Wednesday, December 30, 2015

अन्दर रिश्ता और था, बाहर राखी बाँधी हाथ

प्यार किया किसी और को, मस्ती और के साथ।

अन्दर रिश्ता और था,  बाहर  राखी बाँधी हाथ।

धन के लालच फिर फँसी, हमें भी फँसाया साथ।

सच बोल,  विश्वास कर,  अब पीट रहे हम माथ।

कितने चाहिए नोट?

विश्वास पर की आपने विश्वासघात की चोट।


पोल खुली जब आपकी हम में निकालें खोट।


झूठ, छल, कपट की यह सीख कहाँ से पाई?


विश्वास का यूँ खून किया, कितने चाहिए नोट?

संशयों से भरी हों दो बात तो होंगी

सोचते हैं आपसे मुलाकात तो होगी

संशयों से भरी हों दो बात तो होंगी

हम तो इसी उम्मीद में जीते हें सनम

गुस्सें में भले हों आप साथ तो होंगी।

Tuesday, December 29, 2015

हमें भुलाने के प्रयत्न

आपको हमें भुलाने के प्रयत्न भले ही नहीं करने पड़ें।

यादों को कुचलने के प्रयत्न भले ही नहीं करने पड़ें।

हम तो प्रयत्न भी कर नहीं सकते आपको भुलाने के,

भले ही आपको पाने के प्रयत्न जन्म-जन्म करने पड़ें।

Monday, December 28, 2015

आज भी हम चाहते हैं उसी तरह

आपको आज भी हम चाहते हैं उसी तरह

आपके आज भी हम निहारते हैं किसी तरह

आप भले ही जबाब न दो हमारे खतों के,

हम तो आज भी खत बन आते हैं उसी तरह।

Sunday, December 27, 2015

काश! हम आपके रूमाल ही बन पाते

काश! हम आपके रूमाल ही बन पाते।


चेहरा साफ करते, आपके होठों से लग जाते।


आपकी मुस्कराहट के भी होते हम ही साक्षी,


यदि कभी नयनों से बहते अश्रु हम उन्हें पी जाते।

Saturday, December 26, 2015

संसार


मुस्करा के इन्कार कर पायें

हम कर रहे इन्तजार उस पल का जब आपके दीदार कर पायें।


हम आप हों आमने-सामने और हम आपको इजहार कर पायें।


समय चक्र घूमता ही रहता नित, किन्तु एक बार फिर हों हम,


सामने आपके, और आप हमें देख, मुस्करा के इन्कार कर पायें।

Friday, December 25, 2015

जो पाया है उसे सभालो, सृजन प्रकृति से नहीं है पाया

खोटा सिक्का नहीं हो तुम भी



एक रुपये के  नोट को  तुमने, एक हजार  कह  हमें चलाया।

खोटा सिक्का नहीं हो तुम भी, अपना मूल्य है अधिक लगाया।।

झूठ बोलकर मूल्य न बढ़ता,

छल-कपट तो मति है हरता।

गलती स्वीकार, सुधार करे जो,

व्यक्ति वही  शिखर पर चढ़ता।

हमने सब कुछ सौंप दिया था, तुमने सब कुछ सब से छिपाया।

खोटा सिक्का नहीं हो तुम भी, अपना मूल्य है अधिक लगाया।।

सब कुछ सच-सच बताया होता,

समर्पण का जज्बा दिखाया होता।

प्रेम, विश्वास और सेवा से ही,

संबन्ध का बिरवा लगाया होता।

