Sunday, April 30, 2017

शादी बिन भरतार

प्रेम नाम धोखे मिलें, रिश्ते नाम हो लूट।

राष्ट्र नाम कुर्सी तकें, लूटन की फ़िर छूट॥



सती न अब आदर्श है, धन ही है सब सार।

धन देख कर शादी हो,पति को दें फ़िर मार॥



शिक्षा नहीं साक्षर बनें, रटे हुए कुछ तथ्य।

मूल्य हीन मानव हुए, सार हीन हैं कथ्य॥



प्यार बिना विशवास के, शादी बिन भरतार।

धोखे से शादी रचें, बचा मुझे करतार॥



एक छाड़ि दूजा मिला, छोड़ा वो भी यार।

घर के बिन घरनी बनी, न्याय दिया है मार॥



दोहा छोटा छ्न्द है, हमको इससे प्यार।

ज्यों पल में प्रेमी मिले, मिले नहीं भरतार॥

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