Saturday, November 19, 2011

दिल में बसाया कीजिए

गुरु हमारे युग निर्माता
                      कवि- नसीब सिंह, कक्षा-१२ विग्यान वर्ग
                      जवाहर नवोदय विद्यालय,
                      खुंगा-कोठी, जींद(हरियाणा)
गुरु हमारे युग निर्माता, सच के  ग्याता.
दिल से कभी ना इनका आदर  घटाया कीजिए.


मात-पिता से भी है ऊंचा दर्जा इनका,
भूल से भी न इनका दिल दुखाया कीजिए.


पल-पल कदम-कदम पर जो बने तुम्हारा सहारा,
उनके उपकारों को कभी ना भुलाया कीजिए.


नही है कोई भी उत्तम-स्थल गुरु चरणों से,
हरदम अपना मस्तक चरणों में झुकाया कीजिए.


हैं उन्हें उम्मीदें, तुमसे भी कहीं ज्यादा,
मेहनत कर उन सपनों को, कुछ तो सवांरा कीजिए.


गुरु-शिष्य रिश्ता होता है पवित्र और कोमल,
इस प्यारे रिश्ते को ना, ठेस पहुंचाया कीजिए.


गर ठेस पहुंचे तुम्हारे कारण उन्हें जरा भी,
कोशिश कर, ऐसी गलती ना दुबारा कीजिए.


दिन-रात जो लगे रहते हैं राष्ट्र-सेवा में,
उनकी भी सेवा बारे, कुछ तो विचारा कीजिए.


छोटी सी जिन्दगी में मोके ना मिलेंगे बार-बार,
हो सके तो इनका कुछ आशीर्वाद कमाया कीजिए.


जिन्होंने अमृत-वचनों से, हमेसा तुम्हें सिखाया,
’नसीब’ ऐसी हस्तियों को, दिल में बसाया कीजिए.

Monday, November 14, 2011

कविता कहां? अब खो गई है।


कविता कहां? अब खो गई है।
                                     
कविता कहां? अब खो गई है।
बीज  शांति  के, बो गई है॥
               शांति  मृत्यु की, मानो छाया,
               जीवन-विहीन ही, चलती काया।
               खोया  प्रेम, ईर्ष्या   नहीं  है,
               सपने मरे, दिख़ती न माया।
बेचैनी कहां? क्यों सो गई है?
कविता कहां? अब खो गई है॥
               जीने की, अब नहीं है इच्छा,
               मौत की भी, नहीं  प्रतीक्षा ।
               चाहते हैं,  संयमी   जो,
               गले पड़ी आ, वह तितीक्षा।
नि:स्पंद बुद्धि भी रो गई है।
कविता कहां? अब खो गई है॥

टीचर
           
शिक्षक को दो ही मिलें, मजदूर को सात हज़ार,
टीचर नहीं फटीचर कहो ,टीचर बैठे बार
टीचर बैठे बार लक्षमी जी जाम पिलातीं
सरस्वती खड़ी हताश, बेचारी दुत्कारीं जातीं।


अधिकारी?
                 
अधिकारी ही है भ्रष्ट जहां, लघुकारी न जाने क्या होगा?
मर्यादा विहीन हो राम यदि , मुरारी न जाने क्या होगा?
नेता ही हों कामिनी दास , अन्जाम न जाने क्या होगा?
रक्षक ही बन बैठे भक्षक, परिणाम न जाने क्या होगा?

Friday, October 21, 2011

प्रेम के रंग से जीवन रंग कर, जीवन को रंगीला कर दो

सभी पाठकों, विचारकों व साहित्यकारों को
 दीप-मालिका की हार्दिक शुभकामनाएं
आशा है हम केवल अपने ही घर नहीं
वरन सभी के घर एक छोटा-सा दीप 
जलवाने का प्रयास करेंगे
तथा सभी योग्य बच्चों को
 विद्या का दीप प्रदान करने में सक्षम हो सकेंगे
 ताकि सभी को प्रकाश मिल सके.


जीवन को ज्योतिर्मय कर दो
                         
ज्योति आकर के जीवन में, जीवन को ज्योतिर्मय कर दो।
प्रेम के रंग से जीवन रंग कर, जीवन को रंगीला कर दो॥
आ जाओ हम सब मिलकर,
खुशियों के दीप जलाएंगे।
उर में अपने तुम्हें बिठाकर,
महफिल को महकाएंगे।

अंतर-घट अब रीत रहा है, तुम आकर आपूरित कर दो।
ज्योति आकर के जीवन में, जीवन को ज्योतिर्मय कर दो॥
सब मिलकर हैं नीड़ बनाते,
हम उपवन एक लगाएंगे।
तुम खुशियों के दीप जलाना,
हम रंगों से तुम्हें सजाएंगे।

बिखर रहे हैं भाव हमारे, तुम आकर गरिमामय कर दो।
ज्योति आकर के जीवन में, जीवन को ज्योतिर्मय कर दो॥
आतंक मिटा खेलें हम होली,
सद्भावना के दीप जलाएं।
प्रेम का घी, नेह की बाती,
आओ हम मिल दीप जलाएं।

