Sunday, January 31, 2021

जो जन्मा है, वह मरता है

 समय चक्र


जो जन्मा है, वह मरता है।

समय चक्र अविरल चलता है।

किसी के लिए पथ, ना रूकता।

काली घटा से, सूर्य न झुकता।

चलते रहना ही जीवन है,

मृत्यु चक्र भी कभी न रूकता।

रूकता है, जो वह मरता है।

समय चक्र अविरल चलता है।


जिंदा दिली का नाम है जीवन।

खुलकर हँसना, है संजीवन।

खुलकर, मिलकर, हिलकर रहना,

प्रेम का एक पैगाम है जीवन।

प्रकृति में सब कुछ हिलता है।

समय चक्र अविरल चलता है।


जो आया है, उसको जाना।

फिर भी पथ में मित्र बनाना।

स्वीकार का भाव हो उर में,

लगेगा सब जाना पहचाना।

कर्म के बल पर जग पलता है।

समय चक्र अविरल चलता है।


Saturday, January 30, 2021

तू खुद ही अपना साथी बन जा

 नहीं अकेला रहना होगा


तू खुद ही अपना साथी बन जा, नहीं अकेला रहना होगा।

विरोधियों का स्वागत कर, विरोध ही तेरा गहना होगा।।

कोई न अपना, कोई न पराया।

मित्र समझ जो है मुस्काया।

शिकायतें हैं तनाव की जननी,

शान्त चित्त रह, सुक्ख कमाया।

समस्याएं हैं प्रेयसी तेरी, इनके साथ खुश रहना होगा।

तू खुद ही अपना साथी बन जा, नहीं अकेला रहना होगा।।

स्वार्थ में बाधक जिनके बनेगा।

कोप से उनके कैसे बचेगा?

दृढ़ होकर कर्तव्य निभा तू,

काँटों में भी पुष्प खिलेगा।

पथरीले पथ कितने भी हों, जीवन नद को बहना होगा।

तू खुद ही अपना साथी बन जा, नहीं अकेला रहना होगा।।

नहीं खोज तू मित्र ओ साथी।

लालच लोभ के सभी बराती।

ईमान रूपी दुल्हन को यहाँ,

लूट रहे हैं स्वयं घराती।

झूठ की चोट भले हो गहरी, सत्यमेव जयते कहना होगा।

तू खुद ही अपना साथी बन जा, नहीं अकेला रहना होगा।।


Thursday, January 28, 2021

नर-नारी कभी अलग नहीं हैं,

मिलने से व्यक्तित्व है खिलता


नर-नारी कभी अलग नहीं हैं, मिलने से व्यक्तित्व है खिलता।

प्रेम और विश्वास है इनका, जिसमें जग का प्यार है पलता।।

छल, सन्देह, भ्रम बने काल हैं।

तनाव में जीते, मालामाल हैं।

करता कोई विश्वास नहीं हैं,

जो चलते नित कपट चाल हैं।

तर्क शक्ति के तर्कजाल में, कपट भूमि पर प्रेम न उगता।

नर-नारी कभी अलग नहीं हैं, मिलने से व्यक्तित्व है खिलता।।

सबको सबका प्यार न मिलता।

विश्वास बिना कभी यार न मिलता।

मिलते नहीं अब प्रेम पुजारी, 

बाजारों में विश्वास न मिलता।

कानूनों के जाल में फंसकर, कभी कोई रिश्ता न सुलझता।

नर-नारी कभी अलग नहीं हैं, मिलने से व्यक्तित्व है खिलता।।

सीधा-सच्चा पथ है अपना।

नहीं किसी का कोई सपना।

घात भले ही अकल्पनाीय हो,

हमको सच से नहीं भटकना।

कैसी भी आएं मजबूरी, विश्राम के बाद पथिक फिर चलता।

नर-नारी कभी अलग नहीं हैं, मिलने से व्यक्तित्व है खिलता।।


Wednesday, January 27, 2021

नर-नारी में भेद कभी कोई

                                               