मुड़े-तुड़े  और फटे  नोट को, तुमने  हमको नया बताया।

खोटा सिक्का नहीं हो तुम भी, अपना मूल्य है अधिक लगाया।।

अति विश्वास की भेंट चढ़े हम,

विश्वासघात के शिकार बने हम।

भिन्न-भिन्न हैं अपने पथ अब,

महफिल सजो तुम, अकेले रहे हम।

जो पाया है  उसे सभालो,  सृजन  प्रकृति से नहीं है पाया।

खोटा सिक्का नहीं हो तुम भी, अपना मूल्य है अधिक लगाया।।

राष्ट्रप्रेमी की है सशर्त बधाई

सशर्त बधाई

दो हजार पन्द्रह का पुनः अवलोकन, सोलह की करो योजना भाई।

ज्ञान, भाव और कर्म मिले तो, राष्ट्रप्रेमी की है सशर्त बधाई।।


मौज-मस्ती भी तभी मिलेगी, व्यस्त रहो कुछ कर्म भी कर लो

स्वार्थ भी पूरे तब ही होंगे, सुरक्षित समाज की रचना कर लो

कानूनों से ही सुरक्षा न मिलेगी, अन्तर्मनों को शिक्षित कर लो

अधिकारों को झगड़े बहुत हो, कर्तव्यों की कुछ सुध कर लो

समानता, स्वतंत्रता और बंधुता, न्याय की भी तो करो कमाई।

ज्ञान, भाव और कर्म मिले तो, राष्ट्रप्रेमी की है सशर्त बधाई।।

लूटपाट, अपहरण, बलात्कार अब तजने का संकल्प करो।


दोषारोपण बहुत हो चुका, कुछ करने का संकल्प करो।

मनुष्य न बन, अपराधी बनते, शिक्षालयों का संकल्प कर।

अपराध मुक्त यदि समाज बनाना, सद् शिक्षा का संकल्प करो।

नकल मुक्त शिक्षालय हो तो, सदाचारी सब बनेंगे भाई। 

ज्ञान, भाव और कर्म मिले तो, राष्ट्रप्रेमी की है सशर्त बधाई।।


सरकार बदली वर्ष भी बदली, स्वयं बदलने की बारी है।

केवल सरकार न कुछ कर पाये, समाज की भी जिम्मेदारी है।

अपेक्षा बहुत पाली है अब तक, समझे कर्म से  भी यारी है।

केवल सरकार पर निर्भर होकर करते हम अपनी ख्वारी है।

सरकार अपना काम है करती, हम भी अपना कर लें भाई!

ज्ञान, भाव और कर्म मिले तो, राष्ट्रप्रेमी की है सशर्त बधाई।।

आशिक बहुत हैं पास तुम्हारे

झूठ बोलकर हमें फँसाया, साथ न तुमको चलना था।
साथी तुम्हारे दिल में बैठा, हमको तो वश गलना था।
षड्यंत्रों की जनक बड़ी हो, बनना उसी की ललना था।
पागल थे हम साथी खोजा, हमें तो अकेले ही चलना था।

गेम खेलने का शोक तुम्हें है, खेल तुम्हारा अपना था।
अपने धन को पास रखो तुम, लूटो हमें जो सपना था।
आशिक बहुत हैं पास तुम्हारे, जिन्हें नाम तुम्हारा जपना था।
जहाँ जाओगी, मिलेंगे वहाँ भी, मिटेंगे, हमको मिटना था।

जाओ वहीं और सुखी रहो तुम, जिसकी गोद में पलना था।
तुमने तोड़ा, टूट गये  हम, टूटा वह  भी  जो सपना था।
तुम्हें  मुबारक,  तुम्हारा  साथी, रोना  हमारा  अपना था।
जिसको चाहा, उसको भोगो, लुटते  हैं हम,  लुटना  था।

