,

सिर्फ नेह, कुछ तार बचे हैं।

तुम नहीं, बस याद साथ हैं, यादों को हम, भुला न पाए।

कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।

तुम्हें जरूरत नहीं हमारी।

हमें जरूरत सदा तुम्हारी।

तुम्हारे साथ तो है जग सारा,

आश बची ना, कोई हमारी।

षड्यंत्रों के वार हैं झेले, तुम्हारे सिवा कुछ सोच न पाए।

कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।


Thursday, June 6, 2024

जीवन सरिता बहती प्रतिपल

रूकने का कोई काम नहीं है

19-5-2024


कुछ पल का ठहराव ये पथ में, ठहरो, पर, ये, धाम नहीं है।

जीवन सरिता बहती प्रतिपल, रूकने का कोई काम नहीं है।।

जन्म से लेकर मृत्यु तक।

शमशान से बस्ती तक।

अकिंचन से बड़ी हस्ती तक।

हवाई जहाज से कश्ती तक।

अविरल यात्रा है इस जग में, रुक जाए, वह नाम नहीं है।

जीवन सरिता बहती प्रतिपल, रूकने का कोई काम नहीं है।।

शिक्षा ही प्रगति लाती है।

शिक्षा मानव को भाती है।

शिक्षा से पथ मिलता सबको,

शिक्षा विकास गान गाती है।

प्रकृति से शिक्षा मिलती है, शिक्षा बिन कोई राम नहीं है।

जीवन सरिता बहती प्रतिपल, रूकने का कोई काम नहीं है।।

प्रेम नहीं, कभी ठहरा है।

उथला हो या फिर गहरा है।

परिवर्तन है प्रकृति प्रकृति की,

थमा नहीं कोई चेहरा है।

दिन भी चलता, रात भी चलती, गति की कोई शाम नहीं है।

जीवन सरिता बहती प्रतिपल, रूकने का कोई काम नहीं है।।


Saturday, June 1, 2024

प्रेम है सबसे अच्छी पूजा

और कोई अरदास नहीं है

                                              

