कण-कण कहे
प्रकृति छटा को देख खुशी से,
मन मयूर है हरषाया।
मलयागिरि की पवन चले जब,
कण-कण कहे बसन्त आया।
अब तो भूल गये हैं सब ही,
सर्दी ने जो कहर ढाया।
प्रिया भूली गत वियोग को,
प्रियतम उसका घर आया।
हर्षित कैसी होती हैं अब,
मोटी-पतली सब काया।
हर मानव है मुदित हो रहा,
लाया कैसी है माया।
लता-लता अब फूल उठी है,
आम्र वृक्ष भी बौराया।
कौये की तो चौंच मढ़ गई,
कोयल ने गाना गाया।
समय की एजेंसी-18
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समय का नहीं, स्वयं का प्रबंधन
*हम यह भली प्रकार समझ चुके हैं कि समय का प्रबंधन संभव नहीं है। समय को
रोकना, उसका भण्डारण करना या उसका क्रय-विक्रय संभव न होने...
6 months ago
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