हमने ना स्वीकारा है


      नर-नारी में भेद कभी कोई, हमने ना स्वीकारा है।

नारी नर को देवी है तो, नर नारी का प्यारा है।।

नारी नर से विलग नहीं है।

इक-दूजे की राह गही है।

नर नारी बिन जी नहीं सकता,

नारी नर की बनी मही है।

मिलकर दोनों होते पूरे, मिल कर संसार संवारा है।

नर-नारी में भेद कभी कोई, हमने ना स्वीकारा है।।

नर-नारी संबन्ध निराला।

इक-दूजे का देत हवाला।

इक-दूजे को सदैव समर्पित,

मिलकर पीते प्रेम की हाला।

मिलकर बढ़ो, सृजन के पथ पर, प्रकृति ने तुम्हें पुकारा है।

नर-नारी में भेद कभी कोई, हमने ना स्वीकारा है।।

नर की शक्ति नारी ही है।

कदम-कदम पर प्यारी ही है।

नर को प्रेरण देती है जो,

सखी सहेली नारी ही है।

जीवन के झंझावातों में, इक-दूजे का सहारा है।

नर-नारी में भेद कभी कोई, हमने ना स्वीकारा है।।

Tuesday, January 26, 2021

गणतंत्र दिवस 2021 की हार्दिक शुभकामनाएं।

आइए आज के दिन भारत माता की आजादी के लिए लड़ने वाले उन सभी देशभक्तों के बलिदानों को याद करते हुए शपथ लें कि हम एक साथ मिलकर अपने कर्त्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन करते हुए देश में शांति, समृद्धि और एकता को बनाए रखने के लिए अपने जीवन को अर्पित करें।

    आज हम बिहेत्तरवां गणतन्त्र दिवस मना रहे हैं। देश ने कितना विकास किया है, यह राजधानी में आयोजित हो रहे कार्यक्रम की झांकियों से समझा जा सकता है। इस बार देश के कुछ किसान भी अपनी ताकत का अहसास कराते हुए ट्रेक्टर रैली का आयोजन भी कर रहा है। बैल की एक जोड़ी या एक गाय का सपना देखते हुए इस संसार से विदा होने वाला किसान कितना विकसित हुआ है, इसका अनुमान यह ट्रेक्टर रैली में आयोजित ट्रेकटरों, किसानों के द्वारा प्रयोग किये जा रहे लग्जरी वाहनों को देख कर सहजता से लगा सकता है।

किसान कितना सशक्त हुआ है, यह इसी बात से स्पष्ट है कि प्रचंड बहुमत से चुनी हुई सरकार को देश की राजधानी में चुनौती दे रहा है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि किसान इस शक्ति का प्रयोग देश को और सशक्त करने में कर सके। हम इस विकास, समृद्धि और शक्ति को देश के शेष नागरिकों तक भी पहुंचा सकें, इसकी आवश्यकता है। आओ हम सब जहां भी हैं, जिस भी भूमिका में हैं, पूरी शक्ति के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए देश को विकास के चरम तक ले जाने के लिए प्रयत्न करें।

