Saturday, May 31, 2025

साथ में साथी चाहा अब तक

 खुद ही खुद के साथ रहेंगे


नहीं किसी से प्रेम चाहिए, खुद ही खुद से प्रेम करेंगे।

साथ में साथी चाहा अब तक, खुद ही खुद के साथ रहेंगे।।

जिसको चाहा, ठगा है उसने।

विश्वास किया, लूटा है उसने।

जिस-जिसको, है, गले लगाया,

अन्तर्मन बींधा, उस-उस ने।

नहीं किसी का हाथ चाहिए, खुद ही खुद का हाथ गहेंगे।

साथ में साथी चाहा अब तक, खुद ही खुद के साथ रहेंगे।।

कुछ लेने की चाह नहीं है।

लुटने की परवाह नहीं है।

झूठ, कपट षड्यंत्र हैं झेले,

मुस्कान बची, अब आह नहीं है।

हमको अपने पथ है चलना, सब अपने-अपने पाथ रहेंगे।

साथ में साथी चाहा अब तक, खुद ही खुद के साथ रहेंगे।।

जो नहीं अपना, नहीं चाहिए।

अधिकार जो झूठा, नहीं चाहिए।

यर्थाथ जीवन, जो है, जीना,

आडंबर कोई, नहीं चाहिए।

नहीं चाह है, ना चाहत है, नहीं किसी के, नाथ रहेंगे।

साथ में साथी चाहा अब तक, खुद ही खुद के साथ रहेंगे।।


Thursday, May 29, 2025

साथ भले ही नहीं रहो तुम

तुमसे हमारी यारी है



प्रेम नहीं केवल है तुमसे, छाया तुम्हारी प्यारी है।

साथ भले ही, नहीं रहो तुम, तुमसे हमारी यारी है।।

वाद-विवाद में नहीं है पड़ना।

राही हैं हम, नहीं है अड़ना।

तुम्हारी बात ही ऊपर मानी,

हमको नहीं है, ऊपर चढ़ना।

आकर्षित हम नहीं है केवल, तुम्हारी आन भी प्यारी है।

साथ भले ही, नहीं रहो तुम, तुमसे हमारी यारी है।।

आदत भले ही भिन्न-भिन्न हैं।

भले वियोग में आज खिन्न हैं।

जब भी तुम्हें जरूरत होगी,

नहीं दूर हैं, नहीं भिन्न हैं।

हमको कोई शौक नहीं है, तुम्हारी शान ही प्यारी है।

साथ भले ही, नहीं रहो तुम, तुमसे हमारी यारी है।।

प्रदर्शन की, तुम हो खिलाड़ी।

तुम्हारे आगे, हम हैं अनाड़ी।

नए-नए नित तुम्हारे शौक हैं,

हम हैं पुराने, चढ़ें न गाड़ी।

कर्म के पथिक, हम तो ठहरे, तुमरी राह ही न्यारी है।

साथ भले ही, नहीं रहो तुम, तुमसे हमारी यारी है।।


Monday, May 19, 2025

औरत?

 केवल


माँ ही नहीं,


कामिनी भी है औरत।


केवल बहिन और बेटी ही नहीं,


रागिनी भी है औरत।


केवल पत्नी ही नहीं,


कामाग्नि दग्ध प्रेमिका भी है औरत।


केवल गृहिणी ही नहीं,


स्वामिनी भी है औरत।


केवल समर्पित ही नहीं,


दहेज के झूठे आरोप लगा,


छेड़छाड़ और बलात्कार का बहाना बना,


कानूनों का दुरूपयोग कर,


लुटेरी, लोभी, लालची भी है औरत।


केवल देवी ही नहीं,


मौत बांटती,


टुकड़े-टुकड़े कर


नीले ड्रमों में भर सीमेण्ट से पैक करती


 राक्षसी भी है औरत।


औरत की व्याख्या संभव नहीं,


सभी गुणों, विशेषताओं का वर्णन करने में,


लेखनी है असमर्थ,


क्योंकि संपूर्ण सृष्टि को 


समाए हुए है औरत।


सृजन का कोई भी रूप,


औरत का एकपक्षीय चित्रण करता है,


संपूर्ण चित्रण संभव ही नहीं,


पुरूष के साथ अपने आपको खोती


पुरूष से हो दूर


खुद से ही दूर जा रही है औरत। 


Saturday, May 17, 2025

कदम-कदम हैं, बिछी समस्या,

 

समाधान तुम खुद बन जाओ



मानवता जब भटक रही हो, आगे बढ़ कर पथ दिखलाओ।

कदम-कदम हैं, बिछी समस्या, समाधान तुम खुद बन जाओ।।

शिकायत कब तक करते रहोगे?

