विजय, सदैव ही पाई है
प्रेम, विश्वास, निष्ठा, आस्था पर, कभी न जीती
चतुराई है।
नारी ने नर पर, समर्पण से ही, विजय, सदैव ही
पाई है।।
सहजता का सौन्दर्य निराला।
विश्वास भरा, आँखों का प्याला।
विश्व विजयी मद हत हो जाता,
मुस्काती जब, प्रेम से बाला।
शक्ति जहाँ, कोई काम न करती, सौन्दर्य सुधा रंग
लाई है।
नारी ने नर पर, समर्पण से ही, विजय, सदैव ही
पाई है।।
क्रूरता नहीं, कभी है जीती।
कठोरता को कोमलता पीती।
करोड़ों शहादत हों न्यौछावर,
प्रसव पीड़ा सुख नारी जीती।
तर्क-वितर्क, सिर्फ परास्त हैं करते, प्रेम ने
जीत दिलाई है।
नारी ने नर पर, समर्पण से ही, विजय, सदैव ही
पाई है।।
लाखों करोड़ों भले ही कमाये।
भौतिकता की तपन जलाये।
प्रेम भरी थपकी नारी की,
नर को स्वर्गिक, अहसास कराये।
ईर्ष्या में जलते, भटकते नर को, घर की राह दिखाई
है।
नारी ने नर पर, समर्पण से ही, विजय, सदैव ही
पाई है।।
No comments:
Post a Comment
आप यहां पधारे धन्यवाद. अपने आगमन की निशानी के रूप में अपनी टिप्पणी छोड़े, ब्लोग के बारे में अपने विचारों से अवगत करावें.