Thursday, November 19, 2015

पथरीले रास्तों की थकान



जीवन यात्रा के 

पथरीले रास्तों की थकान

कुछ पल चाहा विश्राम,

लहर की मुस्कान

चाहत थी 

पीयेंगे नारियल का

 मृदु शीतल जल

एक हो जायेंगे 

सागर तट पर

 धरती और अम्बर

मालुम न था, 

सागर में आयेगा तूफान,

रोयेगा आसमान

हम होंगे हैरान

 बिखरेगी आपकी मुस्कान।



राधा और कृष्ण

उद्धृत किए थे

जब आपने

लगता था 

आपके हृदय में भी है

प्रेम बीज रूप में

सीचनें से बनेगा वृक्ष!

पल्लवित और पुष्पित होगा

फल भी लगेंगे 

जब हम मिलेंगे

शायद मैं सींच नहीं पाया

और आपके उर का अंकुर

झुलस गया समाज की

कड़ी धूप से।

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