याद ही बस आपकी अब पास हमारे रह गयीं।
कल्पना थी साथ की, जल के बिना ही बह गयीं।
क्या खता थी? आप हम को वह बताती रह गयीं।
झेल लो अब वियोग अग्नि, नहीं यह भी कह गयीं।
नजरों में बसी थीं तब, दिल में समाकर बह गयीं।
पहले बुलाया, गले लगाया, दूर हटो, फिर कह गयीं।
ना दूर थे, ना दूर हैं अब, बैठे वहीं जहाँ कह गयीं।
आओगी कभी, अब भी आश, भले नहीं तुम कह गयीं।
कल्पना थी साथ की, जल के बिना ही बह गयीं।
क्या खता थी? आप हम को वह बताती रह गयीं।
झेल लो अब वियोग अग्नि, नहीं यह भी कह गयीं।
नजरों में बसी थीं तब, दिल में समाकर बह गयीं।
पहले बुलाया, गले लगाया, दूर हटो, फिर कह गयीं।
ना दूर थे, ना दूर हैं अब, बैठे वहीं जहाँ कह गयीं।
आओगी कभी, अब भी आश, भले नहीं तुम कह गयीं।
ये आश भी बस अजीब है प्रिय .
ReplyDeleteहटाने से भी जाती नहीं ,
बार बार तंग करने चली आती है .
दिल के किसी कोने में ,
अमर बेल की तरह लिपट जाती है .
दबी यादों को झंझोर कर कह जाती है ,
फिर से मैं वही आश हूँ.
पुकार लोगे बस फिर एक बार