Wednesday, November 1, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-२८‌"

मनोज का अफजल से ई-मेलों का आदान-प्रदान प्रारंभ हुआ। दूसरी तरफ माया भी अफजल से लगातार बातें करती रहती थी। माया और अफजल की बातों के कारण मनोज के फोन का बिल हजारों मंे आने लगा था। मोबाइल पर भी महीने में एक हजार से अधिक चार्ज हो ही जाता था। किंतु मनोज ने माया को भी छूट दे दी थी और अफजल को भी कह दिया था कि उसे उनकी बातों से कोई आपत्ति नहीं है। वह आराम से बातचीत करे और ऐसा रास्ता निकाले कि माया उसके साथ शादी करने को तैयार हो जाय। मनोज केवल दिखावटी शादी का कोई मतलब नहीं समझता था। दो प्रेमियों को जुदा करने वाली शादी का क्या मतलब है? जबकि शादी के बाद भी दोनों एक-दूसरे के लिए लगाव अनुभव करते हों। इसी बीच महिलाओं का करवा चैथ का व्रत का समय आया। मनोज ने स्पष्ट रूप से कह दिया था कि वह इस प्रकार की व्यर्थ की परंपराओं में विश्वास नहीं रखता और माया को उस व्रत को नहीं रखना चाहिए। वैसे भी जब उनमें वास्तविक रूप से पति-पत्नी के संबन्ध थे ही नहीं, तो व्रत के ढकोसले का क्या मतलब? मनोज व उसका बेटा अक्सर भूखे सो जाते थे। ऐसी स्थिति में करवा चैथ का व्रत रखना भी एक बहुत बढ़ा नाटक करना ही था। माया तो नाटक करने में ही विश्वास रखती थी। उसने तो शादी भी एक नाटक के रूप में की थी। उसे मनोज की कोई बात क्यों माननी थी। माया के पास व्रत रखने के लिए उसका प्रेमी अफजल तो था ही। करवा चैथ वाले दिन मनोज के क्वाटर में उसकी इच्छा के विरूद्ध व्रत का नाटक हो रहा था। मनोज के लिए यह असहनीय था, इसी तनाव को लेकर मनोज अपनी ड्यूटी पर गया। खाना खाने का तो कोई मतलब ही नहीं था। मनोज तनाव में खाना नहीं खा पाता था। दूसरी ओर मनोज जैसे ही अपनी ड्यूटी पर गया, माया का सबसे पहला फोन अफजल के लिए ही था। उसने उसे बताया कि वह उसके लिए करवा चैथ का व्रत रह रही है। यह तथ्य अफजल ने भी मनोज को बताया कि हाँ! माया ने उसे बताया था। अफजल माया की पसन्द ना पसन्द सब जानता था। अतः मनोज को मेल किया था कि आप उसे जलेबी लाकर दे देना, गिफ्ट हम दे देंगे।

Thursday, October 5, 2017

५०१ वां पोस्ट

मित्रों ब्लोगर संसार से परिचित होकर इसमें प्रवेश 

करके इस ब्लोग पर ५०० पोस्ट पूरे हो चुके हैं। यह 

सूचनात्मक ५०१ वां पोस्ट है। नियमित नहीं रहा किन्तु 

बन्द भी नहीं हुआ। इस प्रकार रुक-रुक कर यह यात्रा 

अनवरत जारी है।

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-२७"

दूसरी तरफ अफजल मनोज को स्पष्ट आश्वासन दे रहा था कि माया को उससे अलग होने के लिए मना लेगा। मनोज के साथ उसका सारा वार्तालाप ई-मेल के माध्यम से था क्योंकि माया के धोखे के बाद मनोज ने मोबाइल पर वार्ता बहुत कम कर दी थीं। वैसे भी मनोज को मौखिक वार्तालाप के स्थान पर लिखित संचार ही अधिक अच्छा लगता था। मनोज तो केवल यह चाहता था कि माया जिसको प्यार करती है, उसे उसके साथ रहना चाहिए। इसके लिए ही अफजल को भी तैयार कर रहा था। मनोज को तथाकथित पत्नी माया से कोई द्वेष न था। धोखे से ही सही माया मनोज की पत्नी का स्थान पा गयी थी। माया ने पत्नी के पद का धोखा देकर अपहरण किया था। हाँ! माया के लिए पत्नी का स्थान एक पद की तरह ही था, जिसे किसी प्रकार येन केन प्रकारेण प्राप्त करके जीवन भर पति को परेशान करने का लाइसेंस मिल जाता है। मनोज उससे पीछा छुड़ाना अवश्य चाहता था किन्तु किसी को भी विचारपूर्वक नुकसान पहुँचाने की प्रवृत्ति मनोज की न थी। वह औरत तो उसकी पत्नी के स्थान पर आ बैठी थी। वह तो चाहता था कि माया अपने प्रेमी अफजल के साथ शादी करके सुखी रहे। अफजल के अनुसार अफजल भी माया के साथ शादी के लिए तैयार था। अफजल के ई-मेल के अनुसार, माया का कहना था कि अफजल क्यों परेशान होता है? वह उसे अपनी पत्नी ही माने। अफजल और माया के बीच छिपे रूप में पति-पत्नी जैसे ही संबन्ध थे। किंतु अफजल के साथ-साथ माया के अन्य दो-तीन लोगों से भी इसी प्रकार के सम्बन्ध थे, ऐसा अफजल का मानना था। माया अफजल से छिपाकर चुपचाप शादी करके मनोज के साथ आ गयी। यह बात मनोज को नागवार गुजरी और वह बदला लेने पर उतारू हो गया। यही कारण था कि अफजल ने मनोज के मोबाइल को खोजकर सम्पर्क किया और ई-मेलों के माध्यम से मनोज को माया की सभी छिपी हुई सूचना देने लगा था। अफजल तो मनोज से मिलकर सारी बातें बताना चाहता था किंतु मनोज ही अफजल से मिलने से बचता रहा। कारण स्पष्ट था। अफजल व माया प्रेमी-प्रेमिका थे। पता नहीं विश्वास में लेकर दोनों ने कोई नया जाल बुना हो। इस प्रकार के त्रिकोणीय संबन्धों में प्रेमी-प्रेमिका मिलकर अक्सर पति और उसके परिवार की हत्या कर गुजरते हैं। अतः मनोज को अफजल से मिलना उचित नहीं लगा और टाल दिया।

Saturday, September 30, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-२६"

अफजल दोहरा गेम खेल रहा था। एक तरफ तो वह माया से दिन भर बात करता था, नहीं, माया अफजल से बात करती थी । अफजल ने स्पष्ट रूप से मनोज को बताया था कि माया ही उसे फोन मिलाती है, उसने मनोज को यह भी बताया कि माया ने मनोज से जो 1000 रूपये का मोबाइल रिचार्ज कराया है। उससे पूरी बात लगभग अफजल से ही हुई हैं। माया अफजल को प्रत्येक बात बताती थी। ऐसी बातें भी जो नितांत वैयक्तिक थीं और जिन्हें केवल पति-पत्नी को ही जानना चाहिए। इससे स्पष्ट हो जाता था कि अफजल और माया की कितनी घनिष्ठता है। मनोज को अफजल से ही पता चला कि माया माँ नहीं बन सकती क्योंकि उसे एम.सी. नहीं होती। अफजल ने ही यह भी बताया कि माया ने आपको बेवकूफ बनाने के लिए आपसे पैड मगाये थे। इस तरह की नितांत वैयक्तिक जानकारियाँ मनोज को दूसरे व्यक्ति से पता चल रहीं थीं, जो मनोज को स्वयं पता होनी चाहिए थीं। जो जानकारी मनोज को शादी से पूर्व ही बता दी जानी चाहिए। मनोज की माया से इस प्रकार की घनिष्ठता थी। अप्रत्यक्ष रूप से इन बातों की पुष्टि माया की बातों से भी होती थी। माया का कहना था कि वह अपनी संतान को जन्म नहीें देगी। प्रभात अकेला ही उनका बेटा होगा। यह बात कई बार शादी से पूर्व ही माया मनोज से कह चुकी थी। दूसरा प्रकरण यह भी था कि जब माया और मनोज दोनों बिस्तर पर थे, मनोज ने माया को परिवार नियोजन के साधन अपनाने की बात की तो माया ने साफ इंकार कर दिया। मनोज के यह तर्क देने पर कि माया ने ही कहा था कि प्रभात अकेला बेटा रहेगा; माया दूसरी संतान को जन्म नहीं देगी। माया का कहना था कि मनोज बाद में भले ही गर्भपात करवा दे किंतु वह परिवार नियोजन का कोई साधन नहीं अपनायेगी और न ही मनोज को ऐसा करने देगी। परिवार नियोजन को कोई साधन न अपनाना और किसी संतान को जन्म न देना, माया के यह कथन अफजल की बात की ही पुष्टि करते थे कि माया माँ नहीं बन सकती। सारा खेल मनोज को षड्यन्त्रपूर्वक फँसाने के लिए रचा गया था। अफजल ने माया को इतना विश्वास में ले रखा था कि वह अपने भाई से भी अधिक अफजल पर ही विश्वास करती थी। वह अपने भाई को फोन करे या न करे; अपनी माँ को फोन करे न करे, अफजल को फोन अवश्य करती थी और अपने अन्तर्मन की प्रत्येक बात उसको बताती थी। मनोज ने न केवल इस बात की अनुभूति की थी, वरन् अफजल ने भी ईमेल में स्वीकार किया था कि माया जितना मनोज और मनोज के परिवार के बारे में जानती है; वह सब कुछ अफजल भी जानता है।

Monday, September 11, 2017

विवादास्पद वैवाहिक रिश्तों के कारण होतीं हत्याएं/आत्म्हत्याएं

दुःखद स्थिति

कल प्राप्त एक समाचार के अनुसार मेरे एक साथी अध्यापक मिश्राजी की भांजी की वैवाहिक विवादों के कारण हत्या कर दी गयी। उसकी शादी दो वर्ष पूर्व ही हुई थी। उसके एक वर्ष का एक बेटा है, जो शायद यह भी नहीं जानता होगा कि माँ क्या होती है? और उससे माँ का आँचल क्यों उठ गया। घटना के बाद स्वाभाविक रूप से उसकी ससुराल वालों की गिरफ्दारी हो गयी है। निसंदेह मुकदमा चलेगा और अदालती कार्यवाही के पश्चात् उचित सजा भी दोषी लोगों को मिलेगी। जो भी हो उस युवती के प्राण वापस नहीं आ सकते। उसके मासूम बेटे के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा? इसका आकलन अभी करना संभव नहीं है। न केवल उसकी माँ की हत्या हुई है, वरन उसका पिता व पूरा परिवार कारागार में बंद है। उसकी देखभाल कौन करेगा? भविष्य में वह बच्चा जब समझदार होगा तो उसके मस्तिष्क पर इसका क्या प्रभाव होगा? यह गंभीर समालोचना का विषय है। एक प्रकार से दोनों परिवार बर्बाद हो गये। 
मैं यहाँ इस घटना की सजा के पहलू पर या निर्मम हत्यारों की आलोचना के पहलू पर चर्चा नहीं करूँगा। उनके पास भी अपने तर्क हो सकते हैं। इस प्रकार की सैकड़ों हत्याएँ या आत्महत्याएँ वैवाहिक विवादों व मतभेदों की स्थिति में होती हैं। एक दिन मेरे सामने भी वैवाहिक विवाद के कारण ऐसी स्थिति आ गयी थी कि मुझे प्रतीत होता था कि ऐसे जीवन का कोई अर्थ नहीं है। मैं कुछ गलत न कर बैठूँ, इस सोच के साथ मेरे माताजी, पिताजी और बहिन ने मुझे सभाल लिया था। वे एक मिनट के लिए मुझे अकेले नहीं छोड़ते थे। एक पड़ोसी साथी ने भी मानसिक संबल दिया था। वस्तुतः ऐसी घटनाओं से बचा जा सकता है। हजारों हत्याओं या आत्महत्याओं को रोका जा सकता है। मासूमों के जीवन को संवारा जा सकता है। हजारों परिवारों को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है। बशर्ते ये तथाकथित पति या पत्नी सीधे रास्ते को अपनाकर दूसरे को बर्बाद करने के इरादे छोड़कर प्यार से अलग हो जायं!
इस प्रकार की घटनाओं के लिए केवल हत्या या आत्महत्या करने वाला ही दोषी नहीं है। पति-पत्नी के रिश्ते को जबरन सामाजिक या कानूनी आधार पर चलाये रखने वाली संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था ही दोषी है। पति-पत्नी के रिश्ते में गहरा विश्वास आवश्यक है। विश्वास किसी कानून या सामाजिक दबाब से पैदा नहीं हो सकता। यह दोनों के मध्य ईमानदारी, सच्चाई व समर्पण से पैदा होता है। यदि दोनों के रिश्तों में यह विश्वास न हो, दोनों में से कोई भी एक धोखेबाज, षड्यंत्रकर्ता व छलकपट से परिपूर्ण हो तो वैवाहिक रिश्ते का चलना असंभव हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों को पारिवारिक, सामाजिक या कानूनी दबाब से साथ-साथ रहने को मजबूर करना न केवल उन दोनों के लिए घातक है, वरन उन दोनों परिवारों व संपूर्ण समाज के लिए भी दुष्प्रभाव छोड़ने वाला है। अतः वैवाहिक रिश्तों से जुड़े सभी पक्षों को यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि गंभीर मतभेदों व मनभेदों वाले पति-पत्नी या धोखे से झूठ बोलकर शादी के जाल में फँसाने वाले पति-पत्नी को सरलता से अलग होने की छूट दी जाय।
इस प्रकार के तथाकथित पति-पत्नी को भी समझदारी का परिचय देना चाहिए। मैंने तथाकथित शब्द का प्रयोग जानबूझकर किया है क्योंकि जिस रिश्ते में विश्वास और समर्पण ही नहीं है। वास्तव में वहाँ कोई रिश्ता ही नहीं होता। वे केवल झूठा दिखावा कर रहे होते हैं। अतः उन दोनों को सोचना चाहिए कि वे प्रेम पूर्वक रिश्ते को निभा नहीं सकते तो प्रेमपूर्वक आपसी बातचीत के आधार पर अलग हो जायँ। यदि वे मित्र नहीं बन सकते तो कम से कम शत्रु भी न बनें। दोनों परिवारों के लोगों, उनके मित्रों व समाज के अन्य समझदार नागरिकों को भी इसी प्रकार की समझाइश करके उन लोगों में इस प्रकार की समझदारी विकसित करने के प्रयास करने चाहिए। ताकि इस प्रकार की घटनाओं को कम करके लाखों प्राणों को वैवाहिक वैदी में होम होने से बचाया जा सके। मासूमों के भविष्य को संवारा जा सके। परिवारों को बर्बाद होने से बचाया जा सके। समाज को इस प्रकार के वैवाहिक विवादों के दुष्प्रभावों से बचाया जा सके। यही नहीं अपने देश की न्यायप्रणाली को अनावश्यक मुकदमों के दबाब से बचाया जा सके। दुःखद यह है कि इस प्रकार के प्रयास हो नहीं रहे हैं। इसके विपरीत जानबूझकर झूठी मुकदमेंबाजी को बढ़ावा दिया जाता है। दोनों पक्षों को भड़काया जाता है। दूसरे पक्ष को झुकाने की झूठे आत्मसम्मान की आग को भड़काया जाता है। परिणामस्वरूप न केवल उन तथाकथित पति-पत्नी का जीवन बर्बाद होता है, वरन दोनों परिवार बर्बाद हो जाते हैं और समाज पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ते हैं।

