Sunday, March 20, 2011

परम-गुरू अध्यापक हो गये, नकल कराई होली में।


सबका चेहरा काला होग्या

सबका चेहरा काला होग्या
अबकी बार तो होली में,
भ्रष्टाचार के रंग है भाई
यहां जन-जन की झोली में।


भ्रष्टाचार की कैसी ललक है
जन-जन को इस होली में
किसानों के भी कर्ज माफ
हो जायं चुनाव की होली में।


राजाजी भी खूब ही खेले
कलमाड़ी भी होली में
हसन अली भी रंग में रंग गये
बचे न थामस होली में।


ब्यूरोक्रेट पर रंग चढ़ गया
भ्रष्टाचार का होली में
मजदूरों की पौ बारह हैं
मनरेगा की होली में।


सांसदों की भी निधि बढ़ गई
अबकी बार फिर होली में
भ्रष्टाचार का रंग है गहरा
सरकारी इस झोली में।


छात्रों पर भी रंग चढ़ गया
नकल की पावन होली में
परम-गुरू अध्यापक हो गये
नकल कराई होली में।

Saturday, March 19, 2011

जीवन के रंग- होली के संग

होली की शुभकामनाएं

समस्त मित्रो को होली की हार्दिक शुभकामनाएं.
होली के रंग- बिखेरे आपके जीवन में उमंग.
डा.सन्तोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
९९९६३८८१६९
होली- संबन्धो का प्रबन्धन
आओ कहानी पढ़ें

Wednesday, March 16, 2011

काम की तरंग अंग-अंग में समाई ऐ


     होरी कौए हुरदंग फरकत अंग-अंग



होरी कौए हुरदंग फरकत अंग-अंग,
होरी की उमंग अंग-अंग में समाई ऐ।
रंगन कौए घोर  नृत्य करत चहुं ओर,
नांचत हैं गोप एक गोपिका नचाई ऐ।
झूमि रहे अंग-अंग नचत हैं सिगु संग,
काम की तरंग अंग-अंग में समाई ऐ।
धाम,वाम और बाग  साथ-साथ मटकत,
होरी की हुरंग मोहि बरसाने लाई ऐ।।

चंहु ओर ऐ बसन्त रंगन कौ नाएं अन्तु
लाल, हरौ, बैंगनी, गुलाबी मन भायौ ऐ।
लायो इतनो सौ रंग जिहु सिगु डारि दियौ,
लला तू दिखाय हमें औरू कहा लायौ ऐ।
हमने तौ होरी कहि गारी सिगु गाइ दईं,
तू तौ बतराइ लला, तैंनै कहा गायो  ऐ।
नांचु नेकु देखि लऊं,नांचि लला ठाड़ो हे कैं,
तू तौ खूब नाचत हो, काहे शरमायो  ऐ।।

चोप करि केसर लगायो याने अंगन पै,
हेरि लायो ग्वाल-बाल,हुरियारो आयो ऐ।
हरौ,लाल,गुलाबी,अरूण,आसमानी रंगु,
लाल पोल लाल रंगु लाल ने लगायो ऐ।
होरी आइवे ते हिय नेह रस रंगि गयौ,
ग्वाल सिगु हरे रंगे रंगी ब्रज नारी ऐं।
राष्ट्रप्रेमी हियरा सरूप रस रंगि दयौ,
रंगि रहीं गैल-गैल,गैल रंगि डारी ऐं।।

होरी हंसावत होरी खिलावत,
होरी ही जरावत मानस कौ तम।
होरी भुलावत,गुन सिखलावत,
होरी मिलावत प्रेमिन को सम।
होरी ऐ नगर में,होरी ऐ मन में,
होरी से कांपत पापिन कौ मन।
होरी मारत, होरी बचावत,
नरसिंह नंचावत,नांचत हैं हम।।

होली के बहाने गुरूजी की तोड़ दी खाट


होली
                                        

                                       होली,
                                       परम्परा को मारे गोली,
                                       खूब करो हुल्लड़,
                                       गुरू के सिर पर,
                                       फोड़ दो कुल्लड़।


                                       गरिमा,
                                       गुरू-भक्ति,
                                       दहन कर दो होरी में
                                       अच्छा मौका है,
                                       आज,
                                       गुरूजी को,
                                       डाल दो मोरी में।


