Sunday, July 30, 2017

"दहेज के विरुद्ध शादी के संकल्प का परिणाम-१५"

एक दिन माया अपने भाई को लेकर मनोज के पास उसे व उसके क्वाटर को देखने आ गयी। मनोज के पास उसका बेटा ही रहता था। अन्य कोई खाना बनाने वाला न होने के कारण पहली बार आकर भी अपने लिए खाना बनाने का काम भी स्वयं माया को ही करना था। इसी बहाने मनोज भी यह जानना चाहता था कि वह खाना बना भी सकेगी या नहीं? अतः मनोज ने अपने बेटे की पसन्द के अनुरूप खाना बनाने का प्रस्ताव रखा। माया ने बनाने की कोशिश भी की किंतु वह बना नहीं पाई। हाँ! माया अपनी माया फैलाकर मनोज को यह विश्वास दिलाने में सफल रही कि वह दूर से लम्बी यात्रा करके आयी है। अतः अस्वस्थता के कारण वह ठीक से काम नहीं कर पा रही है। मनोज सकारात्मक सोच का व्यक्ति था। उसने सोच लिया कि माया नौकरी करती रही है। उसे अभ्यास नहीं होगा और लम्बी यात्रा के कारण होने वाली थकान के कारण भी वह ठीक से नहीं कर पायी होगी। शादी के बाद जब वह पूरा समय घर में लगायेगी तो सब कुछ सही ढंग से कर लेगी। मनोज माया के मायाजाल को नहीं समझ सका कि वह वास्तव में उसे फंसाने के लिए ही अपनी माया रच रही है। उसे घर-गृहस्थी में कोई रूचि ही नहीं है। मनोज यह विचार कर ही नहीं पाया कि जो औरत चालीस वर्ष की उम्र तक घर-गृहस्थी का काम नहीं सीख पाई, वह अब प्रौढ़ावस्था में क्या सीखेगी। सीखता भी वही है, जिसमें सीखने की जिज्ञासा व इच्छा शक्ति हो। झूठ, छल, कपट करके कभी कोई न किसी से कुछ सीख सकता है और न ही किसी सम्बन्ध के कर्तव्यों का निर्वहन कर सकता है। 
मनोज सीधी-सच्ची राह का पथिक था। वह न कुछ छिपाता था और न ही किसी से कोई झूठ बोलता था। अतः सामने वाले को भी अपनी तरह समझकर विश्वास कर लिया। उसने बिना किसी जाँच-पड़ताल के माया ने जो भी कहा उसे सही मानकर शादी की हाँ कर दी। माया मनोज के ठिकाने को देखकर और अपना माया जाल बुनकर वापस चली गयी। उसके वापस जाने के बाद माया के भाई से ईमेल और माया से मोबाइल पर वार्ता के क्रम में शादी की तिथि भी तय हो गयी। सब कुछ माया की तरफ से तय किया गया। शादी का स्थान भी माया का पैतृक शहर नहीं मनोज और माया के शहर के बीच पड़ने वाला गाजियाबाद शहर था। मनोज को कुछ अजीब लगा तो उसने माया से पूछा कि गाजियाबाद में विवाहस्थल रखने का क्या मतलब है। माया के माया जाल में सभी प्रश्नों के उत्तर थे। उसने बताया कि उसका छोटा भाई अभी छोटा है। उसे व्यवस्था करने में समस्याएँ होंगी। गाजियाबाद में उसका चचेरा भाई नौकरी करता है और अपने परिवार सहित रहता है। वह सारी व्यवस्थाएँ सही ढंग से कर लेगा। यही नहीं माया का यह भी कहना था कि इतनी बढ़ी हुई उम्र पर अपने छोटे से शहर में शादी करने पर लोग विभिन्न प्रकार की बातें करेंगे। अतः गाजियाबाद में शादी करना ही उचित होगा। सीधे-सच्चे मनोज ने माया की प्रत्येक बात पर विश्वास कर लिया। वह यह नहीं सोच सका कि माया ने अभी तक अपने शहर में क्या गुल खिलाये हैं। उसके बारे में जानकारी मनोज को न हो जाय। इस कारण दूसरे शहर में जाकर शादी का कार्यक्रम बनाया गया है। मनोज इसी में खुश था कि उसे माया के शहर तक की सुदूर यात्रा नहीं करनी पड़ेगी और शादी उसकी इच्छानुसार आर्यसमाज मन्दिर में होगी।

