Tuesday, August 29, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-२१"

खैर! जैसे तैसे मनोज को उस विवाह स्थल से निकलने का अवसर मिला। मनोज के बार-बार मना करने के बाबजूद माया ने व्यक्तिगत सामान के नाम पर भी कुछ वस्तुएँ गाड़ी में रखवा लीं। मनोज का विचार था कि कुछ नहीं का मतलब कुछ नहीं, माया जहाँ जा रही है; उसे वहीं के अनुसार वहाँ उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग करते हुए ही रहना चाहिए। मनोज ने तय कर लिया था कि वह माया के द्वारा ले जायी जा रही किसी भी वस्तु को प्रयोग नहीं करेगा और न ही अपने बेटे या परिवार के किसी अन्य सदस्य को करने देगा। विदाई के समय भी शगुन के नाम पर कुछ महिलाओं ने मनोज के हाथ में भीख की तरह कुछ रूपये पकड़ा दिये मनोज वहाँ से बिना किसी विवाद के निकलना चाहता था। अतः विवाद से बचने के लिए वे रूपये हाथ में पकड़ तो लिए किंतु जेब में नहीं रखे और गाड़ी में बैठते ही गाड़ी के ड्राईवर के हाथ में पकड़ा दिए। वह तो माया के द्वारा पहनायी गयी अँगूठी को भी ड्राईवर को देने वाला था किंतु उसे माया ने मनोज के हाथ से छीनकर अपने पास रख लिया। माया के द्वारा इस प्रकार सामान का लाना मनोज को मानसिक रूप से माया से दूर कर चुका था।
मनोज जब अपने आवास पर पँहुचा, उसके पड़ोसा माया को आँख फाड़-फाड़कर देख रहे थे। वस्तुतः वहाँ किसी को यह जानकारी थी ही नहीं कि मनोज शादी करने गया है। जब मनोज की पड़ोसी महिला ने मनोज को पूछा कि यह औरत कौन है? मनोज के उत्तर कि वह उसकी पत्नी है। पर विश्वास करने को तैयार नहीं थी।
मनोज को अपने क्वाटर पर पहुँचने के बाद शायं को पता चला कि माया अपने मोबाइल को लेकर नहीं आयी है। जबकि मोबाइल वार्तालाप के दौरान मनोज ने माया को स्पष्ट कर दिया था कि वह अपने मोबाइल को लायेगी और अपने पुराने नम्बर को प्रयोग करती रहेगी। मोबाइल को इस प्रकार छोड़कर आना, माया को संदेहास्पद बना रहा था। इसका सीधा-सीधा अर्थ यह था कि माया के कुछ ऐसे व्यक्तियों के साथ संबन्ध हैं, जिन्हें माया छुपाना चाहती है। मनोज का सीधा-सादा जीवन था। वह न तो किसी से कुछ छुपाता था और न ही ऐसी पत्नी की कल्पना कर सकता था जो उससे कुछ छुपाये। मनोज के मन में पक्का बैठ गया कि कुछ न कुछ गड़बड़ अवश्य है अन्यथा उसके कहने के बाबजूद माया अपना मोबाइल छोड़कर नहीं आती। ऐसा भी नहीं था कि गलती से अपना मोबाइल भूल आयी हो। वह अपने मोबाइल को योजना के अनुसार बन्द करके रखकर आयी थी। यही नहीं एक-दो दिन में ही माया ने मनोज के मोबाइल से भी अपने सारे सन्देश मिटा दिये, जिनसे माया की बचनबद्धता प्रकट होती थी। इससे मनोज को स्पष्ट हो गया कि वह बहुत बड़े संकट में फँस चुका है। उसे चिंता होने लगी कि यह औरत कहीं उसके बेटे के प्राणों के लिए संकट न बन जाय।

