5.08.2007
कभी तेरे शहर में आऊँगा मुसाफिर की तरह
बस, एक बार, मुलाकात का, एक मौका देना।
जुदा हो के तुझसे भटका हूँ किस तरह,
जख्मी दिल दिखाने का, एक मौका देना।
तन्हाइयों में सांसे, लेता था किस तरह,
एक बार तुम्हें बताने का,एक मौका देना।
तेरी गलियों में गाऊँगा, शायर की तरह,
एक बार घर में आने का, एक मौका देना।
खुशियों में जानेमन, ना काँटा बनूँ, इस तरह,
मुझे भी मुस्कराने का, एक मौका देना।
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