Thursday, July 27, 2017

बचें परिवर्तन के दंभ से

               
संसार में सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि कोई भी व्यक्ति अपनी स्थिति से संतुष्ट नहीं है। अधिकांश व्यक्ति असंतुष्टि के साथ जीते हैं। हमारे आसपास की सभी व्यवस्थाएं हमें अधूरी या अपूर्ण लगती हैं। हम कितने भी अज्ञानी या ज्ञानवान हों, हमें लगता है कि संसार में बहुत कुछ सही नहीं चल रहा है। इसे बदलने की आवश्यकता है। हमें अपने मित्रों में बुराई नजर आती हैं, उनके कार्य व व्यवहार में सुधार करने की अनेक संभावनाएं नजर आती है। परिवार में अनेक खामियां नजर आती हैं और प्रतीत होता है कि यदि मैं घर का मुखिया होता तो ऐसा करता। मैं गाँव का प्रधान होता तो ऐसा करता, मैं राज्य का मुखिया होता तो ऐसा करता या मैं देश का प्रधानमंत्री होता तो ऐसा करता। हमें सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था में अनेकों खामियां नजर आती हैं। अधिकांश व्यक्तियों के पास ढेरों सुझाव होते हैं, वे अपने सुझावों को दूसरों के लिए उपयोगी समझते हैं और चाहते हैं कि लोग उनके उन विचारों और सुझावों पर काम करें; जिन पर स्वयं उन्होंने कोई काम नहीं किया है।
असंतुष्टि के भी दो पहलू होते हैं। असंतुष्टि ही उद्यमिता को जन्म देती है। असंतुष्टि ही कार्य करने के लिए प्रेरित कर विकास का आधार बनती है तो दूसरी ओर असंतुष्टि ही निराशा से अवसाद व अपराध की ओर कदम बढ़ाती हैं। कई बार व्यक्ति असंतुष्टि से उपजे अवसाद के कारण आत्महत्या तक कर लेता है। वस्तुतः यह व्यक्ति के ऊपर निर्भर है कि वह असंतुष्टि को किस प्रकार लेता है। असंतुष्टि विकास का आधार बनती है। यदि हम वर्तमान स्थिति से संतुष्ट हो गये तो विकास कैसे करेंगे? प्रसिद्ध गजलकार दुष्यन्त कुमार की भाषा में-
न हो कमीज तो पैरों से पेट ढक लेंगे।
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए।।
वास्तविक रूप से विकास के पथ के लिए संतुष्ट हो जाने की प्रवृत्ति किसी भी प्रकार से उचित नहीं कही जा सकती। असंतुष्टि से ही संतुष्टि प्राप्त करने के लिए विकास पथ मिलता है। व्यक्ति असंतुष्टि से संतुष्टि प्राप्त करने के लिए ही जीवन भर कर्मो में लीन रहता है।
असंतुष्टि का दूसरा पहलू निराशा से अवसाद की ओर ले जाकर आत्महत्या तक का सफर है। इससे निजात पाने के लिए भारतीय आध्यात्म दर्शन अचूक औषधि है। जब व्यक्ति अपनी स्थिति को भाग्य मानकर स्वीकार कर लेता है, तब असंतुष्टि का स्वयं ही शमन हो जाता है। मलूकदास का मंत्र अवसाद से बचने का सबसे अच्छा साधन है-
अजगर करे न चाकरी, पक्षी करे न काम।
दास मलूका कह गये, सबके दाता राम।।
इस प्रवृत्ति को स्वीकार कर लेने से किसी प्रकार की असंतुष्टि का प्रश्न ही नहीं उठता। व्यक्ति जैसा भी है, जहाँ भी है, वहीं संतुष्टि प्राप्त कर लेता है। ऐसी स्थिति में विकास के पथ की कल्पना ही नहीं की जा सकती। विकास के पथिक को तो दुष्यन्त कुमार के संदेश पर ही आगे बढ़ना होगा-
कौन कहता है आसमां में छेद नहीं हो सकता?
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।
असंतुष्ट होकर विकास के पथिक बहुत कुछ करना चाहते हैं। वे क्रांतिकारी परिवर्तन के राही होते हैं। केवल भौतिक विकास ही नहीं सामाजिक क्षेत्र, राजनीतिक क्षेत्र सहित सभी क्षेत्रों में परिवर्तन का बिगुल बजाने वालों की भी कोई कमी नहीं है। वे लोग चाहते हैं कि सभी कुछ रातों रात बदल जाय और सब कुछ उनकी इच्छानुसार चले। किशोरावस्था और युवावस्था में परिवर्तन करने के असीम सपने होते हैं। पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक सभी क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन करने का आह्वान करने वाले व्यक्तियों की फौज आपको अपने आसपास पर्याप्त मात्रा में मिल जायेगी। परिवर्तन के ऐसे यौद्धाओं की बहुलता है, जो संपूर्ण समाज को अपने अव्यावहारिक सिद्धांतों के अनुसार बदलने की कामना करते हैं किंतु अपने आपको उन सिद्धांतों के अनुकूल नहीं समझते। कहने का मतलब वे दुनिया को बदलना चाहते हैं किंतु स्वयं अपने आप को बदलने को तैयार नहीं होते। दूसरों से ईमानदारी की अपेक्षा करते हैं किंतु स्वयं अपने आपको उस मार्ग पर चलने में असमर्थ पाते हैं। मुझे हँसी आती है, अरे भाई! जो सिद्धांत आप दूसरों को बता रहे हो; पहले उसको अपने व्यवहार में लाकर उसकी सत्यता और व्यावहारिकता तो सिद्ध करो। तभी तो दूसरे लोग आपकी बातों को सुनने को तैयार होंगे।
ऐसा नहीं है कि सभी लोग दूसरों से ही परिवर्तन करने की अपेक्षा करते हैं। आपको ऐसे उत्साही व्यक्तियों के भी दर्शन हो जायेंगे जो घर फूँक तमाशा देखने को भी तैयार रहते हैं। वे सोचते हैं कि वे जो चाहे कर सकते हैं। वे संपूर्ण दुनिया को बदलकर एक आदर्श व सुंदर दुनिया में परिवर्तित कर सकते हैं। किंतु यह यथार्थ से कोसों दूर है। संसार में कोई किसी को भी बदल नहीं सकता। हम केवल अपने आपको बदल सकते हैं। हम अपने आपको ईमानदार बना सकते है किंतु दूसरे को नहीं। ईमानदारी अपने अंदर से विकसित होती है कोई भी बाहरी शक्ति किसी को ईमानदार नहीं बना सकती। हम दूसरों को तो क्या अपने विद्यार्थियों और अपनी संतानों को ईमानदार नहीं बना पाते। दुनिया को बदलने की तो बात ही क्या है? वास्तव में दुनिया को बदलना किसी भी व्यक्ति के वश की बात नहीं। व्यक्ति बदल सकता है किंतु सृष्टि नहीं। अतः हमें परिवर्तन करने के दंभ से बचना होगा। दुनिया को बदलने के दंभ में हम अपने आपको बदल सकने के अवसर को भी गंवा सकते हैं।
