Thursday, April 11, 2024

रिश्तों का गुलदस्ता तो बस

 प्रेम रंग से खिलता है


पल में तोला, पल में माशा, पल में मन बन जाता है।

पल में बोला, पल में खोला, पल में रिश्ता बन जाता है।

परिवर्तन है मूल जगत का, मानव पशु बन जाता है।

स्वारथ यहाँ पर प्रेम कहाता, प्रेमी मौत बन आता है।

आकर्षण होता है विष में, शातिर विश्वास जमाता है।

काले लोग हैं, काले दिल हैं, प्रेम ठगी का नाता है।


विश्वास से ही है धोखा होता, विश्वासघात कहलाता है।

नारी स्वार्थ बस, नारीत्व बेचती, वह धंधा बन जाता है।

कानूनों से खेल खेलते, जीवन खिलवाड़ बन जाता है।

शातिर औरत शिकार खेलती, मर्द शिकार बन जाता है।

झूठे दहेज के केस हैं होते, फर्जी, बलात्कार हो जाता है।

व्यक्ति और परिवाह हैं मिटते, विश्वास ढह जाता है।


विश्वास, प्रेम, निष्ठा से ही, समाज का आधार बनता है।

आस्था और समर्पण से, परिवार का आँगन सजता है।

तेरा-मेरा, अपना-पराया, रिश्तों का बाजा बजता है।

अधिकारों के संघर्ष से, घर का, ताना-बाना विखरता है।

कानूनों से प्रेम न उपजे, सिर्फ अपराध उपजता है।

रिश्तों का गुलदस्ता तो बस, प्रेम रंग से खिलता है। 


जीवन साथी नहीं है कोई,

आओ कुछ पग साथ चलें


जीवन का कोई नहीं ठिकाना, कैसे जीवन साथ चले?

जीवन साथी नहीं है कोई, आओ कुछ पग साथ चलें॥



चन्द पलों को मिलते जग में, फ़िर आगे बढ़ जाते है।

स्वार्थ सबको साथ जोड़ते, झूठे रिश्ते-नाते हैं।

समय के साथ रोते सब यहां, समय मिले तब गाते हैं।

प्राणों से प्रिय कभी बोलते, कभी उन्हें मरवाते हैं।

अविश्वास भी साथ चलेगा, कुछ करते विश्वास चलें।

जीवन साथी नहीं है कोई, आओ कुछ पग साथ चलें॥



कठिनाई कितनी हों? पथ में, राही को चलना होगा।

जीवन में खुशियां हो कितनी? अन्त समय मरना होगा।

कपट जाल है, पग-पग यहां पर, राही फ़िर भी चलना होगा।

प्रेम नाम पर सौदा करते, लुटेरों से लुटना होगा।

एकल भी तो नहीं रह सकते, पकड़ हाथ में हाथ चलें।

जीवन साथी नहीं है कोई, आओ कुछ पग साथ चलें॥



शादी भी धन्धा बन जातीं, मातृत्व बिक जाता है।

शिकार वही जो फ़से जाल में, शिकारी सदैव फ़साता है।

विश्वास बिन जीवन ना चलता, विश्वास ही धोखा खाता है।

मित्र स्वार्थ हित मृत्यु देता, दुश्मन मित्र बन जाता है।

कुछ ही पल का साथ भले हो, डाल गले में हाथ चलें।

जीवन साथी नहीं है कोई, आओ कुछ पग साथ चलें॥


Thursday, April 4, 2024

दोहा सबका मित्र है

 दोहा छोटा छन्द है, अभिव्यक्ति का नूर।

चन्द पलों में ही बनें, सीख देत भरपूर॥१॥


चार चरण में बनत है, दो हैं विषम कहात।

मात्रा तेरह विषम में, ग्यारह सम में आत॥२॥


पहला तेरह से बने, ये है विषम कहात।

तृतीय भी तो विषम है, तेरह से ही बात॥३॥


दूजे को सम कहत हैं, ग्यारह में हो बात।

चौथा इसका मित्र है, एक प्राण दो गात॥४॥


दोहा सबका मित्र है, सरल, सहज ओ नीक।

राष्ट्र्प्रेमी की चाह, आओ सब लो सीख॥५॥

Wednesday, April 3, 2024

राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०२०

 राष्ट्रीय शिक्षा नीति का, एक ही है मन्तव।

शिक्षित हों सब नागरिक, सब पहुंचे गन्तव्य॥१॥

गुणवत्ता की दौड़ में, शिक्षा करे सहाय।

कुशल, समर्थ, सक्षम बन, सब मिल करें उपाय॥२॥

पांच वर्ष आधार बन, तीन में हों तैयार।

तीन वर्ष का मध्य है, चार माध्यमिक पार।।३॥

साक्षरता संख्यांक से, निर्मित हो आधार।

कुशल और सक्षम बनें, विकसित कारोबार॥४॥

शिक्षक कुशल सक्षम बनें, विकसित हों संस्थान।

विद्यार्थी हो केन्द्र में, विश्व गुरु का मान॥५॥

नर-नारी में भेद ना, समावेश है नीक।

साथ-साथ सब मिल बढ़ें, कदम-कदम है सीख॥६॥


Friday, March 29, 2024

रेखा धन की खिच गई

 निन्यानवे के फ़ेर में भूल गए सब शौक।

पैसा हावी हो गया, नौकरी को बस धौक।

सम्बन्धों के जाल में, मरने लगा विश्वास,

रेखा धन की खिच गई, मिट गए सारे शौक॥