Tuesday, February 11, 2014

हे पिक! छिप जा घर में जाकर

हे पिक! छिप जा घर में जाकर



हे पिक! छिप जा घर में जाकर।
निरापद यहाँ कोई राह नहीं है,
विषैलेपन की थाह नहीं है।
जिनको रक्षक समझ रही तू,
ऐसी उनकी चाह नहीं है।
आग उगलते आम यहाँ पर!
हे पिक! छिप जा घर में जाकर।


शिक्षक नहीं, नौकर हैं यहाँ पर,
नेता नहीं, जोकर है यहाँ पर।
प्रशासक शिक्षा के माफिया,
अपराधी ही शाह यहाँ पर।
बसन्त झुलसता आज यहाँ पर!
हे पिक! छिप जा घर में जाकर।


घर भी सुरक्षित नहीं है लगता,
मसलें कली, फूल नहीं खिलता।
मर्यादा ही विकास पथ रोके,
कागज का ही, फूल है बिकता।
क्या पायेगी? यहाँ गा-गाकर!
हे पिक! छिप जा घर में जाकर।


नहीं फूल अब यहाँ हैं खिलते,
भ्रमर भी अब नहीं मचलते।
 तितली तेजाब से डरती हैं,
आस्तीनों में साँप ही पलते।
राष्ट्रप्रेमी डरता, प्रेम भी पाकर!
हे पिक! छिप जा घर में जाकर।
 


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