Wednesday, October 29, 2014

एक कविता रोज ---------------------------

3.11.07
गुलाबी  हैं अधर, खिल रही  मुस्कान
हिय में तो प्रेम बसे, ऊपर से करे मान
रागिनी का अंग-अंग, नृत्य करे पल-क्षण,
दुर्भाग्य ही था जो, मिली न तुझे सुख खान।


3.12.07
प्यार के काबिल नहीं,हम, दीदार चाहिए।
इन्कार का इजहार भी, तरीके से चाहिए।
दुत्कार तुमने दीं, कोई गिला नहीं हमको,
बीच में ना हमारे कोई दीवार चाहिए।

3.13.07
हमको नहीं आपकी तदवीर चाहिए।
हमको नहीं आपकी तकदीर चाहिए।
आपको पाने की गफलत में नहीं, हम,
हमको बस आपकी तस्वीर चाहिए।

3.14.07
खत नहीं खत का मजमून चाहिए।
आन नहीं आपका सुकून चाहिए।
हाजिर कर देंगे, जरा मुस्काके कहो,
हमारे अरमानों का,यदि खून चाहिए।

3.15.07
केरल हो या कन्याकुमारी, याद हमेशा रहे तुम्हारी।
मधुर दर्द असह्य है हरदम, याद रहेंगी चोट तुम्हारी।
अब तड़पन ही जीवन-साथी, कभी रही थी तुमसे यारी,
नहीं रहा कुछ शेष जहां में, बाकी हैं बस याद तुम्हारी।

3.16.07
सागर जिसको समझा हमने, वह केवल दरिया निकली।
हमने जिसको कोयल समझा, तितली जैसी परिंदा निकली।
राह तकी है, राह तक रहे, जीवन भर ही राह तकेंगे,
जिसको दिल की बगिया सौंपी, बेबफा वही दरिन्दा निकली।

3.17.07
जिसको हमने अपना समझा, निकल पड़ा वह ही बेगाना।
हमराही था हमने समझा, झिड़का उसने पास न आना।
हमने सब कुछ सौंप दिया,पर तुमने कब था इसको माना,
जीवित हमको मार दिया, गाती रहो तुम खुशी से गाना।

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