जन-पूजा के थाल सजे हैं, चटख रंग आकर तुम भर दो।
ज्योति आकर के जीवन में, जीवन को ज्योतिर्मय कर दो॥

Tuesday, October 4, 2011

साहस शौर्य पराक्रम से, आतंक-मुक्त हम विश्व बनाएं


विजयादशमी पर्व मनाएं

साहस, शौर्य, पराक्रम से, आतंक-मुक्त हम विश्व बनाएं।
भ्रष्ट  तंत्र पर विजयी होकर, विजयादशमी पर्व मनाएं॥
                फूंक रहे हम केवल पुतला
                   जन-जन में रावण बैठा है।
                    अपहरण, हत्या, बलात्कार में,
                          पहचानों   राक्षस  बैठा है।
अंतर्मन की ज्योति जलाकर, नारी का सम्मान बढ़ाएं।
भ्रष्ट  तंत्र पर विजयी होकर, विजयादशमी पर्व मनाएं॥
                    शिक्षा में भी घपला  होता
                     मजबूरी में बचपन  खोता।
                           छात्र ही मानव-बम बन जाते,
                                  गुरू द्वारा देह शोषण होता।
भौतिक नहीं, आध्यात्म जगाकर, शिक्षकों का मान बढ़ाएं।
भ्रष्ट  तंत्र पर विजयी होकर, विजयादशमी पर्व मनाएं॥
                   कितने रावण? नहीं है गिनती
                       राष्ट्रप्रेमी   करता  है विनती।
                          लोकतंत्र में तंत्र हुआ  हावी,
                            सरकार नहीं चीत्कार है सुनती।
देश के हित में जीना सीखें, विश्व गुरू फिर से बन जाएं।
भ्रष्ट  तंत्र पर विजयी होकर, विजयादशमी पर्व मनाएं॥

Monday, October 3, 2011


जन-जन जीवन ज्योति जले

दीप-उत्सव  का दीप जले।
जन-जन जीवन ज्योति जले॥


आतंक पर सद्भावना विजयी
दुष्कृत्यों पर सुकृत्य हों जयी
पुतले और पटाखे छोड़
डाले हम परंपरा नयी
भ्रष्टाचार पर घात चले।
जन-जन जीवन ज्योति जले॥


अंतर्मन रसधार बहे
वाणी से भी प्यार बहे
व्यक्ति और परिवार तुष्ट हो
विश्व में शांति बयार बहे
संबंधों की बर्फ गले
जन-जन जीवन ज्योति जले॥


ज्योति आए, तम मिटे
ज्योति से, अंतर-तम मिटे
प्रेम ज्योति, उर घट भरे
जन-मन से जब अहम मिटे
जन-जन का जब श्रम फले
जन-जन जीवन ज्योति जले॥

Monday, September 5, 2011

गर होय जबरदस्ती कह दइयों बीबी भी ना चहिए


टी.वी. बनाम बीबी


गए थे लेने बीबी,साथ में मिल गई टीवी,
साथ में मिल गई टीवी,मनें बहुतेरी कीनी।


जबाब सास जी ने दीनों,छोरी कूं जरूरी टीवी,
मनें जब ना चल पायी,बीबी पीछे टीवी आगे आई।


सांच सब मानों भाई,टीवी और बीबी दोंनो,        
रविवार क्या पूरे सप्ताह,महाभारत कीनौ।


दोंनों करें लड़ाई तबीयत मेरी घबड़ानी,
मेरो सूखो कण्ठ बीबी ना देवे पानी।


कहै राष्ट्रप्रेमी समझाय,टीवी मत लइयो भइए
गर होय जबरदस्ती कह दइयों बीबी भी ना चहिए।

कौन कहेगा ये मानवता है?


मानवता


एक मानव 
गंदे और बदबूरार वस्त्रों में
अपनी अभागी रेंखाओं के हाथ पसारे
देख रहा कुदरत के नजारे                    
सूटेड-बूटेड मानव की ओर निहारे             
मानव ही मानव को दुत्कारे
पशुओं को दुलारे-पुचकारे
मानव को पग-पग फ़टकारे
स्वार्थी हो गया है प्यार
केवल पैसे वाले के पास है
केवल पैसे वाला पाता है
मानव समाज के इस क्रूर सत्य पर
हंसता हुआ आगे बढ़ जाता है
राष्ट्रप्रेमी पूछे यारों,
कौन कहेगा ये मानवता है?

Sunday, August 14, 2011

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें

स्व- तन्त्र का अर्थ समझ कर, 
अपना तन्त्र हम विकसित कर लें,
अन्ना जी का हाथ थाम कर, 
जन-लोकपाल हम निर्मित कर लें,
राजनैतिक आजाद भले ही, 
स्व-तन्त्र अभी भी नहीं हो पाये,
भ्रष्टाचार है दानव समझो, 
कानून बनाकर अब बस में कर लें.

आजादी की दूसरी लड़ाई, 
शुरू कर रहे अन्ना जी
स्वतंत्रता नहीं भेंट में मिलती, 
यही बताते अन्नाजी
स्वतंत्रता कमजोर पड़ रही, 
भ्रष्टाचारी हावी है,
स्वतंत्रता की रक्षा के हित, 
हम भी साथ है अन्नाजी.