राजस्थान में सेवाकाल के दौरान एक साथी शिक्षक श्री गजेंद्र जोशी एक कहानी सुनाया करते थे। वह यथार्थ का चित्रण करती है। जोशी जी के अनुसार - एक राजा अपने सेनापति और महामंत्री के साथ भ्रमण पर निकले। भ्रमण करते हुए राजा को एक स्थान बड़ा मनोरम लगा। राजा को ख्याल आया कि इस स्थान पर एक तालाब का निर्माण किया जाय जिसमें दूध भरा हो तो कितना अद्भुत दृश्य होगा! उसने सोचा, एक सुन्दर तालाब का निर्माण करके अपने राज्य के सभी ग्वालों को कहा जाय कि वे भोर की वेला में एक बार दूध तालाब में डालें। राज्य में इतने ग्वाले हैं कि तालाब दूध से भर जायेगा जो संपूर्ण दूनिया में अनुपम होगा। राजा ने अपना विचार महामंत्री व सेनापति के सामने रखा। सेनापति को तो आज्ञापालन की शिक्षा मिली थी। उसे क्या बोलना था। महामंत्री ने हाथ जोड़कर विनती की, ‘महाराज! तालाब बनाने का विचार अत्युत्तम है किंतु महाराज तालाब दूध का नहीं, पानी का होता है।’ राजा ने महामंत्री की तरफ कड़ाई से देखते हुए कहा, ‘नहीं, महामंत्री। हमारे राज्य का तालाब अनूठा होगा। हमने निर्णय ले लिया है। राजाज्ञा का पालन सुनिश्चित करिये।’
राजकोश से पर्याप्त धन जारी करते हुए बड़े ही सुन्दर तालाब का निर्माण कराया गया। संध्याकाल में पूरे राज्य में मुनादी करवा दी गई जिसके अनुसार राज्य के सभी ग्वालों को आदेश दिया गया कि प्रातःकाल भोर होने से पूर्व सभी ग्वाले अपना-अपना दूध तालाब में भर दें। दूसरे दिन भोर होने से पूर्व ही एक ग्वाला आया। उसने सोचा सभी तो दूध डालेंगे ही, यदि मैं दूध के स्थान पर पानी डाल दूँ तो क्या फर्क पड़ेगा और क्या किसी को पता चलेगा? इसी प्रकार सभी ग्वाले आये और सभी ने उसमें चुपके से पानी डाल दिया।
सुबह राजा अपने महामंत्री और सेनापति के साथ तालाब का निरीक्षण करने निकले। तालाब को देखकर वे आश्चर्यचकित रह गये और आग बबूला हो उठे। तालाब एकदम साफ और स्वच्छ निर्मल जल से लबालब था। राजा संपूर्ण ग्वाला समाज को दण्डित करने की घोषणा करने वाले ही थे कि महामंत्री हाथ जोड़कर खड़े हो गये और बोले, दुहाई है अन्नदाता की। मैंने पूर्व में भी प्रार्थना की थी कि तालाब तो पानी का ही होता है। महाराज प्रकृति के विरुद्ध व्यवस्थाएँ नहीं चलाई जा सकती। राजा समझ गया और मुस्कराकर रह गया। 
यह बड़ी ही शिक्षाप्रद कहानी है। परिवर्तन के कितने भी प्रयास किये जायँ किंतु दुनिया नहीं बदल सकती। दुनिया में सभी रंग हैं। यह विविध रंगों से परिपूर्ण है। इसमें सभी गुण है तो सभी अवगुण भी हैं। दुनिया तो क्या संसार में कोई भी व्यक्ति नहीं मिलेगा जिसमें कोई अवगुण न निकाला जा सके और न ही ऐसा व्यक्ति मिलेगा जिसमें कोई गुण न हो। दुनिया में ईमानदारी भी है और बेईमानी भी; सत्य है और असत्य भी; सदाचार भी है और दुराचार भी; सज्जनता भी है और दुष्टता भी। दुनिया विविधता पूर्ण रंग बिरंगी है जिसमें सभी रंग हैं और सदैव रहेंगे। किसी भी रंग को नष्ट करना संभव नहीं। हाँ! मात्रा को कम या अधिक किया जा सकता है। हम अपने लिए रंगों का चुनाव कर सकते हैं किंतु अन्य रंगों को दुनिया से समाप्त नहीं कर सकते।
जब हमारा राजनीतिक नेतृत्व अपराधमुक्त शासन देने की बात करता है तो वह असंभव बात कह रहा होता है। किसी भी स्थिति में अपराध को समाप्त नहीं किया जा सकता। हाँ! अपराध को कम किया जा सकता है। शासन की लापरवाही और कानून व्यवस्था की लापरवाही से अपराध बढ़ सकते हैं और अधिक सक्रिय और सावधान रहकर अपराध कम किये जा सकते हैं। किंतु अपराधों को सिरे से समाप्त करना संभव नहीं। यह प्रकृति के खिलाफ है। प्रकृति में से किसी भी रंग को समाप्त नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार भ्रष्टाचार मुक्त शासन का दंभ भी खोखला ही साबित होगा। भ्रष्टाचार को समाप्त करना भी असंभव है। हाँ! श्रेष्ठ कानून व्यवस्था और चुस्त दुरुस्त प्रशासन की सहायता से भ्रष्टाचार कम किया जा सकता है। कोई व्यक्ति कितना भी सक्षम हो, वह अपने आप को ईमानदार बना सकता है किंतु अन्य सभी लोगों को ईमानदार नहीं बना सकता। हो सकता है कि कुछ लोग मजबूरी में ईमानदार होने का दिखावा करें किंतु अवसर पाते ही वे अपने पुराने रंग में वापस आ जाते हैं। अतः परिवर्तन के प्रयास करना अच्छी बात है किंतु दूसरों को बदलने का दंभ पालना किसी भी प्रकार उचित नहीं है। राम, कृष्ण, ईसा और मुहम्मद पैगम्बर जैसे महापुरूष संसार से बुराइयों को जड़ से नहीं मिटा सके। उन्होंने अपने प्रयास किए उनके तात्कालिक परिणाम भी निकले। उनके कार्यो के लिए ही हम आज भी उन्हें याद करते हैं। किंतु बुराइयों का उन्मूलन न तो हुआ और न संभव है। हाँ! बुराइयों पर नियंत्रण के लिए अविरल प्रयास करते रहने की आवश्यकता है। वे प्रयास सदैव किए जाते रहेंगे। अच्छाई और बुराई का संघर्ष सदैव चलता रहा है, अभी भी चल रहा है और सदैव चलता रहेगा। हमें केवल अपने पक्ष का निर्धारण करना है। हिंदु धर्म ग्रन्थों में इसे देव और असुरों का संघर्ष कहा गया है तो अन्य धर्म ग्रन्थों में भी विभिन्न नामों से सम्मिलित किया गया है।

