Tuesday, January 15, 2019

परीक्षा पर चर्चा


परीक्षा पर जोर देने की आवश्यकता ही नहीं है। हमारे सामने समस्यायें इसलिये पैदा होती है कि हम प्राथमिकताओं का गलत निर्धारण कर लेते हैं। हमें समझना होगा और समझाना होगा कि परीक्षा नहीं सीखना महत्वपूर्ण है। परीक्षा तो एक मापन का यन्त्र है, जैसे- हम दूध पीना चाहते हैं किन्तु हम लीटर को पकड़ लेते हैं, जबकि लीटर नहीं दूध की पौष्टिकता महत्वपूर्ण है। लीटर पर जोर देने के कारण ही मिलावट सामने आती है। ठीक इसी प्रकार परीक्षा पर जोर देने के कारण ही परीक्षायें तनाव का कारण बनती हैं। यही नहीं परीक्षाओं पर अधिक जोर देने के कारण ही अनुचित साधनों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। वास्तविकता तो यह है कि परीक्षा नहीं सीखना महत्वपूर्ण है। जब हम सीखने पर जोर देंगे, तो सब कुछ आसान हो जायेगा। सीखना आनन्ददायक हो जायेगा। हमें मालुम ही नहीं पड़ेगा कि कब परीक्षा हुई क्योंकि जब आप सीखने पर ध्यान केन्द्रित करेंगे तो परीक्षा तो एक खेल मात्र रह जायेगी। अतः परीक्षा पर चर्चा छोड़कर सीखने पर चर्चा कीजिये। देश के लिये सीखना, समाज के लिये सीखना, परिवार के लिये सीखना, जीवन के लिये सीखना सबसे आगे बढ़कर आनन्द के लिये सीखना, जब सीखना ही महत्वपूर्ण होगा तो परीक्षा तनाव नहीं आनन्द देने लगेगी जिसके लिये किसी तैयारी की आवश्यकता ही नहीं होगी ।

Wednesday, January 2, 2019

दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-४०

आनलाइन मैरिज, धोखे से शादी रचाकर दहेज का आरोप लगाकर ठगी करने की कहानियाँ मनोज काफी पढ़ता रहा था किंतु इस तरह की धोखाधड़ी में वह स्वयं ही फंस जायेगा, उसे क्या पता था? जो मनोज कभी दहेज के लेन-देन वाली शादियों में भाग नहीं लेता था। उस पर दहेज के ऐसे संगीन आरोप लगाकर उसे लूटने का प्रयास किया जायेगा। मनोज की कल्पना से परे था। जिस शादी में उसने रूमाल तक स्वीकार नहीं किया था। उसमें कोर्ट के सामने प्रस्तुत याचिका में दहेज में दिये गये सामान की सूची देखकर मनोज का तो सिर ही चकरा गया । जिस तथाकथित पत्नी को मनोज ने अपनी इच्छा से कभी हाथ नहीं लगाया था। हाथ लगाना तो दूर जिसका स्पर्श घृणास्पद लगता था, उसके द्वारा कोर्ट में प्रस्तुत याचिका में कोर्ट से अपेक्षित आदेशों की सूची किसी भी कल्पना की पराकाष्ठा कही जा सकती है-
1. न्यायालय से माँग की गयी थी कि मनोज के खिलाॅफ इस प्रकार का आदेश पारित किया जाय कि वह किसी भी प्रकार की घरेलू हिंसा न करे और न किसी से करावे। अजीब स्थिति जब घर ही नहीं तो घरेलू हिंसा किस बात की? मनोज मो उस तथाकथित पत्नी का स्पर्श ही नहीं करना चाहता था। उससे हाथ लगाना तो दूर की बात। इसके विपरीत वह कपटी औरत ही उसके दिन के चैन और रातों की नींद हराम किये रहती थी। मनोज को तो अपने बेटे और अपने प्राणों की चिंता ही हर समय सताती रहती थी।
2. न्यायालय में प्रस्तुत याचिका में दूसरी माँग यह की गयी थी कि मनोज को उस तथाकथित पत्नी के निवास स्थान पर प्रवेश करने से रोका जाय। कितनी हास्यास्पद बात थी कि जिस निवास स्थान को मनोज ने शादी से पूर्व ही नहीं देखा था। जहाँ शादी के समय भी उसे जाने का मौका नहीं मिला। उस स्थान पर इस कपटपूर्ण शादी की सच्चाई जानने के बाद वह वहाँ जाने की हिम्मत ही कैसे कर सकता था?
3. न्यायालय से माँग की गयी थी कि वह प्रत्यार्थी अर्थात मनोज को उसी स्तर की आवास सुविधा हेतु जैसी वह स्वयं उपभोग कर रहा है, रूपये 10000 मासिक किराये के रूप में प्रदान करे। जब उस तथाकथित पत्नी के पास इस प्रकार का घर था, जहाँ वह मनोज के प्रवेश को वर्जित करने की माँग कर रही थी तो फिर किराये के घर की क्या आवश्यकता थी। हाँ! आवश्यकता थी क्योंकि शादी का नाटक ही ठगने के लिए किया गया था।
4. मनोज के लिए सबसे हास्यास्पद बात तो यह थी कि जिसने अपने और अपने बेटे के लिए एक रूमाल तक स्वीकार नहीं किया उस पर स्त्रीधन और मूल्यवान वस्तुएँ हड़पने का आरोप लगाते हुए जो सूची प्रस्तुत की गयी थी वह भी मनोरंजक ही थी, जिसके लिए दावा किया गया था कि वह तथाकथित मूल्यवान धन उसके परिवार और रिश्तेदारों द्वारा दिया गया था-