                                       कक्षा में पिलाते थे डॉट
                                       आधुनिक शिष्य,
                                       होली का बहाना,
                                       आज,
                                       गुरूजी की तोड़ दी खाट।

छात्राओं के साथ, कमर लचकाई


                 होली है भाई
                         

                              मास्टर जी ने,
                              होली 
                              कुछ इस तरह मनाई,
                              छात्रों को बुला,
                              स्नेह प्रदर्शन कर,
                              अश्लील गाने गाकर,
                              छात्राओं के साथ,
                              कमर लचकाई
                                      होली है भाई। 

होली में हुल्लड़ करो, हल्ला करो हजूर


गौपिन नै घेरि लिये हैं


होली में हुल्लड़ करो, हल्ला करो हजूर।
होली खेलन के लिए,भए आज मजबूर।।
भए आज मजबूर, गोपिन ने घेर लिए हैं।     
घेर-घेर कर आज तो रंगरेज बनाय दिए हैं।।
हर हालत में हरदेवी कूं आज हरी करि डारौ।
लाल रंग है लालवती को,लाल रंग है जापे डारौ।।
हरे रंग कौ हरण करि हरे रंग सूं रंगौ दुपट्टा।
राष्ट्रप्रेमी अब सम्भलि,गुलाबी गुलाबो पै मारै झपट्टा।।

होली की पावन वेला में, मित्रो तुम्हें मुबारक होली


होली कैसे मनावेंगे?

होली की पावन वेला में,
                 मित्रो तुम्हें मुबारक होली।
मिठाई गुलाल पास नहीं,
                 मित्रों मंहगी हो गई रोली।।
महंगी हो गई रोली ,                         
                 अब होली कैसे मनावेंगे।
घरवाली की सूची लेकर ,                      
                 बाजार कैसे जावेंगे।।
बाजार कैसे जावेंगे ,
            चालीस रूपये मांगे रिक्शे वाला।
पिछली बार की होली को तो,
                 ले गया था बच्चों को साला।।
ले गया था बच्चों को साला,
                 अब तो रोना आता है।
राष्ट्रप्रेमी अब तो रंग भी,
                 पचास रुपये तोला आता है।।

भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में


भारत देश है आज जल रहा 
              
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में,
अर्थी चली असंख्यों बाला, बैठ न पाईं डोली में।
लाखों ने अपनी कन्या की ,मांग सिन्दूर से भरने को,
दी जीवनाहुति असंख्यों अपनी शरम की बोली में।


जाके पैर न फटी बिबाई, वो क्या जाने पीर पराई,
जिन पर बीती वही जानते,मकान बेच कर करी सगाई।
गहने अपना जिस्म रख दिया,सिर्फ मांग की बोली में,
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।


फिर भी रूकी न अर्थी देखो,मानवता की भाषा में,
लड़के वाले दहेज मांगते और धनी की आशा में।
लड़कों की बिक्री होती है,बाजारों की बोली में,         
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।


कन्या नहीं दान की वस्तु, सम्पत्ति में पूरा हक है,
पैतृक सम्पत्ति की वारिस, शिक्षा पर पूरा हक है।
मालिक वह खुद ही होगी, दहेज न होगा रोली में 
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।


केवल विरोध से दहेज न मिटता, कुछ और हमें करना होगा,
शिक्षा और अधिकार जुटाकर, नारी को खुद बढ़ना होगा।
आर्थिक शक्ति पाये जब वह, कोई न डाले झोली में ।
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।


बेटी पाये विकास के अवसर,खुद ही आगे बढ़ लेगी,
पुरूष बने नहीं भाग्य विधाता, अपना पथ खुद गढ़ लेगी।
भ्रूण हत्या कर मिटाओ न उसको, वश लालच की खोली में
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।


अब तो समझो लड़के वालो,कन्याओं की शादी में,
नहीं बटाओ हाथ इस तरह, तुम ऐसी बबार्बादी में।
आग लगे,ऐसे दहेज को हैवानों की टोली में,
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।


तुमको भी दुख होगा, जब क्षण विपरीत का आयेगा,
या यह बेबश का पैसा, तुम्हें नरक ले जायेगा।
कटु सत्य है,बुरा न मानो,राष्ट्रप्रेमी की बोली में,
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।

