तुमने तन ही दिया भले हो, हमने मन भी बारा है।
हमको सब कुछ अच्छा लगता, जो भी तुमको प्यारा है।।
नहीं किसी से ईर्ष्या हमको
नहीं बाँधना चाहे तुमको
हमें भले ही ना मिल पाया,
जीवन-रस मिल जाये तुमको।
हिमगिरि तब था भाया हमको, अब सागर का किनारा है।
हमको सब कुछ अच्छा लगता, जो भी तुमको प्यारा है।।
नेत्रों से जल, कभी न निकसे
हृदय-कुमुद रहे हरदम विकसे
अधरों पर मुस्कान रहे नित,
आप नहीं, अब हम ही सिसके।
स्वार्थों की मारी मति ने ही तो, प्रेम से छीना सहारा है।
हमको सब कुछ अच्छा लगता, जो भी तुमको प्यारा है।।
मृग-मरीचिका है अब अपनी,
मरूथल में है माला जपनी
अपनी जान जहाँ में खोई,
नहीं किसी की जान हड़पनी।
विस्तृत जग आमन्त्रित करता, याद तुम्हारी कारा है।
हमको सब कुछ अच्छा लगता, जो भी तुमको प्यारा है।।
क्षिति जल पावक गगन समीरा
देखो कैसे भये अधीरा ?
अवशोषण नासूर बना अब
कौन लगाये इसको चीरा।
धरा ही नहीं, आसमान भी, देखो हमने फाड़ा है।
हमको सब कुछ अच्छा लगता, जो भी तुमको प्यारा है।।
जल को भी, हमने नहीं बक्शा
वायु भी फेलाये गमछा
पावक को भी बाँधा नर ने,
कब तक इसका चलेगा चमचा।
प्रकृति के आड़ोलन ने ही, भय का झण्डा गाड़ा है।
हमको सब कुछ अच्छा लगता, जो भी तुमको प्यारा है।।