Wednesday, April 7, 2021

जीवन का मर्म

 कर्म, कर्म, कर्म!

 



कर्म, कर्म, कर्म!

कर्म जीवन का मर्म।


सक्रियता ही,

जीवन की निशानी है।

इच्छाएँ, कामनाएँ,

बाधाएँ, पीड़ाएँ,

आस्थाएँ और भावनाएँ,

चुनौतियों का बीड़ा,

तर्क-वितर्क के होते हुए भी,

कर्म के बिना,

व्यक्ति है बस एक कीड़ा।

जीना ही है,

सबसे प्राचीन धर्म!

कर्म, कर्म, कर्म!

कर्म जीवन का मर्म।


छोटा हो या बड़ा,

अमीर हो या गरीब,

बैठा हा या खड़ा,

गतिमान हो या अड़ा,

चलना ही,

जीवन की निशानी है,

थम गया जो,

वह है मरा।

जो पड़ गया,

वो है सड़ा।

कर्म से कैसी शर्म?

कर्म ही है सच्चा धर्म।


कर्म, कर्म, कर्म!

कर्म जीवन का मर्म।


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