Friday, September 8, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-२५"

मनोज ने  इण्टरनेट पर अफजल की खोज प्रारंभ की। फेसबुक पर अफजल का खाता भी मिल गया। उसे मित्रता का निवेदन भेजा जिसे अफजल ने अगले ही दिन स्वीकार कर लिया। उसके बाद मनोज ने सर्वप्रथम अफजल को अपना वास्तविक परिचय देकर उससे माया की जाति के बारे में पूछा। वस्तुतः माया व उसके भाई ने शादी के प्रोफाइल में अपने आप को ब्राह्मण बताया था किंतु मनोज को विश्वास हो गया था कि वे ब्राह्मण नहीं है। उसने माया के एक आवेदन में अनुसूचित जाति लिखी देख ली थी। अफजल ने एक-दो दिन बाद ही उत्तर दे दिया कि माया हरिजन है। मनोज आश्चर्यचकित रह गया। व्यक्ति शादी विवाह के मामले में भी झूठ का सहारा क्यों लेते हैं? झूठ पर आधारित शादी में विश्वास कैसे पैदा होगा? विश्वास रहित शादी कैसी शादी? जब षड्यन्त्र रच कर झूठ के आधार पर शादी के लिए किसी फँसाया जायेगा, तब उनमें पति-पत्नी के रिश्ते का जन्म ही कहाँ हुआ? वह तो रिश्ते का अपहरण है। वहाँ तो अपहरणकर्ता और अपहर्ता का संबन्ध बनता है। धोखा खाने वाला और धोखेबाज का संबन्ध बनता है। शिकार और शिकारी का संबन्ध बनता है। पीड़ित और पीड़ादाता का संबन्ध बनता है। और ऐसे सम्बन्धों में जीवनभर साथ रहना जीवन को नर्क बनाने के सिवाय और क्या हो सकता है? माया ने ऐसा ही किया था किंतु मनोज को लगता था कि माया इतनी मूर्ख तो नहीं थी कि वह पत्नी बनकर रहने के लिहाज से आयी थी। मनोज ने अपने प्रोफाइल पर पहले ही लिख दिया था कि किसी भी प्रकार का झूठ वह बर्दाश्त नहीं कर सकता। यदि शादी के बाद किसी भी प्रकार का झूठ पकड़ा गया तो शादी नहीं चलेगी। इससे स्पष्ट था कि माया जानबूझकर षडय्ंत्रपूर्वक ठगने के लिए आयी थी।
इधर मनोज ने अफजल से जानकारी जुटाने के लिए प्रयास किए, उधर अफजल व माया को बातचीत करने की खुली छूट दे दी। मनोज नहीं चाहता था कि दो प्रेमियों को बातचीत करने से रोका जाय। वह तो चाहता था कि वे दोनों अब भी आपस में शादी कर लें। मनोज ने अफजल को विश्वास में लेकर जानकारी लेने के प्रयास में सर्वप्रथम अफजल से उसका ई-मेल पता हासिल किया। माया ने अफजल से छिपकर शादी की थी। माया ने अपनी शादी के बारे में अपने प्रेमी को बताया भी नहीं जिसके साथ पिछले दस वर्षो से उसके मानसिक, भावनात्मक व शारीरिक संबन्ध थे। यह बात अफजल को नागवार गुजरी और वह माया के धोखे के बारे में सब कुछ बताने के लिए राजी हो गया। अफजल उन प्रेमियों में से न था, जो प्रत्येक स्थिति में अपनी महबूबा की खुशी व कल्याण चाहते हैं। अफजल तो उन प्रेमियों में से था, जो सोचते हैं कि मेरी नहीं हुई तो किसी की भी नहीं होने दूँगा। इसी उद्देश्य को लेकर अफजल ने इण्टरनेट से ही मनोज का मोबाइल नम्बर हासिल करके मनोज को फोन करके माया से बात करना प्रारंभ किया। मनोज को माया का चरित्र पहले ही संदिग्ध लग रहा था। माया प्रत्येक काम में झूठ ही बोलती थी। अतः यह तय था कि माया मनोज की पत्नी नहीं धोखेबाज ठगिनी है। मनोज को अनेक कहानियाँ स्मरण हो आयीं जिनमें पत्नियों ने अपने प्रेमियों के साथ मिलकर न केवल पति वरन अपने सगे बच्चों की भी हत्याएं की थी। मनोज के मन में स्पष्ट हो चुका था कि माया धन के लिए कुछ भी कर सकती है। वह धन ही था, जिसकी खातिर माया ने शादी से पूर्व ही धोखा दिया था। माया ने अपना बैंक खाता बंद करके धनराशि अपनी माताजी के खाते में जमा कराने की सूचना दी थी, जिसके आधार पर मनोज विवाह हेतु आर्यसमाज मंदिर में पहुँचा था। वह सूचना भी झूठी थी, माया ने खाता बन्द कराया ही न था। इससे स्पष्ट है कि माया को संबन्ध से ज्यादा पैसा प्यारा था, जिसे वह अपनी माँ या भाई को भी न दे सकी। मनोज के दृष्टिकोण से झूठ पर आधारित शादी के सभी संस्कार व्यर्थ हो गये।

Tuesday, September 5, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-२४"


एक दिन शायं के समय मनोज के मोबाइल पर रिंग हुई। मनोज के फोन अटेण्ड करने पर आवाज आई, ‘मैं अफजल बोल रहा हूँ। माया से बात कराओ।’ मनोज ने तुरंत मोबाइल माया को दे दिया। माया के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। वह मोबाइल लेकर दूसरे कमरे में चली गयी। माया के मोबाइल लेकर न आने का कारण भी मनोज को स्पष्ट हो गया। मनोज ने इस सम्बंध में माया से कुछ नहीं पूछा। उसके बाबजूद माया ने सफाई देने की कोशिश की कि इसकी दो बेटियाँ उसके विद्यालय में पढ़ती हैं। उन्हीं के सन्दर्भ में कुछ समस्या थी इस कारण फोन किया था। माया की सफाई मनोज के लिए बहानेबाजी के सिवाय कुछ भी न थी। मनोज ने इस सन्दर्भ में माया से कोई बात भी नहीं की। जो महिला झूठ और धोखेबाजी को ही अपने जीवन का आधार मान चुकी हो। उससे बहस करने का कोई मतलब ही न था। मनोज बुरी तरह फँस चुका था। एक ऐसी औरत पत्नी के नाम पर उसके साथ रह रही थी, जो कौन थी? कहाँ की थी? किस उद्देश्य से मनोज को अपने षड्यन्त्र में फसाया था? मनोज को कुछ मालुम न था। मनोज के साथ धोखा करके उसने पत्नी के सम्बन्ध का अपहरण किया था। उसके साथ बिताया गया एक-एक क्षण मनोज को खतरे का आभास कराता था। यह तो स्पष्ट था कि वह केवल पैसे का देखकर मनोज के साथ धोखा करके आयी थी। किंतु वह कहाँ और किस प्रकार हमला करेगी? यह अनुमान लगाना ही मुश्किल था।
             मनोज ने माया के भाई को ईमेल किया कि यह अफजल कौन है? माया के भाई को भी अपेक्षा न होगी कि इतनी जल्दी उनके द्वारा रचे गये झूठ की पोल खुल जायेगी। वह लगभग एक सप्ताह तक कोई जबाब दे ही नहीं सका। उसके बाद उसने बहाना बनाया कि वह उसका पारिवारिक मित्र है। उसके घर पूरे परिवार का आना जाना है। उसने यहाँ तक सफाई दी कि वे सर्वधर्म समभाव को मानते हैं। इस कारण एक मुसलमान का पारिवारिक मित्र होना उनके यहाँ संभव है। मनोज को उस तनाव के क्षण में भी हँसी आ गयी। व्यक्ति कितना मूर्ख होता है। झूठ की पोल खुल जाने के बाबजूद स्वीकार नहीं करता और अपने पापों को छिपाने के लिए झूठ पर झूठ बोलता जाता है। वही कार्य माया और उसका भाई कर रहे थे। कहावत है झूठ के पाँव नहीं होते। मनोज ने शादी से पूर्व किसी भी प्रकार की जाँच नहीं की थी। उसका मानना था कि जिस महिला को उसकी जीवनसंगिनी बनना है। उसे सबसे अधिक विश्वसनीय होना चाहिए। अतः उसने सबसे अधिक विश्वास उस महिला पर किया जिसे वह जीवनसंगिनी बनाना चाहता था। मनोज को क्या पता था कि वह महिला जीवनसंगिनी तो क्या किसी भी प्रकार से विश्वसनीय ही नहीं है। झूठ की जब पोल खुलने लगती है, तब एक के बाद एक परत उतरती चली जाती है। झूठ बोलने वाला व्यक्ति कितना भी चालाक क्यों न हो, वह कमजोर ही होता है। वह कमजोर नहीं होता तो झूठ क्यों बोलता। झूठ बोलकर व्यक्ति किसी को कितना भी धोखा दे दे किसी को कितना भी ठग ले किंतु वह कभी भी आत्मसम्मान प्राप्त नहीं कर सकता। माया के द्वारा मोबाइल न लाने का आधार मनोज को पता चल चुका था।

Monday, September 4, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-२३"

मनोज को इण्टरनेट पर वायरल हुआ वीडियो अपने घर में बनता हुआ दिखने लगा। इण्टरनेट पर वायरल हुए वीडियो में एक महिला अक्सर अपनी सास को प्रताड़ित करती थी। यही नहीं वह उसे खाना भी नहीं देती थी और बात-बात पर उसकी पिटाई करती थी। वह उसे इतना धमकाकर व डराकर रखती थी कि वह बेचारी अपने बेटे से उस बारे में कुछ कहने की हिम्मत भी नहीं कर पाती थी। किंतु उस महिला के पति को कुछ शक हो गया। अतः उसने अपनी पत्नी को बिना बताये। घर के अन्दर छिपा हुआ कैमरा फिट कर दिया। पति जैसे ही घर से बाहर निकलकर गया। उसकी पत्नी सीधे अपनी सास की चारपाई के पास आकर उसकी बुरी तरह पिटाई करने लगी। मनोज उस वीडियो को देखकर घबड़ा गया था कि ऐसी भी औरतें हो सकती हैं। वीडियो में रिकाॅर्ड होने के बाद महिला के पति को अपनी पत्नी की करतूतों का पता चला और उसने पुलिस को सूचित कर उस निर्दयी राक्षसी महिला को पुलिस को सौंप दिया। माया के व्यवहार से मनोज को वही वीडियो याद आता और वह अन्दर ही अन्दर काँप उठता। उसे लग रहा था कि माया भी ऐसा कर सकती है। वह औरत तो अपनी सास के साथ ऐसा करती थी। यहाँ तो स्पष्ट हो चुका था कि माया ने रूपयों की खातिर षड्यन्त्रपूर्वक मनोज को फँसाया था। प्रभात मनोज का बेटा मनोज का वारिस था। वह मनोज व प्रभात की जान भी ले सकती थी। ऐसी स्थिति में वह क्या कर सकेगा। मनोज कुछ भी बर्दाश्त कर सकता था किंतु विश्वासाश्रित संबन्धों में झूठ नहीं बर्दाश्त कर सकता था। माताजी-पिताजी की सेवा करना उसकी प्राथमिकता में शीर्ष पर था। जो औरत उसे धोखा दे ऐसी औरत के ऊपर अपने बेटे व माताजी-पिताजी की देखभाल का दायित्व कैसे डाल सकता था। 
माया को आये अभी अधिक समय नहीं हुआ था। घर का काम काज उसे आता नहीं, केवल यही बात नहीं थी। माया के व्यवहार से ही लगता था कि वह करना ही नहीं चाहती थी। वह काम को ऐसे ही पड़ा रहने देती मजबूरी में मनोज को ही करना पड़ता। दाल, चावल को बिना साफ किए ही कुकर में डाल देती। ऐसी स्थिति में उस खाने को कैसे खाया जाय? इससे परेशान होकर मनोज का बेटा प्रभात स्कूल जाने से पूर्व दाल-चावल साफ करके जाने लगा। मनोज को लगता इससे तो शादी से पूर्व की ही स्थिति ठीक थी। बर्तन पड़े रहते तो अधिकतर मनोज को ही साफ करने पड़ते। क्योंकि मनोज नहीं चाहता था कि उसका बेटा अपनी पढ़ाई को प्रभावित करके यह कार्य करे या उसकी बुजुर्ग माताजी, जिनका हाथ टूटा हुआ था इस कार्य को करें। ऐसी स्थिति में माया के साथ पति-पत्नी के सामान्य संबन्ध संभव ही न थे। माया वास्तव में पत्नी थी ही नहीं, उसने पत्नी के पद का अपहरण किया था।

Saturday, September 2, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-२२"



खैर! जब आफत गले पड़ जाय तो उसे भुगतना ही पड़ता है। मनोज ने शादी तो अपने बेटे की देखभाल और अपने माता-पिता की सेवा में सहयोग के लिए की थी। किंतु किसी धोखेबाज औरत से कुछ भी अपेक्षा करना ही बेकार की बात थी। शादी के नाटक के समय मनोज का बेटा अपने पैतृक गाँव दादा-दादी के यहाँ गया हुआ था। मनोज ने जब उसे अपने पास बुलाया तो मनोज की माँ भी मनोज के बेटे प्रभात के साथ आयीं। दादी प्रारंभ से ही मनोज के बेटे प्रभात को सौतेली माँ के पास छोड़ने की इच्छुक न थीं। मनोज की माताजी को भय था कि सौतेली माँ प्रभात के साथ कैसे पेश आयेगी। अतः मनोज के प्रस्ताव रखते ही। वे तुरंत प्रभात के साथ मनोज के पास आ गयीं। वास्तव में वे तो मनोज की शादी के समर्थन में भी नहीं थीं। मनोज ने उनकी सहमति के बिना शादी कर ली और फँस गया। मनोज को स्पष्ट हो गया था कि अपने से बड़ों की सलाह सदैव उपयोगी होती है। जब मनोज का बेटा प्रभात मनोज के पास आने वाला था, तभी से माया ने क्वाटर के अंदर रखे कूड़ेदान को बाहर ले जाकर खाली करना बंद कर दिया। मनोज के एक-दो बार पूछने पर उसने टाल दिया। मनोज समझ गया कि यह उसके बेटे से कूड़ा फिकवाने के लिए तैयारी कर रही है। अतः मनोज को स्पष्ट कहना पड़ा कि प्रभात यह काम नहीं करेगा। माया को मनोज का यह निर्देश तानाशाही फरमान लगा। किंतु माया ने कूड़ेदान को बाहर जाकर खाली करना प्रारंभ कर दिया। मनोज के लिए यह एक संकेत था। मनोज को लग रहा था कि माया उसके बेटे को नौकर की तरह प्रयोग करना चाहती है। अतः मनोज अपने बेटे को लेकर अति संवेदनशील हो गया।


