Wednesday, November 18, 2015

प्रसन्न रहो बस, जैसी भी हो

कहना चाहूं कहा नहीं जाये


अनुभूति आप समझ न पाये


दिल की भाषा जुबान न जाने


प्रेमी ही इस गीत को गायें।



आप कहाँ हो? कैसी हो?


चाहा था क्या वैसी ही हो?


हम तो केवल दुआ ही करते,


प्रसन्न रहो बस, जैसी भी हो।


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