भारत माता की जय।

Sunday, January 24, 2021

गणतंत्र दिवस पर आओ, शहीदों को नमन हम करते हैं

 26 जनवरी 2021 के अवसर पर विशेष


संकल्प


गणतंत्र दिवस पर आओ, शहीदों को नमन हम करते हैं।

इसकी रक्षा और विकास का, संकल्प मिल कर करते हैं।।

गण पर तंत्र नहीं हावी हो।

ब्रह्मपुत्र, गंगा, रावी हो।

सुरक्षित रख, करें विकास हम,

हाथ हमारे ही चाबी हो।

निजी हितों का, गण के हित में, आओ, समर्पण करते हैं।

इसकी रक्षा और विकास का, संकल्प मिल कर करते हैं।।

लेना ही ना कर्म हमारा।

देना ही है धर्म हमारा।

राष्ट्र की खातिर जीएं हर पल,

यही फर्ज है, मर्म हमारा।

जीवन जीना गण के हित में, पल-पल अर्पण करते हैं।

इसकी रक्षा और विकास का, संकल्प मिल कर करते हैं।।

नौकर नहीं, कर्मयोगी हैं।

कुछ आतंक के भी रोगी हैं।

पल-पल अर्पण करें राष्ट्र को,

बनें योगी, जो भी भोगी हैं।

राष्ट्र के हित में सबका हित है, खुद को अर्पण करते हैं।

इसकी रक्षा और विकास का, संकल्प मिल कर करते हैं।।


प्रेम और विश्वास कभी भी

  कानूनों में नहीं बंध पाते


संबन्ध नहीं पैसों से बनते, नहीं धोखे से लूटे जाते।

प्रेम और विश्वास कभी भी, कानूनों में नहीं बंध पाते।।

प्रेम बिना संबन्ध न होता।

जबरन तो बस बंधन होता।

धन की खातिर संबन्ध बनाए,

पवित्र नहीं, गठबंधन होता।

जहाँ होता है, प्रेम समर्पण, संबन्ध स्वयं ही खिलते जाते।

प्रेम और विश्वास कभी भी, कानूनों में नहीं बंध पाते।।

झूठ बोलकर जिसने फँसाया।

उसने है विश्वास गँवाया।

शान्ति कभी ना उसको मिलती,

कितना भी हो स्वर्ण कमाया।

छल, कपट और षड्यन्त्रों से तो, मित्र भी शत्रु बन जाते।

प्रेम और विश्वास कभी भी, कानूनों में नहीं बंध पाते।।

धोखे से जिसने जो पाया।

कभी नहीं है, सुक्ख उठाया।

धन लूटे, भले प्राण भी लूटे,

झूठो को हमने ठुकराया।

जहाँ प्रेम विश्वास समर्पण, विकसित होते रिश्ते-नाते।

प्रेम और विश्वास कभी भी, कानूनों में नहीं बंध पाते।।


Saturday, January 23, 2021

जीवन में स्वर्गिक सुख मिलता

 साथी में विश्वास बसा हो


जीवन में स्वर्गिक सुख मिलता, साथी में विश्वास बसा हो।

प्रेम, समर्पण और त्याग हो, सच ने ही रिश्तो को रचा हो।।

दो से एक वहाँ होते हैं।

सच का बीज जहाँ बोते हैं।

झूठ, छल और कपट तो केवल,

षड्यन्त्र रचकर भी रोते हैं।

पारदर्शी है जीवन अपना, कपट जाल में भले फंसा हो।

जीवन में स्वर्गिक सुख मिलता, साथी में विश्वास बसा हो।।

नर-नारी को साथ चाहिए।

प्रेम और विश्वास चाहिए।

रिश्तो में विश्वास न हो तो,

नहीं कोई भी आस चाहिए।

रिश्ता नहीं वहाँ होता है, किसी एक ने दूजा ठगा हो।

जीवन में स्वर्गिक सुख मिलता, साथी में विश्वास बसा हो।।

धोखेबाजों से बचना है।

प्रेम नाम पर प्रवंचना है।

कीमत कोई पड़े चुकानी,

अपना पथ अपनी रचना है।

सावधान! हो आगे बढ़ना, कपट कामिनी जाल बुना हो।

जीवन में स्वर्गिक सुख मिलता, साथी में विश्वास बसा हो।।


भाग दौड़ है, बहुत हो चुकी

 आओ बैठें बाते कर लें!


भाग दौड़ है, बहुत हो चुकी, आओ बैठें बाते कर लें।

मन की कहें, मन की सुनें, मन से मन की चिंता हर लें।।

जब से हम हैं, मिले थे पथ में।

क्षण ना बैठे मन के रथ में।

साथ रहे पर मन न बसे हम,

भटके बहुत हैं जीवन जगत में।

इक-दूजे के दिल में उतरें, मन में बसी, वो पीड़ा हर लें।

भाग दौड़ है, बहुत हो चुकी, आओ बैठें बाते कर लें।।

संध्या वेला आने को है।

संभलो, दिन ढल जाने को है।

इक-दूजे में आओ समाएं,

रात अंधेरी आने को है।

कौन कहेगा? क्या? को छोड़े, इक-दूजे के मन की कर लें।

भाग दौड़ है, बहुत हो चुकी, आओ बैठें बाते कर लें।।

शिकवा-शिकायतें छोड़ के आओ।

गीत प्रेम के केवल गाओ।

दूरी बहुत सही हैं अब तक,

मिलन की वेला सुखद मनाओ।

सारी दूरी मिट जाएंगी, इक-दूजे के मन को वर लें।

भाग दौड़ है, बहुत हो चुकी, आओ बैठें बाते कर लें।।


Friday, January 22, 2021

मरता देखा है बसन्त!!

