Sunday, April 30, 2017

शादी बिन भरतार

प्रेम नाम धोखे मिलें, रिश्ते नाम हो लूट।

राष्ट्र नाम कुर्सी तकें, लूटन की फ़िर छूट॥



सती न अब आदर्श है, धन ही है सब सार।

धन देख कर शादी हो,पति को दें फ़िर मार॥



शिक्षा नहीं साक्षर बनें, रटे हुए कुछ तथ्य।

मूल्य हीन मानव हुए, सार हीन हैं कथ्य॥



प्यार बिना विशवास के, शादी बिन भरतार।

धोखे से शादी रचें, बचा मुझे करतार॥



एक छाड़ि दूजा मिला, छोड़ा वो भी यार।

घर के बिन घरनी बनी, न्याय दिया है मार॥



दोहा छोटा छ्न्द है, हमको इससे प्यार।

ज्यों पल में प्रेमी मिले, मिले नहीं भरतार॥

शिक्षक शिक्षा के बिना

नहीं किसी पर पकड़ है, ना कोई अधिकार।

समझ और सम्बन्ध से, उड़ती है पतवार॥


उनका ही स्वागत यहां, जिनको ना है चाह।


जो स्वारथ बस आत हैं, उनको है बस आह॥


गुरु नहीं नौकर फ़िरें, शिष्य नहीं, हैं छात्र।


जग में वो ही मिलत है, जिसका है जो पात्र॥


शिक्षक शिक्षा के बिना, छत्र बिना हैं छात्र।


ज्ञानवान वह बनत है, नहीं ज्ञान का पात्र॥

चाहत चली, चिन्ता चुकी

चाहत चली, चिन्ता चुकी, नहीं रहे अरमान।

जैसे भी हैं ठीक है, ना चाहत सनमान॥


तू सब कुछ अर्पण करे, चाह न फ़िर भी मान।


जो तुझको हैं लूटते, गात प्रेम का गान॥



साथी तू अब खोज ना, खोज न सुख की धार।


साथ न तुझको मिल सके, धोखा दे बस यार॥







Wednesday, April 12, 2017

विश्वासघात की पीड़ा

जांच और बिन विश्लेषण,व्यक्ति करे विश्वास।

विश्वासघात की पीड़ा, हरदम रहती पास॥



हम तो पथ के पन्थी है, नहीं किसी के साज।

राही को ठग लूटते, फ़िर भी बढ़ता काज॥



जो असत्य पथ पर चलें, सरपट उनसे भाग।

साथी कह जो छल करें, मानव तन में काग॥



अपना कह कर जगत में, क्यों बांधत हैं लोग।

जबरन जो है बांधता, ना कोई है जोग॥



धोखे की ठोकर मिले, फ़िर भी बढ़ते लोग।

जीवन भर भी ठगी कर, शाह का ना संयोग॥



मुफ़्त खोर को ना कभी, मिलता जग में चैन।

मखमल पर भी ना कभी, उनके मुदते नैन॥



अपना हम जिसको कहें, ना कोई है मीत।

शिकारी भी शिकार कर, गात प्रेम के गीत॥



विश्वास की ही आड़ ले, धोखा देते लोग।

प्रेम का फ़न्दा बना के, करते ये उपभोग॥



अपना कर्म ही साथी, और न कोई साथ।

झूठे व्यक्ति का बन्दे, चाह न कोई हाथ॥



धोखेबाज राह खड़े, सावधान हो राह।

पैसा ही देव जिनका, प्राण लेत वो चाह॥



साथ की चाहत ना कर, राह ही साथी जान।

दो कदम साथ चल सके, मांगत है वो दाम॥



अपना साथी आप बन, चाह न कोई हाथ।

गले काटने को यहां, चलते हैं बस साथ॥



छियालीस के हो चुके, जीवन रह उस पार।

अनुभव ने है सीख दी, ना कोई है यार॥



शिकारी के फ़न्दे फ़ंसे, बने फ़िर हैं शिकार।

शिकार का मरना भला, सुनता कौन पुकार॥



मित्रता के नाम यहां, बिछे राह में जाल।

सम्बन्धी उसके बने, होत गांठ में माल॥



धोखा खाकर सीख है, सावधान मत सोय।

ठोकर से जो चोट है, पाठ पढ़े सुख होय॥



सोने को अब जात हैं, बीती काफ़ी रात।

फ़ेसबुक ना बात बने, बिन किए मुलाकात॥



Monday, April 10, 2017

ये ही है सच धर्म

 
                                         
किसी और का दोष ना, भोग रहे निज कर्म।

मन की कर कहते रहे, यही हमारा धर्म।।


चेहरे हैं मुस्काते, अन्दर रहे तनाव।

दवा पर्स में रहत है, छल ही करत जनाब।।


शिकवा-शिकायत भूलें, याद रखें बस कर्म।

क्षण-क्षण का उपयोग कर, बढ़ें यही है धर्म।।


लघु जीवन कुछ हाथ ना, हाथ हमारे कर्म।

संचय ना तू कर्म कर, यही धर्म का मर्म।।


धोखा दे, छलना करे, करे न अपना कर्म।

मुफ्तखोर बनकर भला, क्या जीवन? क्या? शर्म।।


झूठ और छल छदम से, नष्ट होत सत्कर्म।

तनाव ही बस मिलत है, जो करते दुष्कर्म।।


अपने बल पर बढ़त हैं, जो करते हैं कर्म।

पल-पल का उपयोग कर, यह विकास का मर्म।।


धोखा दे कर लूटकर, नहीं करत हैं शर्म।

रोम-रोम है छल भरा, घण्टी बजाकर धर्म।।


धर्म की बस बात करत, फैलाते पाखण्ड।

लूटन को तत्पर रहत, कर समाज के खण्ड।।


मन मन्दिर दूषण भरा, खोजे मन्दिर धर्म।

कर्तव्य नहीं, हक चाहिए, बने बात बेशर्म।।


बिना वृक्ष फल चाहिए, सफल बने बिन कर्म।

छल से ही माँगत दुआ, ढीठ बने बेशर्म।।


मन्दिर-मस्जिद छोड़कर, कर ले अपना कर्म।

सबके हित में कर्म कर, ये ही है सच धर्म।।