Thursday, August 1, 2024

स्वार्थ है जग को घायल करता

 प्रेम घाव सहलाता है


अधिकारों से संघर्ष उपजता, कर्म जीना सिखलाता है।

स्वार्थ है जग को घायल करता, प्रेम घाव सहलाता है।।

पाना तो लालच होता है।

देना प्रेम का  सोता है।

चाहत बाकी रहे न उसकी,

कर्म की खातिर खुद खोता है।

सब कुछ देकर, सब कुछ सहकर, व्यक्ति सन्त कहलाता है।

स्वार्थ है जग को घायल करता, प्रेम घाव सहलाता है।।

सभी प्रेम के याचक जग में।

सभी प्रेम के वाचक जग में

प्रेम को वो जन क्या समझेंगे,

बन्धन पड़े हैं, जिनके पग में।

प्रेम किसी को कष्ट न देता, प्रेम नहीं बहलाता है।

स्वार्थ है जग को घायल करता, प्रेम घाव सहलाता है।।

प्रेम कोई अधिकार न माँगे।

प्रेम कभी भी प्यार न माँगे।

प्रेम नहीं कोई सौदा करता,

प्रेम कभी प्रतिकार न माँगे।

प्रेम में नहीं कोई सीमा होती, प्रेम नहीं टहलाता है।

स्वार्थ है जग को घायल करता, प्रेम घाव सहलाता है।।


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