Saturday, August 13, 2011

रक्षाबन्धन की शुभकामनाएं

बांधे हम रक्षा का बन्धन
भ्रष्टाचार से ना हो क्रन्दन
अन्नाजी को मिले सफ़लता
जनता के माथे पर चन्दन.

Tuesday, July 5, 2011

स्वतन्त्रता दिवस

 स्वतन्त्र का अर्थ


                                 
स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं पर स्वतंत्र का अर्थ नहीं जाना।
स्व-तंत्र को तो ध्वस्त करें नित, गाएं स्वतंत्रता का गाना।।


स्वतंत्र हुए स्वच्छंद नही, सबको पड़ेगा समझाना।
तोड़-फोड़ कर आग लगाते, लक्ष्य विकास का यूं पाना??
सार्वजनिक संपत्ति अपनी, समझ के घर ही ले जाना।
अधिकारों को झगड़ रहे नित, कर्तव्यो को ठुकराना।
कैसे होगा विकास साथियो! मार्ग तुम्हीं को दिखलाना।
स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं, पर स्वतंत्र का अर्थ नहीं जाना।।


कैसा तंत्र कैसी व्यवस्था? हमको हड़ताल पर है जाना!
हमारी सरकार, हमारी निगमें,बिना टिकिट हमको जाना।
स्वतंत्र देश के, स्वतंत्र नागरिक, बिना किए सब कुछ पाना।
विद्यालयों में विलास करेंगे,नकल से पास ही हो जाना।
कमीशन के बिन काम करें नहीं, भले ही हो चारा खाना।
स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं,पर स्वतंत्र का अर्थ नहीं जाना।।


आज स्वतंत्रता दिवस साथियो, संकल्प एक करना होगा।
तंत्र दुरूस्त करने की खातिर, जागरूक रहना होगा। 
भ्रष्टाचार करने वालों को, आखिर सबक सिखाना होगा  ।
हाथी के पावं में सबका पांव, सबको ही समझाना होगा।
सार्वजनिक हित में निजी स्वार्थ तज, गाएं स्वतंत्रता का गाना।
स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं, पर स्वतंत्र का अर्थ नहीं जाना।।

Saturday, May 21, 2011

स्वागत तेरा मौन !!!


स्वागत!
                 

स्वागत ! स्वागत ! स्वागत !
जो  भी  है यहां   आगत।
जीवन की    तू     सौत,
स्वागत     तेरा     मौत। 
बचपन से है हमें सिखाया,
दरवाजे पर जो भी आया
उसको हमने गले लगाया
तुझसे  डरता     कौन!
      स्वागत  तेरा मौन!
जीवन हमने बहुत जिया है,
सुधा मान के गरल पिया है।
जिस-जिस को हमने अपनाया,
नहीं किसी ने सुक्ख दिया है।
तू है दुल्हन तुझे सजा लूं,
अपने हिय में तुझे बिठा लूं।
मन अपना संगीत बजा लूं,
दूल्हा मुझसे अच्छा  कौन!
      स्वागत तेरा मौन!!
कुदरत से जो तन था पाया,
नहीं उसे वैसा रख   पाया।
नादानीं जो मैने  की थीं,
अंग-अंग है उसने  खाया।
पहन के आ दुल्हन का जोड़ा,
मैं  हूं दूल्हा चिता है  घोड़ा।
चलता हूं   अब थोड़ा-थोड़ा,
बने     बराती      कौन ?
      स्वागत तेरा मौन !!!


Thursday, May 19, 2011

सदैव वादी कहलायेगा


वादी 


हावी है हैवानियत
निरर्थक शब्द हैं लेखनी पर
पुत्र पिता को ताड़ना देता
विधर्मी धर्म की आड़ लेता
राष्ट्रभक्त राष्ट्रद्रोहियों से मात खा रहे हैं
बेटे ही मां का सिन्दूर चुरा रहे हैं
विचारों पर छाया है वाद                        
जातिवाद,सम्प्रदायवाद,
गान्धीवाद,आतंकवाद और
राष्ट्रवाद
सबको ही मानने वाले हैं वादी 
तन पर धारे हैं सुन्दर खादी 
राम के प्रति श्रद्धा नहीं किसी में
किन्तु फिर भी बेबसी में
मन्दिर बनाने,
न बनाने को चिन्तित हैं
इन्हीं से तो हम सब सिंचित हैं
यदि छोड़ दें हम वाद
कैसे बनेंगे वादी
पहन न पायें खादी
हो जायेगी हमारी बरबादी
राष्ट्रप्रेमी ठोकर न खायेगा
सदैव वादी कहलायेगा।
                                       

