Tuesday, October 21, 2014

एक कविता रोज

3.03.07

मुबारक होली

होली रहे मुबारक तुमको, जीवन में खुशहाली लाए।
फूले-फले परिवार तुम्हारा, बहुरंगो से तुम्हें सजाए।
महके हरदम तन का उपवन, मन खुशियों से गाए।
खुशियों में तुम डूबो इतनी नहीं याद हमारी आए।

होली की दें मुबारकवाद हम, क्रोध नहीं हम पर करना।
पारदर्शिता जीवन में हो, नहीं किसी से तुमको डरना।
सारे कष्ट, दुःख और चिन्ता पायें हम तुमसे है हरना।
तन्हाई में खुश हो लेंगे , तुम्हारी महफिल में हांे सजना।

एक वर्ष है होने वाला हमने दर्शन पाए थे।
दो दिन ही बस पास रहे जो हमरे मन में भाए थे।
हम तो राह देखते अब भी, तुमने ही तरसाए थे।
तुम्हारे सानिध्य में हम, उस दिन कितने हरषाए थे।

गुलाबी कपोल, अधरों पर मुस्कान।
बोली में जिसके कोयल गाए गान।
मानिनी का मन-मयूर नृत्य करे हर-पल।
भाग्यशाली कितना, मिली जिसे सुख-खान।

होली लाए खुशहाली, फूल उठे डाली-डाली।
महक उठे अंग-अंग, मन नहीं रहे खाली।
कपोलों पे अरूणाई, सुधा भरी अधर-प्याली।
कलियों से पुष्प खिलें, सीचें बगिया को माली।

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