Thursday, August 24, 2017

दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-२०

ऐसे तथाकथित प्रेम प्रदर्शकों के तर्क बड़ अजीब ही होते हैं। यदि आप चाय नहीं पीते तो वे कहेंगे। अरे भाई! प्रेम में तो लोग जहर भी पी लेते हैं, आप हमारे कहने से चाय भी नहीं पी सकते? बड़ा अजीब और बोझ तले दबा देने वाला भारी तर्क है। वे यह भी कह सकते हैं कि अरे हमारे लिए एक दिन ही पी लीजिए। एक दिन से क्या फर्क पड़ता है? अब एक दिन से कोई फर्क नहीं पड़ता तो वे सामने वाले की इच्छा के विरूद्ध क्यों अपनी मनमर्जी उसके ऊपर थोपने का प्रयत्न करते हैं? अब यह उन तर्कजीवियों को कौन समझाये कि कोई प्रेम में आकर जहर क्यों पिलायेगा? यदि हम किसी को प्रेम करते हैं तो उसकी इच्छा व उसके हित को ध्यान में रखेंगे कि नहीं। उसकी इच्छा के अनुरूप उसके स्वास्थ्य के हित जो है, उसी वस्तु या पदार्थ को खिलाकर अपना प्रेम प्रदर्शन करें तो उनकी क्या हानि है? जिसे हम प्रेम करते हैं, उसको प्रसन्न रखकर, उसके चेहरे पर मुस्कान देखकर हमारी प्रसन्नता भी बढ़ेगी। जहर खिलाने वाला कैसा प्रेम? अब यही तर्क लोग शराब पिलाने के लिए भी दे सकते हैं। माँसाहार के लिए भी दे सकते हैं। इस बनाबटी प्रेम प्रदर्शकों से भगवान बचाये। मनोज को माया के माया जाल की शादी के उस नाटक में ऐसे लोग बहुतायत में दिखायी दे रहे थे। विशेष कर महिलाएँ नाटकीय प्रेम प्रदर्शन में सिद्धहस्त थी। मनोज को उन बनाबटी प्रेम प्रदर्शकों से पीछा छुड़ाने में पसीना आ गया। वहाँ खाना-पीना तो दूर की कोड़ी थी। मनोज तनाव का शिकार हो रहा था। वह केवल इस प्रयास में था कि इस घुटन भरे माहोल से किस प्रकार निकला जाय?
मनोज को उस समय बड़ा ही अजीब लगा जब जोर देकर उसे खाना खाने के लिए एक हाॅल में ले जाया गया। वहाँ कोई खाना नहीं खा रहा था। अधिकांशतः महिलाएं बैठी हुई थीं। वहाँ थाली में खाना लाया गया और माया अपने हाथों से मनोज को खाना खिलाने लगी, क्या नाटक था? जो औरत धोखा देकर पति के नाम पर किसी पुरूष को फँसाने का प्रयास कर रही हो; वही ऐसा नाटक कर सकती है। मनोज उस माहोल में खाना तो क्या रहना भी पसन्द नहीं कर रहा था। वह जितना जल्दी संभव हो सके, वहाँ से निकल जाना चाहता था। माया के हाथ से उसे एक या दो ग्रास लेने ही पड़े। कभी-कभी मनुष्य को अपनी इच्छा के विरूद्ध भी बहुत कुछ करना पड़ जाता है। ऐसा मनोज के साथ भी हुआ। उसने मन मारकर भी माया के हाथ से कुछ ग्रास खा ही लिए और उठ खड़ा हुआ। बार-बार आग्रह के बाबजूद उसे वहाँ खाना खाना रास नहीं आ रहा था। अच्छा ही हुआ, वे दो ग्रास इतने महँगे होंगे; उस समय मनोज नहीं जानता था। किंतु कुछ दुर्घटनाएं ऐसी होती हैं, जिन्हें जीवन भर भुलाना संभव नहीं होता है, मनोज के लिए माया के शादी के षड्यन्त्र में फँसना भी ऐसी ही दुर्घटना थी। जिसका आभास उसे पहले दिन से ही था। मनोज को अपने आप पर हँसी आती है। मनुष्य भी अजीब प्राणी है। उसे आभास हो जाय कि उसकी मृत्यु निकट है, उसके बाबजूद वह अधिक से अधिक जीने के प्रयत्न करता है। मनोज को प्रत्येक कदम पर माया के झूठ का आभास हो रहा था। उसके बाबजूद वह उसकी बात को सच मानकर उसके मायाजाल में फँसता चला गया।

Tuesday, August 15, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१९"