Saturday, May 7, 2011

अभी युद्ध विराम है केवल, समझो जीवन जीत नहीं है

हम परदेशी मीत नहीं हैं









हम परदेशी मीत नहीं हैं,
यह कविता है, गीत नहीं है ।


अभी युद्ध विराम है केवल,
समझो जीवन जीत नहीं है।।


संघर्ष सदैव ही करते आये,


तदनुकूल ही फल भी पाये।


हम सदैव ही चलते आये,


समझ यही तू मनु के जाये।


जीवन में सुन करूण पुकारें,
समझ इन्हें संगीत नहीं है।


अभी युद्ध विराम है केवल,
समझो जीवन जीत नहीं है।।


बचपन से हम कहीं न ठहरें,


लगा लिये लोगों ने पहरे।


चलना अपना काम रहा है,


पथ में आये गढ्ढे गहरे।


सबको ही सम्मान दिया है,
लेकिन करते प्रीत नहीं है।


अभी युद्ध विराम है केवल,
समझो जीवन जीत नहीं है।।


साथ हमारे तुम चल पाओ,


विपित्तयों में ना घबराओ।


साथ हमारे चल सकते हो,


कदम न पीछे जरा हटाओ।


संघर्ष किया है हमने अब तक,
पालन करते रीत नहीं है।


अभी युद्ध विराम है केवल,
समझो जीवन जीत नहीं है।।

नाना हो या नानी सबने पानी की माया जानी


पानी की माया
          

नाना हो या नानी सबने, 
पानी की माया जानी।
सबको भोजन देता पानी,
अफसर हो या बुढ़िया,रानी।
मिठाई न बने बिना पानी के,
घास उगे न बिना पानी के।
सबको पानी देता जीवन,
इसीलिए तो करते सेवन।।
एक लक्ष्य बतलाता पानी,
परमार्थ सिखलाता पानी।
कहे राष्ट्रप्रेमी कविराय, 
सबको भोजन देता पानी।
नाना हो या नानी सबने, 
पानी की माया जानी।।

Wednesday, April 13, 2011

फूल उठे फिर से फुलवारी

फूल उठे फिर से फुलवारी
                
बीत गई यह वर्ष हमारी,
नये संवत की करें तैयारी।
फूल उठे फिर से फुलवारी,
भरीं हों जिसमे खुशियां सारी।

नया संवत जब भी है आता,
खुशियां यह घर-घर में लाता।
सबके ही मन को यह भाता,
विक्रमादित्य की याद दिलाता।

गये वर्ष को देके विदाई,
गत संवत से होती जुदाई।
नव संवत पर बनें मिठाई,
हर बच्चे-बच्चे ने खाई।

नव-संवत है नया प्रभात,
फूल रहे सबके हैं गात।
नये संवत के नये उत्पात,
कौन किसे दे देगा मात।

शुभ हो सबको ही यह वर्ष,
चंहु ओर छाया है हर्ष।
बच्चों के मन में उत्कर्ष,
शुभ हो भारत को नव-वर्ष।

नव-संवत पर नयी उमंग,
छायी हैं सबके ही अंग।
सबके मन में उठी तंरग,
नव-संवत लाता है रंग।

नव संवत क्या नहीं है लाता,
कैसा है यह सबको भाता।
पिन्टू है कैसा इठलाता,
नये वर्ष  के गीत है गाता।

नया संवत है कैसा आया,
राष्ट्र हमारा है मुस्काया।
ऐसा है विश्वास दिलाया,
राष्ट्रप्रेमी मन में हर्षाया।

Sunday, March 20, 2011

परम-गुरू अध्यापक हो गये, नकल कराई होली में।


सबका चेहरा काला होग्या

सबका चेहरा काला होग्या
अबकी बार तो होली में,
भ्रष्टाचार के रंग है भाई
यहां जन-जन की झोली में।


भ्रष्टाचार की कैसी ललक है
जन-जन को इस होली में
किसानों के भी कर्ज माफ
हो जायं चुनाव की होली में।


राजाजी भी खूब ही खेले
कलमाड़ी भी होली में
हसन अली भी रंग में रंग गये
बचे न थामस होली में।


ब्यूरोक्रेट पर रंग चढ़ गया
भ्रष्टाचार का होली में
मजदूरों की पौ बारह हैं
मनरेगा की होली में।


सांसदों की भी निधि बढ़ गई
अबकी बार फिर होली में
भ्रष्टाचार का रंग है गहरा
सरकारी इस झोली में।


छात्रों पर भी रंग चढ़ गया
नकल की पावन होली में
परम-गुरू अध्यापक हो गये
नकल कराई होली में।

Saturday, March 19, 2011

जीवन के रंग- होली के संग

होली की शुभकामनाएं

समस्त मित्रो को होली की हार्दिक शुभकामनाएं.
होली के रंग- बिखेरे आपके जीवन में उमंग.
डा.सन्तोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
९९९६३८८१६९
होली- संबन्धो का प्रबन्धन
आओ कहानी पढ़ें

Wednesday, March 16, 2011

काम की तरंग अंग-अंग में समाई ऐ


     होरी कौए हुरदंग फरकत अंग-अंग



होरी कौए हुरदंग फरकत अंग-अंग,
होरी की उमंग अंग-अंग में समाई ऐ।
रंगन कौए घोर  नृत्य करत चहुं ओर,
नांचत हैं गोप एक गोपिका नचाई ऐ।
झूमि रहे अंग-अंग नचत हैं सिगु संग,
काम की तरंग अंग-अंग में समाई ऐ।
धाम,वाम और बाग  साथ-साथ मटकत,
होरी की हुरंग मोहि बरसाने लाई ऐ।।

