एक दिन माया अपने भाई को लेकर मनोज के पास उसे व उसके क्वाटर को देखने आ गयी। मनोज के पास उसका बेटा ही रहता था। अन्य कोई खाना बनाने वाला न होने के कारण पहली बार आकर भी अपने लिए खाना बनाने का काम भी स्वयं माया को ही करना था। इसी बहाने मनोज भी यह जानना चाहता था कि वह खाना बना भी सकेगी या नहीं? अतः मनोज ने अपने बेटे की पसन्द के अनुरूप खाना बनाने का प्रस्ताव रखा। माया ने बनाने की कोशिश भी की किंतु वह बना नहीं पाई। हाँ! माया अपनी माया फैलाकर मनोज को यह विश्वास दिलाने में सफल रही कि वह दूर से लम्बी यात्रा करके आयी है। अतः अस्वस्थता के कारण वह ठीक से काम नहीं कर पा रही है। मनोज सकारात्मक सोच का व्यक्ति था। उसने सोच लिया कि माया नौकरी करती रही है। उसे अभ्यास नहीं होगा और लम्बी यात्रा के कारण होने वाली थकान के कारण भी वह ठीक से नहीं कर पायी होगी। शादी के बाद जब वह पूरा समय घर में लगायेगी तो सब कुछ सही ढंग से कर लेगी। मनोज माया के मायाजाल को नहीं समझ सका कि वह वास्तव में उसे फंसाने के लिए ही अपनी माया रच रही है। उसे घर-गृहस्थी में कोई रूचि ही नहीं है। मनोज यह विचार कर ही नहीं पाया कि जो औरत चालीस वर्ष की उम्र तक घर-गृहस्थी का काम नहीं सीख पाई, वह अब प्रौढ़ावस्था में क्या सीखेगी। सीखता भी वही है, जिसमें सीखने की जिज्ञासा व इच्छा शक्ति हो। झूठ, छल, कपट करके कभी कोई न किसी से कुछ सीख सकता है और न ही किसी सम्बन्ध के कर्तव्यों का निर्वहन कर सकता है।
मनोज सीधी-सच्ची राह का पथिक था। वह न कुछ छिपाता था और न ही किसी से कोई झूठ बोलता था। अतः सामने वाले को भी अपनी तरह समझकर विश्वास कर लिया। उसने बिना किसी जाँच-पड़ताल के माया ने जो भी कहा उसे सही मानकर शादी की हाँ कर दी। माया मनोज के ठिकाने को देखकर और अपना माया जाल बुनकर वापस चली गयी। उसके वापस जाने के बाद माया के भाई से ईमेल और माया से मोबाइल पर वार्ता के क्रम में शादी की तिथि भी तय हो गयी। सब कुछ माया की तरफ से तय किया गया। शादी का स्थान भी माया का पैतृक शहर नहीं मनोज और माया के शहर के बीच पड़ने वाला गाजियाबाद शहर था। मनोज को कुछ अजीब लगा तो उसने माया से पूछा कि गाजियाबाद में विवाहस्थल रखने का क्या मतलब है। माया के माया जाल में सभी प्रश्नों के उत्तर थे। उसने बताया कि उसका छोटा भाई अभी छोटा है। उसे व्यवस्था करने में समस्याएँ होंगी। गाजियाबाद में उसका चचेरा भाई नौकरी करता है और अपने परिवार सहित रहता है। वह सारी व्यवस्थाएँ सही ढंग से कर लेगा। यही नहीं माया का यह भी कहना था कि इतनी बढ़ी हुई उम्र पर अपने छोटे से शहर में शादी करने पर लोग विभिन्न प्रकार की बातें करेंगे। अतः गाजियाबाद में शादी करना ही उचित होगा। सीधे-सच्चे मनोज ने माया की प्रत्येक बात पर विश्वास कर लिया। वह यह नहीं सोच सका कि माया ने अभी तक अपने शहर में क्या गुल खिलाये हैं। उसके बारे में जानकारी मनोज को न हो जाय। इस कारण दूसरे शहर में जाकर शादी का कार्यक्रम बनाया गया है। मनोज इसी में खुश था कि उसे माया के शहर तक की सुदूर यात्रा नहीं करनी पड़ेगी और शादी उसकी इच्छानुसार आर्यसमाज मन्दिर में होगी।
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