एक दिन जीवन साथी डाॅट काॅम पर उसे एक प्रस्ताव मिला। जिसे देखकर उसे लगा शायद उपयुक्त होगा। वह किसी चालीस वर्ष की अविवाहित महिला का प्रस्ताव था। प्रोफाइल के अनुसार वह उसकी ही जाति की थी। मनोज जाति वाद बिल्कुल नहीं मानता था। उसे यह अपेक्षा भी न थी कि केवल अपनी ही जाति की महिला हो। वह तो केवल यह चाहता था कि समान जीवन मूल्यों व उच्च नैतिक मानदण्डों को मानने वाली हो। कर्म के आधार पर ही प्रारंभ में जाति का विभाजन हुआ। वह अब भी मानता था कि उच्च जीवन मूल्यों व उच्च नैतिक मानदण्डों को मानने वाला व्यक्ति ही वास्तव में उच्च वर्ण का है। निम्न कर्मो वाला व्यक्ति किसी भी कुल या जाति में जन्म ले, वह तो निम्न ही रहेगा। उस सबके बाबजूद ब्राह्मण परिवार होने पर उसके माता-पिता सरलता से उसे उसकी पत्नी के रूप में स्वीकार कर पायेंगे। यह सोचकर उसे ठीक लगा। पेशे की दृष्टि से भी मनोज को वह प्रस्ताव ठीक लगा क्योंकि वह भी मनोज की तरह ही अध्यापिका थी। प्रोफाइल ठीक-ठाक लगने पर जब आगे बात की, पता चला वह प्रोफाइल महिला के भाई ने बनाया था। प्रथम बार उसके भाई से ही बात हुई। बातचीत के क्रम में ही लग गया कि उस महिला के एक मात्र छोटे भाई ने प्रोफाइल बनाया था और वह अन्तर्मुखी प्रकृति का था और उसने मनोज को अपनी बहिन का मोबाइल नम्बर मनोज को दे दिया।
स्वार्थ की व्यापकता, आवश्यकता व अनिवार्यता
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*सामान्यतः स्वार्थ को बड़े ही संकीर्ण और नकारात्मक अर्थ में लिया जाता है।
स्वार्थ के अन्य पर्यायवाचियों में, खुदगर्ज, मतलबी, प्रयोजनव...
3 weeks ago
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