 

दुःखो का है नहीं अन्त!

नहीं जानता मैं बसन्त!!


बचपन कैसा सिसक रहा?

बुढ़ापा भी तो दुबक रहा।

जिस पर भोजन वस्त्र नहीं,

अलावों को भी तरस रहा।

मजबूरी में बना सन्त!

मरता देखा है बसन्त!!


प्रेम नाम से घृणा हुई।

जीवन है बस छुई-मुई।

साथ किसी का पा न सका,

सपने बन उड़ गए रुई।

मिला नहीं है कोई पन्त!

मरता देखा है बसन्त!!


मैं पग-पग हूँ छला गया।

रगड़ा हूँ, ना मला गया।

औरों की तो छोड़ो बात,

अपनों से ही ठगा गया।

प्रेम नाम ले, तोड़े दन्त!

मरता देखा है बसन्त!!

 


Thursday, January 21, 2021

मुद्दों को देखा ज्वलन्त!

 मैंने ना देखा बसन्त!

मैंने ना देखा बसन्त!
मुद्दों को देखा ज्वलन्त!

बच्चे को ना प्यार मिला।
साथी को ना एतबार मिला।
शिक्षा नाम बस तथ्य मिले,
नहीं कहीं संस्कार मिला।
नारी ने ही लगाया हलन्त!
मुद्दों को देखा ज्वलन्त!

कली से नहीं है फूल खिला।
खिलना था जो धूल मिला।
पोषण उसको मिल न सका,
गरीबी का उसे मिला सिला।
सर्दी से हैं बजे दन्त!
मुद्दों को देखा ज्वलन्त!

प्रेमी ने तन ही पाया।
झूठा ही गाना गाया।
विश्वासों पर घात किया,
जीवन रस सब लूट लिया।
बन नहीं पाया कभी कन्त!
मुद्दों को देखा ज्वलन्त!

सर्दी से भीषण वार मिला।
धोखे को समझा, प्यार मिला।
चुन-चुन कैसे धाव दिए,
उसका उसका यार मिला।
षड्यंत्रों का नहीं अन्त।
मुद्दों को देखा ज्वलन्त!

नहीं कहीं है यार मिला।
कानूनों का भार मिला।
उसने भी भीषण वार किया,
अपना समझा यार मिला।
प्रेम नहीं दिखता दिगंत।

Wednesday, January 20, 2021

कर्म छोड़कर निर्भरता की,

 

ये कैसी समानता है??



शक्ति, धैर्य, प्रेम की देवी, समर्पण तेरी महानता है।

कर्म छोड़कर निर्भरता की, ये कैसी समानता है??

नर से सदैव कर्म में आगे।

तुझसे ही नर भाग्य हैं जागे।

नर तेरे बिन सदा अधूरा,

तू सदैव ही आगे-आगे।

प्रतियोगी बनती हो क्यूँ? कैसी आज वाचालता है।

कर्म छोड़कर निर्भरता की, ये कैसी समानता है??

कानूनों का जाल ये कैसा?

भरण-पोषण को देता पैसा।

पढ़ी-लिखी समर्थ नारी भी,

कमा न सके, सामर्थ्य ये कैसा?

पिता के घर में करे त्याग, पति पर क्यूँ विकरालता है।

कर्म छोड़कर निर्भरता की, ये कैसी समानता है??

कर्म से विमुख रार है करती।

स्वयं क्यों नहीं सक्षम बनती?