सब कहते हैं होली-होली,किन्तु अभी होली झांकी है।


सब कहते हैं होली-होली
        

सब कहते हैं होली-होली,किन्तु अभी होली झांकी है।
जब तक हैं हिरण्यकश्यपु जीते,तब तक तो होली बाकी है।
जिसको मां का ध्यान नहीं, पुकार न सुनता जनता की।
जनता करूण क्रन्दन करती, आह निकलती जनता की।
भारत मां डायन कहने वालों की, संग है जब तक टोली।
सब कहते हैं होली-होली,किन्तु अभी होली झांकी है।


कुर्सी की खतिर तो यहां नित हो ती खातिरदारी है।
प्रधानमन्त्री पद पर करते, सब अपनी दावेदारी है।
क्या हुआ जनता ने, सत्ता दल का कर दीना निपटारा।
जो लोग सत्ता में आये, उनका भी है वही पिटारा।
नहीं गारण्टी अब न मिलेगी जनता को खूनी रोली।
सब कहते हैं होली-होली,किन्तु अभी होली झांकी है।


जब न रहेगा कोई ईसाई,नहीं रहेगा मुस्लिम भाई।
हम सबकी राष्ट्रीयता ही, अब  एक हमारी माई।     
पड़ने न देंगे फूट आपस में , बढ़ने न देंगे खाई।     
बहुसंख्यक,अल्पसंख्यक ना कोई,सब हिन्दुस्तानी भाई।
राष्ट्रीय स्वाभिमान पर मिल मनायें सब होली।
सब कहते हैं होली-होली,किन्तु अभी होली झांकी है।


जनता जग रही है भारत की अब प्रहलाद बन जायेगी।
अब राक्षसी चाल एक भी ,नहीं काम कर पायेगी।
राष्ट्र और संस्कृति विरोधी मिट्टी में मिल जायेंगे।
होगा अम्बर अरूण लाल ,तब देव भी होली गायेंगे।
रामराज्य की आवश्यकता,जनता की निकली टोली।
सब कहते हैं होली-होली,किन्तु अभी होली झांकी है।


भारत मां के सपूत जगेंगे,सच्ची मानवता लायेंगे।
झूंठी शान और शोकत को ,भारत से दूर भगायेंगे।
उपलब्ध साधन और श्रम से ही भारत को चमकायेंगे।
राणा,शिवा आदर्श हमारे,राष्ट्र की खातिर मिट जायेंगे।
राष्ट्रप्रेमी लक्ष्य प्राप्ति हित, लगायें भू-रज रोली।
सब कहते हैं होली-होली,किन्तु अभी होली झांकी है।

Tuesday, March 15, 2011

नारी का कविता ब्लॉग: सोच रहा हैं अरुणा शानबाग का बिस्तर

नारी का कविता ब्लॉग: सोच रहा हैं अरुणा शानबाग का बिस्तर

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वाइफ नहीं, धर्मपत्नी खोजता हूं।


खोज

भवन तो बहुत हैं , गृह खोजता हूं। 
सितारे  बहुत हैं, चांद खोजता हूं।
नर नारी हैं, इंसान खोजता हूं।
कहने को तो सब अपने है,
परचित जहां  में, अपनत्व खोजता हूं।
राम का मुखोटा लगाये, घूम रहे है रावण,
सीता के हरण के बाद भी, 
मुखोटा हटाने को आये , जटायू खोजता हूं।
राम आयें न आयें, विभीषण खोजता हूं।
शासक बहुत हैं, सेवक खोजता हूं।
जंगलों में मंगल की बात है पुरानी,
नगरों में मंगल, मैं खोजता हूं।
अरण्यों में शान्ति तो मिटती जा रही,
वातानुकूलित कक्षों में , शान्ति खोजता हूं।
प्रतिभा,चतुरता व कुशलता सभी,
हैं कायरता द्वारा रक्षित ,
मिले कहीं निडरता,उसे खोजता हूं।
मम्मी मिलीं हैं , मैया खोजता हूं।
वाइफ नहीं, धर्मपत्नी खोजता हूं।
              प्रेमिका नहीं गृहलक्ष्मी खोजता हूं। 
वोटों की खातिर नेता, आते रहते हैं अक्सर,
मैं तो आज फिर से, बापू को खोजता हूं।
मेरी खोज में, सहायक हो ऐसा,
            अपने लिए, एक साथी खोजता हूं। 

