Wednesday, January 14, 2015

प्रेम कितना लाजबाब है

काश!
समझा होता
तुमने प्यार
प्यार का सार
अपनत्व को
मिटाकर
अहम् को भुलाकर
जिद को गलाकर
सुनी होती
पुकार।

काश!
तुमने 
न समझा होता
प्यार को पागलपन
आवारापन 
और सौदा
बन जाते घरौंदा।

काश!
तुमने 
समझा होता
समर्पण 
एक शब्द ही नहीं
भाव है
केवल नहीं 
यह ख्वाब है
समझ पातीं
प्रेम कितना लाजबाब है।

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