शादी के आॅनलाइन प्रयासों में मनोज को एक कटु अनुभव हुआ कि दहेज को लेकर जो बातचीत होती हैं वह निरर्थक हैं। वास्तव में दहेज के बिना कोई लड़की या लड़की वाले शादी ही नहीं करना चाहते। इसे वे समाज में अपने लिए अपमानजनक माँगते हैं। लड़की व लड़की वाले अधिक दहेज चाहने वालों को ही अच्छा समझते हैं। मनोज को स्मरण हो आया विद्यार्थी जीवन का वह दिन जिस दिन वह अपने एक रिश्तेदार के यहाँ बैठा दहेज की आलोचना कर रहा था, तब उसकी बुजुर्ग रिश्तेदार महिला ने उसकी ओर मुखातिब होकर कहा था कि बिना दहेज की शादी की बात करोगे तो शादी ही नहीं होगी। लड़की व लड़की वाले समझेंगे कि अवश्य ही लड़के में कोई कमी होगी। उनका यह भी कहना था कि बिना दहेज की शादी करने में लड़की वाले अपनी बेइज्जती समझते हैं। मनोज को अब उनकी बात की सच्चाई का अनुभव हो रहा था। यही नहीं मनोज को इस सच्चाई का अनुभव भी हुआ कि लोग अपनी बेटी से प्यार के कारण उसे शादी के समय धन व महँगी-मँहगी वस्तुएं देना नहीं चाहते हैं, वरन वास्तविकता यह है कि वे समाज को दिखाना चाहते हैं कि उन्होंने अपनी बेटी या बहन की शादी में कितना दिया! अन्दर से देने की इच्छा न होते हुए भी प्रदर्शन का आडम्बर करने की भावना अधिकांश व्यक्तियों में देखने को मिल रही थी। मनोज के सम्पर्क में ऐसे लोग भी आये जो अपनी बेटी या बहन की कमाई पर आश्रित थे, फिर भी वे दहेज देने का दिखावा करना चाहते थे। कुछ तो ऐसे भी मिले जो शादी के बाद भी बेटी या बहन से कुछ न कुछ प्राप्त करते रहने की अपेक्षा रखते थे किंतु वे भी समाज में यह दिखाना चाहते थे कि उन्होेंने अपनी बेटी या बहन की शादी अच्छा दहेज देकर की है।
“दिल की टेढ़ी-मेढ़ी राहें”
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रोहन एक सफल व्यवसायी था, जो अपने काम में इतना व्यस्त था कि उसे अपने जीवन
में प्रेम की कमी महसूस नहीं होती थी। प्रेम तो क्या रोहन के पास सुख-दुख की
अनुभूति ...
4 days ago

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