प्रेम नहीं है कोई सौदा, बदले में कोई आश नहीं है।

प्रेम है सबसे अच्छी पूजा, और कोई अरदास नहीं है।।

पथ पर आगे बढ़ते जाओ।

प्रसन्न रहो, सदा मुस्काओ।

निराश कभी ना होना तुम प्रिय, 

जब तुम कभी, चाहत ना पाओ।

जरूरतें हीं, पूरी होतीं, आता सब कुछ पास नहीं है।

प्रेम है सबसे अच्छी पूजा, और कोई अरदास नहीं है।।

तुम्हारे लिए थे, कुछ पल ठहरे।

डूब रहे अब, जल में गहरे।

तुमको तुम्हारा मिले किनारा,

नहीं लगाएंगे हम पहरे।

जो चाहो, कर्म से पाओ, हमारे पास अब खास नहीं है।

प्रेम है सबसे अच्छी पूजा, और कोई अरदास नहीं है।।

तुमको मिल जाए, प्रेम तुम्हारा।

मजबूत बनो, चाहो न सहारा।

पथ में बाधक, नहीं बनेंगे,

तुम्हें मुबारक, पथ हो तुम्हारा।

भाव! अभी भी बाकी हैं कुछ, जीवित, अब भी लाश नहीं हैं।

प्रेम है सबसे अच्छी पूजा, और कोई अरदास नहीं है।।


Thursday, May 23, 2024

लिखना-पढ़ना ही आता था

 तुमने जीवन गान सिखाए

23.05.2024


तुमसे जीना सीखा हमने, तुम बिन जीवन मान न पाए।

लिखना-पढ़ना ही आता था, तुमने जीवन गान सिखाए।।

तुम बिन जीवन पीछे छूटा।

परिस्थितियों ने जमकर कूटा।

हिसाब-किताब सब भूल गए हैं,

जमाने ने है, सब कुछ लूटा।

भटक रहे जंगल में फिर से, तुम बिन कौन जो राह दिखाए।

लिखना-पढ़ना ही आता था, तुमने जीवन गान सिखाए।।

राह भटक कर, तुमसे बिछड़े।

जीवन की राहों में पिछड़े।

तुमको मित्र मिले बहुतेरे,

हमको मिले लुटेरे हिजड़े।

नहीं रही इच्छा जीने की, तुम बिन कौन जो चाह जगाए।

लिखना-पढ़ना ही आता था, तुमने जीवन गान सिखाए।।

तुमको अपने मित्र मिल गए।

जीवन के सब रंग खिल गए।

नृत्य करो, खुशियों में झूमो,

देखो न हमें, घाव सिल गए।

तुम्हारे सुख से सुखी रहें हम, तुम्हारी आश ही आश जगाए।

लिखना-पढ़ना ही आता था, तुमने जीवन गान सिखाए।।


Tuesday, May 21, 2024

जहाँ जरूरत, वह खुबसूरत

जाने की तैयारी है

19-5-2024


नहीं कोई है, संगी-साथी, नहीं किसी से यारी है।
जहाँ जरूरत, वह खुबसूरत, जाने की तैयारी है।।
जहाँ भेज दें, वहीं जाएँगे।
सेवा से संतुष्टि पाएँगे।
नहीं कोई इच्छा है अपनी,
शिक्षा प्रसार के, गीत गाएँगे।
समावेशी शिक्षा मिले सबको, लगाएँ ऊर्जा सारी है।
जहाँ जरूरत, वह खुबसूरत, जाने की तैयारी है।।
भाषा की बाधा न रहेगी।
मात्र-भाषा में शिक्षा मिलेगी।
कक्षा कक्ष से बाहर जाकर,
अनुभव से भी सीख फलेगी।
बहुविधि आकलन करने हेतु अब, आई परख की बारी है।
जहाँ जरूरत, वह खुबसूरत, जाने की तैयारी है।।
जन-सेवक हम सारे शिक्षक।
शिक्षार्थी भी, साथ परीक्षक।
नवाचार कक्षा में कर अब,
निपुण बनें, छात्र और शिक्षक।
सब-शिक्षित और कुशल बनेंगे, नर हों या फिर नारी है।
जहाँ जरूरत, वह खुबसूरत, जाने की तैयारी है।।

Monday, May 20, 2024

योजना, कर्म, संतुष्टि के बिन,

असमय ही मर जाते हैं

20/05/2024
टारगेट, जब तनाव देत हैं, कर्म न हम कर पाते हैं।
योजना, कर्म, संतुष्टि के बिन, असमय ही मर जाते हैं।।
जीवन का है अर्थ समझना।
नहीं किसी को व्यर्थ समझना।
संदर्भ और प्रयोग समझकर,
जिज्ञासु! वाक्य का अर्थ समझना।
जीवन का ही, लक्ष्य न समझे, लक्ष्य गान, हम गाते हैं।
योजना, कर्म, संतुष्टि के बिन, असमय ही मर जाते हैं।।
कर्म तुम्हारे हाथ, सही है।
यही सीख, गीता ने कही है।
यात्रा का, आनंद उठाओ,
आगे भी तो, वही मही है।
कर्म बीज है, धैर्य सिंचाई, समय पर ही, फल आते हैं।
योजना, कर्म, संतुष्टि के बिन, असमय ही मर जाते हैं।।
राष्ट्रप्रेमी की, नहीं, कुछ इच्छा।
कदम-कदम है, मौज परीक्षा।
कर्म की खातिर, कर्म करो बस,
अनुभव देता, सच्ची दीक्षा।
फल नहीं, बस कर्म लक्ष्य हैं, हम सबको समझाते हैं।
योजना, कर्म, संतुष्टि के बिन, असमय ही मर जाते हैं।।

Sunday, May 19, 2024

माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका,

 हर रूप में सदैव अनूठी हो

13.02.2024


ब्रह्माणी सृजन करती हो, जीवन की तुम ही बूटी हो।

माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका, हर रूप में सदैव अनूठी हो।।

सरस प्रेम की मूरत हो।

सदगुण निधि खुबसूरत हो।

ज्ञान की देवी, हो सरस्वती,

क्रोध में काली, भय पूरत हो।

आकषर्ण में सबको बाँधा, गृहस्थ धर्म की खूँटी हो।

माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका, हर रूप में सदैव अनूठी हो।।