चंहु ओर ऐ बसन्त रंगन कौ नाएं अन्तु
लाल, हरौ, बैंगनी, गुलाबी मन भायौ ऐ।
लायो इतनो सौ रंग जिहु सिगु डारि दियौ,
लला तू दिखाय हमें औरू कहा लायौ ऐ।
हमने तौ होरी कहि गारी सिगु गाइ दईं,
तू तौ बतराइ लला, तैंनै कहा गायो  ऐ।
नांचु नेकु देखि लऊं,नांचि लला ठाड़ो हे कैं,
तू तौ खूब नाचत हो, काहे शरमायो  ऐ।।

चोप करि केसर लगायो याने अंगन पै,
हेरि लायो ग्वाल-बाल,हुरियारो आयो ऐ।
हरौ,लाल,गुलाबी,अरूण,आसमानी रंगु,
लाल पोल लाल रंगु लाल ने लगायो ऐ।
होरी आइवे ते हिय नेह रस रंगि गयौ,
ग्वाल सिगु हरे रंगे रंगी ब्रज नारी ऐं।
राष्ट्रप्रेमी हियरा सरूप रस रंगि दयौ,
रंगि रहीं गैल-गैल,गैल रंगि डारी ऐं।।

होरी हंसावत होरी खिलावत,
होरी ही जरावत मानस कौ तम।
होरी भुलावत,गुन सिखलावत,
होरी मिलावत प्रेमिन को सम।
होरी ऐ नगर में,होरी ऐ मन में,
होरी से कांपत पापिन कौ मन।
होरी मारत, होरी बचावत,
नरसिंह नंचावत,नांचत हैं हम।।

होली के बहाने गुरूजी की तोड़ दी खाट


होली
                                        

                                       होली,
                                       परम्परा को मारे गोली,
                                       खूब करो हुल्लड़,
                                       गुरू के सिर पर,
                                       फोड़ दो कुल्लड़।


                                       गरिमा,
                                       गुरू-भक्ति,
                                       दहन कर दो होरी में
                                       अच्छा मौका है,
                                       आज,
                                       गुरूजी को,
                                       डाल दो मोरी में।


                                       कक्षा में पिलाते थे डॉट
                                       आधुनिक शिष्य,
                                       होली का बहाना,
                                       आज,
                                       गुरूजी की तोड़ दी खाट।

छात्राओं के साथ, कमर लचकाई


                 होली है भाई
                         

                              मास्टर जी ने,
                              होली 
                              कुछ इस तरह मनाई,
                              छात्रों को बुला,
                              स्नेह प्रदर्शन कर,
                              अश्लील गाने गाकर,
                              छात्राओं के साथ,
                              कमर लचकाई
                                      होली है भाई। 

होली में हुल्लड़ करो, हल्ला करो हजूर


गौपिन नै घेरि लिये हैं


होली में हुल्लड़ करो, हल्ला करो हजूर।
होली खेलन के लिए,भए आज मजबूर।।
भए आज मजबूर, गोपिन ने घेर लिए हैं।     
घेर-घेर कर आज तो रंगरेज बनाय दिए हैं।।
हर हालत में हरदेवी कूं आज हरी करि डारौ।
लाल रंग है लालवती को,लाल रंग है जापे डारौ।।
हरे रंग कौ हरण करि हरे रंग सूं रंगौ दुपट्टा।
राष्ट्रप्रेमी अब सम्भलि,गुलाबी गुलाबो पै मारै झपट्टा।।

होली की पावन वेला में, मित्रो तुम्हें मुबारक होली


होली कैसे मनावेंगे?

होली की पावन वेला में,
                 मित्रो तुम्हें मुबारक होली।
मिठाई गुलाल पास नहीं,
                 मित्रों मंहगी हो गई रोली।।
महंगी हो गई रोली ,                         
                 अब होली कैसे मनावेंगे।
घरवाली की सूची लेकर ,                      
                 बाजार कैसे जावेंगे।।
बाजार कैसे जावेंगे ,
            चालीस रूपये मांगे रिक्शे वाला।
पिछली बार की होली को तो,
                 ले गया था बच्चों को साला।।
ले गया था बच्चों को साला,
                 अब तो रोना आता है।
राष्ट्रप्रेमी अब तो रंग भी,
                 पचास रुपये तोला आता है।।

भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में


भारत देश है आज जल रहा 
              
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में,
अर्थी चली असंख्यों बाला, बैठ न पाईं डोली में।
लाखों ने अपनी कन्या की ,मांग सिन्दूर से भरने को,
दी जीवनाहुति असंख्यों अपनी शरम की बोली में।


जाके पैर न फटी बिबाई, वो क्या जाने पीर पराई,
जिन पर बीती वही जानते,मकान बेच कर करी सगाई।
गहने अपना जिस्म रख दिया,सिर्फ मांग की बोली में,
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।


फिर भी रूकी न अर्थी देखो,मानवता की भाषा में,
लड़के वाले दहेज मांगते और धनी की आशा में।
लड़कों की बिक्री होती है,बाजारों की बोली में,         
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।


कन्या नहीं दान की वस्तु, सम्पत्ति में पूरा हक है,
पैतृक सम्पत्ति की वारिस, शिक्षा पर पूरा हक है।
मालिक वह खुद ही होगी, दहेज न होगा रोली में 
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।