मनोज का बेटा प्रभात व मनोज की माताजी मनोज के पास आ गयीं। मनोज का बेटा बहुत ही समझदार व समायोजन करने वाला बालक था। वह मनोज के संकेतों से ही बात को समझ लेता था। मनोज का बेटा अपनी सौतेली माँ के साथ समायोजन करने का प्रयास भी कर रहा था। मनोज की माँ के हाथ में फ्रेक्चर था। अतः वह अपने व्यक्तिगत काम अपने आप करने में असहज महसूस करती थीं। यही नहीं उनके हाथ की मोम से सिकाई भी करनी होती थी। मनोज की अपेक्षा थी कि माया मनोज की माँ को स्नान करने में सहायता करे। मनोज ने कई बार माया से स्पष्ट रूप कहा भी किंतु माया ने उसकी बात नहीं सुनी। मनोज अपनी माँ के हाथ की मोम से सिकाई करने के काम को स्वयं ही करता तो माया पास में आकर बैठ जाती और सिकाई करने का नाटक करती। मनोज की माँ प्रातःकालीन सैर पर जाया करती थीं। बुजुर्ग थीं, हाथ पहले से ही टूटा हुआ था; कहीं रास्ते में गिर नहीं जायँ? इस डर से मनोज चाहता था कि माया उनके साथ घूमने जाय किंतु माया को यह बात भी स्वीकार नहीं हुई। इस बात को लेकर मनोज का तनाव बढ़ता गया। मनोज ने तो शादी ही इस उद्देश्य को लेकर की थी कि वह अपने माता-पिता की सेवा कर सके। माया के व्यवहार से मनोज के सारे सपने टूटने के कगार पर थे। मनोज को लगने लगा कि उसकी अनुपस्थिति में माया उसकी माँ को प्रताड़ित कर सकती है। सेवा करने की बात सोचना तो दूर की बात है। मनोज माया से जब भी माताजी का ध्यान रखने के लिए कहता, माया धमकाने वाले अन्दाज में कहती, ‘उन्होंने कुछ कहा क्या?’ मनोज को पता था कि वे बेचारी क्या हेंगी। वे किसी भी प्रकार की शिकायत मनोज से करेंगी ही नहीं। वे नहीं चाहती थीं कि मनोज के लिए किसी भी प्रकार का तनाव बढ़े।

Tuesday, August 29, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-२१"

खैर! जैसे तैसे मनोज को उस विवाह स्थल से निकलने का अवसर मिला। मनोज के बार-बार मना करने के बाबजूद माया ने व्यक्तिगत सामान के नाम पर भी कुछ वस्तुएँ गाड़ी में रखवा लीं। मनोज का विचार था कि कुछ नहीं का मतलब कुछ नहीं, माया जहाँ जा रही है; उसे वहीं के अनुसार वहाँ उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग करते हुए ही रहना चाहिए। मनोज ने तय कर लिया था कि वह माया के द्वारा ले जायी जा रही किसी भी वस्तु को प्रयोग नहीं करेगा और न ही अपने बेटे या परिवार के किसी अन्य सदस्य को करने देगा। विदाई के समय भी शगुन के नाम पर कुछ महिलाओं ने मनोज के हाथ में भीख की तरह कुछ रूपये पकड़ा दिये मनोज वहाँ से बिना किसी विवाद के निकलना चाहता था। अतः विवाद से बचने के लिए वे रूपये हाथ में पकड़ तो लिए किंतु जेब में नहीं रखे और गाड़ी में बैठते ही गाड़ी के ड्राईवर के हाथ में पकड़ा दिए। वह तो माया के द्वारा पहनायी गयी अँगूठी को भी ड्राईवर को देने वाला था किंतु उसे माया ने मनोज के हाथ से छीनकर अपने पास रख लिया। माया के द्वारा इस प्रकार सामान का लाना मनोज को मानसिक रूप से माया से दूर कर चुका था।
मनोज जब अपने आवास पर पँहुचा, उसके पड़ोसा माया को आँख फाड़-फाड़कर देख रहे थे। वस्तुतः वहाँ किसी को यह जानकारी थी ही नहीं कि मनोज शादी करने गया है। जब मनोज की पड़ोसी महिला ने मनोज को पूछा कि यह औरत कौन है? मनोज के उत्तर कि वह उसकी पत्नी है। पर विश्वास करने को तैयार नहीं थी।
मनोज को अपने क्वाटर पर पहुँचने के बाद शायं को पता चला कि माया अपने मोबाइल को लेकर नहीं आयी है। जबकि मोबाइल वार्तालाप के दौरान मनोज ने माया को स्पष्ट कर दिया था कि वह अपने मोबाइल को लायेगी और अपने पुराने नम्बर को प्रयोग करती रहेगी। मोबाइल को इस प्रकार छोड़कर आना, माया को संदेहास्पद बना रहा था। इसका सीधा-सीधा अर्थ यह था कि माया के कुछ ऐसे व्यक्तियों के साथ संबन्ध हैं, जिन्हें माया छुपाना चाहती है। मनोज का सीधा-सादा जीवन था। वह न तो किसी से कुछ छुपाता था और न ही ऐसी पत्नी की कल्पना कर सकता था जो उससे कुछ छुपाये। मनोज के मन में पक्का बैठ गया कि कुछ न कुछ गड़बड़ अवश्य है अन्यथा उसके कहने के बाबजूद माया अपना मोबाइल छोड़कर नहीं आती। ऐसा भी नहीं था कि गलती से अपना मोबाइल भूल आयी हो। वह अपने मोबाइल को योजना के अनुसार बन्द करके रखकर आयी थी। यही नहीं एक-दो दिन में ही माया ने मनोज के मोबाइल से भी अपने सारे सन्देश मिटा दिये, जिनसे माया की बचनबद्धता प्रकट होती थी। इससे मनोज को स्पष्ट हो गया कि वह बहुत बड़े संकट में फँस चुका है। उसे चिंता होने लगी कि यह औरत कहीं उसके बेटे के प्राणों के लिए संकट न बन जाय।

Thursday, August 24, 2017

दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-२०

ऐसे तथाकथित प्रेम प्रदर्शकों के तर्क बड़ अजीब ही होते हैं। यदि आप चाय नहीं पीते तो वे कहेंगे। अरे भाई! प्रेम में तो लोग जहर भी पी लेते हैं, आप हमारे कहने से चाय भी नहीं पी सकते? बड़ा अजीब और बोझ तले दबा देने वाला भारी तर्क है। वे यह भी कह सकते हैं कि अरे हमारे लिए एक दिन ही पी लीजिए। एक दिन से क्या फर्क पड़ता है? अब एक दिन से कोई फर्क नहीं पड़ता तो वे सामने वाले की इच्छा के विरूद्ध क्यों अपनी मनमर्जी उसके ऊपर थोपने का प्रयत्न करते हैं? अब यह उन तर्कजीवियों को कौन समझाये कि कोई प्रेम में आकर जहर क्यों पिलायेगा? यदि हम किसी को प्रेम करते हैं तो उसकी इच्छा व उसके हित को ध्यान में रखेंगे कि नहीं। उसकी इच्छा के अनुरूप उसके स्वास्थ्य के हित जो है, उसी वस्तु या पदार्थ को खिलाकर अपना प्रेम प्रदर्शन करें तो उनकी क्या हानि है? जिसे हम प्रेम करते हैं, उसको प्रसन्न रखकर, उसके चेहरे पर मुस्कान देखकर हमारी प्रसन्नता भी बढ़ेगी। जहर खिलाने वाला कैसा प्रेम? अब यही तर्क लोग शराब पिलाने के लिए भी दे सकते हैं। माँसाहार के लिए भी दे सकते हैं। इस बनाबटी प्रेम प्रदर्शकों से भगवान बचाये। मनोज को माया के माया जाल की शादी के उस नाटक में ऐसे लोग बहुतायत में दिखायी दे रहे थे। विशेष कर महिलाएँ नाटकीय प्रेम प्रदर्शन में सिद्धहस्त थी। मनोज को उन बनाबटी प्रेम प्रदर्शकों से पीछा छुड़ाने में पसीना आ गया। वहाँ खाना-पीना तो दूर की कोड़ी थी। मनोज तनाव का शिकार हो रहा था। वह केवल इस प्रयास में था कि इस घुटन भरे माहोल से किस प्रकार निकला जाय?
मनोज को उस समय बड़ा ही अजीब लगा जब जोर देकर उसे खाना खाने के लिए एक हाॅल में ले जाया गया। वहाँ कोई खाना नहीं खा रहा था। अधिकांशतः महिलाएं बैठी हुई थीं। वहाँ थाली में खाना लाया गया और माया अपने हाथों से मनोज को खाना खिलाने लगी, क्या नाटक था? जो औरत धोखा देकर पति के नाम पर किसी पुरूष को फँसाने का प्रयास कर रही हो; वही ऐसा नाटक कर सकती है। मनोज उस माहोल में खाना तो क्या रहना भी पसन्द नहीं कर रहा था। वह जितना जल्दी संभव हो सके, वहाँ से निकल जाना चाहता था। माया के हाथ से उसे एक या दो ग्रास लेने ही पड़े। कभी-कभी मनुष्य को अपनी इच्छा के विरूद्ध भी बहुत कुछ करना पड़ जाता है। ऐसा मनोज के साथ भी हुआ। उसने मन मारकर भी माया के हाथ से कुछ ग्रास खा ही लिए और उठ खड़ा हुआ। बार-बार आग्रह के बाबजूद उसे वहाँ खाना खाना रास नहीं आ रहा था। अच्छा ही हुआ, वे दो ग्रास इतने महँगे होंगे; उस समय मनोज नहीं जानता था। किंतु कुछ दुर्घटनाएं ऐसी होती हैं, जिन्हें जीवन भर भुलाना संभव नहीं होता है, मनोज के लिए माया के शादी के षड्यन्त्र में फँसना भी ऐसी ही दुर्घटना थी। जिसका आभास उसे पहले दिन से ही था। मनोज को अपने आप पर हँसी आती है। मनुष्य भी अजीब प्राणी है। उसे आभास हो जाय कि उसकी मृत्यु निकट है, उसके बाबजूद वह अधिक से अधिक जीने के प्रयत्न करता है। मनोज को प्रत्येक कदम पर माया के झूठ का आभास हो रहा था। उसके बाबजूद वह उसकी बात को सच मानकर उसके मायाजाल में फँसता चला गया।

Tuesday, August 15, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१९"

आर्य समाज मन्दिर में पहुँचने के बाद ही मनोज की यह आशंका बलवती होने लगी कि मनोज से शायद गलती हो गयी है। मनोज ने जैसी कल्पना की थी, वे लोग वैसे नहीें थे। मनोज सादा व बिना भीड़ वाली शादी चाहता था। माया वहाँ की न होते हुए भी पचास से अधिक लोग तो रहे ही होंगे। वहाँ के माहोल में ही बनाबटीपन की बू आ रही थी। शालीनता, साधारण व सच्चाई से कोसों दूर का वातावरण लग रहा था। मनोज को वहाँ घुटन का अनुभव हो रहा था। माया से बार-बार मना करने पर भी वह प्रदर्शन की इच्छा से काफी सामान इकट्ठा कर रखा था। मनोज का उसे देखकर ही सर चकरा गया। मनोज ने माया को चेतावनी भी दे दी कि जिस प्रकार से तुम कर रही हो। मेरे साथ सुखी नहीं रह पाओगी। चेतावनी देने के बाद मनोज ने कुछ भी साथ ले आने से साफ इंकार कर दिया। माया मनोज के लिए शादी के समय पहनने के लिए कुछ कपड़े भी लाई थी। उसने कहा तो यह था कि ये आपकी तरफ से खरीदे हैं। आप इनके रूपये दे देना किंतु वहाँ के माहोल को देखकर मनोज ने उनको पहनने से साफ इंकार कर दिया।
मनोज ने आर्य समाज मंदिर में शादी करना इसलिए स्वीकार किया था कि वहा साधारण व सादगी से शादी होगी। लेकिन वहाँ भी माया व उसके तथाकथित अपने लोगों ने पूरा नाटक कर रखा था। मनोज ने दुःखी मन से जैसे-तैसे वहाँ के रीति-रिवाजों में भाग लिया। आर्य समाज मंदिर में नाम पते के प्रमाणों के साथ प्रत्येक पक्ष से दो-दो गवाहों के आवासीय प्रमाण पत्र जमा कराये गये। मनोज के साथ कोई था ही नहीं। अतः माया की तरफ के दो व्यक्तियों ने ही मनोज के पक्ष के गवाह बनकर हस्ताक्षर किए। वरमाला का आयोजन था किंतु वरमाला थी ही नहीं। माया के पक्ष के लोगों का कहना था कि यह तो आर्य समाज वालों को व्यवस्था करनी थी। आर्य समाज वालों का कहना था कि यह उनके कार्यक्रम का भाग नहीं है। आनन-फानन में मालाएं मगवाई गयीं। कन्या दान का नाटक हुआ। कन्या दान का सारा फण्डा ही मनोज की समझ से बाहर था। कन्या दान की वस्तु है वह कभी स्वीकार ही नहीं कर पाया। और फिर कन्यादान के नाम पर कुछ रूपये भीख की तरह देना। मनोज को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था किंतु वहाँ किसी बखेड़े से बचने के लिए वह चुपचाप तमाशबीन बना रहा। अन्त में कन्यादान से प्राप्त रूपयों को आर्य समाज को दान करके पीछा छुड़ाया। चाय पीने के लिए जोर दिया जा रहा था। पता नहीं क्यों लोग व्यक्ति की इच्छा व आवश्यकता के विरूद्ध खिलाने पिलाने का आग्रह करके अपने बनावटी प्रेम का प्रदर्शन क्यों करते हैं?

