कण-कण कहे
प्रकृति छटा को देख खुशी से,
मन मयूर है हरषाया।
मलयागिरि की पवन चले जब,
कण-कण कहे बसन्त आया।
अब तो भूल गये हैं सब ही,
सर्दी ने जो कहर ढाया।
प्रिया भूली गत वियोग को,
प्रियतम उसका घर आया।
हर्षित कैसी होती हैं अब,
मोटी-पतली सब काया।
हर मानव है मुदित हो रहा,
लाया कैसी है माया।
लता-लता अब फूल उठी है,
आम्र वृक्ष भी बौराया।
कौये की तो चौंच मढ़ गई,
कोयल ने गाना गाया।
विवेकानन्द जयन्ती पर विशेष
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क्यों? का नहीं, कर्म करने का अधिकार
स्वामी विवेकानन्द का कार्य अभी भी पूरा नहीं हुआ है। स्वामी जी की जयन्ती पर
हम उनके सपनों को साकार करने के लिए काम करन...
3 days ago