Thursday, October 30, 2014

बार-बार यही कामनाएँ, आपकी, पूरी हों इच्छा सभी।

४-३-२००७
छत्तीस के हम हो चुके, आप अड़तीस की हो जायेंगी।
बच्चों जैसी जिद से लेकिन, आप मुक्त कब हो पायेंगी।
प्यार का सागर दिखाया, आज गुस्सा किसलिए इतना लुटाया?
जबाब देने की आदत नहीं, रात देखो ख्वाब में आ जायेंगी।
हमारे जन्म दिन पर आपने, था कार्ड भेजा था कभी।
फोन पर घंटी बजाकर, आपने मुबारक दे दीं अभी। 
दूरियाँ तो तन की केवल, मन से मेरे पास हर पल,
बार-बार यही कामनाएँ, आपकी, पूरी हों इच्छा सभी।

Wednesday, October 29, 2014

एक कविता रोज ---------------------------

3.11.07
गुलाबी  हैं अधर, खिल रही  मुस्कान
हिय में तो प्रेम बसे, ऊपर से करे मान
रागिनी का अंग-अंग, नृत्य करे पल-क्षण,
दुर्भाग्य ही था जो, मिली न तुझे सुख खान।


3.12.07
प्यार के काबिल नहीं,हम, दीदार चाहिए।
इन्कार का इजहार भी, तरीके से चाहिए।
दुत्कार तुमने दीं, कोई गिला नहीं हमको,
बीच में ना हमारे कोई दीवार चाहिए।

3.13.07
हमको नहीं आपकी तदवीर चाहिए।
हमको नहीं आपकी तकदीर चाहिए।
आपको पाने की गफलत में नहीं, हम,
हमको बस आपकी तस्वीर चाहिए।

3.14.07
खत नहीं खत का मजमून चाहिए।
आन नहीं आपका सुकून चाहिए।
हाजिर कर देंगे, जरा मुस्काके कहो,
हमारे अरमानों का,यदि खून चाहिए।

3.15.07
केरल हो या कन्याकुमारी, याद हमेशा रहे तुम्हारी।
मधुर दर्द असह्य है हरदम, याद रहेंगी चोट तुम्हारी।
अब तड़पन ही जीवन-साथी, कभी रही थी तुमसे यारी,
नहीं रहा कुछ शेष जहां में, बाकी हैं बस याद तुम्हारी।

3.16.07
सागर जिसको समझा हमने, वह केवल दरिया निकली।
हमने जिसको कोयल समझा, तितली जैसी परिंदा निकली।
राह तकी है, राह तक रहे, जीवन भर ही राह तकेंगे,
जिसको दिल की बगिया सौंपी, बेबफा वही दरिन्दा निकली।

3.17.07
जिसको हमने अपना समझा, निकल पड़ा वह ही बेगाना।
हमराही था हमने समझा, झिड़का उसने पास न आना।
हमने सब कुछ सौंप दिया,पर तुमने कब था इसको माना,
जीवित हमको मार दिया, गाती रहो तुम खुशी से गाना।

Tuesday, October 28, 2014

मैं तो पिया से मिलन गई रे।

3.10.07

तुम्हारा गीत

मैं तो पिया से मिलन गई रे।
मैं तो पिया की बाँहों में झूली
तन से हर्षित मन से फूली
रोम-रोम में बस गए प्रियतम्
उनकी खातिर चढ़ जाऊँ शूली।

सब संशयों से पार भई रे।
मैं तो पिया से मिलन गई रे।
जब प्रियतम् ने गले लगाया
प्यार का अर्थ समझ में आया
जिम्मेदारी सभी निभाऊँ,
मिल जाए बस प्रिय का साया
तन-मन से पिया की भई रे।
मैं तो पिया से मिलन गई रे।

पिया ने अमृत मुझे पिलाया
जीवन क्या? अहसास कराया
मुझ पगली को बाँहों में लेके
जीवन पथ पर साथ चलाया
पिया के रंग में रंग गई रे।
मैं तो पिया से मिलन गई रे।

Sunday, October 26, 2014

कैसे होता? प्रिये! आपका अपने पिया से मेल!

4.2.2007


कैसे? 
आपकी याद में, 
उदासी के साथ
हो रहे होते प्रसन्न

कैसे?
सह रहे होते
मीठा-मीठा
जुदाई का दर्द
गर्मियों में भी 
तन नहीं होता सर्द
शायद हमारा भी 
कोई होता हमदर्द

किन्तु कैसे?
होती आपके अहम की सन्तुष्टि
प्राप्त करके फेंकने की तुष्टि
ठुकराने की पुष्टि.

कैसे ?
खेल पातीं
आप प्रेम का खेल.

कैसे होता
प्रिये!
आपका अपने पिया से मेल!
यदि नहीं होती
हमारी आपकी मुलाकात
नहीं रहे होते
कुछ दिनों
हम साथ-साथ
नहीं डाले होते
हाथों में हाथ!