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१४"

मोबाइल वार्ता के क्रम में यह भी स्पष्ट हो गया था कि एक ही प्रदेश होने के कारण माया शादी के बाद भी अपने उसी पुराने मोबाइल नम्बर को ही जारी रखेगी। अपने बैंक खाते को बन्द करके उसकी सारी राशि अपने भाई को दे देगी। मनोज को कुछ भी लेकर आना स्वीकार नहीं था। अतः मनोज ने बार-बार स्पष्ट कर दिया था कि वह अपने लिए कपड़े तक स्वीकार न करेगा। माया सब कुछ स्वीकार करती जा रही थी। मनोज ने अपने बेटे से वायदा किया था कि उसे जुलाई से किसी भी घरेलू काम में हाथ नहीं बटाना पड़ेगा और वह अपना पूरा ध्यान अपने अध्ययन पर केन्द्रित कर सकेगा। इस प्रकार मनोज चाहता था कि शादी की प्रक्रिया भी अप्रैल या मई माह में ही पूरी हो जाय। वार्तालाप के क्रम में मनोज ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि वह मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करता। अतः शादी कोर्ट मैरिज या आर्य समाज पद्धति से पसन्द करेगा।
 मनोज को रंग या चेहरे में कोई रूचि नहीं थी। वह तो सच्चाई के मार्ग पर चलने वाली जीवनसंगिनी चाहता था, भले ही उसका रंग कैसा भी हो? उसे रूपवती की नहीं गुणवती पत्नी की तलाश थी; जो उसके कदम से कदम मिला कर चल सके। अतः मोबाइल वार्तालाप के क्रम में जब मनोज के सामने माया को देखने का प्रस्ताव रखा गया तो उसने देखने से मना कर दिया। उसे रंग-रूप में कोई रूचि नहीं थी। माया के घर को देखने का भी मनोज के लिए कोई मतलब नहीं था। किंतु माया शादी से पहले देखना चाहती थी और मनोज से आमने-सामने बैठकर बातें करना चाहती थी। मनोज प्रस्तावित जीवनसंगिनी की सभी जिज्ञासाओं को शांत करके ही आगे बढ़ना चाहता था। इसलिए मनोज ने माया से यही कहा कि चूॅकि माया को मनोज के पास आकर रहना है। अतः वही उसके पास आकर सब कुछ देख ले। इस प्रकार मनोज और माया के बीच में यही तय हुआ कि माया मनोज के यहाँ आकर सब कुछ देखेगी और बात करेगी। मनोज को यह प्रस्ताव बहुत अच्छा लगा, क्योंकि शादी से पूर्व ही माया आकर सब कुछ देख लेगी और पूर्णतः सब जानकर निर्णय करेगी तो शादी के बाद समायोजन में समस्या नहीं आयेगी।

Tuesday, July 25, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१३"

अपनी मूल प्रवृत्ति के अनुसार मनोज ने सर्वप्रथम यही पूछा था, ‘‘आपने मेरा प्रोफाइल पढ़ा है?’’ माया ने उत्तर दिया था, ‘‘हाँ! मेरे भाई ने प्रोफाइल पढ़वाया है।’’ इस प्रकार इस बात से आश्वस्त हो जाने के बाद कि माया ने उसका प्रोफाइल पढ़कर स्वयं उसको स्वीकृत किया है। मनोज ने आगे बात करना प्रारंभ किया था।
संभवतः वह फरवरी या मार्च का महीना था। मनोज को प्रोफाइल देखकर और अभी तक हुई बातचीत के आधार पर लगने लगा था। शायद! यह महिला उसकी जीवन साथी बनकर साथ दे पायेगी। मनोज ने अपने बेटे से भी कहा कि शायद उसे अगले वर्ष घरेलू काम नहीं करने पड़ेगे। मनोज के बेटे की टिप्पणी थी, ‘‘आप तो कई वर्षो से ऐसे ही कहते हैं। बाद में कुछ भी नहीं होता।’’ मनोज के बेटे ने यह भी कहा था कि प्रारंभ में वह सभी बातों पर हाँ-हाँ करती जा रहीं हैं किन्तु बाद में ऐसा करेंगी नहीं। मनोज ने अपने बेटे की बात हँसकर टाल दी। जब प्रत्येक बात खुलकर स्पष्ट रूप से हो गयी है। माया सभी बातों को स्वीकार कर रही है तो फिर बाद में न मानने का कोई कारण मनोज को नजर नहीं आता था। मनोज एक रास्ते का राही था। वह सीधी सच्ची बात करता था। उसने अपने प्रोफाइल पर भी स्पष्ट लिखा था कि वह किसी भी प्रकार का झूठ बर्दाश्त नहीं कर सकता। माया उसकी जाति, उसी के पेशे व उसी के प्रदेश की थी। यही नहीं उसने मनोज के प्रोफाइल पर दी गयीं सारी शर्तो को स्वीकार किया था। मोबाइल पर बात करते समय भी मनोज ने स्पष्ट कर दिया था कि वह जीवन में कुछ भी बर्दाश्त कर सकता है किंतु झूठ बर्दाश्त नहीं कर सकता। मनोज ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि उसका और माया का कुछ भी अलग नहीं होगा। वह महिलाओं द्वारा छिपाकर अलग से धन रखने की प्रवृत्ति को पसंद नहीं करता और उसकी पत्नी किसी भी प्रकार कुछ छिपाकर रखे उसे स्वीकार नहीं होगा।