निर्भरता नर पर दिखला कर,

नारी जाति का सम्मान हरती।

आक्रामकता से जग पीड़ित, सृजन करे दयालुता है।

कर्म छोड़कर निर्भरता की, ये कैसी समानता है??


Monday, January 18, 2021

नर से दूर रहकर नारी

 नींद चैन की सोई नहीं है


अतीत पीछे छूट गया है, वर्तमान में कोई नहीं है।

नर से दूर रहकर नारी, नींद चैन की सोई नहीं है।।

संग साथ से चलता है जग।

कभी कभी मिल जाते हैं ठग।

विश्वासघात की चोट से देखो,

दिल की भी हिल जाती है रग।

जीवन अमृत चाह सभी की, चाहता कोई छोई नहीं है।

नर से दूर रहकर नारी, नींद चैन की सोई नहीं है।।

प्रेम तत्व की चाह सभी को।

प्रेम से मिली आह खुदी को।

उलझन भरा प्रेम का पथ है,

मिलती नहीं, राह सभी को।

जग में रहना, सबको सहना, ओढ़ी तुमने लोई नहीं है।

नर से दूर रहकर नारी, नींद चैन की सोई नहीं है।।

मिलने से पहचान न होती।

पहचान ही आश है बोती।

आशा से फिर चाह जागती,

चाह से निकले जीवन मोती।

संग-साथ कभी फल नहीं सकता, प्रेम बेलि यदि बोई नहीं है।

नर से दूर रहकर नारी, नींद चैन की सोई नहीं है।।

समय भले ही बहुत है बीता।

जीवन हो गया रीता-रीता।

प्रेरणा बिन नहीं जीवन कटता,

जीवन के बिन मैं हूँ जीता।

गयीं दूर, अब मिलना मुश्किल, किन्तु आश अभी खोई नहीं है।

नर से दूर रहकर नारी, नींद चैन की सोई नहीं है।।


Sunday, January 17, 2021

बिना हिचक सब कर दो अर्पण

 प्रेम किसी का पा जाओ तो


अकेले-अकेले नीरस जीवन, साथ में कोई आ जाओ तो।
बिना हिचक सब कर दो अर्पण, प्रेम किसी का पा जाओ तो।।
चन्द पलों का साथ यहाँ पर।
क्या मालूम? कल जायँ कहाँ पर?
संयोग-वियोग का खेल निराला,
बिछड़े कल, कल मिले वहाँ पर।
प्रेम का दरिया, बड़ा निराला, बहना उसमें बह पाओ तो।
बिना हिचक सब कर दो अर्पण, प्रेम किसी का पा जाओ तो।।
कठिनाई भरा जीवन पथ है।
निर्णय नहीं, बस मेरा मत है।
धोखे, छल और कपट से पूरित,
जीवन से भला मौत का रथ है।
साथ भले ही चल नहीं पाओ, मिलते जब, मुस्काओ तो।
बिना हिचक सब कर दो अर्पण, प्रेम किसी का पा जाओ तो।।
हँसते गाते जीना होगा।
बहाना रोज पसीना होगा।
अपना कहकर छलते हैं यहाँ,
अमी समझ विष पीना होगा।
साथ छोड़कर जाते, जाओ, पहचान लेना, मिल जाओ तो।
बिना हिचक सब कर दो अर्पण, प्रेम किसी का पा जाओ तो।।
प्रकृति पुरूष का साथ बनाया।
नर-नारी ने साथ निभाया।
संग-साथ रह जीवन अमृत,
अलग-अलग, है तनाव कमाया।
छल, कपट, षड्यन्त्र तजकर, प्रेम करो, यदि कर पाओ तो।
बिना हिचक सब कर दो अर्पण, प्रेम किसी का पा जाओ तो।।

नारी ने नर पर, समर्पण से ही

 

विजय, सदैव ही पाई है

                                   

 