जब भी तू आयेगी, स्वागत करुंगा मैं


चाहत
           

जानता हूं मैं, चाहत नहीं हूं तेरी।
कह नहीं सकता,चाहत है तू मेरी।।


चाहत तो चक्कर है,समझ कौन इसको पाया?
जिसने भी, जिसको चाहा,उसने उसको ठुकराया।
ठोंकरें भी लेकिन,सुनो, बुरी नहीं मानी गईं,
जितना जो ठुकराया, उतना ज्ञान उसने पाया।


तू भी मुझको ठुकराले,बुरा नहीं मानूंगा।
प्यार मिले तुझको , मैं रार नहीं ठानूंगा।
चाहत  हो तेरी  जहां, जहां तू खुश रहे,
मैं तो तेरी खुशियों में, अपनी खुशी पा लूंगा।


तेरी चाहत तुझे मिले, दुआ यही करुंगा मैं।
पुष्प मिलें, तुझको, कांटों पै चलूंगा  मैं।
चाहत नहीं है मेरी, इसके सिवा और कुछ,
जब भी तू आयेगी, स्वागत करुंगा मैं।


Monday, March 14, 2011

सरस्वती का चीर-हरण कर, मन्दिर उसका बनवाते हो.


षड्यन्त्रो   के  घेरे   में  घिर

षड्यन्त्रो   के  घेरे   में  घिर,  कैसे, मौन रहा जा सकता ?
संघर्ष किया है हमने हर पल,कैसे आज सहा जा सकता?
खुश हो लो तुम यही समझकर, अभिव्यक्ति को दबा चुके हो.
शालीनता के आवरणों से, सत्य को नहीं ढका जा सकता ?


लोकतन्त्र के गाने गाकर लोकतन्त्र को दफनाते हो.
बातें तो सुन्दर करते हो, जातिवाद को पनपाते हो.
कहते कुछ और करते कुछ हो, सबको ही है मूरख समझा,
जन को इधर-उधर उलझाकर, भ्रष्टाचार को अपनाते हो.




अभिव्यक्ति को दबा के प्यारे, कैसे चैन से रह पाओगे?
निजी स्वार्थ हित भ्रष्ट हुए, फिर कैसे जन को अपनाओगे?
भ्रष्टाचार को गले लगाकर, संस्था का हित किसने साधा?
चापलूसों के घेरे में घिर, क्या सुधार तुम कर पाओगे ?

परीक्षाओं में नकल कराकर, परिणाम दिखाकर इठलाते हो.
सरस्वती का चीर-हरण कर, मन्दिर उसका बनवाते हो.
शत-प्रतिशत हो रजेल्ट भले ही, देश को क्या तुम दे पाओगे?
छात्रों को जब समझ आयेगी, उनसे बस गाली पाओगे.

Sunday, March 13, 2011

नव वसन्त तब ही महकेगा.

नव वसन्त
                            

बच्चे हैं  भारत  का गौरव
कितना भरा है इनमें शौरभ
मन्द-मन्द ये करते कलरव
कल को  बन जायेंगे पौरव.


ये हैं भारत भाग्य विधाता
भेदभाव इनको ना आता
इतने बच्चे एक अहाता
एक गान हर बच्चा गाता.


पढ़े  न कोई  भारत दर्शन
बच्चों के ही कर ले दर्शन
इनमें छुपे सुभाष और वर्मन
इनमें  ही  हैं गान्धी सरवन.


जहां-जहां है इनका पहरा
स्नेह मिलेगा वहीं पै गहरा
चांद भी देखन को है ठहरा
चरण-स्पर्श को सागर लहरा.


 कैसे  हम  नव-वसन्त मनाएं
जब बच्चे भूखे सो जाएं
कागज  बीने रोटी खाएं
फुटपाथों पर रात बिताएं.


आओ इनको गले लगाकर 
इनके कष्टों को अपनाकर
सबको ही शिक्षा दिलवाकर
इन्हें बनायें हम रत्नाकर.


घर-घर स्वत: रंग बिखरेगा
भारत  सोता हुआ जगेगा
अन्धकार  भी दूर  भगेगा
नव वसन्त तब ही महकेगा.

