Friday, October 3, 2014

एक कविता रोज

हम पथ में खड़े बुलाते हैं।

03.10.2007
शुभ प्रभात! वह कह सकते हैं, जो प्रभात में जग जाते हैं।
प्रकृति लुटाती भोर में खुशियाँ, जो जगते आरोग्य पाते हैं।
जीवन है चलने का नाम, इसे आलस में बर्बाद करो ना,
अगड़ाई ले, बढ़ो चलो अब, हम पथ में खड़े बुलाते हैं।

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