प्रेम, विश्वास, निष्ठा, आस्था पर, कभी न जीती चतुराई है।

नारी ने नर पर, समर्पण से ही, विजय, सदैव ही पाई है।।

सहजता का सौन्दर्य निराला।

विश्वास भरा, आँखों का प्याला।

विश्व विजयी मद हत हो जाता,

मुस्काती जब,  प्रेम से बाला।

शक्ति जहाँ, कोई काम न करती, सौन्दर्य सुधा रंग लाई है।

नारी ने नर पर, समर्पण से ही, विजय, सदैव ही पाई है।।

क्रूरता नहीं, कभी है जीती।

कठोरता को कोमलता पीती।

करोड़ों शहादत हों न्यौछावर,

प्रसव पीड़ा सुख नारी जीती।

तर्क-वितर्क, सिर्फ परास्त हैं करते, प्रेम ने जीत दिलाई है।

नारी ने नर पर, समर्पण से ही, विजय, सदैव ही पाई है।।

लाखों करोड़ों भले ही कमाये।

भौतिकता की तपन जलाये।

प्रेम भरी थपकी नारी की,

नर को स्वर्गिक, अहसास कराये।

ईर्ष्या में जलते, भटकते नर को, घर की राह दिखाई है।

नारी ने नर पर, समर्पण से ही, विजय, सदैव ही पाई है।।

Thursday, January 14, 2021

बुद्धि से जीती, दिल से टूटी

 

                     खुद हारकर, दुनिया जीती               

धन संपदा बहुत कमाई।

सोचो लारी कब थी गाई?

प्रेम भाव है, कहाँ खो गया?

हावी,  पेशेवर  चतुराई।

 

स्पर्धा के पथ पर नारी।

भूल रही, अपनी ही पारी।

मातृत्व का भाव मर रहा,

प्रतियोगिता की है तैयारी।

 

युवावस्था संघर्ष में बीती।

प्रौढ़ अवस्था रीती-रीती।

शादी के सपने भी खोये,

खुद हारकर, दुनिया जीती।

 

प्रेम भाव था प्रस्फुट होता।

कैरियर में था लगाया गोता।

स्थिर हुई, अधिकारी बनकर,

घर का डूब गया है, लोटा।

 

सखी-सहेली, सजना, संवरना।

बहाने बनाकर, पिय से मिलना।

हिसाब किताब में सब छूटा,

संबन्धों को, प्रेम से सिलना।

 

बच्ची खोई, किशोरी भी छूटी।

युवती,  जीवन रण  ने लूटी।

काम करन को बाहर निकली,

बुद्धि से जीती, दिल से टूटी।


Tuesday, January 12, 2021

नहीं, कोई भी, दोयम जग में

 

अद्वितीय भूमिका

                                

नहीं, कोई भी, दोयम जग में, नहीं, कोई भी भारी है।

अद्वितीय भूमिका, प्रकृति ने सौंपी, नर हो या फिर नारी है।।

प्रकृति का सृजन, अजब निराला।

कोई    इसे,  झुठलाने वाला।

अनुपम है, हर  प्राणी,  जग में,

निकृष्ट नहीं, कोई गोरा-काला।

कोई समान प्रतिरूप नहीं यहाँ, पूरक हैं, सब, तैयारी है।

अद्वितीय भूमिका, प्रकृति ने सौंपी, नर हो या फिर नारी है।।

नारी बिन, अस्तित्व न, नर का।

नारी अकेली,  कारण डर का।

अकेले-अकेले, दोनों भटकें,

मिलने से, सृजन हो, घर का।

नारी खुद को, समर्पित करती, नर को नारी, प्यारी है।

अद्वितीय भूमिका, प्रकृति ने सौंपी, नर हो या फिर नारी है।।

समानता, संघर्ष व्यर्थ  है।

पूरकता ही, सही अर्थ है।

इक-दूजे बिन, दोंनो अधूरे,

मिलकर के वे, सृष्टि समर्थ हैं।

संघर्ष से विध्वंस करो ना, मिलकर सीचों क्यारी है।

अद्वितीय भूमिका, प्रकृति ने सौंपी, नर हो या फिर नारी है।।

Friday, January 8, 2021

ठहरो नारी

 

क्या करती हो?

