Sunday, January 4, 2015

प्रेम में स्वार्थ घोल, नहीं इसे अपवित्र करूँगा

5.09.2007

प्रेम में स्वार्थ घोल, नहीं इसे अपवित्र करूँगा।
चाहत को पाने की, नहीं मैं कामना करूँगा।
चाहत को चाह मिले, मुहब्बत को राह मिले,
कुचल कर निकले, नहीं कभी मैं आह करूँगा।

जाती हो जिस राह आप, काँटों को मैं साफ करूँगा।
काटाँ चुभा आपको कोई, अपने को नहीं माफ करूँगा।
जरूरत पड़े न आपको कोई, रहूँगा मैं आस-पास,
दुःखों को मैं झेलूँ हरदम, सुख्खों में ना बाँट करूँगा।

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