आर्य समाज मन्दिर में पहुँचने के बाद ही मनोज की यह आशंका बलवती होने लगी कि मनोज से शायद गलती हो गयी है। मनोज ने जैसी कल्पना की थी, वे लोग वैसे नहीें थे। मनोज सादा व बिना भीड़ वाली शादी चाहता था। माया वहाँ की न होते हुए भी पचास से अधिक लोग तो रहे ही होंगे। वहाँ के माहोल में ही बनाबटीपन की बू आ रही थी। शालीनता, साधारण व सच्चाई से कोसों दूर का वातावरण लग रहा था। मनोज को वहाँ घुटन का अनुभव हो रहा था। माया से बार-बार मना करने पर भी वह प्रदर्शन की इच्छा से काफी सामान इकट्ठा कर रखा था। मनोज का उसे देखकर ही सर चकरा गया। मनोज ने माया को चेतावनी भी दे दी कि जिस प्रकार से तुम कर रही हो। मेरे साथ सुखी नहीं रह पाओगी। चेतावनी देने के बाद मनोज ने कुछ भी साथ ले आने से साफ इंकार कर दिया। माया मनोज के लिए शादी के समय पहनने के लिए कुछ कपड़े भी लाई थी। उसने कहा तो यह था कि ये आपकी तरफ से खरीदे हैं। आप इनके रूपये दे देना किंतु वहाँ के माहोल को देखकर मनोज ने उनको पहनने से साफ इंकार कर दिया।
मनोज ने आर्य समाज मंदिर में शादी करना इसलिए स्वीकार किया था कि वहा साधारण व सादगी से शादी होगी। लेकिन वहाँ भी माया व उसके तथाकथित अपने लोगों ने पूरा नाटक कर रखा था। मनोज ने दुःखी मन से जैसे-तैसे वहाँ के रीति-रिवाजों में भाग लिया। आर्य समाज मंदिर में नाम पते के प्रमाणों के साथ प्रत्येक पक्ष से दो-दो गवाहों के आवासीय प्रमाण पत्र जमा कराये गये। मनोज के साथ कोई था ही नहीं। अतः माया की तरफ के दो व्यक्तियों ने ही मनोज के पक्ष के गवाह बनकर हस्ताक्षर किए। वरमाला का आयोजन था किंतु वरमाला थी ही नहीं। माया के पक्ष के लोगों का कहना था कि यह तो आर्य समाज वालों को व्यवस्था करनी थी। आर्य समाज वालों का कहना था कि यह उनके कार्यक्रम का भाग नहीं है। आनन-फानन में मालाएं मगवाई गयीं। कन्या दान का नाटक हुआ। कन्या दान का सारा फण्डा ही मनोज की समझ से बाहर था। कन्या दान की वस्तु है वह कभी स्वीकार ही नहीं कर पाया। और फिर कन्यादान के नाम पर कुछ रूपये भीख की तरह देना। मनोज को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था किंतु वहाँ किसी बखेड़े से बचने के लिए वह चुपचाप तमाशबीन बना रहा। अन्त में कन्यादान से प्राप्त रूपयों को आर्य समाज को दान करके पीछा छुड़ाया। चाय पीने के लिए जोर दिया जा रहा था। पता नहीं क्यों लोग व्यक्ति की इच्छा व आवश्यकता के विरूद्ध खिलाने पिलाने का आग्रह करके अपने बनावटी प्रेम का प्रदर्शन क्यों करते हैं?

Sunday, August 13, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१८"



