Monday, January 18, 2021

नर से दूर रहकर नारी

 नींद चैन की सोई नहीं है


अतीत पीछे छूट गया है, वर्तमान में कोई नहीं है।

नर से दूर रहकर नारी, नींद चैन की सोई नहीं है।।

संग साथ से चलता है जग।

कभी कभी मिल जाते हैं ठग।

विश्वासघात की चोट से देखो,

दिल की भी हिल जाती है रग।

जीवन अमृत चाह सभी की, चाहता कोई छोई नहीं है।

नर से दूर रहकर नारी, नींद चैन की सोई नहीं है।।

प्रेम तत्व की चाह सभी को।

प्रेम से मिली आह खुदी को।

उलझन भरा प्रेम का पथ है,

मिलती नहीं, राह सभी को।

जग में रहना, सबको सहना, ओढ़ी तुमने लोई नहीं है।

नर से दूर रहकर नारी, नींद चैन की सोई नहीं है।।

मिलने से पहचान न होती।

पहचान ही आश है बोती।

आशा से फिर चाह जागती,

चाह से निकले जीवन मोती।

संग-साथ कभी फल नहीं सकता, प्रेम बेलि यदि बोई नहीं है।

नर से दूर रहकर नारी, नींद चैन की सोई नहीं है।।

समय भले ही बहुत है बीता।

जीवन हो गया रीता-रीता।

प्रेरणा बिन नहीं जीवन कटता,

जीवन के बिन मैं हूँ जीता।

गयीं दूर, अब मिलना मुश्किल, किन्तु आश अभी खोई नहीं है।

नर से दूर रहकर नारी, नींद चैन की सोई नहीं है।।


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