Thursday, December 24, 2015

अवगुण भी आपके हमें, सदैव लगते दुलारे हैं

आपकी ही नहीं चाहत आपके गुण हमें प्यारे हैं।


अवगुण भी आपके हमें, सदैव लगते दुलारे हैं।


मान-अपमान का नहीं ख्याल हमको रहा,


हम तो जान सब कुछ आप पर ही बारे हैं।

Wednesday, December 23, 2015

आपके बिना हर खत अंजाना लगता है

आपके चाहत का ही यह प्रभाव लगता है।


आपके बिना हर लम्हा बेगाना लगता है।


खत तो आते ही रहते हैं अक्सर किन्तु,


आपके बिना हर खत अंजाना लगता है।

Tuesday, December 22, 2015

हर शक्लोसूरत आपकी ही नजर आती है

हर फोन कॉल आपकी नजर आती है।

हर शक्लोसूरत आपकी ही नजर आती है।

जिसे भी सुनते हैं, हर आवाज लगती वही,

हर पल हमें हमारी सरकार नजर आती हैं।

Monday, December 21, 2015

आपने क्या जादू कर डाला

समझ न पाये अपने आपको

आपने क्या जादू कर डाला

बांध न पाया जिसको कोई

आपके नाम की जपता माला।


बिना आपके चैन मिले ना

बिना आपके नैन खुलें ना

आपही है दिल की मलिका

बिना आपके होठ हिलें ना।

Sunday, December 20, 2015

इंकार में छिपा आमंत्रण, अब भी याद आता है

आपका हँसता हुआ वो चेहरा याद आता है।


होठों का मुस्काता गुलाब, अब भी याद आता है।



मधुरता लिए हुए वो गुस्सा था कितना मनोहर,


नयनों में बसा वो प्रेम, अब भी याद आता है।



मुस्कराने की वो अदा, वो ढलती हुई जवानी,


इंकार में छिपा आमंत्रण, अब भी याद आता है।



कुछ भी करने की चाहत, वो संदेहों के घेरे,


साथ निभाने का वायदा, अब भी याद आता है।



अविश्वास भरा विश्वास, सन्देह भरा समर्पण,


लोक-भय भरा आलिंगन, अब भी याद आता है।

Saturday, December 19, 2015

मरते हैं हम थोड़ा-थोड़ा

तुम्हें तुम्हारे रंग मिल जाएँ, हमने है रंगो को छोड़ा।


सारे रिश्ते तुम्हें मुबारक, अन्दर हो तुम, सबको छोड़ा।


तुम सारी खुशियों को जी लो, मरते हैं हम थोड़ा-थोड़ा।


तन से भले ही दूर रहो तुम, मन ने नहीं है रिश्ता तोड़ा।

छल-कपट से क्यूं दबातीं?

प्रेम का रस तो अन्दर बहता

हिय में से क्षण-क्षण है रिसता

छल-कपट से क्यूं दबातीं?

जो है आपके अन्दर बसता।

आप भले ही हमें ठुकराओ

दूर भले ही हम से जाओ

हम आपको भूल न सकते

पीछा छूटे, विष दे जाओ।


Friday, December 18, 2015

प्रेम को बस देना आता है

प्रेम न होता

समय का बन्दी

कभी था में ना

परिवर्तित होता

प्रेमी वियोग में 

हरदम रोता


प्रेम न होता 

उड़ता पंक्षी

छोड़ कभी भी

नहीं उड़ सकता

आप भले ही समझ न पाई

मैं तो देखो राह ही तकता


जिनका प्रेम मिट जाता है

प्रेम का वह तो नहीं नाता है

वह तो केवल स्वार्थ ही होता

वासना ही के गीत गाता है

प्रेम में नहीं कोई चाहना होती

प्रेम को बस देना आता है।

Thursday, December 17, 2015

बांकी पूछ


बांकी पूछ-१


बांकी पूछ-२


नारी का कविता ब्लॉग: तुमने कहा था...

नारी का कविता ब्लॉग: तुमने कहा था...

खिली कली ने चाह जगाई

नीलाकाश में थे

भटकते हम

राह न पड़ती थी दिखाई

न थी चाह

किसी के साथ की

खिली कली ने चाह जगाई


चाह जगी जब 

कली छिटक गई

जिन्दगी अपनी राह भटक गई


एक बार फिर उसको देखा

समझा खुल गई किस्मत रेखा

हाथ कली की तरफ बढ़ा जब

एक बार फिर हाथ झटक गई।

Wednesday, December 16, 2015

बैठी नहीं आप हमारे रथ में

चाहा था 
हमने
आपके साथ 
जी लेंगे 
चन्द क्षणों की
इस जिन्दगी को
आपने भी तो
स्वीकार किया था
देर से ही सही
हमारी उस बन्दगी को
अचानक 
क्या हुआ?
छा गया
धुंआ
हमारे पथ में
बैठी नहीं आप
हमारे रथ में
हमको भी 
आपने 
फेंक दिया गर्त में
आप जा छुपी
न जाने किस पर्त में।

Monday, December 14, 2015

नयनों के हमारे सामने होंगी

क्या कर रही हैं आप प्रिये, छुट्टी है शायद घर पर होंगी।

हम तो घर को देख न पाये, खुश हैं आप तो निज घर होंगी।

हम पागल हैं, दीवाने आपके, चाह रहे बस आपके दर्शन,

कौन सा दिन वो आयेगा जब, नयनों के हमारे सामने होंगी।

Saturday, December 12, 2015

हम राह तक रहे, मित्र आपके!

आपके कहने से तो हम पहले ही हो चुके आपके।

बात फिर क्यों बदलतीं, अस्वीकारो फिर भी आपके।

मित्र कहा, बनी प्रेमिका, साथ चलने का वो वायदा,

भूल गईं भले आप, हम राह तक रहे, मित्र आपके!