केवल विरोध से दहेज न मिटता, कुछ और हमें करना होगा,
शिक्षा और अधिकार जुटाकर, नारी को खुद बढ़ना होगा।
आर्थिक शक्ति पाये जब वह, कोई न डाले झोली में ।
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।


बेटी पाये विकास के अवसर,खुद ही आगे बढ़ लेगी,
पुरूष बने नहीं भाग्य विधाता, अपना पथ खुद गढ़ लेगी।
भ्रूण हत्या कर मिटाओ न उसको, वश लालच की खोली में
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।


अब तो समझो लड़के वालो,कन्याओं की शादी में,
नहीं बटाओ हाथ इस तरह, तुम ऐसी बबार्बादी में।
आग लगे,ऐसे दहेज को हैवानों की टोली में,
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।


तुमको भी दुख होगा, जब क्षण विपरीत का आयेगा,
या यह बेबश का पैसा, तुम्हें नरक ले जायेगा।
कटु सत्य है,बुरा न मानो,राष्ट्रप्रेमी की बोली में,
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।

सब कहते हैं होली-होली,किन्तु अभी होली झांकी है।


सब कहते हैं होली-होली
        

सब कहते हैं होली-होली,किन्तु अभी होली झांकी है।
जब तक हैं हिरण्यकश्यपु जीते,तब तक तो होली बाकी है।
जिसको मां का ध्यान नहीं, पुकार न सुनता जनता की।
जनता करूण क्रन्दन करती, आह निकलती जनता की।
भारत मां डायन कहने वालों की, संग है जब तक टोली।
सब कहते हैं होली-होली,किन्तु अभी होली झांकी है।


कुर्सी की खतिर तो यहां नित हो ती खातिरदारी है।
प्रधानमन्त्री पद पर करते, सब अपनी दावेदारी है।
क्या हुआ जनता ने, सत्ता दल का कर दीना निपटारा।
जो लोग सत्ता में आये, उनका भी है वही पिटारा।
नहीं गारण्टी अब न मिलेगी जनता को खूनी रोली।
सब कहते हैं होली-होली,किन्तु अभी होली झांकी है।


जब न रहेगा कोई ईसाई,नहीं रहेगा मुस्लिम भाई।
हम सबकी राष्ट्रीयता ही, अब  एक हमारी माई।     
पड़ने न देंगे फूट आपस में , बढ़ने न देंगे खाई।     
बहुसंख्यक,अल्पसंख्यक ना कोई,सब हिन्दुस्तानी भाई।
राष्ट्रीय स्वाभिमान पर मिल मनायें सब होली।
सब कहते हैं होली-होली,किन्तु अभी होली झांकी है।


जनता जग रही है भारत की अब प्रहलाद बन जायेगी।
अब राक्षसी चाल एक भी ,नहीं काम कर पायेगी।
राष्ट्र और संस्कृति विरोधी मिट्टी में मिल जायेंगे।
होगा अम्बर अरूण लाल ,तब देव भी होली गायेंगे।
रामराज्य की आवश्यकता,जनता की निकली टोली।
सब कहते हैं होली-होली,किन्तु अभी होली झांकी है।


भारत मां के सपूत जगेंगे,सच्ची मानवता लायेंगे।
झूंठी शान और शोकत को ,भारत से दूर भगायेंगे।
उपलब्ध साधन और श्रम से ही भारत को चमकायेंगे।
राणा,शिवा आदर्श हमारे,राष्ट्र की खातिर मिट जायेंगे।
राष्ट्रप्रेमी लक्ष्य प्राप्ति हित, लगायें भू-रज रोली।
सब कहते हैं होली-होली,किन्तु अभी होली झांकी है।

Tuesday, March 15, 2011

नारी का कविता ब्लॉग: सोच रहा हैं अरुणा शानबाग का बिस्तर

नारी का कविता ब्लॉग: सोच रहा हैं अरुणा शानबाग का बिस्तर

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वाइफ नहीं, धर्मपत्नी खोजता हूं।


खोज

भवन तो बहुत हैं , गृह खोजता हूं। 
सितारे  बहुत हैं, चांद खोजता हूं।
नर नारी हैं, इंसान खोजता हूं।
कहने को तो सब अपने है,
परचित जहां  में, अपनत्व खोजता हूं।
राम का मुखोटा लगाये, घूम रहे है रावण,
सीता के हरण के बाद भी, 
मुखोटा हटाने को आये , जटायू खोजता हूं।
राम आयें न आयें, विभीषण खोजता हूं।
शासक बहुत हैं, सेवक खोजता हूं।
जंगलों में मंगल की बात है पुरानी,
नगरों में मंगल, मैं खोजता हूं।
अरण्यों में शान्ति तो मिटती जा रही,
वातानुकूलित कक्षों में , शान्ति खोजता हूं।
प्रतिभा,चतुरता व कुशलता सभी,
हैं कायरता द्वारा रक्षित ,
मिले कहीं निडरता,उसे खोजता हूं।
मम्मी मिलीं हैं , मैया खोजता हूं।
वाइफ नहीं, धर्मपत्नी खोजता हूं।
              प्रेमिका नहीं गृहलक्ष्मी खोजता हूं। 
वोटों की खातिर नेता, आते रहते हैं अक्सर,
मैं तो आज फिर से, बापू को खोजता हूं।
मेरी खोज में, सहायक हो ऐसा,
            अपने लिए, एक साथी खोजता हूं। 