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१२"

एक दिन जीवन साथी डाॅट काॅम पर उसे एक प्रस्ताव मिला। जिसे देखकर उसे लगा शायद उपयुक्त होगा। वह किसी चालीस वर्ष की अविवाहित महिला का प्रस्ताव था। प्रोफाइल के अनुसार वह उसकी ही जाति की थी। मनोज जाति वाद बिल्कुल नहीं मानता था। उसे यह अपेक्षा भी न थी कि केवल अपनी ही जाति की महिला हो। वह तो केवल यह चाहता था कि समान जीवन मूल्यों व उच्च नैतिक मानदण्डों को मानने वाली हो। कर्म के आधार पर ही प्रारंभ में जाति का विभाजन हुआ। वह अब भी मानता था कि उच्च जीवन मूल्यों व उच्च नैतिक मानदण्डों को मानने वाला व्यक्ति ही वास्तव में उच्च वर्ण का है। निम्न कर्मो वाला व्यक्ति किसी भी कुल या जाति में जन्म ले, वह तो निम्न ही रहेगा। उस सबके बाबजूद ब्राह्मण परिवार होने पर उसके माता-पिता सरलता से उसे उसकी पत्नी के रूप में स्वीकार कर पायेंगे। यह सोचकर उसे ठीक लगा। पेशे की दृष्टि से भी मनोज को वह प्रस्ताव ठीक लगा क्योंकि वह भी मनोज की तरह ही अध्यापिका थी। प्रोफाइल ठीक-ठाक लगने पर जब आगे बात की, पता चला वह प्रोफाइल महिला के भाई ने बनाया था। प्रथम बार उसके भाई से ही बात हुई। बातचीत के क्रम में ही लग गया कि उस महिला के एक मात्र छोटे भाई ने प्रोफाइल बनाया था और वह अन्तर्मुखी प्रकृति का था और उसने मनोज को अपनी बहिन का मोबाइल नम्बर मनोज को दे दिया।

Sunday, July 16, 2017

दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-११

भारत में नारी के शोषण के नाम पर महिलाओं के पक्ष में कानून बनने के कारण वर्तमान में कानूनों का दुरूपयोग कर कुछ चरित्रहीन महिला अपनी चरित्रहीनता को उन कानूनों का दुरूपयोग कर छिपाना चाहती हैं। कुछ के लिए तो शादी पति व पति के परिवार से रूपये ऐठने का अच्छा साधन बन गया है। जैसे-तैसे किसी अच्छी कमाई करने वाले या अच्छी जायदाद वाले को धोखा देकर एक बार शादी की रस्म पूरी करवा लो फिर तो दहेज के मुकद्में की धमकी देकर या मुकदमा करके अच्छी खासी रकम हासिल करो। कमाल की बात है, लड़की वाले लड़की की पढ़ाई पर अधिक खर्च करना नहीं चाहते! लड़की व लड़के की समानता की बात लड़की के पिता या भाई को अपनी पारिवारिक सम्पत्ति में से हिस्सा देने में याद नहीं आती। पिता की संपत्ति में लड़की बराबर की हकदार है। यह कानून किसी को याद नहीं आता। लड़की को उसके पिता के घर में न तो भागीदारी मिलती है और न ही सम्मान! किंतु कुछ घण्टों की शादी की रस्म पूरी होते ही, लड़की को उस घर की मालकिन बन जाना चाहिए। लड़के के माता-पिता या घरवालों की उपस्थिति भी आजकल की महिलाओं को खटकती है। संपत्ति में से उत्तराधिकार के मामले में भाई बहिन समान नहीं है। वहाँ माता-पिता को कानून याद नहीं आता। धोखा देकर झूठ बोलकर शादी की रस्म एक बार पूरी हो जाय। उसके बाद लड़के व लड़के के परिवार वालों को नाकों चने चबबाने के लिए दहेज एक्ट है ही। वास्तव में कानून ब्लेकमेल करके धन ऐंठने का साधन बन गये हैं। यह बात मनोज के समझ में आने लगी थी। यह सब समझते हुए भी मनोज सकारात्मक सोचने वाला व्यक्ति था। अतः उसका सोचना यह भी था कि दुनिया में सभी लोग समान नही होते। अच्छे लोग बुरे लोगों की अपेक्षा अधिक है। कुछ लोग अपने कुकर्मो के कारण सभी को बदनाम करते हैं। यात्रा में सभी लोग तो जेब कट नहीं होते। कुछ घटनाएं होती हैं किंतु उनके कारण हम बाहर निकलना बन्द तो नहीं कर सकते? यही सोचकर विभिन्न प्रकार के भय व संसय होते हुए भी मनोज वेबसाइटों के माध्यम से साथी की खोज करता रहा।

Thursday, July 13, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१०"