Sunday, August 13, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१८"



कार द्वारा लगभग तीन घण्टे की यात्रा करके मनोज गाजियाबाद पहुँचा था। मनोज अपने दैनिक प्रयोग में आने वाले कपड़े पहने हुए था और कुछ भी नहीं लेकर गया था। हाँ! उसने माया से स्पष्ट कह दिया था कि उसे आभूषण बगैरहा बनवाने में कोई रूचि नहीं है और न ही वह कुछ लेकर आ रहा है। शकुन के तौर पर जो अनिवार्य हो वह माया को स्वयं ही खरीदना होगा। मनोज उसके लिए आवश्यक रूपये पहले ही माया के पास भेजना चाहता था किंतु माया ने कह दिया था कि वहाँ पहुँचने पर ही वह उसके साथ जाकर दुकार से मंगलसूत्र खरीद लेगी। मनोज को कुछ भी मालुम न था कि गाजियाबाद में कौन से आर्य समाज मन्दिर में शादी की व्यवस्था की गयी है। अतः गाजियाबाद पहुँचने पर माया को फोन मिलाया। माया अपने रिश्ते के भाई को लेकर मनोज के पास पहुँची। माया और मनोज को एक स्थान पर मिलने में ही काफी देर हो गयी। माया ने मोबाइल पर जो लोकेशन बताई, मनोज को ड्राईवर बड़ी मुश्किल से वहाँ पहुँच पाया। उसके बाद पूर्व व्यवस्था के अनुसार मनोज ने माया के सामने बाजार चलने का प्रस्ताव रखा। माया ने पहले से ही तय कर रखा था कि किस दुकान पर जाना है। दुकान पर जाने से पूर्व मनोज को रूपये भी निकालने थे। आधुनिक तकनीकी के दौर में मनोज को रूपये लेकर चलना उचित नहीं लगता था। अतः पहले एटीएम की खोज हुई कई एटीएम देखने के बाद रूपये निकल सके। रूपये निकलते-निकलते काफी देर हो चुकी थी। इधर आर्य समाज मन्दिर से माया के चचेरे भाई के पास फोन भी आने लगे थे। उधर एक शपथ पत्र व फोटो भी बनने थे। इस प्रकार भाग दौड़ कर जल्द बाजी में माया ने अपने लिए मंगलसूत्र व एक जोड़ी पायल खरीदीं। इस प्रकार सभी औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद मनोज माया के साथ आर्य समाज मन्दिर में पहुँचा।

Saturday, August 12, 2017

थकना नहीं,रुकना नहीं

समस्याए अनेक है और 
ईरादा सिर्फ एक कि 

थकना नहीं,रुकना नहीं l
रोकेंगी ये तुम्हे पहाड़ बनकर,
खड़े रहना तुम भी निडर तनकर,
तपस्या है जीवन की कठिन पर,
तुम थकना नहीं,रुकना नहींl
कभी कुछ छूटने का दुख होगा,
गहन अंधेरे में तुम्हारा मुख होगा,
वीरान होगा समय,घमाशान होगा, पर
तुम थकना नहीं,तुम रुकना नहीं l
जीवन हर कदम पर परखेगा ,
थोड़ा-थोड़ा,तेज-तेज सरकेगा,
एक कहानी होगी,बड़ी हैरानी होगी,
तुम थकना नहीं और रुकना नहीं l
भोग-विलास व्यभिचार का सांप डसने को होगा,
परिस्थितिवश पांव इसमें फसने को होगा,
घुटन भी होगी,बेचैनी भी होगी,मगर 
तुम थकना नहीं,रुकना नहीं l
बूढ़ापे में बचपन एक ख्वाब होगा,
तेरे कर्मों का भी हिसाब होगा ,
मृत्यु भी होगी,मुक्ति भी होगी,
तुम थकना नहीं,तुम रुकना नहीं l



कवि-दीपक मेहरा

Friday, August 11, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१७"

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१७"


माया व उसके भाई के मायाजाल में फंसकर मनोज ने शादी के लिए सहमति तो दे दी थी, किंतु घटनाचक्र ने उसके उत्साह को समाप्त कर दिया था। मनोज ने माया को स्पष्ट कर दिया था कि उसने अपने किसी भी सगे-सम्बन्धी की शादी में भाग नहीं लिया है। यहाँ तक कि वह अपने सगे भाइयों और बहनों की शादी में भी नहीं गया। इस कारण उसके साथ भी किसी के आने की संभावना नहीं थी, यह बात उसने माया को स्पष्ट रूप से बता दी थी। उसके बाबजूद माया बार-बार प्रयास करती रही कि मनोज के घर वाले शादी में सम्मिलित हों। प्रारंभ में मनोज को भी लगा था कि घर से कोई सम्मिलित होगा तो ठीक होगा। उसने इसके लिए अपनी बहन से बात भी की थी। किंतु बाद में माया की बातों से ही मनोज को अजीब सा महसूस होने लगा। मनोज को लगने लगा कि किसी का भी जाना, उचित नहीं होगा। अतः उसने स्वयं ही अपनी बहिन से इंकार कर दिया था। मनोज अजीब सी स्थिति में फंस गया था। शादी से पूर्व ही उसे अजीब सा लगने लगा था किंतु वह इंकार भी नहीं कर पा रहा था। इसी खींच-तान में उसने एक कार ड्राईवर से बात की और तय किया कि वह अकेला ही जायेगा। किसी को भी साथ नहीं ले जायेगा। यहाँ तक कि उसने अपने कार्यस्थल पर किसी को बताया भी नहीं कि वह शादी करने जा रहा है। ग्रीष्मावकाश होने के कारण मनोज के साथी अपने-अपने पैतृक आवासों पर भी गये हुए थे। मनोज अपने कार ड्राईवर को भी रास्ते में ही बताया था कि वह शादी करने जा रहा है और आवश्यकता पड़ी तो शादी में उसे साक्षी बनना पड़ सकता है। ड्राईवर भी मुस्करा पड़ा था। वाह! क्या बात है? दूल्हे के साथ अकेला वही बराती है।

Tuesday, August 1, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१६"

शादी की तिथि निर्धारित हो जाने के बाद ही मनोज का तनाव बढ़ने का समय आ गया था। माया से बात करने पर पता चला कि वह शादी के लिए खरीददारी करने के लिए गयी थी। मनोज पहले ही स्पष्ट कर चुका था कि वह अपने या अपने परिवार के लिए कोई भी वस्तु या किसी भी रूप में धन स्वीकार न करेगा। इसके बाबजूद माया के द्वारा शादी के लिए खरीददारी मनोज की समझ से बाहर थी। मनोज ने बार-बार माया से खरीददारी करने को मना किया। किंतु वह हँसकर टाल देती कि कुछ विशेष नहीं खरीदा है। एक दिन जब माया ने बताया कि वह मनोज के लिए व उसके परिवार वालों के लिए कपड़े खरीद कर लायी है। मनोज ने माया के भाई को फोन करके कह दिया कि वह शादी नहीं हो सकती। माया के भाई का कहना था कि लोगों को दिखाने के लिए कुछ तो करना पड़ता है। फिर भी आप कहते हैं तो हम वापस करवा देंगे। मनोज को यह दिखावे का जीवन ही तो पसन्द न था। आज समाज की यही वास्तविकता है। हम सब कुछ दिखावे के लिए करते हैं। मनोज को शादी से पूर्व ही शादी टूटती हुई नजर आने लगी। फिर भी उसने सोचा कि अभी शादी के चाव में माया कुछ ध्यान नहीं दे रही। आगे समय के साथ सब कुछ समय जायेगी।
मनोज स्पष्ट कर चुका था कि माया प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी प्रकार का धन चाहे वह रोकड़ के रूप में हों या वस्तु के रूप में नहीं लायेगी। माया को केवल अपने वैयक्तिक वस्त्र व आभूषण लाने की छूट दी गयी थी। उसके बाबजूद परंपरा के नाम पर मनोज के लिए कुछ खरीदने की बात करना संबन्ध बनने से पूर्व ही खतरे में डालने वाली बात थी। हद तो तब हो गयी जब मनोज को मालुम चला कि माया ने अभी तक अपन बैंक खाता बन्द नहीं किया है। मनोज ने परेशान होकर स्पष्ट रूप से मना कर दिया कि वह शादी न करेगा। मनोज के इस प्रकार मना करने के बाद माया के व उसके भाई के लगातार फोन आने लगे। वे बार-बार अपनी परेशानी बता रहे थे। माया का भाई कहने लगा कि इस प्रकार सभी प्रकार की तैयारियाँ होने के बाद हम तो समाज में मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे। उसने यह भी कहा कि माया ने तो यह सुनकर खाना-पीना ही छोड़ दिया है। कुछ भी हो मनोज बैंक खाते के साथ माया को स्वीकार करने को तैयार न था। मनोज का मानना था कि जब पहले से ही सब कुछ बता दिया था तो अब उसके पालन में हीला-हवाली क्यों? आखिर बार-बार के एस.एम.एस. आने के बाद माया का एस.एम.एस. आया कि उसने अपना बैंक खाता बंद कराकर सारे रूपये अपनी माँ के खाते में जमा करा दिये हैं। मनोज ने उन लोगों की परेशानी को ध्यान में रखकर शादी करने की सहमति दे दी। माया व माया के भाई ने उसे आश्वासन दिया था कि वे किसी भी प्रकार का सामान नहीं लायेंगे।

Sunday, July 30, 2017

"दहेज के विरुद्ध शादी के संकल्प का परिणाम-१५"

एक दिन माया अपने भाई को लेकर मनोज के पास उसे व उसके क्वाटर को देखने आ गयी। मनोज के पास उसका बेटा ही रहता था। अन्य कोई खाना बनाने वाला न होने के कारण पहली बार आकर भी अपने लिए खाना बनाने का काम भी स्वयं माया को ही करना था। इसी बहाने मनोज भी यह जानना चाहता था कि वह खाना बना भी सकेगी या नहीं? अतः मनोज ने अपने बेटे की पसन्द के अनुरूप खाना बनाने का प्रस्ताव रखा। माया ने बनाने की कोशिश भी की किंतु वह बना नहीं पाई। हाँ! माया अपनी माया फैलाकर मनोज को यह विश्वास दिलाने में सफल रही कि वह दूर से लम्बी यात्रा करके आयी है। अतः अस्वस्थता के कारण वह ठीक से काम नहीं कर पा रही है। मनोज सकारात्मक सोच का व्यक्ति था। उसने सोच लिया कि माया नौकरी करती रही है। उसे अभ्यास नहीं होगा और लम्बी यात्रा के कारण होने वाली थकान के कारण भी वह ठीक से नहीं कर पायी होगी। शादी के बाद जब वह पूरा समय घर में लगायेगी तो सब कुछ सही ढंग से कर लेगी। मनोज माया के मायाजाल को नहीं समझ सका कि वह वास्तव में उसे फंसाने के लिए ही अपनी माया रच रही है। उसे घर-गृहस्थी में कोई रूचि ही नहीं है। मनोज यह विचार कर ही नहीं पाया कि जो औरत चालीस वर्ष की उम्र तक घर-गृहस्थी का काम नहीं सीख पाई, वह अब प्रौढ़ावस्था में क्या सीखेगी। सीखता भी वही है, जिसमें सीखने की जिज्ञासा व इच्छा शक्ति हो। झूठ, छल, कपट करके कभी कोई न किसी से कुछ सीख सकता है और न ही किसी सम्बन्ध के कर्तव्यों का निर्वहन कर सकता है। 
मनोज सीधी-सच्ची राह का पथिक था। वह न कुछ छिपाता था और न ही किसी से कोई झूठ बोलता था। अतः सामने वाले को भी अपनी तरह समझकर विश्वास कर लिया। उसने बिना किसी जाँच-पड़ताल के माया ने जो भी कहा उसे सही मानकर शादी की हाँ कर दी। माया मनोज के ठिकाने को देखकर और अपना माया जाल बुनकर वापस चली गयी। उसके वापस जाने के बाद माया के भाई से ईमेल और माया से मोबाइल पर वार्ता के क्रम में शादी की तिथि भी तय हो गयी। सब कुछ माया की तरफ से तय किया गया। शादी का स्थान भी माया का पैतृक शहर नहीं मनोज और माया के शहर के बीच पड़ने वाला गाजियाबाद शहर था। मनोज को कुछ अजीब लगा तो उसने माया से पूछा कि गाजियाबाद में विवाहस्थल रखने का क्या मतलब है। माया के माया जाल में सभी प्रश्नों के उत्तर थे। उसने बताया कि उसका छोटा भाई अभी छोटा है। उसे व्यवस्था करने में समस्याएँ होंगी। गाजियाबाद में उसका चचेरा भाई नौकरी करता है और अपने परिवार सहित रहता है। वह सारी व्यवस्थाएँ सही ढंग से कर लेगा। यही नहीं माया का यह भी कहना था कि इतनी बढ़ी हुई उम्र पर अपने छोटे से शहर में शादी करने पर लोग विभिन्न प्रकार की बातें करेंगे। अतः गाजियाबाद में शादी करना ही उचित होगा। सीधे-सच्चे मनोज ने माया की प्रत्येक बात पर विश्वास कर लिया। वह यह नहीं सोच सका कि माया ने अभी तक अपने शहर में क्या गुल खिलाये हैं। उसके बारे में जानकारी मनोज को न हो जाय। इस कारण दूसरे शहर में जाकर शादी का कार्यक्रम बनाया गया है। मनोज इसी में खुश था कि उसे माया के शहर तक की सुदूर यात्रा नहीं करनी पड़ेगी और शादी उसकी इच्छानुसार आर्यसमाज मन्दिर में होगी।