राष्ट्रप्रेमी हस्ती भी तेरी नहीं


समर्पण
              
यह तन न था तेरा कभी
यह मन न था तेरा कभी
नहीं यह पन्थ भी तेरा नहीं
कर दें समर्पण राष्ट्र को।
    न  यह  मेरा  प्राण  है
     इसका न मुझको त्राण है
      नहीं यह बुद्धि भी तेरी नहीं
     कर दे समर्पण  राष्ट्र को।
जो कुछ मिले जो कुछ फले          
जो भेंट में तुझको मिले             
नहीं यह वेश भी तेरा नहीं
कर दे समर्पण राष्ट्र को।
                 न  यह  तेरा  है  परिवार
                      न यह बंगला न यह कार
                  नहीं यह बहार भी तेरी नहीं
                कर  दे समर्पण राष्ट्र को।
जितना भी है वैभव तेरा 
बना ले कितने तम्बू डेरा
राष्ट्रप्रेमी हस्ती भी तेरी नहीं
कर दे समर्पण राष्ट्र को।

Friday, March 11, 2011

वह दीप जलता हृदय किसका ?


वह दीप
              
वह दीप
 जलता हृदय
 किसका ?
              विरह विदग्ध
              नायिका का
              या मारा गया
             जिसका पति है
           आतंकवादियों द्वारा।
  
  वह दीप         
          प्रसन्नता या क्षोभ
    किसका ?
           विलासी आत्मा का
              या पेट के लिए जूझती
            रात को भी अविरल
           काम करती परम आत्मा का।


  वह दीप
    किसका ?
          बच्चे के जन्म पर
          मनाई जाने वाली
     दीवाली का
                   या आतंकवादियों के शिकार 
            बच्चे के मातम का।

Thursday, March 10, 2011

बचपन का कवि ----------दो-पद


            चौरी संग बरजोरी


जमुना कैसे जाऊं री।
कुञ्ज गली या वृन्दावन की राह कैसे मैं पाऊं री।
श्री दामा और मनसुख, मेरी हंसी उड़ावें री।
झट से झटके मोरी बैंया तनिक दया नहीं लावें री।
कंकड़ मारें फट जाय चोली मोरी एक न माने री।
चौरी संग बरजोरी, श्याम बिन पल भी चैन न पाऊं री।        
राष्ट्रप्रेमी दरशन की तड़पन, कैसे तुझको समझाऊं री।।

मैं तो करूं वृन्दावन वास।
वृन्दा सखी को धाम करे सबकी ही पूरी आस।
रमण बिहारी रमण करत हैं और करत हैं रास।
यमुना तेरे चीर हरण पर मेरो बने निवास।
वृन्दावन की मधुर कल्पना,राधा के दरसन की आस।
राष्ट्रप्रेमी  दरसन कौ भूखौ,यमुना जल से बुझेगी प्यास।।
                       

Sunday, March 6, 2011

नकल के गुर सिखलाओ


मैरिट
         डॉ.सन्तोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

प्रधानाध्यापक ने ,
अध्यापक को बुलाया
फरमाया,
हमारा विद्यालय,
लाखों में एक है,
नगर की जनता की,
यही एक टेक है।
इस बार,
प्रान्त में,
कीर्ति ध्वजा फहरानी है,
सबसे अधिक मैरिटें लानी हैं।

बच्चों को सातवीं में,
आठवीं का,
नवीं में दसवीं का,
पाठयक्रम पढ़ाओ,
नकल के गुर सिखलाओ,
तभी वेतन-वृद्धि पाओ,
अन्यथा
गेट से बाहर हो जाओ।

Saturday, March 5, 2011

भावनाएं प्रज्वलित कर चन्दा उगाहना


धर्म
        

मन्दिर,
मस्जिद व चर्च का
नाम लेकर,
भावनाएं प्रज्वलित कर
चन्दा उगाहना 
ए.सी. लगवाना
कंचन व कामिनी के साथ
भगवा हो जाना
दंगे कराना
वोटों का व्यापार कर
मन्त्री बन जाना।

Friday, March 4, 2011

राहत के नाम पर कमीशन खाया है


ठूंठ
                                           
सूखे के बाद
आई बरसात
जन-मन-गण के खिले गात
सूखे विटपों पर
आए हरे पात
तू बता
क्यूं अब तक ठूंठ?
बोलना मत झूंठ
मौन!
 अच्छा, समझा,                                 
तू है,आदमजात
बहुत कुछ छुपाया है,
राहत के नाम पर कमीशन खाया है
किन्तु, बन्धु
अब तो, समय चुनाव का आया है।