समय आ रहा, अब पचपन का
अधर मंद, मुस्कान विराजे।
वक्षों पर काले, केश हैं साजे।
नयनों में है, प्यास प्रेम की,
कामना नयन, पलक हैं लाजे।
चाहत तुमरी, कह ना, पाऊँ।
पास में तुमरे, कैसे आऊँ?
वियोग व्यथा से, पीड़ित उर,
चेहरा तुम्हारा, देख न पाऊँ।
आओगी, यह वादा किया था।
दूर से पास के, क्षण को जिया था।
हम अब भी, यादों में जीते,
देख चित्र, जो तुमने दिया था।
वायदा अपना, भूल गयी हो।
हमारे लिए, नित ही नयी हो।
मैं तो खड़ा, प्रेम के पथ में,
प्रेम के पथ को, भूल गयी हो।
दुनियादारी मंे खोई हो।
पाल रहीं, जिसको बोई हो।
हम यादों में, करवट बदलें,
चैन की नींद, प्यारी सोई हो।
जहाँ था, छोड़ा, वहीं खड़े हैं।
जीवन जीना, भूल, अड़े हैं।
ठोकर मार, चली गईं तुम,
करते प्रतीक्षा, वहीं पड़े हैं।
वायदा किया था, वायदा निभाओ।
एक बार आ, गले मिल जाओ।
बीस वर्ष का, प्रेम हुआ बालिग,
प्रेम को तज, ना, कायदा निभाओ।
समय नहीं है, अब बचपन का।
समय आ रहा, अब पचपन का।
तुम्हारी चाहत में हैं टूटे,
काम करें, हम फिर बचपन का।
कुछ ही पलों को, भले ही आओ।
प्रेम-सुधा का, इक, घूँट पिलाओ।
दुनियादारी भूलो, कुछ पल,
कस के, हमको, गले लगाओ।
साथ भले ही, ना रह पायें।
इक-दूजे को, ना बिसरायें।
यादें मधुर हैं, फिर जी लेंगे,
मधुर पलों में, युग जी जायें।
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