Saturday, January 31, 2015

प्यार हमारा मजाक न समझो

प्यार का नाटक, क्यूँ था खेला?


प्यार हमारा मजाक न समझो,
जी न सकेगें,  तुम्हें भुलाकर।
तुम हो पराई, अब कहती हो,
खेला खेल था, तब बहालाकर।
प्यार का नाटक, क्यूँ था खेला?
हसँती हो अब हमें रुलाकर।
हम तो पागल, दिल की मानें,
तुमने  मारा, यूँ  फुसलाकर।
प्यार  नहीं, यह मानें  कैसे?
समझा दो विश्वास  दिलाकर।
एक बार आओ, फिर जाना,
मौत की नींद में , हमें सुलाकर।

Friday, January 23, 2015

बातें कर ले आँख मिलाकर

बेवफाई ही रहमत तेरी


अब मैं अपनी बात करूँगा,
क्या पाऊँगा तुझे रुलाकर?
मेरे ऊपर हँसी है अब तक,
अपने ऊपर जरा हँसाकर।
बेवफाई ही रहमत तेरी,
अपने साथ तो जरा वफाकर।
खत सारे तू, भले जला दे,
दिल में रखना जरा बचाकर।
हमराही बिन चल लेंगे हम
साथ किसी के राह चलाकर।
सारी धुंध फिर छँट जायेंगी,
बातें कर ले आँख मिलाकर।

Thursday, January 22, 2015

आगामी पुस्तक - पापा मैं तुम्हारे पास आऊँगा

अगली किताब

Monday, January 19, 2015

वियोग हम सहते रहेंगे

आप ना हमको याद करना, याद हम करते रहेंगे।

संयोग का जीवन जीओ तुम, वियोग हम सहते रहेंगे।

शमा को क्या फर्क पड़ता, परवाने जलते, मरें नित,

चमकती रहें आप तो बस, यूँ ही हम जलते रहेंगे।

दूर फेंको, मिलन से इन्कार कर दो, फरियाद हम करते रहेंगे।

खत जलाओ, दूर से इन्कार कर दो, दरियाफ्त हम करते रहेंगे।

चाहत की आग में जलते हुए भी, मिलन की आश में ठण्डे रहें,

ठुकराओ, पहचान से इन्कार कर दो, अर्ज हम करते रहेंगे।

Wednesday, January 14, 2015

प्रेम कितना लाजबाब है

काश!
समझा होता
तुमने प्यार
प्यार का सार
अपनत्व को
मिटाकर
अहम् को भुलाकर
जिद को गलाकर
सुनी होती
पुकार।

काश!
तुमने 
न समझा होता
प्यार को पागलपन
आवारापन 
और सौदा
बन जाते घरौंदा।

काश!
तुमने 
समझा होता
समर्पण 
एक शब्द ही नहीं
भाव है
केवल नहीं 
यह ख्वाब है
समझ पातीं
प्रेम कितना लाजबाब है।

Tuesday, January 13, 2015

स्नान से जब देह भीगी, पयोधरों पर केश छाये,

जागती या सो रही हो, समय व्यर्थ क्यों खो रही हो?
तन को दुलारो, मन को सभाँलो, मुस्कराती रो रही हो?
जिद अब तो छोड़ दो प्रिय, दिल की भी आवाज सुन लो,
बुद्धि तो भरमाती हरदम, अब भी उसको ढो रही हो।

प्यार से जब भी निहारा, हमने समझा तारिका हो।
नयनों में चंचल चाह देखी, हमने समझा सारिका हो।
स्नान से जब देह भीगी, पयोधरों पर केश छाये,
पवित्रता के आवरण में, हमने समझा निहारिका हो।

Sunday, January 11, 2015

हम प्रतीक्षा कर रहे प्रिय, क्या इरादे आपके हैं?

आपके बिना यह दुनियाँ कैसी? हम दुनियाँ को भूल गए।
जीवन में हों, कलियाँ कैसी? हम कलियों को भूल गए।
आपने हमको फेंका उर से, हमने आपको बसा लिया है,
 तन्हाई का राज ये कैसा? हम अपने आप को भूल गए।


हमारे हिय की ये तड़पन ही हमको हरदम बता रही है।
प्रिये! आपको याद हमारी, देखो हर पल सता रही है।
क्यों अपने को पीड़ित करतीं? जिद कर उर को दबा रही हो,
हम यादों में यहाँ हैं जीते, अपने को आप क्यों भुला रही हो?


चाह हमें कभी न थी प्रिय, देह आपकी, पा जाएं।
वक्ष पर, ताले जड़े दो, मसल तोड़, हिय में समाएं।
थिरकती मुस्कान लवों पर, वो अदाए देख पायें,
दिल हमारा कुचल कर भी, आप हमेशा मुस्करायें।

आपको ना पा सके हम, हम तो हर पल आपके हैं।
गले लगे तब आपके थे, ठुकराये हुए भी आपके हैं।
मन में आये सितम ढाओ, मन में आए मुस्कराओ,
हम प्रतीक्षा कर रहे प्रिय, क्या इरादे आपके हैं?

Friday, January 9, 2015

ठोकरें तो आपकी भुला बैठे सब हम

5.12.2007


खड़े हैं हम, जहाँ छोड़ा था आपने।


उर में संजोये जो दिया था आपने।


ठोकरें तो आपकी भुला बैठे सब हम,


यादें हैं शेष अभी, गले लगाया आपने।


Tuesday, January 6, 2015

होठों के गुलाब सदैव खिलते रहें

होठों के गुलाब सदैव खिलते रहें।

आपके नयनों में नगमे मचलते रहें।

आप खुशियों के जाम पल-पल पीओ,

आपकी यादों में जीते हम ढलते रहे।


Monday, January 5, 2015

प्रेम के बदले प्रेम की चाह, प्रेम कोई व्यापार नहीं है।

प्रेम किया है हमने तुमको, पाने की कोई चाह नहीं है।
प्रेम के बदले प्रेम की चाह, प्रेम कोई व्यापार नहीं है।
तन-मन-धन से सुखी रहो तुम हमने तो बस इतना चाहा,
शान्त, सुखी, समृद्ध रहो तुम, करें कोई तकरार नहीं है।

तेरा तो सब कुछ तेरा है, पाने की कामना नहीं की।
अपना भी सब कुछ हो तेरा, हमने तो कामना यही की।
गलती से हमने समझा था, तुमको चाहत रही हमारी,
प्रेम, तुमसे मिलना क्या है? वफा की भी कामना नहीं है।

Sunday, January 4, 2015

प्रेम में स्वार्थ घोल, नहीं इसे अपवित्र करूँगा

5.09.2007

प्रेम में स्वार्थ घोल, नहीं इसे अपवित्र करूँगा।
चाहत को पाने की, नहीं मैं कामना करूँगा।
चाहत को चाह मिले, मुहब्बत को राह मिले,
कुचल कर निकले, नहीं कभी मैं आह करूँगा।

जाती हो जिस राह आप, काँटों को मैं साफ करूँगा।
काटाँ चुभा आपको कोई, अपने को नहीं माफ करूँगा।
जरूरत पड़े न आपको कोई, रहूँगा मैं आस-पास,
दुःखों को मैं झेलूँ हरदम, सुख्खों में ना बाँट करूँगा।