5.06.2007
क्षणभर को लहर ने भिगोया
था रावी का किनारा
वर्षो की प्रतीक्षा
डुबकी लगाने को
गहराई में उतरा
तुम्हारा हाथ पकड़ा
न तुम डूबी, न मुझे डूबने दिया
स्नेह नीर को
गन्दा करार देकर
न केवल मुझको
कीचड़ में ढकेल दिया
वरन् स्वयं भी
जहाजों के आकर्षण में
भंवरों में फंस गईं
काश! तुम्हें भंवरों से मुक्त कर पाता।
5.07.2007
दुनियाँ में नहीं बुझती
नेह की प्यास
यहाँ दिखता
हर चेहरा उदास
हम तो जी रहे हैं
सिर्फ आपकी यादों को ले
उम्मीद है
खुश् होंगी आप
प्रेम की सुगंध से सुगंधित
चहुँ ओर बिखेरती होंगी हास।
क्षणभर को लहर ने भिगोया
था रावी का किनारा
वर्षो की प्रतीक्षा
डुबकी लगाने को
गहराई में उतरा
तुम्हारा हाथ पकड़ा
न तुम डूबी, न मुझे डूबने दिया
स्नेह नीर को
गन्दा करार देकर
न केवल मुझको
कीचड़ में ढकेल दिया
वरन् स्वयं भी
जहाजों के आकर्षण में
भंवरों में फंस गईं
काश! तुम्हें भंवरों से मुक्त कर पाता।
5.07.2007
दुनियाँ में नहीं बुझती
नेह की प्यास
यहाँ दिखता
हर चेहरा उदास
हम तो जी रहे हैं
सिर्फ आपकी यादों को ले
उम्मीद है
खुश् होंगी आप
प्रेम की सुगंध से सुगंधित
चहुँ ओर बिखेरती होंगी हास।
No comments:
Post a Comment
आप यहां पधारे धन्यवाद. अपने आगमन की निशानी के रूप में अपनी टिप्पणी छोड़े, ब्लोग के बारे में अपने विचारों से अवगत करावें.