कण-कण कहे
प्रकृति छटा को देख खुशी से,
मन मयूर है हरषाया।
मलयागिरि की पवन चले जब,
कण-कण कहे बसन्त आया।
अब तो भूल गये हैं सब ही,
सर्दी ने जो कहर ढाया।
प्रिया भूली गत वियोग को,
प्रियतम उसका घर आया।
हर्षित कैसी होती हैं अब,
मोटी-पतली सब काया।
हर मानव है मुदित हो रहा,
लाया कैसी है माया।
लता-लता अब फूल उठी है,
आम्र वृक्ष भी बौराया।
कौये की तो चौंच मढ़ गई,
कोयल ने गाना गाया।
शिक्षक दिवस मनाने का औचित्य?
-
भारत में 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की परंपरा चली आ रही है।
परंपरा के पालन में हम भारतवासी अंधभक्त हैं। बिना कारण को जाने परंपरा को
निभात...
3 weeks ago
No comments:
Post a Comment
आप यहां पधारे धन्यवाद. अपने आगमन की निशानी के रूप में अपनी टिप्पणी छोड़े, ब्लोग के बारे में अपने विचारों से अवगत करावें.