Friday, December 11, 2015

क्या बाँहें फैला भी नहीं सकतीं?

कैसी हैं? क्या कर रहीं हैं? क्या आप हमें बता भी नहीं सकतीं?

न लिखो, न दो जबाब, करती रहो प्रयास, भुला भी नहीं सकतीं?

आपने जो किया, जो नहीं किया, इसका हमको नहीं कोई गिला,

नही आ सकतीं,  आते हैं हम, क्या बाँहें फैला भी नहीं सकतीं?

Thursday, December 10, 2015

आप यदि होतीं पास

शुभ प्रभात आपको कर पाते, सुबह चेहरा आपका निहार।
आपके चेहरे की मुस्कराहट, सोने से पहले पाते हम निहार।
खुशियाँ होती चन्द हमारे भी जीवन में, आप यदि होतीं पास,
रक्त में होता, रोमांच, रोमांस और आपको रहते निहार।

Wednesday, December 9, 2015

तुम तो बस हरजाई हो

घाट-घाट का पानी पीकर, तुम, द्वार हमारे आई हो।

ना समझ थे, समझ न पाये, तुम तो बस हरजाई हो।।

      खुली किताब है, जीवन अपना।

      हमें न किसी का माल हड़पना।

      झूठ, छल, कपट की प्रतिमा,

      हमें न तुम्हारे साथ में चलना।

निर्दयता से जाल में फाँसा, सम्बन्ध भी बने कमाई हो।

ना समझ थे, समझ न पाये, तुम तो बस हरजाई हो।।

      जाति, धर्म और कुल ना कोई।

      जो भी मिला, अपनाया  सोई।

      ‘प्रेम’ शब्द व्यापार  बनाया,

      ऊसर भूमि कहीं जाती बोई?

धन ही धर्म है, धन की धनि हो, धन ही तुम्हारा भाई हो।

ना समझ थे, समझ न पाये, तुम तो बस हरजाई हो।।

      सच के पथिक हैं, साथ न कोई।

      अकेले  चलेंगे, ना खोजें  कोई।

      तुम जिसकी हो, उसे सौंपते,

      काटेंगे  हम,  फसल जो बोई।

शिकारी हो तुम, शिकार बने हम, काटो तुम्हीं कसाई हो।

ना समझ थे, समझ न पाये, तुम तो बस हरजाई हो।।

वह तो नारी पराई थी

‘झूठ के पाँव नहीं होते’ यह पढ़ते सुनते हम आये थे।

विश्वास जमाने  हेतु ही, हमने  सच्चे गीत सुनाये थे।

राष्ट्रप्रेमी का शिकार हो गया, झूठ के शस्त्र चलाये थे।

शिकार बनाने की खातिर, तुमने कितने जाल बिछाये थे।


स्वर्ग नरक हम नहीं  मानते, तुमने ट्रेलर दिखा दिया।

हमने खुद को तुमको सौंपा, और कोई था तेरा पिया।

तुम्हारे साथ में समय जो बीता, पाप किये, नर्क जिया।

एक हाथ से ताली न बजती, तुमने विश्वास घात किया|


हम जिसे अपनी समझ रहे थे, वह तो नारी पराई थी।

शिकार बनाने की खातिर ही, वह तो केवल आई थी।

राष्ट्रप्रेमी है तुम्हारे जाल में, अब मरने की तैयारी में,

खाल खींचकर खुश तुम हो ना, सारी बातें  हवाई थीं?