जब भी तू आयेगी, स्वागत करुंगा मैं


चाहत
           

जानता हूं मैं, चाहत नहीं हूं तेरी।
कह नहीं सकता,चाहत है तू मेरी।।


चाहत तो चक्कर है,समझ कौन इसको पाया?
जिसने भी, जिसको चाहा,उसने उसको ठुकराया।
ठोंकरें भी लेकिन,सुनो, बुरी नहीं मानी गईं,
जितना जो ठुकराया, उतना ज्ञान उसने पाया।


तू भी मुझको ठुकराले,बुरा नहीं मानूंगा।
प्यार मिले तुझको , मैं रार नहीं ठानूंगा।
चाहत  हो तेरी  जहां, जहां तू खुश रहे,
मैं तो तेरी खुशियों में, अपनी खुशी पा लूंगा।


तेरी चाहत तुझे मिले, दुआ यही करुंगा मैं।
पुष्प मिलें, तुझको, कांटों पै चलूंगा  मैं।
चाहत नहीं है मेरी, इसके सिवा और कुछ,
जब भी तू आयेगी, स्वागत करुंगा मैं।


Monday, March 14, 2011

सरस्वती का चीर-हरण कर, मन्दिर उसका बनवाते हो.


षड्यन्त्रो   के  घेरे   में  घिर

षड्यन्त्रो   के  घेरे   में  घिर,  कैसे, मौन रहा जा सकता ?
संघर्ष किया है हमने हर पल,कैसे आज सहा जा सकता?
खुश हो लो तुम यही समझकर, अभिव्यक्ति को दबा चुके हो.
शालीनता के आवरणों से, सत्य को नहीं ढका जा सकता ?


लोकतन्त्र के गाने गाकर लोकतन्त्र को दफनाते हो.
बातें तो सुन्दर करते हो, जातिवाद को पनपाते हो.
कहते कुछ और करते कुछ हो, सबको ही है मूरख समझा,
जन को इधर-उधर उलझाकर, भ्रष्टाचार को अपनाते हो.




अभिव्यक्ति को दबा के प्यारे, कैसे चैन से रह पाओगे?
निजी स्वार्थ हित भ्रष्ट हुए, फिर कैसे जन को अपनाओगे?
भ्रष्टाचार को गले लगाकर, संस्था का हित किसने साधा?
चापलूसों के घेरे में घिर, क्या सुधार तुम कर पाओगे ?

परीक्षाओं में नकल कराकर, परिणाम दिखाकर इठलाते हो.
सरस्वती का चीर-हरण कर, मन्दिर उसका बनवाते हो.
शत-प्रतिशत हो रजेल्ट भले ही, देश को क्या तुम दे पाओगे?
छात्रों को जब समझ आयेगी, उनसे बस गाली पाओगे.

Sunday, March 13, 2011

नव वसन्त तब ही महकेगा.

नव वसन्त
                            

बच्चे हैं  भारत  का गौरव
कितना भरा है इनमें शौरभ
मन्द-मन्द ये करते कलरव
कल को  बन जायेंगे पौरव.


ये हैं भारत भाग्य विधाता
भेदभाव इनको ना आता
इतने बच्चे एक अहाता
एक गान हर बच्चा गाता.


पढ़े  न कोई  भारत दर्शन
बच्चों के ही कर ले दर्शन
इनमें छुपे सुभाष और वर्मन
इनमें  ही  हैं गान्धी सरवन.


जहां-जहां है इनका पहरा
स्नेह मिलेगा वहीं पै गहरा
चांद भी देखन को है ठहरा
चरण-स्पर्श को सागर लहरा.


 कैसे  हम  नव-वसन्त मनाएं
जब बच्चे भूखे सो जाएं
कागज  बीने रोटी खाएं
फुटपाथों पर रात बिताएं.


आओ इनको गले लगाकर 
इनके कष्टों को अपनाकर
सबको ही शिक्षा दिलवाकर
इन्हें बनायें हम रत्नाकर.


घर-घर स्वत: रंग बिखरेगा
भारत  सोता हुआ जगेगा
अन्धकार  भी दूर  भगेगा
नव वसन्त तब ही महकेगा.

राष्ट्रप्रेमी हस्ती भी तेरी नहीं


समर्पण
              
यह तन न था तेरा कभी
यह मन न था तेरा कभी
नहीं यह पन्थ भी तेरा नहीं
कर दें समर्पण राष्ट्र को।
    न  यह  मेरा  प्राण  है
     इसका न मुझको त्राण है
      नहीं यह बुद्धि भी तेरी नहीं
     कर दे समर्पण  राष्ट्र को।
जो कुछ मिले जो कुछ फले          
जो भेंट में तुझको मिले             
नहीं यह वेश भी तेरा नहीं
कर दे समर्पण राष्ट्र को।
                 न  यह  तेरा  है  परिवार
                      न यह बंगला न यह कार
                  नहीं यह बहार भी तेरी नहीं
                कर  दे समर्पण राष्ट्र को।
जितना भी है वैभव तेरा 
बना ले कितने तम्बू डेरा
राष्ट्रप्रेमी हस्ती भी तेरी नहीं
कर दे समर्पण राष्ट्र को।

Friday, March 11, 2011

वह दीप जलता हृदय किसका ?