Thursday, July 27, 2017

बचें परिवर्तन के दंभ से

               
संसार में सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि कोई भी व्यक्ति अपनी स्थिति से संतुष्ट नहीं है। अधिकांश व्यक्ति असंतुष्टि के साथ जीते हैं। हमारे आसपास की सभी व्यवस्थाएं हमें अधूरी या अपूर्ण लगती हैं। हम कितने भी अज्ञानी या ज्ञानवान हों, हमें लगता है कि संसार में बहुत कुछ सही नहीं चल रहा है। इसे बदलने की आवश्यकता है। हमें अपने मित्रों में बुराई नजर आती हैं, उनके कार्य व व्यवहार में सुधार करने की अनेक संभावनाएं नजर आती है। परिवार में अनेक खामियां नजर आती हैं और प्रतीत होता है कि यदि मैं घर का मुखिया होता तो ऐसा करता। मैं गाँव का प्रधान होता तो ऐसा करता, मैं राज्य का मुखिया होता तो ऐसा करता या मैं देश का प्रधानमंत्री होता तो ऐसा करता। हमें सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था में अनेकों खामियां नजर आती हैं। अधिकांश व्यक्तियों के पास ढेरों सुझाव होते हैं, वे अपने सुझावों को दूसरों के लिए उपयोगी समझते हैं और चाहते हैं कि लोग उनके उन विचारों और सुझावों पर काम करें; जिन पर स्वयं उन्होंने कोई काम नहीं किया है।
असंतुष्टि के भी दो पहलू होते हैं। असंतुष्टि ही उद्यमिता को जन्म देती है। असंतुष्टि ही कार्य करने के लिए प्रेरित कर विकास का आधार बनती है तो दूसरी ओर असंतुष्टि ही निराशा से अवसाद व अपराध की ओर कदम बढ़ाती हैं। कई बार व्यक्ति असंतुष्टि से उपजे अवसाद के कारण आत्महत्या तक कर लेता है। वस्तुतः यह व्यक्ति के ऊपर निर्भर है कि वह असंतुष्टि को किस प्रकार लेता है। असंतुष्टि विकास का आधार बनती है। यदि हम वर्तमान स्थिति से संतुष्ट हो गये तो विकास कैसे करेंगे? प्रसिद्ध गजलकार दुष्यन्त कुमार की भाषा में-
न हो कमीज तो पैरों से पेट ढक लेंगे।
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए।।
वास्तविक रूप से विकास के पथ के लिए संतुष्ट हो जाने की प्रवृत्ति किसी भी प्रकार से उचित नहीं कही जा सकती। असंतुष्टि से ही संतुष्टि प्राप्त करने के लिए विकास पथ मिलता है। व्यक्ति असंतुष्टि से संतुष्टि प्राप्त करने के लिए ही जीवन भर कर्मो में लीन रहता है।
असंतुष्टि का दूसरा पहलू निराशा से अवसाद की ओर ले जाकर आत्महत्या तक का सफर है। इससे निजात पाने के लिए भारतीय आध्यात्म दर्शन अचूक औषधि है। जब व्यक्ति अपनी स्थिति को भाग्य मानकर स्वीकार कर लेता है, तब असंतुष्टि का स्वयं ही शमन हो जाता है। मलूकदास का मंत्र अवसाद से बचने का सबसे अच्छा साधन है-
अजगर करे न चाकरी, पक्षी करे न काम।
दास मलूका कह गये, सबके दाता राम।।
इस प्रवृत्ति को स्वीकार कर लेने से किसी प्रकार की असंतुष्टि का प्रश्न ही नहीं उठता। व्यक्ति जैसा भी है, जहाँ भी है, वहीं संतुष्टि प्राप्त कर लेता है। ऐसी स्थिति में विकास के पथ की कल्पना ही नहीं की जा सकती। विकास के पथिक को तो दुष्यन्त कुमार के संदेश पर ही आगे बढ़ना होगा-
कौन कहता है आसमां में छेद नहीं हो सकता?
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।
असंतुष्ट होकर विकास के पथिक बहुत कुछ करना चाहते हैं। वे क्रांतिकारी परिवर्तन के राही होते हैं। केवल भौतिक विकास ही नहीं सामाजिक क्षेत्र, राजनीतिक क्षेत्र सहित सभी क्षेत्रों में परिवर्तन का बिगुल बजाने वालों की भी कोई कमी नहीं है। वे लोग चाहते हैं कि सभी कुछ रातों रात बदल जाय और सब कुछ उनकी इच्छानुसार चले। किशोरावस्था और युवावस्था में परिवर्तन करने के असीम सपने होते हैं। पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक सभी क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन करने का आह्वान करने वाले व्यक्तियों की फौज आपको अपने आसपास पर्याप्त मात्रा में मिल जायेगी। परिवर्तन के ऐसे यौद्धाओं की बहुलता है, जो संपूर्ण समाज को अपने अव्यावहारिक सिद्धांतों के अनुसार बदलने की कामना करते हैं किंतु अपने आपको उन सिद्धांतों के अनुकूल नहीं समझते। कहने का मतलब वे दुनिया को बदलना चाहते हैं किंतु स्वयं अपने आप को बदलने को तैयार नहीं होते। दूसरों से ईमानदारी की अपेक्षा करते हैं किंतु स्वयं अपने आपको उस मार्ग पर चलने में असमर्थ पाते हैं। मुझे हँसी आती है, अरे भाई! जो सिद्धांत आप दूसरों को बता रहे हो; पहले उसको अपने व्यवहार में लाकर उसकी सत्यता और व्यावहारिकता तो सिद्ध करो। तभी तो दूसरे लोग आपकी बातों को सुनने को तैयार होंगे।
ऐसा नहीं है कि सभी लोग दूसरों से ही परिवर्तन करने की अपेक्षा करते हैं। आपको ऐसे उत्साही व्यक्तियों के भी दर्शन हो जायेंगे जो घर फूँक तमाशा देखने को भी तैयार रहते हैं। वे सोचते हैं कि वे जो चाहे कर सकते हैं। वे संपूर्ण दुनिया को बदलकर एक आदर्श व सुंदर दुनिया में परिवर्तित कर सकते हैं। किंतु यह यथार्थ से कोसों दूर है। संसार में कोई किसी को भी बदल नहीं सकता। हम केवल अपने आपको बदल सकते हैं। हम अपने आपको ईमानदार बना सकते है किंतु दूसरे को नहीं। ईमानदारी अपने अंदर से विकसित होती है कोई भी बाहरी शक्ति किसी को ईमानदार नहीं बना सकती। हम दूसरों को तो क्या अपने विद्यार्थियों और अपनी संतानों को ईमानदार नहीं बना पाते। दुनिया को बदलने की तो बात ही क्या है? वास्तव में दुनिया को बदलना किसी भी व्यक्ति के वश की बात नहीं। व्यक्ति बदल सकता है किंतु सृष्टि नहीं। अतः हमें परिवर्तन करने के दंभ से बचना होगा। दुनिया को बदलने के दंभ में हम अपने आपको बदल सकने के अवसर को भी गंवा सकते हैं।
राजस्थान में सेवाकाल के दौरान एक साथी शिक्षक श्री गजेंद्र जोशी एक कहानी सुनाया करते थे। वह यथार्थ का चित्रण करती है। जोशी जी के अनुसार - एक राजा अपने सेनापति और महामंत्री के साथ भ्रमण पर निकले। भ्रमण करते हुए राजा को एक स्थान बड़ा मनोरम लगा। राजा को ख्याल आया कि इस स्थान पर एक तालाब का निर्माण किया जाय जिसमें दूध भरा हो तो कितना अद्भुत दृश्य होगा! उसने सोचा, एक सुन्दर तालाब का निर्माण करके अपने राज्य के सभी ग्वालों को कहा जाय कि वे भोर की वेला में एक बार दूध तालाब में डालें। राज्य में इतने ग्वाले हैं कि तालाब दूध से भर जायेगा जो संपूर्ण दूनिया में अनुपम होगा। राजा ने अपना विचार महामंत्री व सेनापति के सामने रखा। सेनापति को तो आज्ञापालन की शिक्षा मिली थी। उसे क्या बोलना था। महामंत्री ने हाथ जोड़कर विनती की, ‘महाराज! तालाब बनाने का विचार अत्युत्तम है किंतु महाराज तालाब दूध का नहीं, पानी का होता है।’ राजा ने महामंत्री की तरफ कड़ाई से देखते हुए कहा, ‘नहीं, महामंत्री। हमारे राज्य का तालाब अनूठा होगा। हमने निर्णय ले लिया है। राजाज्ञा का पालन सुनिश्चित करिये।’
राजकोश से पर्याप्त धन जारी करते हुए बड़े ही सुन्दर तालाब का निर्माण कराया गया। संध्याकाल में पूरे राज्य में मुनादी करवा दी गई जिसके अनुसार राज्य के सभी ग्वालों को आदेश दिया गया कि प्रातःकाल भोर होने से पूर्व सभी ग्वाले अपना-अपना दूध तालाब में भर दें। दूसरे दिन भोर होने से पूर्व ही एक ग्वाला आया। उसने सोचा सभी तो दूध डालेंगे ही, यदि मैं दूध के स्थान पर पानी डाल दूँ तो क्या फर्क पड़ेगा और क्या किसी को पता चलेगा? इसी प्रकार सभी ग्वाले आये और सभी ने उसमें चुपके से पानी डाल दिया।
सुबह राजा अपने महामंत्री और सेनापति के साथ तालाब का निरीक्षण करने निकले। तालाब को देखकर वे आश्चर्यचकित रह गये और आग बबूला हो उठे। तालाब एकदम साफ और स्वच्छ निर्मल जल से लबालब था। राजा संपूर्ण ग्वाला समाज को दण्डित करने की घोषणा करने वाले ही थे कि महामंत्री हाथ जोड़कर खड़े हो गये और बोले, दुहाई है अन्नदाता की। मैंने पूर्व में भी प्रार्थना की थी कि तालाब तो पानी का ही होता है। महाराज प्रकृति के विरुद्ध व्यवस्थाएँ नहीं चलाई जा सकती। राजा समझ गया और मुस्कराकर रह गया। 
यह बड़ी ही शिक्षाप्रद कहानी है। परिवर्तन के कितने भी प्रयास किये जायँ किंतु दुनिया नहीं बदल सकती। दुनिया में सभी रंग हैं। यह विविध रंगों से परिपूर्ण है। इसमें सभी गुण है तो सभी अवगुण भी हैं। दुनिया तो क्या संसार में कोई भी व्यक्ति नहीं मिलेगा जिसमें कोई अवगुण न निकाला जा सके और न ही ऐसा व्यक्ति मिलेगा जिसमें कोई गुण न हो। दुनिया में ईमानदारी भी है और बेईमानी भी; सत्य है और असत्य भी; सदाचार भी है और दुराचार भी; सज्जनता भी है और दुष्टता भी। दुनिया विविधता पूर्ण रंग बिरंगी है जिसमें सभी रंग हैं और सदैव रहेंगे। किसी भी रंग को नष्ट करना संभव नहीं। हाँ! मात्रा को कम या अधिक किया जा सकता है। हम अपने लिए रंगों का चुनाव कर सकते हैं किंतु अन्य रंगों को दुनिया से समाप्त नहीं कर सकते।
जब हमारा राजनीतिक नेतृत्व अपराधमुक्त शासन देने की बात करता है तो वह असंभव बात कह रहा होता है। किसी भी स्थिति में अपराध को समाप्त नहीं किया जा सकता। हाँ! अपराध को कम किया जा सकता है। शासन की लापरवाही और कानून व्यवस्था की लापरवाही से अपराध बढ़ सकते हैं और अधिक सक्रिय और सावधान रहकर अपराध कम किये जा सकते हैं। किंतु अपराधों को सिरे से समाप्त करना संभव नहीं। यह प्रकृति के खिलाफ है। प्रकृति में से किसी भी रंग को समाप्त नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार भ्रष्टाचार मुक्त शासन का दंभ भी खोखला ही साबित होगा। भ्रष्टाचार को समाप्त करना भी असंभव है। हाँ! श्रेष्ठ कानून व्यवस्था और चुस्त दुरुस्त प्रशासन की सहायता से भ्रष्टाचार कम किया जा सकता है। कोई व्यक्ति कितना भी सक्षम हो, वह अपने आप को ईमानदार बना सकता है किंतु अन्य सभी लोगों को ईमानदार नहीं बना सकता। हो सकता है कि कुछ लोग मजबूरी में ईमानदार होने का दिखावा करें किंतु अवसर पाते ही वे अपने पुराने रंग में वापस आ जाते हैं। अतः परिवर्तन के प्रयास करना अच्छी बात है किंतु दूसरों को बदलने का दंभ पालना किसी भी प्रकार उचित नहीं है। राम, कृष्ण, ईसा और मुहम्मद पैगम्बर जैसे महापुरूष संसार से बुराइयों को जड़ से नहीं मिटा सके। उन्होंने अपने प्रयास किए उनके तात्कालिक परिणाम भी निकले। उनके कार्यो के लिए ही हम आज भी उन्हें याद करते हैं। किंतु बुराइयों का उन्मूलन न तो हुआ और न संभव है। हाँ! बुराइयों पर नियंत्रण के लिए अविरल प्रयास करते रहने की आवश्यकता है। वे प्रयास सदैव किए जाते रहेंगे। अच्छाई और बुराई का संघर्ष सदैव चलता रहा है, अभी भी चल रहा है और सदैव चलता रहेगा। हमें केवल अपने पक्ष का निर्धारण करना है। हिंदु धर्म ग्रन्थों में इसे देव और असुरों का संघर्ष कहा गया है तो अन्य धर्म ग्रन्थों में भी विभिन्न नामों से सम्मिलित किया गया है।

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१४"

मोबाइल वार्ता के क्रम में यह भी स्पष्ट हो गया था कि एक ही प्रदेश होने के कारण माया शादी के बाद भी अपने उसी पुराने मोबाइल नम्बर को ही जारी रखेगी। अपने बैंक खाते को बन्द करके उसकी सारी राशि अपने भाई को दे देगी। मनोज को कुछ भी लेकर आना स्वीकार नहीं था। अतः मनोज ने बार-बार स्पष्ट कर दिया था कि वह अपने लिए कपड़े तक स्वीकार न करेगा। माया सब कुछ स्वीकार करती जा रही थी। मनोज ने अपने बेटे से वायदा किया था कि उसे जुलाई से किसी भी घरेलू काम में हाथ नहीं बटाना पड़ेगा और वह अपना पूरा ध्यान अपने अध्ययन पर केन्द्रित कर सकेगा। इस प्रकार मनोज चाहता था कि शादी की प्रक्रिया भी अप्रैल या मई माह में ही पूरी हो जाय। वार्तालाप के क्रम में मनोज ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि वह मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करता। अतः शादी कोर्ट मैरिज या आर्य समाज पद्धति से पसन्द करेगा।
 मनोज को रंग या चेहरे में कोई रूचि नहीं थी। वह तो सच्चाई के मार्ग पर चलने वाली जीवनसंगिनी चाहता था, भले ही उसका रंग कैसा भी हो? उसे रूपवती की नहीं गुणवती पत्नी की तलाश थी; जो उसके कदम से कदम मिला कर चल सके। अतः मोबाइल वार्तालाप के क्रम में जब मनोज के सामने माया को देखने का प्रस्ताव रखा गया तो उसने देखने से मना कर दिया। उसे रंग-रूप में कोई रूचि नहीं थी। माया के घर को देखने का भी मनोज के लिए कोई मतलब नहीं था। किंतु माया शादी से पहले देखना चाहती थी और मनोज से आमने-सामने बैठकर बातें करना चाहती थी। मनोज प्रस्तावित जीवनसंगिनी की सभी जिज्ञासाओं को शांत करके ही आगे बढ़ना चाहता था। इसलिए मनोज ने माया से यही कहा कि चूॅकि माया को मनोज के पास आकर रहना है। अतः वही उसके पास आकर सब कुछ देख ले। इस प्रकार मनोज और माया के बीच में यही तय हुआ कि माया मनोज के यहाँ आकर सब कुछ देखेगी और बात करेगी। मनोज को यह प्रस्ताव बहुत अच्छा लगा, क्योंकि शादी से पूर्व ही माया आकर सब कुछ देख लेगी और पूर्णतः सब जानकर निर्णय करेगी तो शादी के बाद समायोजन में समस्या नहीं आयेगी।

