Sunday, February 2, 2014

समलैंगिकता का कुष्ठ मिटे

शीत ऋतु अब बीत गई है, कोयल गा बसन्त के गीत


न्याय कुमुद भारत में विकसे, जनतंत्र पाये फिर जीत।
शीत ऋतु अब बीत गई है, कोयल गा बसन्त के गीत।।
शिक्षालयों में शिक्षा की कामना,
जलाशयों में जल की कामना।
गर्भ में भी सुरक्षित हो नारी,
सुरक्षा बलों में सुरक्षित भावना।
राजनीति में नीति आये फिर, दहेज बिना मिले मन का मीत।
शीत ऋतु अब बीत गई है, कोयल गा बसन्त के गीत।।
कानून मंत्री कानून न तोड़े,
तत्र नहीं जन का सिर फोड़े।
न्यायालयों में न्याय मिल सके,
पीड़ित पर ना पड़ें हथोड़े।
नर-नारी संग-साथ रहें मिल, ऐसी बनायें अब हम रीत।
शीत ऋतु अब बीत गई है, कोयल गा बसन्त के गीत।।
समलैंगिकता का कुष्ठ मिटे,
भ्रष्टाचार का कलंक मिटे।
शिक्षक-छात्र सदाचारी बनें,
शिक्षालयों से धुंध हटे।
राष्ट्रप्रेमी हरियाली हो और सुन्दर सुमन खिलें हो पीत।
शीत ऋतु अब बीत गई है, कोयल गा बसन्त के गीत।।


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