एक मोहतरमा से बात हुई तो उन्होंने अलग होने का कारण बताया कि पति का परिवार काफी बड़ा था और ससुराल में रसोई में काफी काम करना पड़ता था। एक मोहतरमा टी.वी. के बिना जी ही नहीं सकतीं थीं। जो भी हो शादी के प्रस्तावों से वार्ता के समय मनोज को बड़े ही चैकाने वाले अनुभव आये। बिहार के एक लड़की के पिता से बात हो रहीं थी। पता चला कि लड़के पर मुकदमा कर रखा है। उससे बहुत बड़ी रकम माँगी जा रही थी। मुकदमें में उस बच्ची के लिए भी खर्चे की माँग की गई थी, जो बच्ची के दादा-दादी द्वारा पाली जा रही थी। जब मनोज ने पूछा कि माँ ने छोटी बच्ची को अपने पास रखने की माँग क्यों नहीं की? उत्तर ऐसा मिला कि मनोज हैरान रह गया। उस महिला के पिता का कहना था, उसकी बेटी उसकी बच्ची को अपने पास क्यों रखें? उसकी लड़की है, वह अपने पास रखे। इस प्रकार की मनोवृत्ति वाले माता-पिता अपनी बेटी की भी इसी प्रकार की मनोवृत्ति बना देते हैं और इस प्रकार की लड़कियाँ अच्छी माता नहीं बन पातीं। मजेदार बात यह थी कि माँ बच्ची को अपने पास नहीं रखना चाहती थी किंतु मूर्खतापूर्ण तरीके से मुकद्मा करके बच्ची के नाम पर भी रूपये लेना चाहती थी। इस प्रकार की लड़की के साथ कौन शादी करके अपने आप को मुसीबत में डालना पसन्द करेगा? मनोज को बाद में पता चला कि उस लड़की के अपने मायके में किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध संबन्ध उसके वैवाहिक जीवन का आधार बने थे, किन्तु दहेज का झूठा मुकदमा दर्ज कराकर ब्लैकमैलिंग करके अच्छा खासा धन वसूला गया। वे अब दूसरे बकरे की तलाश कर रही हैं।

Saturday, July 8, 2017

स्वच्छता नहीं है नारा केवल

  जन-गण की शान

                                         
स्वच्छता नहीं है नारा केवल, यह जग-गण की शान है।
स्वच्छता बनेगी जीवन शैली, बढ़े भारत  का   मान है।।
गली-गली हम स्वच्छ करेंगे;
तन-मन सबके स्वच्छ करेंगे।
अर्थव्यवस्था स्वच्छ हो रही,
कैश लैस सब स्वच्छ करेंगे।
साफ करें आतंक का कूड़ा, गा के  प्रेम  के   गान हैं।
स्वच्छता नहीं है नारा केवल, यह जग-गण की शान है।।
स्कूलों  को  स्वच्छ रखेंगे;
बाजार  भी  सब चमकेंगे।
शिक्षक बढ़कर उठायें झाड़ू,
शिक्षार्थी सब स्वच्छ रखेंगे।
स्वच्छता है स्वास्थ्य की रक्षक, यह जन-जन की जान है।
स्वच्छता नहीं है नारा केवल, यह जग-गण की शान है।।
राष्ट्रप्रेमी अब स्वच्छ करो सब;
आतंक से सीमा स्वच्छ करो अब।
कानूनों के ढेर स्वच्छ हों,
राजनीति को स्वच्छ करो जब। 
स्वच्छ, स्वस्थ, समृद्ध राष्ट्र हो, कर स्वच्छ वायु का पान है।
स्वच्छता नहीं है नारा केवल, यह जग-गण की शान है।।

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम"-९

आॅन लाइन शादी के अनुभवों में मनोज को यह भी पता चला कि लड़की या लड़की वालों को अधिक से अधिक रूपया कमाने वाला लड़का चाहिए। प्रत्येक लड़की अपने से अधिक पढ़े लिखे, उच्च पद पर कार्यरत व धनी व्यक्ति के साथ शादी करना चाहती है। जब ध नही शादी का आधार बनेगा तो लड़के वाले भी धन की उम्मीद करते हैं तो यह मानवीय बिडंबना के सिवाय कुछ भी नहीं है। जब धन के आधार पर लड़की वाले निर्णय करते हैं तो लड़के वाले उसी आधार को चुनते हैं तो बुरा क्या है? निसन्देह यह अच्छा नहीं है, यह सामान्य मानवीय प्रवृत्ति है। लड़की के घर वाले वर पक्ष की कमाई को निर्णय का आधार बनाते हैं, उनके लिए गुण अवगुणों का कोई महत्व नहीं है। मनोज ने स्पष्ट अनुभव किया कि लोग उसके प्रोफाइल को पूरा पढ़े बिना ही, केवल उसकी नौकरी को महत्व देते हुए सम्पर्क स्थापित कर शादी की बात करने लगते। वर्तमान में लड़कियाँ बिना किसी जिम्मेदारी के ऐशोआराम और शान-शौकत का जीवन जीने के सपने देखते हुए शादी करती हैं। वे ससुराल में जाकर के कर्तव्यों व उत्तरदायित्वों को निभाने के लिए तैयार नहीं होतीं। लड़की व लड़की वाले चाहते हैं कि लड़का शादी के बाद अपने घर की जायदाद लेकर उनके अनुसार चले, वह अपने माता-पिता व परिवार के प्रति जिम्मेदारियों से कोई मतलब न रखे। मनोज को अब भी हँसी आ जाती है, जब उसे याद आता है कि एक मोहतरमा से उनकी पहली शादी के टूटने का कारण पूछा तो कारण बताया गया कि वह अपनी माँ के आज्ञापालक व्यक्ति के साथ नहीं रह सकती। मनोज को उससे आगे बात करने की आवश्यकता ही नहीं थी। वह तो माता-पिता की सेवा में सहयोग करने वाली पत्नी चाहता था। उन मोहतरमा के लिए तो माँ की बात मानना पति का दोष था और इसी के कारण वे अलग हो गयीं। 

Wednesday, July 5, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-८"