Tuesday, July 25, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१३"

अपनी मूल प्रवृत्ति के अनुसार मनोज ने सर्वप्रथम यही पूछा था, ‘‘आपने मेरा प्रोफाइल पढ़ा है?’’ माया ने उत्तर दिया था, ‘‘हाँ! मेरे भाई ने प्रोफाइल पढ़वाया है।’’ इस प्रकार इस बात से आश्वस्त हो जाने के बाद कि माया ने उसका प्रोफाइल पढ़कर स्वयं उसको स्वीकृत किया है। मनोज ने आगे बात करना प्रारंभ किया था।
संभवतः वह फरवरी या मार्च का महीना था। मनोज को प्रोफाइल देखकर और अभी तक हुई बातचीत के आधार पर लगने लगा था। शायद! यह महिला उसकी जीवन साथी बनकर साथ दे पायेगी। मनोज ने अपने बेटे से भी कहा कि शायद उसे अगले वर्ष घरेलू काम नहीं करने पड़ेगे। मनोज के बेटे की टिप्पणी थी, ‘‘आप तो कई वर्षो से ऐसे ही कहते हैं। बाद में कुछ भी नहीं होता।’’ मनोज के बेटे ने यह भी कहा था कि प्रारंभ में वह सभी बातों पर हाँ-हाँ करती जा रहीं हैं किन्तु बाद में ऐसा करेंगी नहीं। मनोज ने अपने बेटे की बात हँसकर टाल दी। जब प्रत्येक बात खुलकर स्पष्ट रूप से हो गयी है। माया सभी बातों को स्वीकार कर रही है तो फिर बाद में न मानने का कोई कारण मनोज को नजर नहीं आता था। मनोज एक रास्ते का राही था। वह सीधी सच्ची बात करता था। उसने अपने प्रोफाइल पर भी स्पष्ट लिखा था कि वह किसी भी प्रकार का झूठ बर्दाश्त नहीं कर सकता। माया उसकी जाति, उसी के पेशे व उसी के प्रदेश की थी। यही नहीं उसने मनोज के प्रोफाइल पर दी गयीं सारी शर्तो को स्वीकार किया था। मोबाइल पर बात करते समय भी मनोज ने स्पष्ट कर दिया था कि वह जीवन में कुछ भी बर्दाश्त कर सकता है किंतु झूठ बर्दाश्त नहीं कर सकता। मनोज ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि उसका और माया का कुछ भी अलग नहीं होगा। वह महिलाओं द्वारा छिपाकर अलग से धन रखने की प्रवृत्ति को पसंद नहीं करता और उसकी पत्नी किसी भी प्रकार कुछ छिपाकर रखे उसे स्वीकार नहीं होगा।

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१२"

एक दिन जीवन साथी डाॅट काॅम पर उसे एक प्रस्ताव मिला। जिसे देखकर उसे लगा शायद उपयुक्त होगा। वह किसी चालीस वर्ष की अविवाहित महिला का प्रस्ताव था। प्रोफाइल के अनुसार वह उसकी ही जाति की थी। मनोज जाति वाद बिल्कुल नहीं मानता था। उसे यह अपेक्षा भी न थी कि केवल अपनी ही जाति की महिला हो। वह तो केवल यह चाहता था कि समान जीवन मूल्यों व उच्च नैतिक मानदण्डों को मानने वाली हो। कर्म के आधार पर ही प्रारंभ में जाति का विभाजन हुआ। वह अब भी मानता था कि उच्च जीवन मूल्यों व उच्च नैतिक मानदण्डों को मानने वाला व्यक्ति ही वास्तव में उच्च वर्ण का है। निम्न कर्मो वाला व्यक्ति किसी भी कुल या जाति में जन्म ले, वह तो निम्न ही रहेगा। उस सबके बाबजूद ब्राह्मण परिवार होने पर उसके माता-पिता सरलता से उसे उसकी पत्नी के रूप में स्वीकार कर पायेंगे। यह सोचकर उसे ठीक लगा। पेशे की दृष्टि से भी मनोज को वह प्रस्ताव ठीक लगा क्योंकि वह भी मनोज की तरह ही अध्यापिका थी। प्रोफाइल ठीक-ठाक लगने पर जब आगे बात की, पता चला वह प्रोफाइल महिला के भाई ने बनाया था। प्रथम बार उसके भाई से ही बात हुई। बातचीत के क्रम में ही लग गया कि उस महिला के एक मात्र छोटे भाई ने प्रोफाइल बनाया था और वह अन्तर्मुखी प्रकृति का था और उसने मनोज को अपनी बहिन का मोबाइल नम्बर मनोज को दे दिया।

Sunday, July 16, 2017

दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-११

भारत में नारी के शोषण के नाम पर महिलाओं के पक्ष में कानून बनने के कारण वर्तमान में कानूनों का दुरूपयोग कर कुछ चरित्रहीन महिला अपनी चरित्रहीनता को उन कानूनों का दुरूपयोग कर छिपाना चाहती हैं। कुछ के लिए तो शादी पति व पति के परिवार से रूपये ऐठने का अच्छा साधन बन गया है। जैसे-तैसे किसी अच्छी कमाई करने वाले या अच्छी जायदाद वाले को धोखा देकर एक बार शादी की रस्म पूरी करवा लो फिर तो दहेज के मुकद्में की धमकी देकर या मुकदमा करके अच्छी खासी रकम हासिल करो। कमाल की बात है, लड़की वाले लड़की की पढ़ाई पर अधिक खर्च करना नहीं चाहते! लड़की व लड़के की समानता की बात लड़की के पिता या भाई को अपनी पारिवारिक सम्पत्ति में से हिस्सा देने में याद नहीं आती। पिता की संपत्ति में लड़की बराबर की हकदार है। यह कानून किसी को याद नहीं आता। लड़की को उसके पिता के घर में न तो भागीदारी मिलती है और न ही सम्मान! किंतु कुछ घण्टों की शादी की रस्म पूरी होते ही, लड़की को उस घर की मालकिन बन जाना चाहिए। लड़के के माता-पिता या घरवालों की उपस्थिति भी आजकल की महिलाओं को खटकती है। संपत्ति में से उत्तराधिकार के मामले में भाई बहिन समान नहीं है। वहाँ माता-पिता को कानून याद नहीं आता। धोखा देकर झूठ बोलकर शादी की रस्म एक बार पूरी हो जाय। उसके बाद लड़के व लड़के के परिवार वालों को नाकों चने चबबाने के लिए दहेज एक्ट है ही। वास्तव में कानून ब्लेकमेल करके धन ऐंठने का साधन बन गये हैं। यह बात मनोज के समझ में आने लगी थी। यह सब समझते हुए भी मनोज सकारात्मक सोचने वाला व्यक्ति था। अतः उसका सोचना यह भी था कि दुनिया में सभी लोग समान नही होते। अच्छे लोग बुरे लोगों की अपेक्षा अधिक है। कुछ लोग अपने कुकर्मो के कारण सभी को बदनाम करते हैं। यात्रा में सभी लोग तो जेब कट नहीं होते। कुछ घटनाएं होती हैं किंतु उनके कारण हम बाहर निकलना बन्द तो नहीं कर सकते? यही सोचकर विभिन्न प्रकार के भय व संसय होते हुए भी मनोज वेबसाइटों के माध्यम से साथी की खोज करता रहा।

Thursday, July 13, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१०"


एक मोहतरमा से बात हुई तो उन्होंने अलग होने का कारण बताया कि पति का परिवार काफी बड़ा था और ससुराल में रसोई में काफी काम करना पड़ता था। एक मोहतरमा टी.वी. के बिना जी ही नहीं सकतीं थीं। जो भी हो शादी के प्रस्तावों से वार्ता के समय मनोज को बड़े ही चैकाने वाले अनुभव आये। बिहार के एक लड़की के पिता से बात हो रहीं थी। पता चला कि लड़के पर मुकदमा कर रखा है। उससे बहुत बड़ी रकम माँगी जा रही थी। मुकदमें में उस बच्ची के लिए भी खर्चे की माँग की गई थी, जो बच्ची के दादा-दादी द्वारा पाली जा रही थी। जब मनोज ने पूछा कि माँ ने छोटी बच्ची को अपने पास रखने की माँग क्यों नहीं की? उत्तर ऐसा मिला कि मनोज हैरान रह गया। उस महिला के पिता का कहना था, उसकी बेटी उसकी बच्ची को अपने पास क्यों रखें? उसकी लड़की है, वह अपने पास रखे। इस प्रकार की मनोवृत्ति वाले माता-पिता अपनी बेटी की भी इसी प्रकार की मनोवृत्ति बना देते हैं और इस प्रकार की लड़कियाँ अच्छी माता नहीं बन पातीं। मजेदार बात यह थी कि माँ बच्ची को अपने पास नहीं रखना चाहती थी किंतु मूर्खतापूर्ण तरीके से मुकद्मा करके बच्ची के नाम पर भी रूपये लेना चाहती थी। इस प्रकार की लड़की के साथ कौन शादी करके अपने आप को मुसीबत में डालना पसन्द करेगा? मनोज को बाद में पता चला कि उस लड़की के अपने मायके में किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध संबन्ध उसके वैवाहिक जीवन का आधार बने थे, किन्तु दहेज का झूठा मुकदमा दर्ज कराकर ब्लैकमैलिंग करके अच्छा खासा धन वसूला गया। वे अब दूसरे बकरे की तलाश कर रही हैं।

Saturday, July 8, 2017

स्वच्छता नहीं है नारा केवल

  जन-गण की शान

                                         
स्वच्छता नहीं है नारा केवल, यह जग-गण की शान है।
स्वच्छता बनेगी जीवन शैली, बढ़े भारत  का   मान है।।
गली-गली हम स्वच्छ करेंगे;
तन-मन सबके स्वच्छ करेंगे।
अर्थव्यवस्था स्वच्छ हो रही,
कैश लैस सब स्वच्छ करेंगे।
साफ करें आतंक का कूड़ा, गा के  प्रेम  के   गान हैं।
स्वच्छता नहीं है नारा केवल, यह जग-गण की शान है।।
स्कूलों  को  स्वच्छ रखेंगे;
बाजार  भी  सब चमकेंगे।
शिक्षक बढ़कर उठायें झाड़ू,
शिक्षार्थी सब स्वच्छ रखेंगे।
स्वच्छता है स्वास्थ्य की रक्षक, यह जन-जन की जान है।
स्वच्छता नहीं है नारा केवल, यह जग-गण की शान है।।
राष्ट्रप्रेमी अब स्वच्छ करो सब;
आतंक से सीमा स्वच्छ करो अब।
कानूनों के ढेर स्वच्छ हों,
राजनीति को स्वच्छ करो जब। 
स्वच्छ, स्वस्थ, समृद्ध राष्ट्र हो, कर स्वच्छ वायु का पान है।
स्वच्छता नहीं है नारा केवल, यह जग-गण की शान है।।

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम"-९

आॅन लाइन शादी के अनुभवों में मनोज को यह भी पता चला कि लड़की या लड़की वालों को अधिक से अधिक रूपया कमाने वाला लड़का चाहिए। प्रत्येक लड़की अपने से अधिक पढ़े लिखे, उच्च पद पर कार्यरत व धनी व्यक्ति के साथ शादी करना चाहती है। जब ध नही शादी का आधार बनेगा तो लड़के वाले भी धन की उम्मीद करते हैं तो यह मानवीय बिडंबना के सिवाय कुछ भी नहीं है। जब धन के आधार पर लड़की वाले निर्णय करते हैं तो लड़के वाले उसी आधार को चुनते हैं तो बुरा क्या है? निसन्देह यह अच्छा नहीं है, यह सामान्य मानवीय प्रवृत्ति है। लड़की के घर वाले वर पक्ष की कमाई को निर्णय का आधार बनाते हैं, उनके लिए गुण अवगुणों का कोई महत्व नहीं है। मनोज ने स्पष्ट अनुभव किया कि लोग उसके प्रोफाइल को पूरा पढ़े बिना ही, केवल उसकी नौकरी को महत्व देते हुए सम्पर्क स्थापित कर शादी की बात करने लगते। वर्तमान में लड़कियाँ बिना किसी जिम्मेदारी के ऐशोआराम और शान-शौकत का जीवन जीने के सपने देखते हुए शादी करती हैं। वे ससुराल में जाकर के कर्तव्यों व उत्तरदायित्वों को निभाने के लिए तैयार नहीं होतीं। लड़की व लड़की वाले चाहते हैं कि लड़का शादी के बाद अपने घर की जायदाद लेकर उनके अनुसार चले, वह अपने माता-पिता व परिवार के प्रति जिम्मेदारियों से कोई मतलब न रखे। मनोज को अब भी हँसी आ जाती है, जब उसे याद आता है कि एक मोहतरमा से उनकी पहली शादी के टूटने का कारण पूछा तो कारण बताया गया कि वह अपनी माँ के आज्ञापालक व्यक्ति के साथ नहीं रह सकती। मनोज को उससे आगे बात करने की आवश्यकता ही नहीं थी। वह तो माता-पिता की सेवा में सहयोग करने वाली पत्नी चाहता था। उन मोहतरमा के लिए तो माँ की बात मानना पति का दोष था और इसी के कारण वे अलग हो गयीं। 

Wednesday, July 5, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-८"


शादी के आॅनलाइन प्रयासों में मनोज को एक कटु अनुभव हुआ कि दहेज को लेकर जो बातचीत होती हैं वह निरर्थक हैं। वास्तव में दहेज के बिना कोई लड़की या लड़की वाले शादी ही नहीं करना चाहते। इसे वे समाज में अपने लिए अपमानजनक माँगते हैं। लड़की व लड़की वाले अधिक दहेज चाहने वालों को ही अच्छा समझते हैं। मनोज को स्मरण हो आया विद्यार्थी जीवन का वह दिन जिस दिन वह अपने एक रिश्तेदार के यहाँ बैठा दहेज की आलोचना कर रहा था, तब उसकी बुजुर्ग रिश्तेदार महिला ने उसकी ओर मुखातिब होकर कहा था कि बिना दहेज की शादी की बात करोगे तो शादी ही नहीं होगी। लड़की व लड़की वाले समझेंगे कि अवश्य ही लड़के में कोई कमी होगी। उनका यह भी कहना था कि बिना दहेज की शादी करने में लड़की वाले अपनी बेइज्जती समझते हैं। मनोज को अब उनकी बात की सच्चाई का अनुभव हो रहा था। यही नहीं मनोज को इस सच्चाई का अनुभव भी हुआ कि लोग अपनी बेटी से प्यार के कारण उसे शादी के समय धन व महँगी-मँहगी वस्तुएं देना नहीं चाहते हैं, वरन वास्तविकता यह है कि वे समाज को दिखाना चाहते हैं कि उन्होंने अपनी बेटी या बहन की शादी में कितना दिया! अन्दर से देने की इच्छा न होते हुए भी प्रदर्शन का आडम्बर करने की भावना अधिकांश व्यक्तियों में देखने को मिल रही थी। मनोज के सम्पर्क में ऐसे लोग भी आये जो अपनी बेटी या बहन की कमाई पर आश्रित थे, फिर भी वे दहेज देने का दिखावा करना चाहते थे। कुछ तो ऐसे भी मिले जो शादी के बाद भी बेटी या बहन से कुछ न कुछ प्राप्त करते रहने की अपेक्षा रखते थे किंतु वे भी समाज में यह दिखाना चाहते थे कि उन्होेंने अपनी बेटी या बहन की शादी अच्छा दहेज देकर की है।