प्रथम षिक्षिका तुम मानव की।

विध्वंसक हो तुम दानव की।

कभी मृत्यु की देवी हो तुम,

प्रेम भरी फुहार सावन की।

रहस्य नीति से छलती जग को, प्रेम से जग को लूटी हो।

माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका, हर रूप में सदैव अनूठी हो।।

काम की देवी रति तुम्ही हो।

वेदों की भी ऋचा तुम्हीं हो।

लक्ष्मण की तुम रेख न लांघो,

रामायण की सीता तुम्हीं हो।

वैभव की देवी लक्ष्मी हो, शक्ति स्रोत, ना चूँटी हो।

माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका, हर रूप में सदैव अनूठी हो।।

गंभीरता की खान तुम्हीं हो।

हल्की होकर पान तुम्हीं हो।

सहनषीलता की देवी तुम,

षिक्षा की तो शान तुम्हीं हो।

पुरुषार्थ असफल हो जाता, किस्मत संगिनी रूठी हो।

माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका, हर रूप में सदैव अनूठी हो।।


Sunday, May 12, 2024

एकादश दोहे-मां


१. पत्नी जब माता बने, मां का देते मान।   

पत्नी की ही शान है, मातृ दिवस बस गान।।

2. फोटो ही हैं खिंच रहे, छपते हैं संदेश। 

 मिलने को मां तरसती, कब आएगा देश।।

3. बाहर मां का दिवस है, घर में है अंजान।  

खाने को है तरसती, कैसा मिलता मान।।

4. घड़ी घड़ी हमने पिया,  मां का पावन दूध। 

खाना हम ना दे सके, वाह वाह हो खूब।।

5. ना कोई मुझको कमी, सच ना मां के बोल।

 भूखी रह कर जी रही, पीकर विष के घोल।।

6. मां तो मां है आज भी,  सब कुछ देती वार। 

भूखी भी आशीष दे, सहे भूख की मार।।

7. सब कुछ उसको मिल रहा, झूठे बोले बोल। 

सच हमसे ना कह सके, यही हमारी पोल।।

8. रोटी सुत ना दे सके, जीवन को धिक्कार। 

व्यर्थ मान सम्मान है, हम हैं बस मक्कार।।

9. कितना अक्षम आज में, कितना हूं लाचार। 

मां को साथ न मिल सका, नीच हुआ आचार।।

10. कदम-कदम पर अब तलक, होता आया फेल।                  

जीने में जीवन नहीं, जीवन जलती जेल।।

11. जननी को ही मान ना, रोटी को है रार।  

जीवन का कुछ मोल ना, जीवन है बस खार।।

Thursday, April 11, 2024

रिश्तों का गुलदस्ता तो बस

 प्रेम रंग से खिलता है


पल में तोला, पल में माशा, पल में मन बन जाता है।

पल में बोला, पल में खोला, पल में रिश्ता बन जाता है।

परिवर्तन है मूल जगत का, मानव पशु बन जाता है।

स्वारथ यहाँ पर प्रेम कहाता, प्रेमी मौत बन आता है।

आकर्षण होता है विष में, शातिर विश्वास जमाता है।

काले लोग हैं, काले दिल हैं, प्रेम ठगी का नाता है।


विश्वास से ही है धोखा होता, विश्वासघात कहलाता है।

नारी स्वार्थ बस, नारीत्व बेचती, वह धंधा बन जाता है।

कानूनों से खेल खेलते, जीवन खिलवाड़ बन जाता है।

शातिर औरत शिकार खेलती, मर्द शिकार बन जाता है।

झूठे दहेज के केस हैं होते, फर्जी, बलात्कार हो जाता है।

व्यक्ति और परिवाह हैं मिटते, विश्वास ढह जाता है।


विश्वास, प्रेम, निष्ठा से ही, समाज का आधार बनता है।

आस्था और समर्पण से, परिवार का आँगन सजता है।

तेरा-मेरा, अपना-पराया, रिश्तों का बाजा बजता है।

अधिकारों के संघर्ष से, घर का, ताना-बाना विखरता है।

कानूनों से प्रेम न उपजे, सिर्फ अपराध उपजता है।

रिश्तों का गुलदस्ता तो बस, प्रेम रंग से खिलता है। 


जीवन साथी नहीं है कोई,

आओ कुछ पग साथ चलें


जीवन का कोई नहीं ठिकाना, कैसे जीवन साथ चले?

