Tuesday, July 25, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१३"

अपनी मूल प्रवृत्ति के अनुसार मनोज ने सर्वप्रथम यही पूछा था, ‘‘आपने मेरा प्रोफाइल पढ़ा है?’’ माया ने उत्तर दिया था, ‘‘हाँ! मेरे भाई ने प्रोफाइल पढ़वाया है।’’ इस प्रकार इस बात से आश्वस्त हो जाने के बाद कि माया ने उसका प्रोफाइल पढ़कर स्वयं उसको स्वीकृत किया है। मनोज ने आगे बात करना प्रारंभ किया था।
संभवतः वह फरवरी या मार्च का महीना था। मनोज को प्रोफाइल देखकर और अभी तक हुई बातचीत के आधार पर लगने लगा था। शायद! यह महिला उसकी जीवन साथी बनकर साथ दे पायेगी। मनोज ने अपने बेटे से भी कहा कि शायद उसे अगले वर्ष घरेलू काम नहीं करने पड़ेगे। मनोज के बेटे की टिप्पणी थी, ‘‘आप तो कई वर्षो से ऐसे ही कहते हैं। बाद में कुछ भी नहीं होता।’’ मनोज के बेटे ने यह भी कहा था कि प्रारंभ में वह सभी बातों पर हाँ-हाँ करती जा रहीं हैं किन्तु बाद में ऐसा करेंगी नहीं। मनोज ने अपने बेटे की बात हँसकर टाल दी। जब प्रत्येक बात खुलकर स्पष्ट रूप से हो गयी है। माया सभी बातों को स्वीकार कर रही है तो फिर बाद में न मानने का कोई कारण मनोज को नजर नहीं आता था। मनोज एक रास्ते का राही था। वह सीधी सच्ची बात करता था। उसने अपने प्रोफाइल पर भी स्पष्ट लिखा था कि वह किसी भी प्रकार का झूठ बर्दाश्त नहीं कर सकता। माया उसकी जाति, उसी के पेशे व उसी के प्रदेश की थी। यही नहीं उसने मनोज के प्रोफाइल पर दी गयीं सारी शर्तो को स्वीकार किया था। मोबाइल पर बात करते समय भी मनोज ने स्पष्ट कर दिया था कि वह जीवन में कुछ भी बर्दाश्त कर सकता है किंतु झूठ बर्दाश्त नहीं कर सकता। मनोज ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि उसका और माया का कुछ भी अलग नहीं होगा। वह महिलाओं द्वारा छिपाकर अलग से धन रखने की प्रवृत्ति को पसंद नहीं करता और उसकी पत्नी किसी भी प्रकार कुछ छिपाकर रखे उसे स्वीकार नहीं होगा।

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