Tuesday, July 4, 2017

"दहेज के बिना शादी के परिणाम-७"

बच्चे को अकेले पालने में आने वाली प्रत्येक कठिनाई उसे जीवनसंगिनी की आवश्यकता महसूस कराती थी। माता-पिता के किसी प्रकार के कष्ट की अनुभूति उसे उनकी सेवा न कर पाने की अक्षमता का दर्द देती थी। वह अक्सर अपने बच्चे से कहा करता था कि शायद अगले वर्ष से उसे अपने व्यक्तिगत कार्यो को करने में कठिनाई न हो, हो सकता है कि कोई भली स्त्री उसकी माँ की भूमिका में आ जाय। जब भी प्रोफाइल पर किसी की रूचि प्राप्त होती या कोई उसकी रूचि को स्वीकार करती। उसे उम्मीद होती। उससे बात होती, किंतु कुछ दिनों बाद ही पता चलता कि उसने तो केवल उसकी सेलेरी देखकर रूचि दिखायी थी। एक-दो ने तो बातचीत के बाद स्पष्ट यह भी कह दिया कि आपके पास संन्यासिनी बनकर क्यों आयें? इससे तो अच्छा है कि हम शादी ही न करें। राजधानी दिल्ली की एक भद्र महिला ने अपनी ढंग से जीवन शैली अपनाने के बारे में समझाते हुए दावा किया कि मेरे साथ मेरे ढंग से जीकर देखो, जीवन में हर क्षण मजा दूँगी। अन्त में उसने मनोज को कहा, ‘जाओ तुम नर्क में जाओ’। उस महिला को सादा जीवन नर्क के तुल्य लग रहा था।

इस प्रकार स्पष्टता से मना करने वाली महिलाओं का विचार उसे कभी बुरा नहीं लगा। सबको अपने अनुसार जीवन पथ निर्धारित करने का हक है। जिसको जिस प्रकार के साथी की आवश्यकता महसूस होती है, उसे सोच-विचार कर निर्णय लेने का अधिकार मिलना ही चाहिए। कई बार पता चलता कि सामने वाली ने पूरा प्रोफाइल पढ़ा ही नहीं था, केवल उसकी नौकरी और आय के तथ्यों को देखकर ही उससे सम्पर्क कर लिया था। कई बार पता चलता कि प्रोफाइल महिला के अभिभावकों ने बनाया था और उसके साथ सभी बाते साझा नहीं की गयीं थी। शादी के इसी प्रयास में मनोज को स्पष्ट अनुभूति हुई कि लोग कितने भौतिकवादी हो गये है। एक महिला जो नौकरी करती रही कि शादी करने के लिए साथ रहना आवश्यक नहीं है। दोनों नौकरी करेंगे, अच्छा रूपया होगा। कभी आप मेरे पास आ जाया करना, कभी मैं आपके पास आ जाऊँगी। मनोज को ऐसी शादी का कोई मतलब ही नजर न आता था। जिसमें पारिवारिक जिम्मेदारियों की अपेक्षा मनुष्य केवल पैसा कमाने की मशीन बन जाय। जब साथ-साथ रह ही नहीं सकते तो कैसा परिवार? अतः उस कमाऊ महिला के प्रस्ताव को स्वीकार करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था। किंतु वह महिला अवश्य ही अपने विचारों में स्पष्ट व सच्ची व ईमानदार महिला थी उसने कोई झूठा आश्वासन नहीं दिया। मनोज ने तय कर रखा था कि उसे जिसके साथ रहना है, उससे बात करके उसे प्रत्येक तथ्य वह अवश्य बता देगा। सामने वाली निर्णय करे कि वह उपयुक्त समझती है या नहीं? वह चाहता था कि उसकी भावी जीवनसंगिनी उसके बारे में सबकुछ जानकर उसके साथ उसके जीवनपथ की सहगामिनी बने। उसे कभी यह महसूस न करे कि उसे यह मालुम नहीं था, अन्यथा वह शादी न करती। 

Sunday, July 2, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-६"

इस प्रकार मनोज ने सभी महत्वपूर्ण तथ्यों को स्पष्ट रूप से लिखा था। 

वह जानता था वर्तमान समय में जबकि जीवन मूल्यों में गिरावट आ रही 

है, उसे इस प्रकार की पत्नी मिलना असंभव है फिर भी जीवन के प्रति 

सकारात्मक दृष्टिकोण ने उसे यह सोचने का आधार प्रदान किया कि 

संसार में सभी प्रकार के लोग होते हैं। हो सकता है कि उसके अनुरूप जीवन

 जीने वाली भी कोई हो और उसे मिल जाय। वह यह नहीं सोच सका था कि

 इण्टरनेट पर उसकी ताक में उसे अपने जाल में फँसाकर शिकार करने 

वाले भी घात लगाये बैठे हैं। मनोज को क्या मालुम था कि लोग अपनी 

जाति तक छिपाकर फंसाने के लिए तैयार बैठे हैं। मनोज को उस समय 

यह मालुम नहीं था कि लोग इतने दोगले भी होते हैं कि शादी के लिए 

ब्राह्मण होने का दावा करते हैं और नौकरी पाने के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग,

 ए.सी. या एस.टी. होते हैं। मनोज को नहीं मालुम था कि लोगों के लिए 

शादी करना भी धन कमाने का साधन बन गया है। झूठ बोलकर अच्छा 

धन कमाने वाले को शादी के नाम पर फंसाकर फिर झूठे मुकदमें लगाकर 

मुफत का धन प्राप्त करने का साधन भी शादी को बनाया जा सकता है। 

आदर्श व सिद्धांतों के नाम पर जीने वाला मनोज कभी कल्पना भी नहीं कर

 सकता था।

Saturday, July 1, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-५"

अपने चिन्तन के अनुरूप मनोज ने अपने प्रोफाइल में अपने गत जीवन, अपने कार्य व अपनी अपेक्षाओं को एक दम स्पष्ट रूप से अंकित किया था, जिनमें से कुछ उदाहरण के लिए यहाँ दी जा रही हैं- 
1. वह एक दम सादा जीवन जीने का आदी है। अतः उसे ऐसी जीवन संगिनी चाहिए, जो साधारण व सादा जीवन जीने और सादा जीवन व उच्च विचारों के अनुसार कर्तव्य निर्वहन में विश्वास रखती हो।
2. वह सामाजिक कार्यो में रूचि लेता है और अपने द्वारा कमाए हुए धन को अपने या अपने परिवार के शौक या प्रदर्शन की अपेक्षा भूखे को रोटी और अशिक्षित को शिक्षा दिलाने में खर्च करने में विश्वास रखता है। अतः कोई भी महिला जिसे मँहगे वस्त्रों या आभूषणों का शौक हो उससे सम्पर्क न करे।
3. वह किसी भी स्थिति में झूठ बर्दाश्त नहीं कर सकता। अतः कोई भी ऐसी महिला उससे सम्पर्क न करे जो सच कहने में कठिनाई महसूस करती हो। कथनी और करनी में भिन्नता होने पर शादी चलना असंभव होगा।
4. उसे केवल अपने लिए पत्नी की ही नहीं अपने बेटे के लिए अच्छी माँ की जरूरत है, जो उसके बेटे को अपने बेटे का प्यार व देखभाल दे सके।
5. मनोज ने स्पष्ट लिखा था कि वह अपने माता-पिता की सम्मानपूर्वक देखभाल व सेवा करना चाहता है। अतः उसके इस कार्य में सहयोग करने वाली महिला ही उसके प्रोफाइल पर अपनी रूचि दिखाये या उसकी रूचि को स्वीकार करे।
6. मनोज ने विनम्रता पूर्वक लिखा था कि उसके प्रोफाइल में रूचि अभिव्यक्त करने वाली महिला या उसकी रूचि को स्वीकार करने वाली महिला कोई भी महत्वपूर्ण बात उससे न छिपाये और न ही किसी प्रकार का झूठ बोले। झूठ पर आधारित शादी एक दिन भी चल नहीं पायेगी और दोनों पक्षों को मानसिक यंत्रणा से गुजरना पड़ेगा।
7. मनोज ने स्पष्ट लिखा था कि वह दहेज व प्रदर्शन का विरोधी है। वह न तो शादी में कुछ खर्च करेगा और न ही दूसरे पक्ष द्वारा खर्च किया जाना स्वीकार करेगा। अतः वह शादी में किसी भी प्रकार की कोई वस्तु या धन स्वीकार नहीं करेगा। परंपरा के नाम पर एक रूपया भी स्वीकार करना उसके लिए संभव नही होगा। यहाँ तक कि वह अपने लिए कोई वस्त्र तक स्वीकार नहीं करेगा और न ही होने वाली पत्नी अपने साथ अपने व्यक्तिगत वस्तुओं के अतिरिक्त कुछ लेकर आयेगी।
8. मनोज ने अपने प्रोफाइल पर स्पष्ट लिखा था कि वह जन्म के आधार पर जाति व्यवस्था स्वीकार नहीं करता किन्तु कर्म और जीवन मूल्यों के आधार पर वह ब्राह्मण है और उसी प्रकार के जीवन मूल्यों को स्वीकार व जीने वाली जीवन संगिनी के साथ वह अपना जीवन बिताना पसंद करेगा।
9. उसने स्पष्ट लिखा था कि उसके यहाँ सादा व सात्विक जीवन ही मिलेगा। यहाँ तक कि उसके रसोई में प्याज, लहसुन या चाय का प्रयोग भी नहीं होता। खान-पान व आचार विचारों में सात्विकता उसकी जीवनसंगिनी के लिए अनिवार्य शर्त है। अतः केवल सादा जीवन जीने वाली महिला ही उससे सम्पर्क करें। किसी भी प्रकार का गैर सात्विक भोजन न वह करता है और न ही उसके बेटे या पत्नी को करना चाहिए।

Thursday, June 29, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम"-४

मनोज को परंपराओं पर अधिक विश्वास नहीं था। सामाजिक कुप्रथाओं का विरोध करना तो वह अपना कर्तव्य ही समझता था। विद्यार्थी जीवन में ही उसने निर्णय किया था कि न तो वह अपनी शादी में दहेज लेगा और न ऐसी शादियों में भाग लेगा, जिनमें दहेज का लेन-देन हो रहा हो एवं जिसमें दुल्हन को पर्दा करने के लिए मजबूर किया जाने वाला हो। संसार में कितने संकल्प होते हैं और कितने टूटते हैं। वर्तमान समय में व्यक्ति अपने संकल्पों और वचनों के पालन के प्रति गंभीर नहीं रहते। ऐसा लगता है कि संकल्प व वचन केवल तोड़ने के लिए ही लिए जाते है। लोगों को धोखा देने के लिए ही लिए जाते हैं किंतु मनोज ऐसे व्यक्तियों में से नहीें था। उसने जो संकल्प कर लिया, वह कर लिया। उसके जीवन का अनिवार्य अंग बन गया। इसी कारण वह अपने मित्रों और सगे सम्बन्धियों की शादियों में ही नहीं, अपने भाई व बहनों की शादियों में भी सम्मिलित नहीं हो पाया था। ऐसी स्थिति में पारंपरिक रूप से शादी होना संभव ही नहीं था। अतः उसने तकनीकी का लाभ लेते हुए बेबसाइटों पर अपने प्रोफाइल बनाये।
मनोज के जीवन का दर्शन था कि हम जब भी कुछ छिपाते हैं वहाँ ही गलत होते हैं। जीवन पारदर्शी होना चाहिए जिसमें किसी से कुछ छिपाने की आवश्यकता नही पड़े। उसके विचार में पति-पत्नी तो एक इकाई होते हैं, तभी तो एक प्राण दो देह कहे जाते हैं। पत्नी अद्र्धांगिनी कही जाती है। इसका आशय भी यही है कि पत्नी के बिना पुरूष अधूरा है। ऐसे संबन्ध में कुछ भी छिपाने को नहीं हो सकता। दोनों का कुछ भी अलग-अलग नहीं हो सकता। दोनों के पास जो भी होता है, सम्मिलित होता है। जीवन का कोई भी पहलू अलग-अलग नहीं हो सकता। अतः किसी से कुछ भी छिपाने का कोई मतलब नहीं है।  कुछ भी छिपाना, धोखा देना होता है। धोखा देने वाले पति-पत्नी कैसे? वे तो एक -दूसरे को ठगने वाले ठग हुए। झूठ, छल, कपट व धोखा पति-पत्नी तो क्या किसी भी सकारात्मक संबन्ध का सृजन नहीं कर सकते। मनोज के लिए यह असंभव था कि कोई नारी उससे झूठ बोले और उसकी पत्नी बनकर रहे। अतः उसने वेबसाइट पर सब कुछ स्पष्ट लिख देने का निर्णय लिया। यही नहीं शादी के लिए आने वाले प्रस्ताव में स्वयं महिला से बात करके सब कुछ बता देने का उसका संकल्प था। 

