चौरी संग बरजोरी
जमुना कैसे जाऊं री।
कुञ्ज गली या वृन्दावन की राह कैसे मैं पाऊं री।
श्री दामा और मनसुख, मेरी हंसी उड़ावें री।
झट से झटके मोरी बैंया तनिक दया नहीं लावें री।
कंकड़ मारें फट जाय चोली मोरी एक न माने री।
चौरी संग बरजोरी, श्याम बिन पल भी चैन न पाऊं री।
राष्ट्रप्रेमी दरशन की तड़पन, कैसे तुझको समझाऊं री।।
मैं तो करूं वृन्दावन वास।
वृन्दा सखी को धाम करे सबकी ही पूरी आस।
रमण बिहारी रमण करत हैं और करत हैं रास।
यमुना तेरे चीर हरण पर मेरो बने निवास।
वृन्दावन की मधुर कल्पना,राधा के दरसन की आस।
राष्ट्रप्रेमी दरसन कौ भूखौ,यमुना जल से बुझेगी प्यास।।
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