कार द्वारा लगभग तीन घण्टे की यात्रा करके मनोज गाजियाबाद पहुँचा था। मनोज अपने दैनिक प्रयोग में आने वाले कपड़े पहने हुए था और कुछ भी नहीं लेकर गया था। हाँ! उसने माया से स्पष्ट कह दिया था कि उसे आभूषण बगैरहा बनवाने में कोई रूचि नहीं है और न ही वह कुछ लेकर आ रहा है। शकुन के तौर पर जो अनिवार्य हो वह माया को स्वयं ही खरीदना होगा। मनोज उसके लिए आवश्यक रूपये पहले ही माया के पास भेजना चाहता था किंतु माया ने कह दिया था कि वहाँ पहुँचने पर ही वह उसके साथ जाकर दुकार से मंगलसूत्र खरीद लेगी। मनोज को कुछ भी मालुम न था कि गाजियाबाद में कौन से आर्य समाज मन्दिर में शादी की व्यवस्था की गयी है। अतः गाजियाबाद पहुँचने पर माया को फोन मिलाया। माया अपने रिश्ते के भाई को लेकर मनोज के पास पहुँची। माया और मनोज को एक स्थान पर मिलने में ही काफी देर हो गयी। माया ने मोबाइल पर जो लोकेशन बताई, मनोज को ड्राईवर बड़ी मुश्किल से वहाँ पहुँच पाया। उसके बाद पूर्व व्यवस्था के अनुसार मनोज ने माया के सामने बाजार चलने का प्रस्ताव रखा। माया ने पहले से ही तय कर रखा था कि किस दुकान पर जाना है। दुकान पर जाने से पूर्व मनोज को रूपये भी निकालने थे। आधुनिक तकनीकी के दौर में मनोज को रूपये लेकर चलना उचित नहीं लगता था। अतः पहले एटीएम की खोज हुई कई एटीएम देखने के बाद रूपये निकल सके। रूपये निकलते-निकलते काफी देर हो चुकी थी। इधर आर्य समाज मन्दिर से माया के चचेरे भाई के पास फोन भी आने लगे थे। उधर एक शपथ पत्र व फोटो भी बनने थे। इस प्रकार भाग दौड़ कर जल्द बाजी में माया ने अपने लिए मंगलसूत्र व एक जोड़ी पायल खरीदीं। इस प्रकार सभी औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद मनोज माया के साथ आर्य समाज मन्दिर में पहुँचा।

Saturday, August 12, 2017

थकना नहीं,रुकना नहीं

समस्याए अनेक है और 
ईरादा सिर्फ एक कि 

थकना नहीं,रुकना नहीं l
रोकेंगी ये तुम्हे पहाड़ बनकर,
खड़े रहना तुम भी निडर तनकर,
तपस्या है जीवन की कठिन पर,
तुम थकना नहीं,रुकना नहींl
कभी कुछ छूटने का दुख होगा,
गहन अंधेरे में तुम्हारा मुख होगा,
वीरान होगा समय,घमाशान होगा, पर
तुम थकना नहीं,तुम रुकना नहीं l
जीवन हर कदम पर परखेगा ,
थोड़ा-थोड़ा,तेज-तेज सरकेगा,
एक कहानी होगी,बड़ी हैरानी होगी,
तुम थकना नहीं और रुकना नहीं l
भोग-विलास व्यभिचार का सांप डसने को होगा,
परिस्थितिवश पांव इसमें फसने को होगा,
घुटन भी होगी,बेचैनी भी होगी,मगर 
तुम थकना नहीं,रुकना नहीं l
बूढ़ापे में बचपन एक ख्वाब होगा,
तेरे कर्मों का भी हिसाब होगा ,
मृत्यु भी होगी,मुक्ति भी होगी,
तुम थकना नहीं,तुम रुकना नहीं l



कवि-दीपक मेहरा

Friday, August 11, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१७"

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१७"


माया व उसके भाई के मायाजाल में फंसकर मनोज ने शादी के लिए सहमति तो दे दी थी, किंतु घटनाचक्र ने उसके उत्साह को समाप्त कर दिया था। मनोज ने माया को स्पष्ट कर दिया था कि उसने अपने किसी भी सगे-सम्बन्धी की शादी में भाग नहीं लिया है। यहाँ तक कि वह अपने सगे भाइयों और बहनों की शादी में भी नहीं गया। इस कारण उसके साथ भी किसी के आने की संभावना नहीं थी, यह बात उसने माया को स्पष्ट रूप से बता दी थी। उसके बाबजूद माया बार-बार प्रयास करती रही कि मनोज के घर वाले शादी में सम्मिलित हों। प्रारंभ में मनोज को भी लगा था कि घर से कोई सम्मिलित होगा तो ठीक होगा। उसने इसके लिए अपनी बहन से बात भी की थी। किंतु बाद में माया की बातों से ही मनोज को अजीब सा महसूस होने लगा। मनोज को लगने लगा कि किसी का भी जाना, उचित नहीं होगा। अतः उसने स्वयं ही अपनी बहिन से इंकार कर दिया था। मनोज अजीब सी स्थिति में फंस गया था। शादी से पूर्व ही उसे अजीब सा लगने लगा था किंतु वह इंकार भी नहीं कर पा रहा था। इसी खींच-तान में उसने एक कार ड्राईवर से बात की और तय किया कि वह अकेला ही जायेगा। किसी को भी साथ नहीं ले जायेगा। यहाँ तक कि उसने अपने कार्यस्थल पर किसी को बताया भी नहीं कि वह शादी करने जा रहा है। ग्रीष्मावकाश होने के कारण मनोज के साथी अपने-अपने पैतृक आवासों पर भी गये हुए थे। मनोज अपने कार ड्राईवर को भी रास्ते में ही बताया था कि वह शादी करने जा रहा है और आवश्यकता पड़ी तो शादी में उसे साक्षी बनना पड़ सकता है। ड्राईवर भी मुस्करा पड़ा था। वाह! क्या बात है? दूल्हे के साथ अकेला वही बराती है।