 

 

क्या करती हो? ठहरो नारी।

प्रतिस्पर्धा है, दिल पर आरी।

स्वाभाविक गुण तजती हो तुम,

कीमत चुकाएगी, सृष्टि भारी।।

 

सभी विलक्षण, सब ही अनुपम।

जवान, वृद्ध हो, या हो बचपन।

नहीं कोई भी, समान सृष्टि में,

बंद करो ये, नंगा नचपन।।

 

नर नारी के समान नहीं है।

नारी श्रेष्ठ है, यही सही है।

विलक्षण गुणों से भूषित नारी,

ज्ञान की देवी, वही मही है।।

 

जीवन मूल्यों से नर भटका।

अंधेरी गलियों में अटका।

कालिदास सा मूरख है नर,

विद्योत्तमा लगाओ झटका।।

 

दया, करुणा, प्रेम और ममता।

स्नेह भाव से, सौहार्द्र सजता।

परिवार, समाज, देश है तुम से,

तुमरे बिन, नर जोगी, रमता।।

 

राष्ट्रप्रेमी का सदैव समर्पण।

प्रेम भाव से सब कुछ अर्पण।

साथ-साथ मिल आगे बढ़ेगे,

संघर्ष भाव का कर दें तर्पण।।

Thursday, January 7, 2021

केवल नहीं घरवाली हो

 जीवन से, तुम प्यारी हो

 

              

केवल नहीं घरवाली हो।

तुम ही प्रेरक नारी हो।

संकेतों से जीवन चलता,

जीवन से, तुम प्यारी हो।

 

तुम प्रेम की मूरत हो।

दिल की खुबसूरत हो।

कर्तव्य पर तुम हुई निछावर,

सृष्टि की रचना न्यारी हो।

 

नर को शिक्षित करती हो।

पीड़ा सारी हरती हो।

प्रसव वेदना पीकर माता,

तुम सृजन की क्यारी हो।

 

तुम ही नेह की डोरी हो।

नयन आज क्यों? मोड़ी हो।

भले ही कितनी दूरी पर हो,

जहाँ भी हो, तुम म्हारी हो।

 

नहीं कोई अब दूरी हो।

तुम प्रेम से पूरी हो।

तुमरे बिन नर सदैव अधूरा,

नर बिन तुम भी अधूरी हो।


Wednesday, January 6, 2021

मुक्त गगन में

 

तेरी खुशी में आज मगन में।

उड़ ले पंक्षी मुक्त गगन में।।


बचपन तेरा घुटकर बीता।

मजबूरी में दूध था पीता।

बंधन इतने किए आरोपित,

साहस और उत्साह है रीता।

छोड़ रहा अब खुले चमन में।

उड़ ले पंक्षी मुक्त गगन में।।


बचपन के दिन लौट न पाएं।

बचा नहीं कुछ गाना गाएं।

इच्छा तेरी दबी थी मन की,

समझ न आता क्यूँ हरषाएं।

समय बीत गया सिर्फ दमन में।

उड़ ले पंक्षी मुक्त गगन में।।


समय बीत गया उड़ गए तोते।

रोना आता पर नहीं हैं रोते।

पास हमारे नहीं शेष कुछ,

भव सागर में लगा तू गोते।

आहुति दी है खुद की हवन में।

उड़ ले पंक्षी मुक्त गगन में।।


तू अब अपनी खुशियाँ जी ले।

जीवन अमी, जी भर पी ले।

अपनी राह अब चुन ले खुद ही,

हमारे तेवर पड़ गए ढीले।

मौत भी देखें, नहीं कफन में।

उड़ ले पंक्षी मुक्त गगन में।।


हमारा युग अब बीत रहा है।

मन शरीर सब रीत रहा है।

शिक्षा पा अब विमुक्त हुए तुम,

तुमको पा मन जीत रहा है।

परेशान ना होना तपन में।

उड़ ले पंक्षी मुक्त गगन में।।


नहीं चाह कोई, नहीं लक्ष्य है।

पौष्टिकता ही, तेरा पथ्य है।

सहयोग समन्वय प्रेम मिले तुझे,

जीवन पथ में प्रेम भक्ष्य है।

संभल तू उड़ना, तेज पवन में।

उड़ ले पंक्षी मुक्त गगन में।।