Sunday, December 14, 2014

जिस राह पर आप चलेंगे, खुद को वहीं विछायेंगे

4.29.2007

गर्मी के अवकाशों का प्रिय आनन्द आप लेते होंगे।
आनन्द और शान्ति के साथ, परिवार में आप रहते होंगे।
सोच-सोच हम खुश होते हैं, आप तो खुश होंगे हर पल,
तन्हाई में हम हर क्षण हैं, कभी तो याद करते होंगे।

समाचार भी यदि पा जाते, हम अपने को क्यूँ तड़फाते।
आपकी खुशियों से ही कुछ पल, अपने आपको हम बहलाते।
पुष्पित होंगी, फल भी लगेगा, शायद हमें भी दिखलाओगी,
तमन्ना यही बस देख सकें हम, गोद आपकी दुलराते।

4.30.2007
भूल से भी यदि हम, यादों में आपकी आयेंगे।
ध्यान से यदि देखोगे तो, हमें अपने पास ही पायेंगे।
सितम आपने किया ही क्या है? कितना भी ठुकरायेंगे।
जिस राह पर आप चलेंगे, खुद को वहीं विछायेंगे।

संग-साथ को पाप कहा, हमें धोखेबाज कह सकती हो।
हमने तो बस ताप सहा है, जितना चाहो दे सकती हो।
आगे कुआ, पीछे खाई, आपने हमको जहाँ है छोड़ा,
पथ तो सारे बन्द हमारे, मुस्कराहट तो दे सकती हो।

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