Friday, January 8, 2021

ठहरो नारी

 

क्या करती हो?

 

 

क्या करती हो? ठहरो नारी।

प्रतिस्पर्धा है, दिल पर आरी।

स्वाभाविक गुण तजती हो तुम,

कीमत चुकाएगी, सृष्टि भारी।।

 

सभी विलक्षण, सब ही अनुपम।

जवान, वृद्ध हो, या हो बचपन।

नहीं कोई भी, समान सृष्टि में,

बंद करो ये, नंगा नचपन।।

 

नर नारी के समान नहीं है।

नारी श्रेष्ठ है, यही सही है।

विलक्षण गुणों से भूषित नारी,

ज्ञान की देवी, वही मही है।।

 

जीवन मूल्यों से नर भटका।

अंधेरी गलियों में अटका।

कालिदास सा मूरख है नर,

विद्योत्तमा लगाओ झटका।।

 

दया, करुणा, प्रेम और ममता।

स्नेह भाव से, सौहार्द्र सजता।

परिवार, समाज, देश है तुम से,

तुमरे बिन, नर जोगी, रमता।।

 

राष्ट्रप्रेमी का सदैव समर्पण।

प्रेम भाव से सब कुछ अर्पण।

साथ-साथ मिल आगे बढ़ेगे,

संघर्ष भाव का कर दें तर्पण।।

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