Tuesday, August 1, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१६"

शादी की तिथि निर्धारित हो जाने के बाद ही मनोज का तनाव बढ़ने का समय आ गया था। माया से बात करने पर पता चला कि वह शादी के लिए खरीददारी करने के लिए गयी थी। मनोज पहले ही स्पष्ट कर चुका था कि वह अपने या अपने परिवार के लिए कोई भी वस्तु या किसी भी रूप में धन स्वीकार न करेगा। इसके बाबजूद माया के द्वारा शादी के लिए खरीददारी मनोज की समझ से बाहर थी। मनोज ने बार-बार माया से खरीददारी करने को मना किया। किंतु वह हँसकर टाल देती कि कुछ विशेष नहीं खरीदा है। एक दिन जब माया ने बताया कि वह मनोज के लिए व उसके परिवार वालों के लिए कपड़े खरीद कर लायी है। मनोज ने माया के भाई को फोन करके कह दिया कि वह शादी नहीं हो सकती। माया के भाई का कहना था कि लोगों को दिखाने के लिए कुछ तो करना पड़ता है। फिर भी आप कहते हैं तो हम वापस करवा देंगे। मनोज को यह दिखावे का जीवन ही तो पसन्द न था। आज समाज की यही वास्तविकता है। हम सब कुछ दिखावे के लिए करते हैं। मनोज को शादी से पूर्व ही शादी टूटती हुई नजर आने लगी। फिर भी उसने सोचा कि अभी शादी के चाव में माया कुछ ध्यान नहीं दे रही। आगे समय के साथ सब कुछ समय जायेगी।
मनोज स्पष्ट कर चुका था कि माया प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी प्रकार का धन चाहे वह रोकड़ के रूप में हों या वस्तु के रूप में नहीं लायेगी। माया को केवल अपने वैयक्तिक वस्त्र व आभूषण लाने की छूट दी गयी थी। उसके बाबजूद परंपरा के नाम पर मनोज के लिए कुछ खरीदने की बात करना संबन्ध बनने से पूर्व ही खतरे में डालने वाली बात थी। हद तो तब हो गयी जब मनोज को मालुम चला कि माया ने अभी तक अपन बैंक खाता बन्द नहीं किया है। मनोज ने परेशान होकर स्पष्ट रूप से मना कर दिया कि वह शादी न करेगा। मनोज के इस प्रकार मना करने के बाद माया के व उसके भाई के लगातार फोन आने लगे। वे बार-बार अपनी परेशानी बता रहे थे। माया का भाई कहने लगा कि इस प्रकार सभी प्रकार की तैयारियाँ होने के बाद हम तो समाज में मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे। उसने यह भी कहा कि माया ने तो यह सुनकर खाना-पीना ही छोड़ दिया है। कुछ भी हो मनोज बैंक खाते के साथ माया को स्वीकार करने को तैयार न था। मनोज का मानना था कि जब पहले से ही सब कुछ बता दिया था तो अब उसके पालन में हीला-हवाली क्यों? आखिर बार-बार के एस.एम.एस. आने के बाद माया का एस.एम.एस. आया कि उसने अपना बैंक खाता बंद कराकर सारे रूपये अपनी माँ के खाते में जमा करा दिये हैं। मनोज ने उन लोगों की परेशानी को ध्यान में रखकर शादी करने की सहमति दे दी। माया व माया के भाई ने उसे आश्वासन दिया था कि वे किसी भी प्रकार का सामान नहीं लायेंगे।