कण-कण कहे
प्रकृति छटा को देख खुशी से,
मन मयूर है हरषाया।
मलयागिरि की पवन चले जब,
कण-कण कहे बसन्त आया।
अब तो भूल गये हैं सब ही,
सर्दी ने जो कहर ढाया।
प्रिया भूली गत वियोग को,
प्रियतम उसका घर आया।
हर्षित कैसी होती हैं अब,
मोटी-पतली सब काया।
हर मानव है मुदित हो रहा,
लाया कैसी है माया।
लता-लता अब फूल उठी है,
आम्र वृक्ष भी बौराया।
कौये की तो चौंच मढ़ गई,
कोयल ने गाना गाया।
अपने लिए जिएं-१
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* समाज सेवा और परोपकार के नाम पर घपलों की भरमार करने वाले महापुरूष परोपकारी
होने और दूसरों के लिए जीने का दंभ भरते हैं। अपनी आत्मा की मोक्ष के लिए पूरी
द...
1 year ago