Sunday, June 13, 2021

भय भी हमें भयभीत न कर सके

हमको कौन डराएगा?

                                      


 सबके सुख की बातें करते, लेकिन दुःख ही बाँट रहे हो।

देख रहे हो, सबकी कमियाँ, अपने को ना आँक रहे हो।

औरों की नजरों में क्या हो? इस पर विचार करो तुम प्यारे,

अपनी ढपली-अपना राग, तुम, अपनी ही हाँक रहे हो।


भय भी हमें भयभीत न कर सके, हमको कौन डराएगा?

किसी से कोई होड़ नहीं, फिर, हमको कौन हराएगा?

प्रेम और विश्वास बिना, हमसे कुछ भी मिल न सकेगा,

नहीं ठहरना हमको कहीं पर, हमको कौन भगाएगा?


अपना काम मस्ती से किए जा, कर किसी की परवाह नहीं।

जो भी आए, स्वागत कर तू, करनी, किसी की चाह नहीं।

कोई न अपना, कोई न पराया, स्वार्थ से  है संबन्ध होते,

कहता कुछ, और करता कुछ, किसी के मन की थाह नहीं।


नहीं चाह है, नहीं कामना, कर्म पथ, जो मिले सही।

आज यहाँ है, कल वहाँ होगा, तेरे लिए सब खुली मही।

धन, पद, यश संबन्ध क्षणिक सब, प्यारे, इनसे मोह को तज,

कैसा भय? और कैसी चिंता? बेपरवाही की बाँह गही।


संग-साथ की इच्छा से आई, कैसे अकेली रह पाऊँगी?

साथ छोड़कर जाते हो यूँ, मैं रक्त के अश्रु बहाऊँगी।

अकेले छोड़कर जाना था तो, शादी क्यों की तुमने मुझसे,

काम-काज में बीतेंगे दिन, क्यूँ कर रात बिताऊँगी?


परदेश को प्यारे जाते हो, मैं यादों में अश्रु बहाऊँगी।

हर पल क्षण याद तुम आओगे, मैं गीत तुम्हारे गाऊँगी।

दिन में तो होगें काम बहुत, बीत जाएगा किसी तरह,

यह तो बतलाकर जाओ, रात को कैसे जी पाऊँगी?


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