मानवता
एक मानव
गंदे और बदबूरार वस्त्रों में
अपनी अभागी रेंखाओं के हाथ पसारे
देख रहा कुदरत के नजारे
सूटेड-बूटेड मानव की ओर निहारे
मानव ही मानव को दुत्कारे
पशुओं को दुलारे-पुचकारे
मानव को पग-पग फ़टकारे
स्वार्थी हो गया है प्यार
केवल पैसे वाले के पास है
केवल पैसे वाला पाता है
मानव समाज के इस क्रूर सत्य पर
हंसता हुआ आगे बढ़ जाता है
राष्ट्रप्रेमी पूछे यारों,
कौन कहेगा ये मानवता है?
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