हाथ-पाँव सब बाँध  के तुमने, मौत की  राह पर डाला है।

डोरी खींचती,  खुश हो होती, करके  मुँह निज काला है।

प्यास लगी थी तुमने पकड़ाया, हमको जहर का प्याला है।

धोखा खाकर समझ गये हम, हमने खुद ही संकट पाला है।

Tuesday, December 8, 2015

जिसको चाहा उसको भोगा

आपकी ही हर जिद हर पल पूरी होती आई है।

जिसको चाहा उसको भोगा, की जो मन को भाई है।

इच्छा है अपनी तो बस एक बार फिर मिल पायें हम,

हम तो हर पल पाट रहें हैं जो बीच हमारे खाई है।

Monday, December 7, 2015

आपकी ऊर्जा से ही हम जीते

आपकी खातिर लिखते हैं हम, आपकी खुशियों हेतु ही छपते हैं।

आपकी खातिर है हमारा हर पल, आपकी खातिर ही तपते हैं।

तन-मन-धन कुर्बान करें जो, इच्छा आपकी पूरी  हम कर पाएँ।

आपकी ऊर्जा से ही हम जीते, आपकी खातिर हर पल खपते हैं।

इजाजत नहीं है

वतन में जुगनू को चमकने की इजाजत नहीं है ,

गुलाब के फूलों को महकने की इजाजत नहीं है ,

राह में दुश्मनों ने बिछाया है जाल  इस तरह से

जिनको देख कर मुस्कराने की इजाजत नहीं है।  


जब से आदमी ने जिन्दगी का तमाशा बनाया  है ,

तब से  हकीकत को समझने की इजाजत नहीं है,

दहशत ने कदम बढ़ाया है आजकल हर इलाके में,

इसलिए हमें अधिक चहकने की इजाजत नहीं है । 


सियासी एकता ने पूरी तरह जकड़ रखा है मंच को,

हर किसी को वहाँ तक पहुँचने की इजाजत नहीं है ,

मजहब को कैद  कर रखा है समाज के ठेकेदारों ने ,

मगर किसी तरह इन्हें परखने की इजाजत नहीं है । 


बेचारी आबरू  बिक रही है  जिन दरिंदों के शहर में ,

पकड़ उनको फाँसी पर लटकाने की इजाजत नहीं है,

निगाहों के सामने रोज होते रहते हैं  तमाम हादसे ,

'
आनंद' के साथ जिन्हें कुतरने की इजाजत नहीं है ।

06-12-2015    
गजलकार- रामप्रीत आनंद (एम॰ जे॰ )
                      जनवि॰  पचपहाड़ , राज ॰

