Wednesday, June 30, 2021

साथ भले ही, आए न कोई

 हम बढ़ते ही जाएंगे


साथ भले ही, आए न कोई, हम बढ़ते ही जाएंगे।

पथिक हैं हम, पथ ही साथी, पथ का साथ निभाएंगे।।

अविचल होकर पथिक को बढ़ना।

बाधा कितनी भी, सघन, न डरना।

साथ भले ही मोहक प्यारे!

राह में तुझको, नहीं ठहरना।

सुख-सुविधाओं के आकांक्षी, क्यूं कर साथ निभाएंगे।

साथ भले ही, आए न कोई, हम बढ़ते ही जाएंगे।।

चलना ही बस मूलमंत्र है।

नहीं है, साधन, नहीं यंत्र है।

साथी ने भी, पथ है छोड़ा,

साथ हमारे, नहीं तंत्र है।

सुविधाओं में कैद हुए तुम, हम तो अलख जगाएंगे।

साथ भले ही, आए न कोई, हम बढ़ते ही जाएंगे।।

धन की हमको चाह नहीं थी।

पद की भी परवाह नहीं थी।

विश्वास का संबंध था चाहा,

अपयश पर भी आह! नहीं थी।

किसी से कोई, माँग नहीं है, सबको प्रेेम लुटाएंगे।

साथ भले ही, आए न कोई, हम बढ़ते ही जाएंगे।।


Sunday, June 20, 2021

अमूल्य धरोहर को नमन

आज पितृ दिवस के अवसर पर लगातार काव्य साधना में जुटे श्री तेजपाल शर्मा की अत्यन्त भावुक कविता प्रस्तुत है-

 पिता दिवस पर

*******

पिता नाम की संज्ञा से

मेरे मन में कोई भी

हलचल नहीं होती।

क्या

करते हैं पिता संतान के लिए,

यह जानने की इच्छा नहीं होती?

कैसे ऊंगली पकड़ कर चलाना,घुमाना, चूमना, पुचकार ना

आदि चीजें भी मेरी समझ नहीं आती

जानते हो क्यों? 

क्योंकि मेरे पिता ने मेरी याददाश्त में,

 यह सब कुछ भी नहीं किया।

करते भी कैसे?

मैं जब पिता की ऊंगली पकड़ कर चलने की स्थिति में था 

वे दैव प्रिय होगये

मात्र बत्तीस की आयु में।

फिर क्या करते वे मेरे लिए

अन्य पिता ओं की भांति।

आह!

मां जब कहती हैं कि

तेरे (मेरे) पिता 

बहुत बलिष्ठ 

शरीर सुगठित

तन पहलवानी था।

तुझे बहुत दुलार थे,

कंधे पर रख कर दूर तलक

घुमाते थे।

यह सब सुन कर मन भर आता है,

नेत्र अश्रुपूरित हो जाते हैं।

पछतावा हो ता है कि

क्यों नहीं छोड़ गए वे अपने कुछ स्मृति चिन्ह?

जिन्हें देखकर मैं सिहर उठता

और बहुत ही यत्न से सहेजकर रख लेता 

उनकी अनमोल धरोहर।

पर उनपर कुछ था ही नहीं

न तो चश्मा

न घड़ी

न छड़ी

किंतु

इन सबकी उन्हें जरूरत नहीं थी।

युवा थे

शौकीन न थे,छड़ी चश्मा की जरूरत नहीं थी

फिर कैसे छोड़ कर जाते 

ये चीजें।

हां एक श्वेत श्याम 

फोटो तो होता?

पर वह भी कैसे होता

वह समय भी कैमरे वाला न था।

खैर ,मन का प्रलाप है यह सब।

काश!

काश!!

कुछ भी तो होता उनका

स्मृति चिन्ह 

जिसे सहेज, संवारे रखता 

अपने जीवन भर।

किंतु मैं कितना अज्ञानी हूं

जो प्रलाप किये जा रहा हूं

और

भूल गया हूं कि

वे छोड़ गए हैं एक अमूल्य धरोहर।

उसी की देखभाल कर रहा हूं,अहर्निश

अनथक

अविराम

और बताऊं

उस धरोहर का नाम

वह है ममतालु

लगभग नौ दशक

पुरानी , कृशकाय

लेकिन

वटवृक्ष की सघन शीतल छांव

मेरी 

मां

पूज्य पिता की

उस अमूल्य धरोहर को नमन

प्रणाम!


तेजपाल शर्मा

प्राचार्य

श्री ब्रज आदर्श कन्या इंटर कालेज

मांट, मथुरा।

Wednesday, June 16, 2021

सभी को हम हैं, मित्र मानते

 सभी को माने सहेली है                       


कण्टक पथ के पथिक हैं हम, खतरों से अठखेली है।

सभी को हम हैं, मित्र मानते, सभी को माने सहेली है।।

साथ में हमने जिसे पुकारा।

हमारे पथ से किया किनारा।

छल, कपट से विश्वास में लेकर,

विश्वासघात का वज्र है मारा।

नहीं साथ कोई आएगा, राह मेरी अलबेली है।

सभी को हम हैं, मित्र मानते, सभी को माने सहेली है।।

नहीं हमारा कोई ठिकाना।

मालुम नहीं, कहाँ है जाना।

साथ में कोई क्यों आएगा?