जीवन साथी नहीं है कोई, आओ कुछ पग साथ चलें॥



चन्द पलों को मिलते जग में, फ़िर आगे बढ़ जाते है।

स्वार्थ सबको साथ जोड़ते, झूठे रिश्ते-नाते हैं।

समय के साथ रोते सब यहां, समय मिले तब गाते हैं।

प्राणों से प्रिय कभी बोलते, कभी उन्हें मरवाते हैं।

अविश्वास भी साथ चलेगा, कुछ करते विश्वास चलें।

जीवन साथी नहीं है कोई, आओ कुछ पग साथ चलें॥



कठिनाई कितनी हों? पथ में, राही को चलना होगा।

जीवन में खुशियां हो कितनी? अन्त समय मरना होगा।

कपट जाल है, पग-पग यहां पर, राही फ़िर भी चलना होगा।

प्रेम नाम पर सौदा करते, लुटेरों से लुटना होगा।

एकल भी तो नहीं रह सकते, पकड़ हाथ में हाथ चलें।

जीवन साथी नहीं है कोई, आओ कुछ पग साथ चलें॥



शादी भी धन्धा बन जातीं, मातृत्व बिक जाता है।

शिकार वही जो फ़से जाल में, शिकारी सदैव फ़साता है।

विश्वास बिन जीवन ना चलता, विश्वास ही धोखा खाता है।

मित्र स्वार्थ हित मृत्यु देता, दुश्मन मित्र बन जाता है।

कुछ ही पल का साथ भले हो, डाल गले में हाथ चलें।

जीवन साथी नहीं है कोई, आओ कुछ पग साथ चलें॥


Thursday, April 4, 2024

दोहा सबका मित्र है

 दोहा छोटा छन्द है, अभिव्यक्ति का नूर।

चन्द पलों में ही बनें, सीख देत भरपूर॥१॥


चार चरण में बनत है, दो हैं विषम कहात।

मात्रा तेरह विषम में, ग्यारह सम में आत॥२॥


पहला तेरह से बने, ये है विषम कहात।

तृतीय भी तो विषम है, तेरह से ही बात॥३॥


दूजे को सम कहत हैं, ग्यारह में हो बात।

चौथा इसका मित्र है, एक प्राण दो गात॥४॥


दोहा सबका मित्र है, सरल, सहज ओ नीक।

राष्ट्र्प्रेमी की चाह, आओ सब लो सीख॥५॥

Wednesday, April 3, 2024

राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०२०

 राष्ट्रीय शिक्षा नीति का, एक ही है मन्तव।

शिक्षित हों सब नागरिक, सब पहुंचे गन्तव्य॥१॥

गुणवत्ता की दौड़ में, शिक्षा करे सहाय।

कुशल, समर्थ, सक्षम बन, सब मिल करें उपाय॥२॥

पांच वर्ष आधार बन, तीन में हों तैयार।

तीन वर्ष का मध्य है, चार माध्यमिक पार।।३॥

साक्षरता संख्यांक से, निर्मित हो आधार।

कुशल और सक्षम बनें, विकसित कारोबार॥४॥

शिक्षक कुशल सक्षम बनें, विकसित हों संस्थान।

विद्यार्थी हो केन्द्र में, विश्व गुरु का मान॥५॥

नर-नारी में भेद ना, समावेश है नीक।

साथ-साथ सब मिल बढ़ें, कदम-कदम है सीख॥६॥


Friday, March 29, 2024

रेखा धन की खिच गई

 निन्यानवे के फ़ेर में भूल गए सब शौक।

पैसा हावी हो गया, नौकरी को बस धौक।

सम्बन्धों के जाल में, मरने लगा विश्वास,

रेखा धन की खिच गई, मिट गए सारे शौक॥