Sunday, December 6, 2015

दूर पड़ी हो यह मजबूरी

आपकी खातिर सबको छोड़ा, आप छोड़ेगीं कहाँ जायेंगे।

हम तो केवल आपको जाने, जहाँ कहोगी, वहाँ जायेंगे।

अधरामृत बस हमें पिला दो, मरते हुए भी जी जायेंगे।

जैसे चाहो वैसा रखना, आप जहाँ रखोगी, रह जायेंगे।


आप ही ने राह दिखाई, शक्ति आप ही बनी हमारी।

पल-पल ही हो शक्ति देतीं, गलत जहाँ, राह सुधारी।

दूर पड़ी हो यह मजबूरी, कभी आपकी, कभी हमारी।

हम तो आते पास आपके, गर्दन काटो ले के दुधारी।

Saturday, December 5, 2015

कुछ ही पलों का मिलन भले हो

कैसे आपको देख पायें हम, निशि-वासर हम स्वप्न निहारें।

मीठी वाणी हम सुन पायें, आप सजी हों, जब भी निहारें।

एक साध है, एक ही इच्छा, आलिंगन में आपको बांधें,

आप हमारी बाहों में हों, अपलक आपको नयन निहारें।


एक बार बस मिलें आप, हम, सब-कुछ ही पा जायेंगे।

भूखा रखोगीं, हम रह लेगें, कपोल आपके बस भायेंगे।

हर बात हम आपकी माने, बाँहों में  आप समायेंगे,

कुछ ही पलों का मिलन भले हो, आपके अन्दर खो जायेंगे।

Friday, December 4, 2015

आप सदैव ही आगे बढ़ना

सलाम! आपको इस प्रेमी का, स्वीकार करो या ठुकराओ।

हम आयेंगे मिलने एक बार फिर, दुत्कारो या गले लगाओ ।

हम अब भी इन्तजार ही करते, शायद अब भी आ जाओ,

आयेंगे आपके दर पर जब भी, बाँहों में भर लो या ठुकराओ।


जिस राह आपको पुष्प मिलें, आप उसी राह पर आगे बढ़ना।

राह में भी यदि पड़े मिलें हम, कुचल के आगे आपको बढ़ना।

हम तो पागल प्रेमी, हैं दीवाने, आपको बुद्धि नित राह दिखाये,

अपने आपको अपना के प्रिये, आप सदैव ही आगे बढ़ना।

Thursday, December 3, 2015

गुस्सा होकर आपने

हमको नहीं अपनी जिंदगी से है कोई गिला।

खुश हैं आपका कुछ पल को जो साथ मिला।

चाहत है कुछ पल और मिल पाएँ आज फिर,

दिल खोल कर दिखला सकें, जो इसमें सिला।


आपने ना हमसे कुछ कहा, ना हमको सुना।

नहीं जान पाये हम, जो ताना था आपने बुना।

बिना समझे कैसे? जी पाते आपके सपनों को,

गुस्सा होकर आपने, फेंक दिया कुछ ना सुना।

Wednesday, December 2, 2015

हमारी चाहत को ना समझ सके, वह बुद्धि कभी कपटी


मैं, तन्हा, अब भी आपको देख रहा हूँ।

आप सामने बैठी हो, मैं आपको घूर रहा हूँ।

गुस्सा होते हुए भी, मुस्कराहट न छिपती,

गीले बाल आइने में खड़ी, देख रहा हूँ।


जो जख्म दिए आपने, वक्त भी, उन्हें भर ना सकेगा।

मरहम नहीं दूसरा, आपके सिवा, कोई लगा ना सकेगा।

हमारी चाहत को ना समझ सके, वह बुद्धि कभी कपटी,

सच्चे दिल, आपको, आपके बिना दिल का जर्रा न मिलेगा।

Tuesday, December 1, 2015

एक बार बस मान जाओ

इतना सब कुछ दे चुकी हो, अपने कुछ पल और दे दो।

आपने अपना तो कहा था, वही बोल कुछ और दे दो।

आप कुछ भी कहो, रहो कहीं, हम अब भी आपको ही बसाये,

एक ही अब आश, एक आकांक्षा, एक बार और दर्श दे दो।


नाम आपका है लवों पर, नयनों में चेहरा बसा है।

दिल में आपका प्रेम सुरक्षित देख लो कैसा कसा है।

जिद छोड़ दो कुछ ही पलों को, एक बार बस मान जाओ,

तड़पाया है युगों से, दे चुकीं जो, क्या कम सजा है?


आपसे मिलने को हरदम, हम योजनाएँ हैं बनातें।

आपको एक पल निहारे, हम यही मनौती मनाते।

आप क्यों दिल कड़ा करतीं, अपने अन्दर तो निहारो,

एक बार बस झांक लो, जिस हिस्से को हम हैं सजाते।

Monday, November 30, 2015

सिर के बल हम दौड़ सकते

नहीं मालुम क्या लिखें, मस्तिश्क अब खाली हुआ।

आपके बिन सूना है यह घर, उर भी वीराना हुआ।

आपने ही था जिलाया, यह नाचीज परवाना हुआ।

अपने को तो हो दूर करतीं, क्यों जीने की देतीं दुआ?


संसार के बंधन में फंसकर, आपको ना छोड़ सकते।

रिश्ता कोई ना भले हो, प्रेम से मुँह ना मोड़ सकते।

आप हमारी संघटक हो, आप बिन हम हैं अधूरे।

आप जहाँ भी हो खड़ी, सिर के बल हम दौड़ सकते।

Sunday, November 29, 2015

http://www.shtyle.fm/writing.do?id=163775 से साभार ली गयी कविता

तथाकथित "असहिष्णुता" पर एक देशभक्त की रचना

by: Suman K (on: Nov 27, 2015)
Category: Poem   Language: Hindi 
tags: ***

अभिनेता आमीर खान के बढ़ती 'असहिष्णुता' के बयान पर जयपुर 
के कवि अब्दुल गफ्फार की ताजा रचना 
****************************** 

"तूने कहा,सुना हमने अब मन टटोलकर सुन ले तू, 
सुन ओ आमीर खान,अब कान खोलकर सुन ले तू," 

तुमको शायद इस हरकत पे शरम नहीं आने की, 
तुमने हिम्मत कैसे की जोखिम में हमें बताने की 

शस्य श्यामला इस धरती के जैसा जग में और नहीं, 
भारत माता की गोदी से प्यारा कोई ठौर नहीं 

घर से बाहर जरा निकल के अकल खुजाकर पूछो, 
हम कितने हैं यहां सुरक्षित, हम से आकर पूछो 

पूछो हमसे गैर मुल्क में मुस्लिम कैसे जीते हैं, 
पाक, सीरिया, फिलस्तीन में खूं के आंसू पीते हैं 