आता नहीं, स्वार्थ का गाना।

जीवन पथ के सच्चे पथिक हैं, जीवन नहीं पहेली है।

सभी को हम हैं, मित्र मानते, सभी को माने सहेली है।।

हमको घर ना कोई बसाना।

हमको रोज कमाकर खाना।

धन, पद, यश, तुम्हें चाहिए,

हमको पथ ही लगे सुहाना।

कष्टों में पल बड़े हुए हम, मृत्यु से खेला-खेली है।

सभी को हम हैं, मित्र मानते, सभी को माने सहेली है।।

 


Sunday, June 13, 2021

भय भी हमें भयभीत न कर सके

हमको कौन डराएगा?

                                      


 सबके सुख की बातें करते, लेकिन दुःख ही बाँट रहे हो।

देख रहे हो, सबकी कमियाँ, अपने को ना आँक रहे हो।

औरों की नजरों में क्या हो? इस पर विचार करो तुम प्यारे,

अपनी ढपली-अपना राग, तुम, अपनी ही हाँक रहे हो।


भय भी हमें भयभीत न कर सके, हमको कौन डराएगा?

किसी से कोई होड़ नहीं, फिर, हमको कौन हराएगा?

प्रेम और विश्वास बिना, हमसे कुछ भी मिल न सकेगा,

नहीं ठहरना हमको कहीं पर, हमको कौन भगाएगा?


अपना काम मस्ती से किए जा, कर किसी की परवाह नहीं।

जो भी आए, स्वागत कर तू, करनी, किसी की चाह नहीं।

कोई न अपना, कोई न पराया, स्वार्थ से  है संबन्ध होते,

कहता कुछ, और करता कुछ, किसी के मन की थाह नहीं।


नहीं चाह है, नहीं कामना, कर्म पथ, जो मिले सही।

आज यहाँ है, कल वहाँ होगा, तेरे लिए सब खुली मही।

धन, पद, यश संबन्ध क्षणिक सब, प्यारे, इनसे मोह को तज,

कैसा भय? और कैसी चिंता? बेपरवाही की बाँह गही।


संग-साथ की इच्छा से आई, कैसे अकेली रह पाऊँगी?

साथ छोड़कर जाते हो यूँ, मैं रक्त के अश्रु बहाऊँगी।

अकेले छोड़कर जाना था तो, शादी क्यों की तुमने मुझसे,

काम-काज में बीतेंगे दिन, क्यूँ कर रात बिताऊँगी?


परदेश को प्यारे जाते हो, मैं यादों में अश्रु बहाऊँगी।

हर पल क्षण याद तुम आओगे, मैं गीत तुम्हारे गाऊँगी।

दिन में तो होगें काम बहुत, बीत जाएगा किसी तरह,

यह तो बतलाकर जाओ, रात को कैसे जी पाऊँगी?


Wednesday, June 9, 2021

पापों की तू रचना काली

 

    कभी न बने घरवाली है


बाहर से ही नहीं, सखी तू, अन्दर से भी काली है।

पापों की तू रचना काली, कभी न बने घरवाली है।।

छल-कपट, षड्यंत्र की देवी।

तू है, केवल धन की सेवी।

प्रेम का तू व्यापार है करती,

प्रेम नाम, प्राणों की लेवी।

धोखा देकर, जाल में फांसे, यमराज की साली है।

पापों की तू रचना काली, कभी न बने घरवाली है।।

धन से खुश ना रह पायेगी।

लूट भले ले, पछताएगी।

नारी नहीं, नारीत्व नहीं है,

पत्नी कैसे बन पाएगी?

पत्नी प्रेम की पुतली होती, तू तो जहर की प्याली है।

पापों की तू रचना काली, कभी न बने घरवाली है।।

साथ में सबके, कहे अकेली।

कपट के खेल कितने है खेली?

शाप किसी का नहीं लग सकता,

कैसे होगी? कालिमा मैली।

विश्वासघात कर, पत्नी कहती, लगे जंग की लाली है।

पापों की तू रचना काली, कभी न बने घरवाली है।।

दुष्टता से तू चाहे जीतना।

लूट रही तू, हमें रीतना।

दुरुपयोग कानूनों का करके,

कभी मिलेगा, तुझे मीत ना।

मोती सा फल चाह रही है, बंजर है, सूखी डाली है।

पापों की तू रचना काली, कभी न बने घरवाली है।।


Tuesday, June 8, 2021

समय नहीं है, अब बचपन का

समय आ रहा, अब पचपन का


अधर मंद, मुस्कान विराजे।

वक्षों पर काले, केश हैं साजे।

नयनों में है, प्यास प्रेम की,

कामना नयन, पलक हैं लाजे।


चाहत तुमरी, कह ना, पाऊँ।

पास में तुमरे,  कैसे  आऊँ?

