Thursday, July 27, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१४"

मोबाइल वार्ता के क्रम में यह भी स्पष्ट हो गया था कि एक ही प्रदेश होने के कारण माया शादी के बाद भी अपने उसी पुराने मोबाइल नम्बर को ही जारी रखेगी। अपने बैंक खाते को बन्द करके उसकी सारी राशि अपने भाई को दे देगी। मनोज को कुछ भी लेकर आना स्वीकार नहीं था। अतः मनोज ने बार-बार स्पष्ट कर दिया था कि वह अपने लिए कपड़े तक स्वीकार न करेगा। माया सब कुछ स्वीकार करती जा रही थी। मनोज ने अपने बेटे से वायदा किया था कि उसे जुलाई से किसी भी घरेलू काम में हाथ नहीं बटाना पड़ेगा और वह अपना पूरा ध्यान अपने अध्ययन पर केन्द्रित कर सकेगा। इस प्रकार मनोज चाहता था कि शादी की प्रक्रिया भी अप्रैल या मई माह में ही पूरी हो जाय। वार्तालाप के क्रम में मनोज ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि वह मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करता। अतः शादी कोर्ट मैरिज या आर्य समाज पद्धति से पसन्द करेगा।
 मनोज को रंग या चेहरे में कोई रूचि नहीं थी। वह तो सच्चाई के मार्ग पर चलने वाली जीवनसंगिनी चाहता था, भले ही उसका रंग कैसा भी हो? उसे रूपवती की नहीं गुणवती पत्नी की तलाश थी; जो उसके कदम से कदम मिला कर चल सके। अतः मोबाइल वार्तालाप के क्रम में जब मनोज के सामने माया को देखने का प्रस्ताव रखा गया तो उसने देखने से मना कर दिया। उसे रंग-रूप में कोई रूचि नहीं थी। माया के घर को देखने का भी मनोज के लिए कोई मतलब नहीं था। किंतु माया शादी से पहले देखना चाहती थी और मनोज से आमने-सामने बैठकर बातें करना चाहती थी। मनोज प्रस्तावित जीवनसंगिनी की सभी जिज्ञासाओं को शांत करके ही आगे बढ़ना चाहता था। इसलिए मनोज ने माया से यही कहा कि चूॅकि माया को मनोज के पास आकर रहना है। अतः वही उसके पास आकर सब कुछ देख ले। इस प्रकार मनोज और माया के बीच में यही तय हुआ कि माया मनोज के यहाँ आकर सब कुछ देखेगी और बात करेगी। मनोज को यह प्रस्ताव बहुत अच्छा लगा, क्योंकि शादी से पूर्व ही माया आकर सब कुछ देख लेगी और पूर्णतः सब जानकर निर्णय करेगी तो शादी के बाद समायोजन में समस्या नहीं आयेगी।

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