लेबनान, टर्की,इराक में भीषण हाहाकार हुए, 
अल बगदादी के हाथों मस्जिद में नर संहार हुए 

इजरायल की गली गली में मुस्लिम मारा जाता है, 
अफगानी सडकों पर जिंदा शीश उतारा जाता है 

यही सिर्फ वह देश जहां सिर गौरव से तन जाता है, 
यही मुल्क है जहां मुसलमान राष्ट्रपति बन जाता है 

इसकी आजादी की खातिर हम भी सबकुछ भूले थे, 
हम ही अशफाकुल्ला बन फांसी के फंदे झूले थे 

हमने ही अंग्रेजों की लाशों से धरा पटा दी थी, 
खान अजीमुल्ला बन लंदन को धूल चटा दी थी 

ब्रिगेडियर उस्मान अली इक शोला थे,अंगारे थे, 
उस सिर्फ अकेले ने सौ पाकिस्तानी मारे थे 

हवलदार अब्दुल हमीद बेखौफ रहे आघातों से, 
जान गई पर नहीं छूटने दिया तिरंगा हाथों से 

करगिल में भी हमने बनकर हनीफ हुंकारा था, 
वहाँ मुसर्रफ के चूहों को खेंच खेंच के मारा था 

मिटे मगर मरते दम तक हम में जिंदा ईमान रहा, 
होठों पे कलमा रसूल का दिल में हिंदुस्तान रहा 

इसीलिए कहता हूँ तुझसे,यूँ भड़काना बंद करो, 
जाकर अपनी फिल्में कर लो हमें लडाना बंद करो 

बंद करो नफरत की स्याही से लिक्खी 
पर्चेबाजी, 
बंद करो इस हंगामें को, बंद करो ये लफ्फाजी 

यहां सभी को राष्ट्र वाद के धारे में बहना होगा, 
भारत में भारत माता का बनकर ही रहना होगा 

भारत माता की बोली भाषा से जिनको प्यार नहीं, 
उनको भारत में रहने का कोई भी अधिकार नहीं" 

आप वार करके जा चुके हैं

आपको बस चाहते हैं, हम तो सब को बतला चुके है।

आप ने छिपकर था,  चाहा, प्रेम को झुठला चुके हैं।

प्रेम है बकवास केवल, आपने जब हमसे कहा था,

घायल है दिल आज भी, आप वार करके जा चुके हैं।


आप पहुँची दूर इतनी, मरहम भी क्या लगा सकोगी?

स्पर्श ना करो, ना सही, निज भावों से सहला सकोगी?

पुष्पों का मकरन्द पीकर, एक नजर ही देख लो बस,

काँटों में भी जीते हैं हम, एक झलक दिखला सकोगी?

Saturday, November 28, 2015

फ़ेसबुक पर भारती भारत की पोस्ट


आपके बिन मोह किससे? ना प्रेम ही अब शेष है

प्रेम ना कर सकीं, ईर्ष्या भी हमें मंजूर है।

ना हुआ राग आपको, विराग भी मंजूर है।

संयोग ना हो सका, वियोग भी है कब तलक,

अवधि बता दो, आपके साथ जहन्नुम भी मंजूर है।



आपके बिन नहीं जग में, रस कोई अब शेष है।

आपके बिन नहीं जग में, हमारा कोई अब वेश है।

आपको खोकर के जीते किस तरह यह देख लो बस,

हृदय नहीं, न है आत्मा, काया तुम्हारी, अब शेष है।


नहीं रहा कोई मित्र जग में, जीवन का ना लेश है।

आपके बिन मोह किससे? ना प्रेम ही अब शेष है।

प्रेम के बिन समझोगी नहीं तुम, मानव यंत्र विशेष है,

हमको नहीं सुख-दुख कोई अब, ना अपेक्षा, ना द्वेष है।



आपकी ही राह तकते, जीवन जीते जा रहे हैं।

आँसुओं को तो प्रिये हम, अन्दर पीते जा रहे हैं।

आप ना मिलो, हम मान जायें, हाल आपके जान जायें,

यही रहा यदि हाल हमदम, आपके पास ही आ रहे हैं।


हमने आपको सौंप दिया, अब किसके भरोसे रहे यहाँ पर।

नहीं है हमारी यहाँ जरूरत, हम भार बन रह गये जहाँ पर।

अपना समझते थे,  हमें जो, आज वह भी जान गये हैं,

हम तो केवल आपके हैं, आप कहें, हम जायें कहाँ पर?