शादी के आॅनलाइन प्रयासों में मनोज को एक कटु अनुभव हुआ कि दहेज को लेकर जो बातचीत होती हैं वह निरर्थक हैं। वास्तव में दहेज के बिना कोई लड़की या लड़की वाले शादी ही नहीं करना चाहते। इसे वे समाज में अपने लिए अपमानजनक माँगते हैं। लड़की व लड़की वाले अधिक दहेज चाहने वालों को ही अच्छा समझते हैं। मनोज को स्मरण हो आया विद्यार्थी जीवन का वह दिन जिस दिन वह अपने एक रिश्तेदार के यहाँ बैठा दहेज की आलोचना कर रहा था, तब उसकी बुजुर्ग रिश्तेदार महिला ने उसकी ओर मुखातिब होकर कहा था कि बिना दहेज की शादी की बात करोगे तो शादी ही नहीं होगी। लड़की व लड़की वाले समझेंगे कि अवश्य ही लड़के में कोई कमी होगी। उनका यह भी कहना था कि बिना दहेज की शादी करने में लड़की वाले अपनी बेइज्जती समझते हैं। मनोज को अब उनकी बात की सच्चाई का अनुभव हो रहा था। यही नहीं मनोज को इस सच्चाई का अनुभव भी हुआ कि लोग अपनी बेटी से प्यार के कारण उसे शादी के समय धन व महँगी-मँहगी वस्तुएं देना नहीं चाहते हैं, वरन वास्तविकता यह है कि वे समाज को दिखाना चाहते हैं कि उन्होंने अपनी बेटी या बहन की शादी में कितना दिया! अन्दर से देने की इच्छा न होते हुए भी प्रदर्शन का आडम्बर करने की भावना अधिकांश व्यक्तियों में देखने को मिल रही थी। मनोज के सम्पर्क में ऐसे लोग भी आये जो अपनी बेटी या बहन की कमाई पर आश्रित थे, फिर भी वे दहेज देने का दिखावा करना चाहते थे। कुछ तो ऐसे भी मिले जो शादी के बाद भी बेटी या बहन से कुछ न कुछ प्राप्त करते रहने की अपेक्षा रखते थे किंतु वे भी समाज में यह दिखाना चाहते थे कि उन्होेंने अपनी बेटी या बहन की शादी अच्छा दहेज देकर की है।

Tuesday, July 4, 2017

"दहेज के बिना शादी के परिणाम-७"

बच्चे को अकेले पालने में आने वाली प्रत्येक कठिनाई उसे जीवनसंगिनी की आवश्यकता महसूस कराती थी। माता-पिता के किसी प्रकार के कष्ट की अनुभूति उसे उनकी सेवा न कर पाने की अक्षमता का दर्द देती थी। वह अक्सर अपने बच्चे से कहा करता था कि शायद अगले वर्ष से उसे अपने व्यक्तिगत कार्यो को करने में कठिनाई न हो, हो सकता है कि कोई भली स्त्री उसकी माँ की भूमिका में आ जाय। जब भी प्रोफाइल पर किसी की रूचि प्राप्त होती या कोई उसकी रूचि को स्वीकार करती। उसे उम्मीद होती। उससे बात होती, किंतु कुछ दिनों बाद ही पता चलता कि उसने तो केवल उसकी सेलेरी देखकर रूचि दिखायी थी। एक-दो ने तो बातचीत के बाद स्पष्ट यह भी कह दिया कि आपके पास संन्यासिनी बनकर क्यों आयें? इससे तो अच्छा है कि हम शादी ही न करें। राजधानी दिल्ली की एक भद्र महिला ने अपनी ढंग से जीवन शैली अपनाने के बारे में समझाते हुए दावा किया कि मेरे साथ मेरे ढंग से जीकर देखो, जीवन में हर क्षण मजा दूँगी। अन्त में उसने मनोज को कहा, ‘जाओ तुम नर्क में जाओ’। उस महिला को सादा जीवन नर्क के तुल्य लग रहा था।

इस प्रकार स्पष्टता से मना करने वाली महिलाओं का विचार उसे कभी बुरा नहीं लगा। सबको अपने अनुसार जीवन पथ निर्धारित करने का हक है। जिसको जिस प्रकार के साथी की आवश्यकता महसूस होती है, उसे सोच-विचार कर निर्णय लेने का अधिकार मिलना ही चाहिए। कई बार पता चलता कि सामने वाली ने पूरा प्रोफाइल पढ़ा ही नहीं था, केवल उसकी नौकरी और आय के तथ्यों को देखकर ही उससे सम्पर्क कर लिया था। कई बार पता चलता कि प्रोफाइल महिला के अभिभावकों ने बनाया था और उसके साथ सभी बाते साझा नहीं की गयीं थी। शादी के इसी प्रयास में मनोज को स्पष्ट अनुभूति हुई कि लोग कितने भौतिकवादी हो गये है। एक महिला जो नौकरी करती रही कि शादी करने के लिए साथ रहना आवश्यक नहीं है। दोनों नौकरी करेंगे, अच्छा रूपया होगा। कभी आप मेरे पास आ जाया करना, कभी मैं आपके पास आ जाऊँगी। मनोज को ऐसी शादी का कोई मतलब ही नजर न आता था। जिसमें पारिवारिक जिम्मेदारियों की अपेक्षा मनुष्य केवल पैसा कमाने की मशीन बन जाय। जब साथ-साथ रह ही नहीं सकते तो कैसा परिवार? अतः उस कमाऊ महिला के प्रस्ताव को स्वीकार करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था। किंतु वह महिला अवश्य ही अपने विचारों में स्पष्ट व सच्ची व ईमानदार महिला थी उसने कोई झूठा आश्वासन नहीं दिया। मनोज ने तय कर रखा था कि उसे जिसके साथ रहना है, उससे बात करके उसे प्रत्येक तथ्य वह अवश्य बता देगा। सामने वाली निर्णय करे कि वह उपयुक्त समझती है या नहीं? वह चाहता था कि उसकी भावी जीवनसंगिनी उसके बारे में सबकुछ जानकर उसके साथ उसके जीवनपथ की सहगामिनी बने। उसे कभी यह महसूस न करे कि उसे यह मालुम नहीं था, अन्यथा वह शादी न करती। 

Sunday, July 2, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-६"

