Monday, January 25, 2010

प्रकृति छटा को देख खुशी से

कण-कण कहे






प्रकृति छटा को देख खुशी से,


मन मयूर है हरषाया।


मलयागिरि की पवन चले जब,


कण-कण कहे बसन्त आया।






अब तो भूल गये हैं सब ही,


सर्दी   ने जो कहर ढाया।


प्रिया भूली गत वियोग को,


प्रियतम उसका घर आया।






हर्षित  कैसी होती हैं अब,


मोटी-पतली सब काया।


हर मानव है मुदित हो रहा,


लाया कैसी है माया।






लता-लता अब फूल उठी है,


आम्र वृक्ष भी बौराया।


कौये की तो चौंच मढ़ गई,


कोयल ने गाना गाया।



No comments:

Post a Comment

आप यहां पधारे धन्यवाद. अपने आगमन की निशानी के रूप में अपनी टिप्पणी छोड़े, ब्लोग के बारे में अपने विचारों से अवगत करावें.