"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-१७"
माया व उसके भाई के मायाजाल में फंसकर मनोज ने शादी के लिए सहमति तो दे दी थी, किंतु घटनाचक्र ने उसके उत्साह को समाप्त कर दिया था। मनोज ने माया को स्पष्ट कर दिया था कि उसने अपने किसी भी सगे-सम्बन्धी की शादी में भाग नहीं लिया है। यहाँ तक कि वह अपने सगे भाइयों और बहनों की शादी में भी नहीं गया। इस कारण उसके साथ भी किसी के आने की संभावना नहीं थी, यह बात उसने माया को स्पष्ट रूप से बता दी थी। उसके बाबजूद माया बार-बार प्रयास करती रही कि मनोज के घर वाले शादी में सम्मिलित हों। प्रारंभ में मनोज को भी लगा था कि घर से कोई सम्मिलित होगा तो ठीक होगा। उसने इसके लिए अपनी बहन से बात भी की थी। किंतु बाद में माया की बातों से ही मनोज को अजीब सा महसूस होने लगा। मनोज को लगने लगा कि किसी का भी जाना, उचित नहीं होगा। अतः उसने स्वयं ही अपनी बहिन से इंकार कर दिया था। मनोज अजीब सी स्थिति में फंस गया था। शादी से पूर्व ही उसे अजीब सा लगने लगा था किंतु वह इंकार भी नहीं कर पा रहा था। इसी खींच-तान में उसने एक कार ड्राईवर से बात की और तय किया कि वह अकेला ही जायेगा। किसी को भी साथ नहीं ले जायेगा। यहाँ तक कि उसने अपने कार्यस्थल पर किसी को बताया भी नहीं कि वह शादी करने जा रहा है। ग्रीष्मावकाश होने के कारण मनोज के साथी अपने-अपने पैतृक आवासों पर भी गये हुए थे। मनोज अपने कार ड्राईवर को भी रास्ते में ही बताया था कि वह शादी करने जा रहा है और आवश्यकता पड़ी तो शादी में उसे साक्षी बनना पड़ सकता है। ड्राईवर भी मुस्करा पड़ा था। वाह! क्या बात है? दूल्हे के साथ अकेला वही बराती है।
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