Friday, October 24, 2014

हर त्योहार समर्पित तुझको

3.04.07
तुम्हें तुम्हारे रंग मिल जाएँ, हमने है रंगो को छोड़ा।
सारे रिश्ते तुम्हें मुबारक, अन्दर हो तुम, सबको छोड़ा।
तुम सारी खुशियों से जी लो, हम जी लेंगे थोड़ा-थोड़ा।
तन से भले ही दूर रहो तुम, मन ने नहीं है रिश्ता तोड़ा।

हर त्योहार  समर्पित तुझको, तुझको समर्पित है यह मन।
हर पल चिन्तन समर्पित तुझको, तुझको समर्पित है हर गायन।
 दिन ही नहीं, हर निशा समर्पित, तुझको समर्पित है हर लाइन।
जीवन के सब रंग समर्पित, तुझको समर्पित काया कण-कण।

होली की रंगीनी से तुम, रंग डालो अपने प्रियतम को।
होली की अग्नि से तुम, चमकाओ निज अन्तरतम को।
होली की कामना हैं प्यारी, पा जाओ जो सुन्दरतम् हो।
होली की जो प्यास तुम्हारी, शीघ्र बनेगी पावनतम् हो।

कविता नहीं यह पत्र साथ ही।
लिखो नहीं कुछ करो बात ही।
भूल जाओ तुम, हम नहीं भूलें,
जहाँ जायँ हम, रहो साथ ही।

Thursday, October 23, 2014

प्रेम नहीं कर सकती

08.15.2007
प्रेम नहीं कर सकती 
बुद्धि,
वह तो हानि-लाभ का 
हिसाब लगाती है।

प्रेम नहीं कर सकती
कामना,
वह तो स्वार्थो को
पूरा करने के तिगड़में लगाती है।

प्रेम नहीं कर सकतीं
सुविधाएँ
वे तो येन-केन-प्रकारेण
हरदम संसाधनों को जुटाती हैं।

प्रेम नहीं कर सकता
 अहम
वह तो अपने को ही सही
सिद्ध करने के कुतर्क खंगालता है।

प्रेम नहीं कर सकती
चुनौती
सब कुछ कर पाने की 
वह तो रोंदने में मजा पाती है।

प्रेम उपजता है
 दिल में
जो देने के अहम से भी दूर
समर्पण करना जानता है।

प्रेम करती है
 भावना
जो अपना सब कुछ सौंपकर भी
कुछ नहीं चाहती।

रोशनी के लिये


Wednesday, October 22, 2014

बधाई पूर्व करनी होगी, सत्कर्मो की तुम्हें कमाई।

मित्रों! आओ दीपावली पर स्वीकारो मेरी भी बधाई।

बधाई पूर्व करनी होगी, सत्कर्मो की तुम्हें कमाई।

प्रदूषण फैलाकर दीप जलाते, कैसी दीपावली है भाई?

पूजा नहीं, अनुसरण राम का, इसमें सबकी होगी भलाई।

सीता को वनवास मिले ना, पग-पग हो न परीक्षा भाई।

रावण का पुतला मत फूँकों, अन्तर्मन की करो सफाई।

सूपर्णखाँ की नाग कटे ना, शादी का अवसर मिले भाई।

अब मजबूर न नारी हो कोई, जैसे जमीन में सीता समाई। 

जनकसुता क्यों जमीन में गढ़तीं, उनका भी सम्मान हो भाई।

नर-नारी हो सहयोगी, सुखी रहें सब लोग-लुगाई।

अधिकारों की आग में जलकर, कर्तव्यों की राह गँवाईं?

नर-नारी मिल करें प्रतिज्ञा, सत्कर्मो की स्वीकारो बधाई।

Tuesday, October 21, 2014

एक कविता रोज

3.03.07

मुबारक होली

होली रहे मुबारक तुमको, जीवन में खुशहाली लाए।
फूले-फले परिवार तुम्हारा, बहुरंगो से तुम्हें सजाए।
महके हरदम तन का उपवन, मन खुशियों से गाए।
खुशियों में तुम डूबो इतनी नहीं याद हमारी आए।

होली की दें मुबारकवाद हम, क्रोध नहीं हम पर करना।
पारदर्शिता जीवन में हो, नहीं किसी से तुमको डरना।
सारे कष्ट, दुःख और चिन्ता पायें हम तुमसे है हरना।
तन्हाई में खुश हो लेंगे , तुम्हारी महफिल में हांे सजना।

एक वर्ष है होने वाला हमने दर्शन पाए थे।
दो दिन ही बस पास रहे जो हमरे मन में भाए थे।
हम तो राह देखते अब भी, तुमने ही तरसाए थे।
तुम्हारे सानिध्य में हम, उस दिन कितने हरषाए थे।

गुलाबी कपोल, अधरों पर मुस्कान।
बोली में जिसके कोयल गाए गान।
मानिनी का मन-मयूर नृत्य करे हर-पल।
भाग्यशाली कितना, मिली जिसे सुख-खान।

होली लाए खुशहाली, फूल उठे डाली-डाली।
महक उठे अंग-अंग, मन नहीं रहे खाली।
कपोलों पे अरूणाई, सुधा भरी अधर-प्याली।
कलियों से पुष्प खिलें, सीचें बगिया को माली।

रामप्रीत जी की गज़ल


Friday, October 3, 2014

एक कविता रोज

हम पथ में खड़े बुलाते हैं।

03.10.2007
शुभ प्रभात! वह कह सकते हैं, जो प्रभात में जग जाते हैं।
प्रकृति लुटाती भोर में खुशियाँ, जो जगते आरोग्य पाते हैं।
जीवन है चलने का नाम, इसे आलस में बर्बाद करो ना,
अगड़ाई ले, बढ़ो चलो अब, हम पथ में खड़े बुलाते हैं।

सिर्फ आपके लिए

छियालीसवें जन्म दिवस की शुभकामनाओं के साथ



सिर्फ आपके लिए है, लेना दिल में एक बार उतार।
  बाद में दिल की तरह, इसको भी देना फाड़।।