वह दीप
              
वह दीप
 जलता हृदय
 किसका ?
              विरह विदग्ध
              नायिका का
              या मारा गया
             जिसका पति है
           आतंकवादियों द्वारा।
  
  वह दीप         
          प्रसन्नता या क्षोभ
    किसका ?
           विलासी आत्मा का
              या पेट के लिए जूझती
            रात को भी अविरल
           काम करती परम आत्मा का।


  वह दीप
    किसका ?
          बच्चे के जन्म पर
          मनाई जाने वाली
     दीवाली का
                   या आतंकवादियों के शिकार 
            बच्चे के मातम का।

Thursday, March 10, 2011

बचपन का कवि ----------दो-पद


            चौरी संग बरजोरी


जमुना कैसे जाऊं री।
कुञ्ज गली या वृन्दावन की राह कैसे मैं पाऊं री।
श्री दामा और मनसुख, मेरी हंसी उड़ावें री।
झट से झटके मोरी बैंया तनिक दया नहीं लावें री।
कंकड़ मारें फट जाय चोली मोरी एक न माने री।
चौरी संग बरजोरी, श्याम बिन पल भी चैन न पाऊं री।        
राष्ट्रप्रेमी दरशन की तड़पन, कैसे तुझको समझाऊं री।।

मैं तो करूं वृन्दावन वास।
वृन्दा सखी को धाम करे सबकी ही पूरी आस।
रमण बिहारी रमण करत हैं और करत हैं रास।
यमुना तेरे चीर हरण पर मेरो बने निवास।
वृन्दावन की मधुर कल्पना,राधा के दरसन की आस।
राष्ट्रप्रेमी  दरसन कौ भूखौ,यमुना जल से बुझेगी प्यास।।
                       

Sunday, March 6, 2011

नकल के गुर सिखलाओ


मैरिट
         डॉ.सन्तोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

प्रधानाध्यापक ने ,
अध्यापक को बुलाया
फरमाया,
हमारा विद्यालय,
लाखों में एक है,
नगर की जनता की,
यही एक टेक है।
इस बार,
प्रान्त में,
कीर्ति ध्वजा फहरानी है,
सबसे अधिक मैरिटें लानी हैं।

बच्चों को सातवीं में,
आठवीं का,
नवीं में दसवीं का,
पाठयक्रम पढ़ाओ,
नकल के गुर सिखलाओ,
तभी वेतन-वृद्धि पाओ,
अन्यथा
गेट से बाहर हो जाओ।

Saturday, March 5, 2011

भावनाएं प्रज्वलित कर चन्दा उगाहना


धर्म
        

मन्दिर,
मस्जिद व चर्च का
नाम लेकर,
भावनाएं प्रज्वलित कर
चन्दा उगाहना 
ए.सी. लगवाना
कंचन व कामिनी के साथ
भगवा हो जाना
दंगे कराना
वोटों का व्यापार कर
मन्त्री बन जाना।

Friday, March 4, 2011

राहत के नाम पर कमीशन खाया है


ठूंठ
                                           
सूखे के बाद
आई बरसात
जन-मन-गण के खिले गात
सूखे विटपों पर
आए हरे पात
तू बता
क्यूं अब तक ठूंठ?
बोलना मत झूंठ
मौन!
 अच्छा, समझा,                                 
तू है,आदमजात
बहुत कुछ छुपाया है,
राहत के नाम पर कमीशन खाया है
किन्तु, बन्धु
अब तो, समय चुनाव का आया है।





Sunday, February 27, 2011

बीजरूप में


बीजरूप में
     


आंखों में नहीं रहे,
आंसू।
संन्यासी के पास नहीं हैं 
वैराग्य। 


मां के पास नहीं है
वात्सल्य।
नारी के पास नहीं है,
नारीत्व।


मर्द की जुबान का नहीं है, 
कोई अर्थ।
राज्य के पास भी नहीं है, 
धर्म।


न्यायालयों में नहीं है,
न्याय।
शिक्षालयों में नहीं है,
शिक्षा ।


अधिकारी के नहीं हैं,
कर्तव्य।
किसी को पता नहीं है,
अपना गन्तव्य।


फिर भी तेरा मन्तव्य?
सत्य का प्रकाश
ज्ञान की ज्योति
भ्रातृत्व का भाव
ईमानदारी का गुण
जन-जन में फैलाने का?
फिलहाल बचाये रख,
अपने पास
बीजरूप में
यही बहुत बड़ी उपलब्धि होगी
झंझा के थमने पर 
तेरे द्वारा बचाये गये बीज से
तेरे द्वारा बचायी गई
 लघु ज्योति से ही
मानवता की बेल
फलेगी-फूलेगी,लहलहायेगी
लघु ज्योति से ज्यातिर्मय होकर
दुनिया  को प्रकाशित  कर देगी।