Wednesday, June 28, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम"-३

मनोज के पास छोटा बच्चा था, जिसका पालन-पोषण करना उसका उत्तरदायित्व था। बच्चा प्रारंभ में अपने दादा-दादी के पास था किंतु आगे की पढ़ाई के सिलसिले में मनोज को वह अपने साथ लाना ही था। अपने बच्चे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का अहसास करके मनोज अपने बच्चे को आगे की पढ़ाई के लिए अपने पास ले आया। बच्चा उस समय लगभग पाँच-छह वर्ष का रहा होगा। मनोज सुबह सारे काम-धाम निपटाकर व बच्चे को स्कूल भेजकर अपने कार्यस्थल के लिए इस इरादे से जाता कि बच्चे के स्कूल से आने से पूर्व वह अपने क्वाटर पर पहुँच जायेगा, किंतु ऐसा हो नहीं पाता। मनोज अपने कार्यस्थल से आने में थोड़ा लेट हो जाता तो घर पर बच्चा भूखा बैठा रहता। एक पिता के लिए इससे अधिक दुःखद क्या हो सकता है कि उसका बेटा उसके इन्तजार में भूखा बैठा है। यही नहीं मनोज ने अपने माता-पिता को साथ रखकर सेवा करने का सपना भी बचपन से ही देखा था। वह सपना भी पूरा होता नहीं दिख रहा था। जब अपने और बेटे के लिए ही खाना बनाने व घरेलू कामों को करने में समस्या थी तो माता-पिता को साथ रखना तो असंभव ही था। आजीविका कमाने के साथ-साथ घर को सभालना कितना कठिन काम है, इसका प्रत्यक्ष अनुभव मनोज को हो रहा था। मनोज पहले से ही इस विचार का था कि घर सभालना एक पूर्णकालिक कार्य है और इसे पूर्णरूप से समर्पित रूप से ही किया जाना चाहिए। उसका स्पष्ट विचार था कि गृहिणी के महत्वपूर्ण कार्य को अनदेखा कर उसे बाहर जाकर काम करने की अपेक्षा करना, उसके साथ अन्याय करना है। घर का काम सभालते और बच्चे की देखभाल करते हुए उसे एक गृहिणी के कार्य का महत्व वास्तविक रूप से समझ आ रहा था। उसे कई लोगों ने दुबारा शादी करने का सुझाव भी दिया। लोगों का तर्क था कि सभी समान नहीं होते। घर सभालने वाली अच्छी महिला भी पत्नी के रूप में मिल सकती है, जो बच्चे की भी देखभाल अच्छे ढंग से करेगी। मनोज को भी लगने लगा था कि अकेले रहकर पारिवारिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन करना लगभग असंभव कार्य है। अतः उसने शादी करने का विचार बना ही लिया।

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-२"

शादी के बाद मनोज ने उसको पढ़ने को मजबूर किया। दसवीं, बारहवीं कराते-कराते ही मनोज को स्पष्ट होने लगा था कि उसने गलती कर दी है। दया और करूणा के आधार पर किसी से शादी नहीं की जा सकती। शादी के लिए गंभीरता पूर्वक समान स्तर, भावों व विचार मिलने पर विचार करने की आवश्यकता पड़ती है। प्रतिदिन होने वाली कलह के प्रभाव से बचाने के लिए उसे डेढ़ वर्ष के बच्चे को अपने माँ-बाप के पास छोड़ना पड़ा। खैर तीन-चार वर्ष साथ रहते हुए मनोज को स्पष्ट हो गया कि  पति-पत्नी के रूप में सम्बन्धों का निर्वाह संभव नहीं है। मनोज नहीं चाहता था कि जिस स्त्री के साथ पति-पत्नी के रूप में जीवन निर्वाह के बारे में सोचा था, उससे अलग होते हुए दुश्मन बना जाय। वह स्पष्ट रूप से सोचता था कि पति-पत्नी एक-दूसरे के साथ जीने-मरने की कसमें खाते हैं, यदि वे साथ न रह पाये ंतो एक-दूसरे के दुश्मन क्यों बने? क्यों न समझदारी का परिचय देते हुए बिना किसी पर अदालत में मुकदमेबाजी करते हुए आपसी सहमति से अलग हो जायँ। वह कल्पना नहीं कर पाता था कि एक-दूसरे के साथ नहीं रह पाये तो एक-दूसरे के खून के प्यासे कैसे हो जाते हैं? एक-दूसरे को जेल में भिजवाने के बारे में कैसे सोच सकते है? ऐसा केवल वही सोच सकता है जो केवल हिंसक प्रवृत्तियों को अपने अन्दर छिपाये है। सज्जनता और दुष्टता की यहीं से पहचान होती है। जिसने कभी एक क्षण को भी किसी को प्यार किया है, वह उसके खून का प्यासा कैसे हो सकता है? वह उसको किसी भी प्रकार की हानि पहँुचाने या जेल भिजवाने के षडयंत्र कैसे रच सकता है? दूसरे को परेशान करने के लिए ही कोई कार्य करना, जिसे आपने कभी प्रेम का इजहार किया हो, वह कैसा प्यार? इस विचार को अपनी भूत-पूर्व पत्नी को समझाने में मनोज को लगभग पाँच-छह वर्ष लगे। इस दौरान उसकी पत्नी भी एम.ए. कर चुकी थी। बात उसके भी समझ में आ गयी और दोनों ने आपसी बातचीत के द्वारा अलग हो जाने का फैसला किया और तलाक ले लिया।

Tuesday, June 27, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम"-१

दहेज रहित शादी का संकल्प


                             /डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी



मनोज विद्यार्थी जीवन से ही सिद्धांतों के आधार पर जीवन जीने का प्रयास करता रहा था। उसका विचार था कि व्यक्ति को दिखावे का जीवन नहीं जीना चाहिए। प्रदर्शन व दिखावे की प्रवृत्ति ही तनाव को जन्म देती है। व्यक्ति जो कहता है वही करे, जो करता है वही बोले और जैसा है, वैसा दिखे तो उसे तनाव का सामना नहीं करना पड़ेगा। पारदर्शिता व्यक्ति की पवित्रता की सबसे अच्छी व सच्ची कसौटी है। विद्यार्थी जीवन में दहेज के विरोध में अपने मित्रों के साथ विचार-विमर्श होता था। मनोज पर्दा प्रथा के भी खिलाफ था। इसी क्रम में दहेज विरोधी मोर्चा बनाने का भी प्रयास किया था। इसी वैचारिक मन्थन के दौरान अपने एक सहपाठी के साथ ऐसी शादियों में न जाने का संकल्प किया था, जिनमें दहेज का लेन-देन होने की संभावना है या दुल्हन को पर्दा प्रथा पालन करने के लिए मजबूर किए जाने की संभावना है। सामाजिक संगठन में काम करते हुए प्रारंभ में शादी न करने का भी विचार था। समय के साथ काम करने के सिलसिले में जब दूर प्रदेश में था। वहीं एक अनपढ़, विजातीय, विधवा महिला से मुलाकात हुई जो जीवन से निराश हो चुकी थी और एक आश्रम में रह रही थी। मनोज ने उसे  पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़े होने के लिए प्रोत्साहित किया। इस कार्य में स्वयं आर्थिक सहयोग देने का भी प्रस्ताव किया। मनोज ने उस महिला से कहा था कि वह उसे वह सभी सुविधाएं देने का प्रयास करेगा जो पढ़ने के लिए अपनी बहन को देने का प्रयास करता है  उस महिला को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह इस उम्र पर पढ़ सकती है और कोई व्यक्ति इस प्रकार लम्बे समय तक आर्थिक सहयोग करता रहेगा। वह महिला असुरक्षा की भावना से घिरी हुई थी। अतः उस महिला ने मनोज के सामने शादी का प्रस्ताव रखा जिसे दया और करूणा जैसी भावनाओं के वशीभूत मनोज ने बिना उचित-अनुचित का विचार किए स्वीकार कर लिया।

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम"

मित्रो! दहेज को लेकर विद्यालयों में अध्ययन के दौरान बड़ा ही भयावना 

चित्र प्रस्तुत किया जाता है। यही नहीं सामाजिक संस्थाओं द्वारा, पत्र-

पत्रिकाओं द्वारा बड़ें ही भावपूर्ण ढंग से दहेज के विरोध में अनेक प्रकार से

 भाषण/आलेख प्रस्तुत किए जाते हैं। किंतु व्यवहार में दहेज के बिना कोई

 विवाह नहीं देखा जाता। परंपरा के नाम पर लड़के व लड़के वालों को किस 

तरह दहेज लेने के लिए मजबूर किया जाता है, बिना दहेज शादी होने पर 

महिला की गलतियों को छिपाने के लिए किस प्रकार दहेज एक्ट के तहत 

झूठे मुकदमे दर्ज कराकर लड़के व लड़के के परिवार वालों को किस प्रकार 

प्रताड़ित किया जाता है। इस प्रकार के समाचार आये दिन पत्र-पत्रिकाओं 

में छपते रहते हैं। इसी पृष्ठभूमि पर आधारित एक लम्बी कहानी 

धारावाहिक रूप में यहाँ प्रस्तुत की जा रही है-

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम"

Wednesday, June 21, 2017

परिवर्तन का दभ - २

राजस्थान में सेवाकाल के दौरान एक साथी शिक्षक श्री गजेंद्र जोशी एक कहानी सुनाया करते थे। वह यथार्थ का चित्रण करती है। जोशी जी के अनुसार - एक राजा अपने सेनापति और महामंत्री के साथ भ्रमण पर निकले। भ्रमण करते हुए राजा को एक स्थान बड़ा मनोरम लगा। राजा को ख्याल आया कि इस स्थान पर एक तालाब का निर्माण किया जाय जिसमें दूध भरा हो तो कितना अद्भुत दृश्य होगा! उसने सोचा, एक सुन्दर तालाब का निर्माण करके अपने राज्य के सभी ग्वालों को कहा जाय कि वे भोर की वेला में एक बार दूध तालाब में डालें। राज्य में इतने ग्वाले हैं कि तालाब दूध से भर जायेगा जो संपूर्ण दूनिया में अनुपम होगा। राजा ने अपना विचार महामंत्री सेनापति के सामने रखा। सेनापति को तो आज्ञापालन की शिक्षा मिली थी। उसे क्या बोलना था। महामंत्री ने हाथ जोड़कर विनती की, ‘महाराज! तालाब बनाने का विचार अत्युत्तम है किंतु महाराज तालाब दूध का नहीं, पानी का होता है। राजा ने महामंत्री की तरफ कड़ाई से देखते हुए कहा, ‘नहीं, महामंत्री। हमारे राज्य का तालाब अनूठा होगा। हमने निर्णय ले लिया है। राजाज्ञा का पालन सुनिश्चित करिये।
राजकोश से पर्याप्त धन जारी करते हुए बड़े ही सुन्दर तालाब का निर्माण कराया गया। संध्याकाल में पूरे राज्य में मुनादी करवा दी गई जिसके अनुसार राज्य के सभी ग्वालों को आदेश दिया गया कि प्रातःकाल भोर होने से पूर्व सभी ग्वाले अपना-अपना दूध तालाब में भर दें। दूसरे दिन भोर होने से पूर्व ही एक ग्वाला आया। उसने सोचा सभी तो दूध डालेंगे ही, यदि मैं दूध के स्थान पर पानी डाल दूँ तो क्या फर्क पड़ेगा और क्या किसी को पता चलेगा? इसी प्रकार सभी ग्वाले आये और सभी ने उसमें चुपके से पानी डाल दिया।
सुबह राजा अपने महामंत्री और सेनापति के साथ तालाब का निरीक्षण करने निकले। तालाब को देखकर वे आश्चर्यचकित रह गये और आग बबूला हो उठे। तालाब एकदम साफ और स्वच्छ निर्मल जल से लबालब था। राजा संपूर्ण ग्वाला समाज को दण्डित करने की घोषणा करने वाले ही थे कि महामंत्री हाथ जोड़कर खड़े हो गये और बोले, दुहाई है अन्नदाता की। मैंने पूर्व में भी प्रार्थना की थी कि तालाब तो पानी का ही होता है। महाराज प्रकृति के विरुद्ध व्यवस्थाएँ नहीं चलाई जा सकती। राजा समझ गया और मुस्कराकर रह गया।
यह बड़ी ही शिक्षाप्रद कहानी है। परिवर्तन के कितने भी प्रयास किये जायँ किंतु दुनिया नहीं बदल सकती। दुनिया में सभी रंग हैं। यह विविध रंगों से परिपूर्ण है। इसमें सभी गुण है तो सभी अवगुण भी हैं। दुनिया तो क्या संसार में कोई भी व्यक्ति नहीं मिलेगा जिसमें कोई अवगुण निकाला जा सके और ही ऐसा व्यक्ति मिलेगा जिसमें कोई गुण हो। दुनिया में ईमानदारी भी है और बेईमानी भी; सत्य है और असत्य भी; सदाचार भी है और दुराचार भी; सज्जनता भी है और दुष्टता भी। दुनिया विविधता पूर्ण रंग बिरंगी है जिसमें सभी रंग हैं और सदैव रहेंगे। किसी भी रंग को नष्ट करना संभव नहीं। हाँ! मात्रा को कम या अधिक किया जा सकता है। हम अपने लिए रंगों का चुनाव कर सकते हैं किंतु अन्य रंगों को दुनिया से समाप्त नहीं कर सकते।
जब हमारा राजनीतिक नेतृत्व अपराधमुक्त शासन देने की बात करता है तो वह असंभव बात कह रहा होता है। किसी भी स्थिति में अपराध को समाप्त नहीं किया जा सकता। हाँ! अपराध को कम किया जा सकता है। शासन की लापरवाही और कानून व्यवस्था की लापरवाही से अपराध बढ़ सकते हैं और अधिक सक्रिय और सावधान रहकर अपराध कम किये जा सकते हैं। किंतु अपराधों को सिरे से समाप्त करना संभव नहीं। यह प्रकृति के खिलाफ है। प्रकृति में से किसी भी रंग को समाप्त नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार भ्रष्टाचार मुक्त शासन का दंभ भी खोखला ही साबित होगा। भ्रष्टाचार को समाप्त करना भी असंभव है। हाँ! श्रेष्ठ कानून व्यवस्था और चुस्त दुरुस्त प्रशासन की सहायता से भ्रष्टाचार कम किया जा सकता है। कोई व्यक्ति कितना भी सक्षम हो, वह अपने आप को ईमानदार बना सकता है किंतु अन्य सभी लोगों को ईमानदार नहीं बना सकता। हो सकता है कि कुछ लोग मजबूरी में ईमानदार होने का दिखावा करें किंतु अवसर पाते ही वे अपने पुराने रंग में वापस जाते हैं। अतः परिवर्तन के प्रयास करना अच्छी बात है किंतु दूसरों को बदलने का दंभ पालना किसी भी प्रकार उचित नहीं है। राम, कृष्ण, ईसा और मुहम्मद पैगम्बर जैसे महापुरूष संसार से बुराइयों को जड़ से नहीं मिटा सके। उन्होंने अपने प्रयास किए उनके तात्कालिक परिणाम भी निकले। उनके कार्यो के लिए ही हम आज भी उन्हें याद करते हैं। किंतु बुराइयों का उन्मूलन तो हुआ और संभव है। हाँ! बुराइयों पर नियंत्रण के लिए अविरल प्रयास करते रहने की आवश्यकता है। वे प्रयास सदैव किए जाते रहेंगे। अच्छाई और बुराई का संघर्ष सदैव चलता रहा है, अभी भी चल रहा है और सदैव चलता रहेगा। हमें केवल अपने पक्ष का निर्धारण करना है। हिंदु धर्म ग्रन्थों में इसे देव और असुरों का संघर्ष कहा गया है तो अन्य धर्म ग्रन्थों में भी विभिन्न नामों से सम्मिलित किया गया है।

*जवाहर नवोदय विद्यालय, महेन्द्रगंज, साउथ वेस्ट गारो हिल्स-794106 (मेघालय)
चलवार्ता 09996388169    -मेलः santoshgaurrashtrapremi@gmail.com,

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