समर्थ हो, फिर तुम क्यों सहोगे?

कर्म करो और आगे बढ़ो खुद,

दूजों से तुम कब तक कहोगे?

तथ्यों का विश्लेषण करके, योजना बना, चलकर दिखलाओ।

कदम-कदम हैं, बिछी समस्या, समाधान तुम खुद बन जाओ।।

संसाधनों का प्रबंधन करके।

गतिविधियों का नियोजन करके।

संग-साथ में मिल काम करो,

पा लो लक्ष्य संतुलन करके।

संबन्ध सभी ही महत्वपूर्ण हैं, साथ सभी के तुम दिखलाओ।

कदम-कदम हैं, बिछी समस्या, समाधान तुम खुद बन जाओ।।

शिकायत नहीं किसी से करनी।

जिसकी करनी, उसकी भरनी।

प्रेम नाम पर, लूट मची यहाँ,

राह चले, ना मिलतीं परनी।

विश्वासघात से बचकर प्यारे, विश्वासपात्र बनकर दिखलाओ।

कदम-कदम हैं, बिछी समस्या, समाधान तुम खुद बन जाओ।।

शब्द, रूप, रस, गंध कामना।

कमनीय स्पर्श की करो न भावना।

कर्म के पथ पर खुद मिल जाते,

बधँना नहीं है, पाओ पावना।

कदम-कदम पर पथ हैं, पथिक हैं, अपने पथ पर चल दिखलाओ।

कदम-कदम हैं, बिछी समस्या, समाधान तुम खुद बन जाओ।।


Wednesday, May 14, 2025

समाधान

अनुत्तरित प्रश्न,

अनसुलझी समस्याएँ,

रिश्तों के रिसते घाव

जीने का बिखर गया चाब।


कदम-कदम बिछी बाधाएं,

शारीरिक-मानसिक व्याधाएँ,

विश्वास से निकलता घात

मिलने पर भी ना कोई बात।


सोशल मीडिया पर हजारों मित्र,

दिल में नहीं है कोई चित्र,

समाज को लगाई जिसने लात

लाइव आत्महत्या इसकी औकात।


शादी, बलात्कार, धर्म परिवर्तन,

सोशल मीडिया का कैसा नर्तन?

छिप जाता धर्म, छिप जाती जात

अन्तस भी घायल, घायल है गात।


समस्याएँ खुली हैं,

आंखें अश्रु धुली हैं,

मीडिया को हटा सीधे करें बात

समाधान निकलेगा, मिल खाओ भात।


Thursday, May 1, 2025

प्रेमी वह जो करता अर्पण

करते नहीं, प्रेम का दावा, प्रेम प्रदर्शन नहीं होता है।

प्रेमी वह जो करता अर्पण, प्रेम पात्र के हित जीता है।।

प्रेम नहीं है कोई सौदा।

प्रेम न चाहे कोई हौदा।

बदले की कोई चाह नहीं है,

हृदय गर्भ में उगता पौधा।

हानि-लाभ का गणित नहीं, नहीं रूलाता, खुद रोता है।

प्रेमी वह जो करता अर्पण, प्रेम पात्र के हित जीता है।।

अधिकारों की चाह नहीं है।

अपनी भी परवाह नहीं है।

तुमको खुशियाँ जहाँ हैं मिलती,

रोकेंगे हम राह नहीं है।

प्रेम नहीं प्रतिदान माँगता, बलिदानों को ही बोता है।

प्रेमी वह जो करता अर्पण, प्रेम पात्र के हित जीता है।।

चाहत नहीं थी, कुछ पाने की।

प्रतीक्षा नहीं की, तुमरे आने की।

हमसे दूर हैं तुम्हारी खुशियाँ,

वजह जहाँ हैं मुस्काने की।

जाओ, जहाँ तुम्हें खुशियाँ मिलतीं, आनंद सरोवर नित गोता है।

प्रेमी वह जो करता अर्पण, प्रेम पात्र के हित जीता है।।