इस प्रकार मनोज ने सभी महत्वपूर्ण तथ्यों को स्पष्ट रूप से लिखा था। 

वह जानता था वर्तमान समय में जबकि जीवन मूल्यों में गिरावट आ रही 

है, उसे इस प्रकार की पत्नी मिलना असंभव है फिर भी जीवन के प्रति 

सकारात्मक दृष्टिकोण ने उसे यह सोचने का आधार प्रदान किया कि 

संसार में सभी प्रकार के लोग होते हैं। हो सकता है कि उसके अनुरूप जीवन

 जीने वाली भी कोई हो और उसे मिल जाय। वह यह नहीं सोच सका था कि

 इण्टरनेट पर उसकी ताक में उसे अपने जाल में फँसाकर शिकार करने 

वाले भी घात लगाये बैठे हैं। मनोज को क्या मालुम था कि लोग अपनी 

जाति तक छिपाकर फंसाने के लिए तैयार बैठे हैं। मनोज को उस समय 

यह मालुम नहीं था कि लोग इतने दोगले भी होते हैं कि शादी के लिए 

ब्राह्मण होने का दावा करते हैं और नौकरी पाने के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग,

 ए.सी. या एस.टी. होते हैं। मनोज को नहीं मालुम था कि लोगों के लिए 

शादी करना भी धन कमाने का साधन बन गया है। झूठ बोलकर अच्छा 

धन कमाने वाले को शादी के नाम पर फंसाकर फिर झूठे मुकदमें लगाकर 

मुफत का धन प्राप्त करने का साधन भी शादी को बनाया जा सकता है। 

आदर्श व सिद्धांतों के नाम पर जीने वाला मनोज कभी कल्पना भी नहीं कर

 सकता था।

Saturday, July 1, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-५"

अपने चिन्तन के अनुरूप मनोज ने अपने प्रोफाइल में अपने गत जीवन, अपने कार्य व अपनी अपेक्षाओं को एक दम स्पष्ट रूप से अंकित किया था, जिनमें से कुछ उदाहरण के लिए यहाँ दी जा रही हैं- 
1. वह एक दम सादा जीवन जीने का आदी है। अतः उसे ऐसी जीवन संगिनी चाहिए, जो साधारण व सादा जीवन जीने और सादा जीवन व उच्च विचारों के अनुसार कर्तव्य निर्वहन में विश्वास रखती हो।
2. वह सामाजिक कार्यो में रूचि लेता है और अपने द्वारा कमाए हुए धन को अपने या अपने परिवार के शौक या प्रदर्शन की अपेक्षा भूखे को रोटी और अशिक्षित को शिक्षा दिलाने में खर्च करने में विश्वास रखता है। अतः कोई भी महिला जिसे मँहगे वस्त्रों या आभूषणों का शौक हो उससे सम्पर्क न करे।
3. वह किसी भी स्थिति में झूठ बर्दाश्त नहीं कर सकता। अतः कोई भी ऐसी महिला उससे सम्पर्क न करे जो सच कहने में कठिनाई महसूस करती हो। कथनी और करनी में भिन्नता होने पर शादी चलना असंभव होगा।
4. उसे केवल अपने लिए पत्नी की ही नहीं अपने बेटे के लिए अच्छी माँ की जरूरत है, जो उसके बेटे को अपने बेटे का प्यार व देखभाल दे सके।
5. मनोज ने स्पष्ट लिखा था कि वह अपने माता-पिता की सम्मानपूर्वक देखभाल व सेवा करना चाहता है। अतः उसके इस कार्य में सहयोग करने वाली महिला ही उसके प्रोफाइल पर अपनी रूचि दिखाये या उसकी रूचि को स्वीकार करे।
6. मनोज ने विनम्रता पूर्वक लिखा था कि उसके प्रोफाइल में रूचि अभिव्यक्त करने वाली महिला या उसकी रूचि को स्वीकार करने वाली महिला कोई भी महत्वपूर्ण बात उससे न छिपाये और न ही किसी प्रकार का झूठ बोले। झूठ पर आधारित शादी एक दिन भी चल नहीं पायेगी और दोनों पक्षों को मानसिक यंत्रणा से गुजरना पड़ेगा।
7. मनोज ने स्पष्ट लिखा था कि वह दहेज व प्रदर्शन का विरोधी है। वह न तो शादी में कुछ खर्च करेगा और न ही दूसरे पक्ष द्वारा खर्च किया जाना स्वीकार करेगा। अतः वह शादी में किसी भी प्रकार की कोई वस्तु या धन स्वीकार नहीं करेगा। परंपरा के नाम पर एक रूपया भी स्वीकार करना उसके लिए संभव नही होगा। यहाँ तक कि वह अपने लिए कोई वस्त्र तक स्वीकार नहीं करेगा और न ही होने वाली पत्नी अपने साथ अपने व्यक्तिगत वस्तुओं के अतिरिक्त कुछ लेकर आयेगी।
8. मनोज ने अपने प्रोफाइल पर स्पष्ट लिखा था कि वह जन्म के आधार पर जाति व्यवस्था स्वीकार नहीं करता किन्तु कर्म और जीवन मूल्यों के आधार पर वह ब्राह्मण है और उसी प्रकार के जीवन मूल्यों को स्वीकार व जीने वाली जीवन संगिनी के साथ वह अपना जीवन बिताना पसंद करेगा।
9. उसने स्पष्ट लिखा था कि उसके यहाँ सादा व सात्विक जीवन ही मिलेगा। यहाँ तक कि उसके रसोई में प्याज, लहसुन या चाय का प्रयोग भी नहीं होता। खान-पान व आचार विचारों में सात्विकता उसकी जीवनसंगिनी के लिए अनिवार्य शर्त है। अतः केवल सादा जीवन जीने वाली महिला ही उससे सम्पर्क करें। किसी भी प्रकार का गैर सात्विक भोजन न वह करता है और न ही उसके बेटे या पत्नी को करना चाहिए।