नए साल में नई सोच का ही मात्र प्रसार हुआ,
भूल पुरानी बातों को खुशियों का संसार हुआ ,
नई तरंगे, नई उमंगे जीवन का आधार बनीं ,
हर तरफ सुहाने मौसम का सिर्फ आसार हुआ ।
चकाचैंध की बनी चैकटी सबके घर आँगन में ,
मस्त होकर झूम रहे हैं लोग जीवन के सावन में,
हँसी वसुन्धरा भारत की जब खिले फूल उपवन में ,
हर द्वार पै खुशी मना लो चारों ओर प्रचार हुआ ।
किरण सुनहली सूरज की, जहाँ पहली बार पड़ी ,
चमक उठी होठों की लाली रम्भा जिसके द्वार खड़ी ,
मंद हँसी बाँकी चितवन में प्यार का एहसास हुआ ,
बाल मन सुरभित होता है ,उनके लिए उपकार हुआ।
हिन्दी, हिन्दुस्तान का नारा जिसमें गूँजा सदियों से ,
वो ही असली भारत वासी भरत बना है सदियों से ,
लहराता है जिसका झण्डा आसमान में खुशियाँ लेकर,
खिला उठा है चेहरा सबका ‘आनन्द’ को एतबार हुआ।
दिनांक- 28.12.2012 ग़ज़लकार-
आर. पी. आनन्द (एम. जे.)
जवाहर नवोदय विद्यालय पचपहाड़,
जिला- झालावाड़, राजस्थान ।