Friday, April 30, 2021

अलग राह की राही हो तुम

 जाओ हमें सरोकार नहीं है

             

कर्म के पथिक, सच है साथी, और कोई दरकार नहीं है।

अलग राह की राही हो तुम, जाओ हमें सरोकार नहीं है।।

मूरख थे, हम समझ न पाये।

व्यर्थ ही तुमको गले लगाये।

सीधे-सच्चे पथिक हैं हम तो,

तुमने विकट थे,जाल विछाये।

प्रेम की तुम व्यापारी शातिर, हमारा कोई इकरार नहीं है।

अलग राह की राही हो तुम, जाओ हमें सरोकार नहीं है।।

तुम्हारा कोई दोष नहीं है।

हमको ही था होश नहीं है।

षड्यंत्रों की देवी हो तुम,

पास हमारे कोष नहीं है।

सच के साथ विश्वास पनपता, किसी से कोई तकरार नहीं है।

अलग राह की राही हो तुम, जाओ हमें सरोकार नहीं है।।

नित तुम प्रेम के जाल विछाओ।

नए-नए नित शिकार फंसाओ।

मुझे छोड़ो, और आगे जाओ,

और किसी को तुम भरमाओ।

तुम कानून के जाल हो बुनती, हमारी कोई सरकार नहीं है।

अलग राह की राही हो तुम, जाओ हमें सरोकार नहीं है।।


Wednesday, April 7, 2021

जीवन का मर्म

 कर्म, कर्म, कर्म!

 



कर्म, कर्म, कर्म!

कर्म जीवन का मर्म।


सक्रियता ही,

जीवन की निशानी है।

इच्छाएँ, कामनाएँ,

बाधाएँ, पीड़ाएँ,

आस्थाएँ और भावनाएँ,

चुनौतियों का बीड़ा,

तर्क-वितर्क के होते हुए भी,

कर्म के बिना,

व्यक्ति है बस एक कीड़ा।

जीना ही है,

सबसे प्राचीन धर्म!

कर्म, कर्म, कर्म!

कर्म जीवन का मर्म।


छोटा हो या बड़ा,

अमीर हो या गरीब,

बैठा हा या खड़ा,

गतिमान हो या अड़ा,

चलना ही,

जीवन की निशानी है,

थम गया जो,

वह है मरा।

जो पड़ गया,

वो है सड़ा।

कर्म से कैसी शर्म?

कर्म ही है सच्चा धर्म।


कर्म, कर्म, कर्म!

कर्म जीवन का मर्म।


Sunday, April 4, 2021

एकान्त और अकेलापन

 

एक समय था,

जब मैं चाहता था,

एकान्त।


तब कुछ पढ़ने की,

कुछ बनने की,

किसी को पढ़ाकर,

कुछ बनाने की,

तीव्र इच्छा, 

मुझे एकान्त के लिए,

मजबूर करती थी।


एक समय था,

जब साथी को चाह थी,

मेरे साथ की,

बेटे को चाह थी,

हर पल, हर क्षण,

हर दिन, हर राह,

मेरे साथ की

मुझसे दुलार की।


और मैं,

उन्हें आगे बढ़ाने,

उन्हें कुछ सिखाने,

अपना करियर बनाने,

के चक्कर में,

अपने आपको भूल गया!

पता ही नहीं चला,

कब अपनी राह भूला,

और ठहर गया।


और आज

जब साथी साथ मिलने का,

इंतजार करते-करते,

प्रतीक्षा से थककर,

आगे बढ़ गया।

दूसरे शब्दों में कहूँ,

साथ अलग हो गया।


और आज

हर पल, हर क्षण

हर राह,

साथ चाहने वाला बेटा,

साथ रहना भूलकर,

एकान्त के पथ पर,

बढ़ गया।

एकान्तवासी बन गया।


और आज

मैं एकान्त से भी,

ठुकराया गया,

अकेला रह गया।

एकांत और अकेलेपन

का अंतर समझ आ गया।

अनुभव से

कुछ ज्ञानवर्धन हो गया।


Thursday, April 1, 2021

सबके विकास की बातें करते

  आत्म विकास नहीं कर पाते


                 


ईर्ष्या, द्वेष,  नफरत है दिल में,  किंतु, प्रेम के गाने गाते।

सबके विकास की बातें करते, आत्म विकास नहीं कर पाते।।

करते रहे औरों की समीक्षा।

कैसे पूरी हो?  फिर इच्छा।

सबको सीख देत हो क्षण-क्षण,

खुद ही, खुद की, ले लो परीक्षा।

भ्रष्ट आचरण, कर्महीन धन,  उससे, कराते हो जगराते।

सबके विकास की बातें करते, आत्म विकास नहीं कर पाते।।

अहम ने, सबको, दूर भगाया।

दान के नाम, खुद को भरमाया।

खुद ही, खुद को, समझ न पाये,

पल-पल औरों को समझाया।

धैर्य, शान्ति की बातें करते, धैर्य बिना, कटें, खुद की रातें।

सबके विकास की बातें करते, आत्म विकास नहीं कर पाते।।

कर में जो है, यहीं है पाया।

सीख रहे जो, केवल माया।

खुद तो भ्रम में जीते हर पल,

औरों को भी, है भरमाया।

सच क्या है? ईश्वर कैसा? जाना न, किसी ने, केवल बातें।

सबके विकास की बातें करते, आत्म विकास नहीं कर पाते।।