Monday, December 15, 2014

शीतल आग में जलते नित हम, आप अंगारों को भोग रहे हैं

5.02.2007
हर खत पर खामोश चाहत को दबा रही हो।
हर मुस्कराहट में आप आँसू छिपा रही हो।
ना पा सके आपको, कोई गिला नहीं हमको,
दोस्त बनकर क्यूँ? मौत की दवा पिला रही हो।

तुम अपना परिवार संभालो, हम भी तो उसमें ही आते।
मजबूरी में हुईं बेवफा, हम अब भी तुमरे गाने गाते।
तुम हर पल हो साथ हमारे, भले शरीर से पास नहीं हो,
आओ बंधकर आलिंगन में, चुंबन दे दो, दो मदमाते।

5.03.2007
एक बार प्रिय एक बार बस, अपने आलिंगन में बांधो।
गले लगा लो एक बार वश, एक बार बांहों में बांधो।
दिल है तुम्हारा जान भी ले लो, अधरामृत वश हमें पिला दो,
जो तुम चाहो वही करेंगे, एक बार नजरों में बाँधों।

हमें नहीं है अपनी चिन्ता आपकी तड़पन भोग रहे हैं।
संयोग में वियोग आपको शोभित, हम वियोग ही भोग रहे हैं।
नहीं बना सके आपको अपना, हममें ही कुछ कमी रही है।
शीतल आग में जलते नित हम, आप अंगारों को भोग रहे हैं।

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