Friday, November 27, 2015

पहले बुलाया, गले लगाया, दूर हटो, फिर कह गयीं

याद ही बस आपकी अब पास हमारे रह गयीं।

कल्पना थी साथ की, जल के बिना ही बह गयीं।

क्या खता थी? आप हम को वह बताती रह गयीं।

झेल लो अब वियोग अग्नि, नहीं यह भी कह गयीं।

नजरों में बसी थीं तब, दिल में समाकर बह गयीं।

पहले बुलाया, गले लगाया, दूर हटो, फिर कह गयीं।

ना दूर थे, ना दूर हैं अब, बैठे वहीं जहाँ कह गयीं।

आओगी कभी, अब भी आश, भले नहीं तुम कह गयीं।

Wednesday, November 25, 2015

इन नारियों से बचो


पारदर्शिता सुख की जननी

भावनाओं में जीते हैं जो, आप तो उनको मूरख कहतीं।

हानि-लाभ व्यापार आपका, बता दो जान, खुश हो रहतीं।

हमने जीवन, बस यूँ ही छोड़ा, गंगा जल बहता  सीधा है।

काश! कभी हो इच्छा आपकी, करो स्नान देख इसे बहती।

डरकर जीवन जीना जानम, हमने नहीं अब तक सीखा है।

अन्दर बाहर एक रहो बस, कृत्रिम, आदर्शों का विष तीखा है।

क्या छुपायें? क्यों छुपाये? जो भी किया वह, पाहन रेखा है।

पारदर्शिता सुख की जननी, निष्कपटता जीवन-गीता है।

Tuesday, November 24, 2015

सांझ-सकारे कोई निहारे

हमने प्रेम को सब कुछ समझा,

 सब कुछ है कुर्बान किया।

हमने समझा जीवन प्रेम है, 

प्रेम को पूरा मान दिया।

सभी प्रेम के भूखे धरा पर, 

आपको भी बेहाल किया।

भटक गये हो, खुद को भूले, 

प्रेम का ही अपमान किया।

कण-कण देखो यहाँ पुकारे

हमको प्रेम से कोई पुकारे

दिल में से आवाज एक ही,

सांझ-सकारे कोई निहारे ।

Monday, November 23, 2015

आपने होकर किनारे

आपने चाहा था कभी, हम आसमां के बनें सितारे।

जमीं भी तो जुदा है कर दी, आपने होकर किनारे।

हम जी रहे इस आश में हैं, आपके दर्शन तो होगें,

आप सामने जब भी होगीं, खोल देगें हिय पिटारे।

आपके तन की महक ही, आज भी तन में बसी है,

देखते हैं जिधर भी हम, उन्हीं अधरों की हँसी है।

आप तो रहीं जाँच करती, हमने दिल बैठा लिया था,

अन्तर झाँक कर देखो जरा, मूरत आपकी ही बसी है।

Sunday, November 22, 2015

कोई नहीं यहाँ साथ देता

काश! हम तुम्हें भूल पाते, जीवन जीना जान पाते।

कोई नहीं यहाँ साथ देता, तथ्य को हम मान जाते।

हम तो बस भावुक ही ठहरे, छोड़ना सीखा नहीं है,

स्वार्थ हित समझौते करना, काश! हम स्वीकार पाते।

जाओ आप, खुशियाँ ही ढूढ़ों, हम तो यूँ जीते रहेंगे,

आपकी खुशियों को लखकर, हम भी मुस्काते रहेंगे।

काँटों में खेले हैं हम तो, सुमन आपको हों मुबारक,

सुधा आपको मिलता रहे बस, हम तो विष पीते रहेंगे।

Saturday, November 21, 2015

आपही सरताज अपनी

जीते ही नहीं आनन्द से हैं, मेहरबानी आपकी है।

शहनाइयों की चाह नहीं, बस कद्रदानी आपकी है।

काम में डुबा लिया है अब,यह रोशनाई आपकी है।

प्रेम का क्या हस्र होता, यह सिखावट आपकी है।

आपको कैसे भूल सकते, आपही हमराज अपनी।

आप तो हिय में विराजीं, आपही सरताज अपनी।

आपने ही है सिखाया, चलते रहना ही जिन्दगी है,

आप अब भी अन्दर विराजीं, आपही हमराह अपनी।