वियोग व्यथा से, पीड़ित उर,

चेहरा तुम्हारा, देख न पाऊँ।


आओगी, यह वादा किया था।

दूर से पास के, क्षण को जिया था।

हम अब भी, यादों में जीते,

देख चित्र, जो तुमने दिया था।


वायदा अपना, भूल गयी हो।

हमारे लिए, नित ही नयी हो।

मैं तो खड़ा, प्रेम के पथ में,

प्रेम के पथ को, भूल गयी हो।


दुनियादारी मंे  खोई हो।

पाल रहीं, जिसको बोई हो।

हम यादों में, करवट बदलें,

चैन की नींद, प्यारी सोई हो।


जहाँ था, छोड़ा, वहीं खड़े हैं।

जीवन जीना,  भूल, अड़े हैं।

ठोकर मार, चली गईं तुम,

करते प्रतीक्षा, वहीं पड़े हैं।


वायदा किया था, वायदा निभाओ।

एक बार आ,  गले मिल जाओ।

बीस वर्ष का, प्रेम हुआ बालिग,

प्रेम को तज, ना, कायदा निभाओ।


समय नहीं है, अब बचपन का।

समय आ रहा, अब पचपन का।

तुम्हारी चाहत में हैं टूटे,

काम करें, हम फिर बचपन का।


कुछ ही पलों को, भले ही आओ।

प्रेम-सुधा का, इक, घूँट पिलाओ।

दुनियादारी भूलो,  कुछ पल,

कस के, हमको, गले लगाओ।


साथ भले ही, ना रह पायें।

इक-दूजे को, ना बिसरायें।

यादें मधुर हैं, फिर जी लेंगे,

मधुर पलों में, युग जी जायें।


Friday, June 4, 2021

तू ही अर्धांगिनी नहीं है मेरी

 मैं भी अर्धांग तेरा हूँ

                                        


तू ही अर्धांगिनी नहीं है मेरी, मैं भी अर्धांग तेरा हूँ।

तू दिल का राजा, कहती, रानी, मैं तेरा चेरा हूँ।।

नारी ने नर को चलना सिखाया।

नारी ने जन्मा, दूध पिलाया।

नारी बिन, अस्तित्व न नर का,

नारी प्रेम ने, नर को मिलाया।

जब-जब मैं भटका हूँ, पथ से, तूने ही तो टेरा हूँ।

तू ही अर्धांगिनी नहीं है मेरी, मैं भी अर्धांग तेरा हूँ।।

नारी प्रेरणा है, हर नर की।

नारी आधार है, इस भव की।

तुझसे ही तो, घर है बसता,

तू ही लक्ष्मी, है घर-घर की।

तू है, मेरे उर की शेरनी, मैं भी तो तेरा शेरा हू।

तू ही अर्धांगिनी नहीं है मेरी, मैं भी अर्धांग तेरा हूँ।।

तेरे बिन है, नीरस जीवन।

तू ही साज, तू ही है सीवन।

अधर तेरे अमृत के प्याले,

तू ही प्राण, तू ही संजीवन।

तू ही, मेरे प्राणों की कुटिया, मैं, भी, तेरा खेरा हूँ।

तू ही अर्धांगिनी नहीं है मेरी, मैं भी अर्धांग तेरा हूँ।।


Wednesday, June 2, 2021

ऊपर अब नारी चढ़ी,

नर को आती लाज

     


गए जमाने बीत वह, कहलाते थे नाथ।

हम तुमको ही नाथ दें, नहीं चाहिए साथ।।


पिजड़ों को हम तोड़कर, आज हुईं आजाद।

हमको घर ना चाहिए, ना सजने का साज।|


आई लव यू कह ठगी, ठग कर साधे काज।

विधान का कोड़ा चला, नर पर नारी  राज।।


छेड़छाड़ के केस में, पल में देत फंसाय।

किसकी मजाल, देख ले, बिन मर्जी कह हाय।।


सास-ससुर, चलती कहा, ना पति की है खैर।

झूठे दहेज केस से, निकले सारा वैर।।


हमने तो अब छोड़ दी, लाज, शर्म औ आन।

सब नर के जिम्मे किए, कहकर तुम हो जान।।


मरजी से सब कुछ करें, बलात्कार का केस।

नारी को जब खुश करें, बदल जात तब वेश।।


पढ़ी-लिखी नारी भली, करती है सब काज।

ऊपर अब नारी चढ़ी, नर को आती लाज।।


नारी नर को छोड़ कर, लग विकास की दौड़।

दोनों मिल आगे बढ़ो, करो न कोई होड़।।


नारी अब है जग रही, नर के चलती साथ।

शिक्षा में आगे बढ़ी, थामे नर का हाथ।।